संविधान देश की मूलभूत विधि होता है, यह राज्य के शासनतंत्र को उपबंधित करता है और सामजिक अस्तित्व के लिए एक ठोस ढाँचा प्रस्तुत करता है. किसी देश के संविधान का अपरिवर्तनशील होना उसके विकास को कुंठित करता है. प्रगतिशील समाज की आर्थिक, सामजिक और राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने के लिए संविधान में समय-समय परिस्थिति के अनुकूल संशोधन की आवश्यकता पड़ती है. भारतीय संविधान में संशोधन-सम्बन्धी प्रावधान भाग 20 (XX) 368वें अनुच्छेद में किया गया है.
भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया
भारतीय संविधान में डॉ. अम्बेडकर के विचारानुसार, संशोधन की तीन विधायी प्रक्रियाएँ हैं –
- संसद के साधारण बहुमत (simple majority) से
- संसद के दो-तिहाई बहुमत से
- राज्य के विधानमंडल की स्वीकृति से
संसद के साधारण बहुमत से (Simple Majority)
जब सदन में उपस्थित होकर वोट देने वाले सदस्यों का 50% से अधिक किसी विषय के पक्ष में मतदान होता है तो उसे “साधारण बहुमत” कहा जाता है. संविधान के कुछ उपबंधों में amendment संसद के सामान्य बहुमत और सामान्य विधेयक के लिए विनिहित विधायी प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है. संविधान के अंतर्गत निम्नलिखित विषयों में साधारण बहुमत (simple majority) से कार्रवाई की जा सकती है –
- धन विधेयक
- अविश्वास प्रस्ताव/स्थगन प्रस्ताव/निंदा प्रस्ताव/विश्वास प्रस्ताव
- उपराष्ट्रपति को हटाना (लोक सभा के द्वारा)
- आर्थिक आपातकाल की घोषणा
- राष्ट्रपति शासन की घोषणा
- लोकसभा और विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव
- वैसे संविधान संशोधन विधेयक जिनमें राज्यों की सहमति अपेक्षित है
संसद के दो-तिहाई बहुमत से (Special Majority)
संविधान में संशोधन की दूसरी प्रक्रिया प्रथम प्रक्रिया की अपेक्षा कुछ कठिन है. इस प्रक्रिया के अनुसार, संविधान के अधिकांश अनुच्छेदों में संशोधन हेतु विधेयक संसद में पुनः स्थापित हो सकते हैं. यदि ऐसा विधेयक प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों की संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तो उसे राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है और राष्ट्रपति की स्वीकृति से संविधान में संशोधन हो जाता है. संविधान के अधिकांश अनुच्छेदों में संशोधन इसी प्रक्रिया के अनुसार होता है.
राज्य के विधानमंडल की स्वीकृति से
संविधान के उन अनुच्छेदों में संशोधन के लिए जो संघात्मक संगठन से संबंद्ध हैं. यह प्रक्रिया अमेरिकी संविधान के संशोधन के जैसा ही है और उपर्युक्त दो प्रक्रियाओं से अधिक मुश्किल और जटिल है. इस प्रक्रिया के अनुसार, यदि संविधान में संशोधन विधेयक संसद के सभी सदस्यों के बहुमत या संसद के दोनों सदनों के 2/3 बहुमत से पारित हो जाए, तो कम-से-कम 50% राज्यों के विधानमंडलों द्वारा पुष्टिकरण का प्रस्ताव पारित होने पर ही वह राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर वह कानून बन जायेगा. वे विषय एवं अनुच्छेद, जिनमें संशोधन इस प्रक्रिया द्वारा होगा, इस प्रकार हैं –
- राष्ट्रपति के लिए निर्वाचन से सम्बंधित अनु. 54
- संघ की कार्यपालिका शक्ति से सम्बंधित अनुच्छेद 55, 73
- राज्यों की कार्यपालिका शक्तियों के विस्तार से सम्बद्ध अनुच्छेद 162
- संघीय न्यायपालिका से सम्बद्ध अनुच्छेद, भाग 5 का अध्याय 4
- राज्यों के उच्च न्यायालयों से सम्बंधित अनुच्छेद, भाग 6 का अध्याय 5
- केंद्र द्वारा शासित क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय से संबंद्ध
- संघ और राज्यों के विधायी संबंधों से सम्बंधित अनुच्छेद, भाग 11 का अध्याय 1
- संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व से संबंद्ध विषय और
- संशोधन की प्रकिया से सम्बंधित अनु. 368
उपर्युक्त तीनों प्रक्रियाओं के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय संविधान अंशतः नम्य और अंशतः अनम्य है. भारतीय संविधान के निर्माताओं ने अनम्यता और नम्यता के बीच संतुलन स्थापित करने की चेष्टा है.