मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों में अंतर

Sansar LochanIndian Constitution, Polity Notes

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स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद भारत के सामने सबसे बड़ी समस्या थी – संविधान का निर्माण करना. इस उद्देश्य से संविधान सभा का गठन किया गया. संविधान-निर्माताओं ने देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर अनेक प्रावधान (provisions) किए. देश अनेक आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थतियों से जूझ रहा था. इन परिस्थितियों पर काबू पाना आवश्यक था. नागरिकों को अनेक मौलिक अधिकार अपने विकास के लिए दिए गए. मौलिक अधिकारों से ही काम नहीं चल सकता था. नागरिकों के हितों के संरक्षण के लिए कुछ प्रावधान आवश्यक थे. इन्हें राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व के अंतर्गत स्थान देकर राज्य पर यह उत्तरदायित्व सौंपा गया कि वह कानून-निर्माण करते समय इन तत्त्वों को अवश्य ध्यान में रखेगा.

मानव को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकारों की आवश्यकता पड़ती है. अधिकार व्यक्तियों की वे माँगे हैं जो उनके जीवनयापन के लिए अनिवार्य हैं तथा जो राज्य या समाज द्वारा स्वीकृत कर ली गई हैं. परन्तु, मौलिक अधिकार वैसे अधिकारों को कहते हैं जो संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं. मौलिक अधिकार के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें:- मौलिक अधिकार. आज हम मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच अंतर (difference between fundamental rights and directive principles of state policy) को समझेंगे.

मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) और नीति-निर्देशक तत्त्वों (Directive Principles) में प्रधानतः चार अंतर (differences) हैं

1. मौलिक अधिकारों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त है. उनके अतिक्रमण पर नागरिक न्यायालय के पास प्रार्थना कर सकते हैं. लेकिन, नीति-निर्देशक तत्त्वों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त नहीं है, अतः नागरिक न्यायालय की शरण नहीं ले सकते हैं.

2. मौलिक अधिकार स्थगित या निलंबित किये जा साकते हैं, लेकिन नीति-निर्देशक तत्त्व नहीं.

3. मौलिक अधिकारों के अंतर्गत नागरिकों और राज्य के बीच के सम्बन्ध की विवेचना की गई है; लेकिन नीति-निर्देशक तत्त्वों में राज्यों के संबंध तथा उनकी अन्तर्राष्ट्रीय नीति की विवेचना है. इस तरह जहाँ मौलिक अधिकार का राष्ट्रीय महत्त्व होता है, वहाँ नीति-निर्देशक तत्त्वों का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व हो जाता है.

4. मौलिक अधिकारों को पूरा करने के लिए राज्य को बाध्य किया जा सकता है, लेकिन नीति-निर्देशक तत्त्वों के लिए नहीं.

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