राज्यपाल से सम्बंधित विवरण : Governor of India in Hindi

Sansar LochanIndian Constitution, Polity Notes

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भारतीय संविधान द्वारा संघीय पद्धति अपनाई गई है. ऐसी पद्धति जिसमें दो तरह की सरकारें होती हैं. भारत में भी दो तरह की सरकारों की व्यवस्था है – एक केन्द्रीय सरकार तथा दूसरी राज्य सरकार. वर्तमान समय में भारत संघ में 29 राज्य और केंद्र द्वारा शासित 7 क्षेत्र हैं. राज्य का प्रधान राज्यपाल (Governor) कहलाता है. आज हम राज्यपाल की नियुक्ति (appointment), योग्यता (eligibility), कार्य आदि information के विषय में जानेंगे (in Hindi).

राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति

  • राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 155 में प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत की जाती है और अनुच्छेद 156 के अनुसार  राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा.
  • राज्यपाल राज्य का एक सैद्धांतिक प्रमुख होता है क्योंकि वास्तविक शक्तियाँ किसी भी राज्य में वहाँ के मुख्यमंत्री के पास होती हैं.
  • संविधान के सातवें संशोधन के द्वारा 1956 में यह व्यवस्था की गई थी कि एक ही व्यक्ति दो अथवा दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है.
  • संघीय क्षेत्रों में राज्यपाल के बदले उप-राज्यपाल होते हैं जिन्हें अंग्रेजी में लेफ्टिनेंट गवर्नर कहा जाता है.

नियुक्ति- Appointment of Governor

संघ की तरह ही भारतीय संघ के राज्यों में संसदीय शासन पद्धति की स्थापना की गई है. संसदीय शासन पद्धति का आधारभूत सिद्धांत यह है कि राज्याध्क्ष शासन का प्रधान न होकर नाममात्र का प्रधान होता है. अतः, राज्यपाल एक सांविधानिक प्रधान है और वास्तविक कार्यपालिका शक्ति राज्य की मंत्रिपरिषद में ही निहित है. संविधान के अनुसार राज्यपाल को शासन-सम्बन्धी कार्यों में सहायता और मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती है, जिसका नेता मुख्यमंत्री होता है.

राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पाँच वर्षों के लिए होती है. राष्ट्रपति से अभिप्राय केन्द्रीय कार्यपालिका से है. अर्थात्, केन्द्रीय मंत्रिमंडल राष्ट्रपति की औपचारिक स्वीकृति से उसकी नियुक्ति करता है. सामान्यतः: उसकी नियुक्ति में सम्बद्ध राज्य के मुख्यमंत्री का परामर्श ले लिया जाता है. राष्ट्रपति पाँच वर्ष के भीतर भी राज्यपाल को पदच्युत कर सकता है अथवा उसका स्थानान्तरण कर सकता है. वह इस अवधि के भीतर भी राष्ट्रपति के पास त्यागपत्र भेजकर पदत्याग कर सकता है. राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बना रहता है. यद्दपि उसका कार्यकाल पाँच वर्ष का है पर वह नए राज्यपाल के पद-ग्रहण करने के पूर्व तक अपने पद पर रहता है.

राज्यपाल की नियुक्ति क्यों होती है, निर्वाचन क्यों नहीं? – Why appointment, why not election?

संविधान के निर्माताओं ने आरंभ में निर्वाचित राज्यपाल रखने का सुझाव दिया था. संभवतः उनका विचार था कि राज्यों को संघ की इकाई के रूप में अधिकतम स्वायत्तता होनी चाहिए. संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्यों के राज्यपालों का पद निर्वाचित होता है. भारतीय संविधान के निर्माताओं ने इसी से प्रभावित होकर उपर्युक्त सुझाव दिया था. इस सम्बन्ध में अन्य प्रस्ताव यह भी था कि राज्य का विधानमंडल राज्यपाल पद के लिए चार व्यक्तियों को निर्वाचित करे और उनके नाम राष्ट्रपति के पास भेजे. राष्ट्रपति उनमें एक व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त कर देगा. परन्तु, बाद में उन्होंने अपनी धारणा बदल दी और राज्यपाल के स्थान पर नियुक्ति का प्रावधान किया जिसके निम्नलिखित कारण थे – –

  1. यदि राज्यपाल का निर्वाचन विधानमंडल द्वारा होता, तो राज्यपाल और मंत्रिमंडल दोनों एक ही विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी होते. ऐसी स्थिति में वह उस राजनीतिक दल के हाथों की कठपुतली बन जाता, जो उसके निर्वाचन में समर्थन करता. इसके अतिरिक्त, पुनर्निर्वाचन के लिए विधानमंडलीय बहुमत के हाथों में खेलने की प्रवृत्ति उसमें होती.
  2. यदि वह जनता द्वारा निर्वाचित होता, तो राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के मध्य प्रतिद्वन्द्विता उत्पन्न होने की आशंका बनी रहती, क्योंकि दोनों जनता के प्रतिनिधि होते. इस प्रकार शासनयंत्र का संचालन कठिन हो जाता.
  3. संविधान निर्माता यह चाहते थे कि यह पद एक ऐसा पद हो, जो राज्य की राजनीति में स्थायित्व रहने पर एक सांविधानिक अध्यक्ष के रूप में कार्य करे और उस स्थिति के अभाव में यह केन्द्रीय कार्यपालिका का अभिकर्ता बना रहे. इस उद्देश्य की पूर्ति राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति होने से ही संभव थी. इन्हीं कारणों से उसकी नियुक्ति होती है, उसका निर्वाचन नहीं होता है.
  4. उसके निर्वाचन का प्रस्ताव भारत के गरीब देश होने के कारण  भी अस्वीकृत कर दिया गया. निर्वाचन के कारण देश को काफी खर्च का भार सहन करना पड़ता. अतः, आर्थिक बचत के लिए भी राज्यपाल की नियुक्ति का प्रबंध किया गया.

अनुच्छेद 158

संविधान के अनुच्छेद 158 के तहत राज्यपाल नियुक्ति हेतु कुछ शर्तों का उल्लेख है, यह शर्ते हैं –

  1. राज्यपाल संसद अथवा किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता. यदि कोई व्यक्ति जो संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य है, राज्यपाल पद पर नियुक्त होता है तो वह राज्यपाल का पद ग्रहण करने की तिथि से संसद अथवा राज्य विधानमंडल में उसका पद रिक्त माना जाएगा.
  2. राज्यपाल कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा.
  3. राज्यपाल को निःशुल्क आवास, वेतन, भत्ते एवं उपलब्धियाँ तथा विशेषाधिकार प्राप्त होंगे जो संसद विधि द्वारा निर्धारित करे. वर्तमान में राज्यपाल का वेतन 3 लाख 50 हजार रूपये है.

राज्यपाल के लिए योग्यताएँ – Eligibility/Qualifications

इस पद पर वही व्यक्ति नियुक्त हो सकता है जो –

  1. भारत का नागरिक हो.
  2. जिसकी आयु 35 वर्ष से अधिक हो.
  3. जो संसद या विधानमंडल का सदस्य नहीं है और यदि ऐसा व्यक्ति हो तो राज्यपाल के पदग्रहण के बाद उसकी सदस्यता का अंत हो जायेगा. अपनी नियुक्ति के बाद वह किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं रह सकता.

राज्यपाल के कार्य 

  1. वह विधानमंडल के किसी भी सदन को जब चाहे तब सत्र बुला सकता है, सत्रावसान कर सकता है और विधान सभा को, यदि वह उचित समझे, तो विघटित कर सकता है.
  2. वह विधान परिषद् के 1/6 सदस्यों को मनोनीत भी करता है. वह दोनों सदनों को संबोधित कर सकता है या उनमें विधेयक-विषयक कोई सन्देश भेज सकता है, जिसपर सदन शीघ्र ही विचार करेगा.
  3. विधानमंडल के प्रत्येक सदस्य को राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेना पड़ता है.
  4. वह प्रत्येक विक्तीय वर्ष के आरम्भ में उस वर्ष का वार्षिक वित्त-वितरण विधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत करता है.
  5. विधान सभा में उसकी अनुमति के बिना किसी अनुदान की माँग नहीं की जा सकती. जब कोई विधेयक पारित होता है, तब वह उसकी स्वीकृति के लिए भेजा जाता है. राज्यपाल उसपर अपनी स्वीकृति दे सकता है, उसे अस्वीकृत भी कर सकता है या राष्ट्रपति के विचारार्थ रख सकता है.
  6. वह धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक को पुनः विचार करने के लिए विधानमंडल के पास भी भेज सकता है. लेकिन, यदि वह विधेयक पुनः संशोधनसहित या बिना किसी संशोधन के विधानमंडल द्वारा पारित हो जाए, तो उसे अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है.

स्थूल दृष्टि से इसकी वास्तविक स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे राष्ट्रपति की है. अर्थात्, राज्यपाल राज्य का सांविधानिक अध्यक्ष जरुर है पर वास्तव में मंत्रिमंडल और मुख्यमंत्री ही राज्य के वास्तविक शासक होते हैं (The ministers decide and the Governor orders). सामान्तः, वह मंत्रिमंडल के परामर्श की अवहेलना नहीं कर सकता क्योंकि मंत्रिमंडल विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होता है और वह त्यागपत्र दे कर राजनीतिक संकट उत्पन्न कर सकता है. Play Quiz on Indian Governor

राज्यपाल की पदावधि

संविधान के अनुच्छेद 156 के अनुसार – 

  1. राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है.
  2. राज्यपाल राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना त्यागपत्र दे सकता है.
  3. राज्यपाल अपने पदग्रहण की अवधि से पाँच वर्षों तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले. सामान्यतः प्रत्येक राज्य हेतु एक राज्यपाल होता है. किन्तु एक ही राज्यपाल दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है. राज्यपाल पद ग्रहण करने से पूर्व सम्बंधित राज्य के उच्च न्यायालय मुख्य न्यायाधीश अथवा वरिष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष अपने पद की शपथ लेता है.

राष्ट्रपति से अलग कैसे?

राज्यपाल की स्थिति राष्ट्रपति से दो मामलों में भिन्न है –

  1. संविधान कुछ मामलों में राज्यपाल को विवेक के आधार पर कार्य करने की शक्ति देता है. जबकि राष्ट्रपति को ऐसी शक्ति नहीं है.
  2. 42वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति पर मंत्रिपरिषद की सलाह बाध्यकारी बना दी गई है. जबकि राज्यपाल के सम्बन्ध में ऐसा नहीं है.

शक्तियां

  • राष्ट्रपति की भाँति राज्यपाल को भी कुछ कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियाँ मिली हुई हैं.
  • उसके पास कुछ विवेकाधीन अथवा आपातकालीन शक्तियां भी होती हैं.
  • किन्तु राष्ट्रपति की भाँति राज्यपाल के पास कोई कूटनीतिक अथवा सैन्य शक्ति नहीं होती है.

राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां

  • राज्यपाल राष्ट्रपति को इस बात की सूचना अपने विवेक से दे सकता है कि राज्यपाल में संवैधानिक तन्त्र विफल हो गया है.
  • विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राज्यपाल अपने विवेक से रोके रख सकता है.
  • यदि विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं है तो राज्यपाल अपने विवेक से किसी को भी मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है.
  • असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम के राज्यपाल द्वारा खनिज उत्खनन की रॉयल्टी के रूप में जनजातीय जिला परिषद् को देय राशि का निर्धारण करता है.
  • राज्यपाल मुख्यमंत्री से राज्य के प्रशासनिक और विधायी विषयों के बारे में सूचना प्राप्त कर सकता है.
  • राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह अपने विवेक से विधान सभा द्वारा पारित साधारण विधेयक को हस्ताक्षरित करने से मना कर सकता है.
  • इसके अतिरिक्त असम, नागालैंड, मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा कर्नाटक के राज्यपाल को स्थानीय विकास, जनकल्याण तथा कानून व्यवस्था के संदर्भ में कुछ विशेष दायित्व सौंपे गये हैं जिनका निर्वहन वह स्वविवेक से करता है.

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