महात्मा गाँधी की ग्यारह सूत्री योजना – 11 Demands by Gandhi

Dr. SajivaHistory, Modern History

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महात्मा गाँधी ने हिन्सात्मक घटना के चलते (चौरी-चौरा नामक स्थान पर आन्दोलनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को जलाकर मार डाला) असहयोग आंदोलन को बीच में ही स्थगित कर दिया क्योंकि वे अहिंसात्मक आंदोलन के पक्ष में थे.  असहयोग आन्दोलन की असफलता के बाद गाँधीजी 11 फरवरी, 1930 से सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करना चाहते थे. लेकिन देश की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए उन्होंने एक बार सरकार से समझौता करने का प्रयत्न किया और वायसराय लॉर्ड इरविन (Lord Irwin) को एक पत्र लिखकर निम्नलिखित ग्यारह सूत्री माँगें  (11 Demands by Gandhi) पेश की –

महात्मा गाँधी की ग्यारह सूत्री योजना – 11 Demands

1) पूर्णरूपेण मदिरा निषेध (Total Prohibition)

2) विनिमय की दर घटाकर एक शिलिंग चार पेंस कर दी जाए (Exchange Rate should be reduced)

3) भूमि लगान आधा हो और उस पर काउंसिल का नियोजन रहे (Land rate should be halved)

4) नमक कर को समाप्त की जाए (Salt tax should be abolished)

5) सेना सम्बन्धी व्यय में कम-से-कम 50% की कमी हो (Defence expenditure should be reduced by 50%)

6) बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियों का वेतन आधा कर दिया गया (Salaries of top Govt. posts should be halved)

7) विदेशी वस्त्रों के आयात पर निषेध कर लगे (Import of foreign textile should be banned)

8) भारतीय समुद्र तट केवल भारतीय जहाज़ों के लिए सुरक्षित रहे और इसके लिए कानून का निर्माण हो (Indian sea coast should be reserved for Indian ships only)

9) सभी राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया जाए, राजनीतिक मामले उठा लिए जाए तथा निर्वासित भारतियों को देश वापस आने की अनुमति दी जाए (All political prisoners should be released and their political cases should be dropped)

10) गुप्तचर पुलिस हटा दिया जाए अथवा उस पर जनता का नियंत्रण रहे (Secret police should be either abolished or placed under the public)

11) आत्मरक्षा के लिए हथियार की अनुमति दी जाए (Arms for self protection be permitted)

गाँधीजी के इन ग्यारह सूत्रीय मांगों (eleven demands by Gandhiji) पर लॉर्ड इर्विन (Lord Irwin) ने कोई ध्यान नहीं दिया जिससे उनके मन में काफी निराशा हुई और उन्होंने डांडी यात्रा के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ किया क्योंकि अब सरकार के साथ समझौता की कोई गुंजाईश नहीं रही थी.

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