Sansar Daily Current Affairs, 20 December 2018
GS Paper 1 Source: The Hindu
Topic : Commemorative Postage Stamp on Rajkumar Shukla
संदर्भ
भारत सरकार ने हाल ही में राजकुमार शुक्ल पर एक स्मारक डाक टिकेट निर्गत किया है.
पृष्ठभूमि
डाक विभाग उन सुप्रसिद्ध व्यक्तियों को सम्मानित करने के लिए डाक टिकट जारी करता है जिन्होंने जन जीवन में अपना बड़ा योगदान किया है, विशेषकर वे व्यक्ति जो स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं. इस नए टिकट को मिलाकर चालू पंचांग वर्ष में यह विभाग अब तक 43 ऐसे डाक टिकट निकाल चुका है.
राजकुमार शुक्ल कौन थे?
राजकुमार शुक्ल वही व्यक्ति हैं जिन्होंने महात्मा गाँधी का ध्यान बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले यूरोप के लोगों के द्वारा वहाँ के किसानों पर हो रहे शोषण की ओर आकृष्ट किया था. इसके पश्चात् ही महात्मा गाँधी वहाँ गये और 1917 में चंपारण सत्याग्रह आरम्भ हुआ.
चंपारण सत्याग्रह क्या था?
उत्तर बिहार (उस समय इस राज्य का नाम बिहार एवं उड़ीसा था – Bihar and Orissa Province) में नेपाल से सटे हुए चंपारण जिले में नील की खेती की प्रथा थी. इस क्षेत्र में बागान मालिकों को जमीन की ठेकेदारी अंग्रेजों द्वारा दी गई थी. बागान मालिकों ने “तीन कठिया प्रणाली” लागू कर रखी थी. तीन कठिया प्रणाली के अनुसार हर किसान को अपनी खेती के लायक जमीन के 15% भाग में नील की खेती करनी पड़ती थी. दरअसल नील (indigo) नकदी फसल (cash crop) माना जाता था. नकदी अर्थात् जिसको बेचने से अच्छी-खासी आमदनी होती थी परन्तु किसान खुद के उगाये नील को बाहर नहीं बेच सकते थे. उन्हें बाज़ार मूल्य से कम कीमत पर बागान मालिकों को बेचना पड़ता था. यह किसानों पर अत्याचार था. उनका आर्थिक शोषण था. ऊपर से नील की खेती से खेत की उर्वरता भी कम हो जाती थी.
1900 ई. के बाद जब नील की खपत लोग कम करने लगे तो नील (indigo) का दाम बाजार में गिरने लगा. बागान मालिकों को घाटे का सामना करना पड़ा. मगर इस घाटे की भरपाई अंग्रेजों के इशारों पर बागान मालिक उल्टे किसानों से ही करने लगे. किसानों पर नए-नए कर आरोपित किए जाने लगे. यदि कोई किसान नील की खेती नहीं करना चाहता तो उसे अपने मालिक को एक बड़ी राशि “तवान” के रूप में देनी पड़ती थी. उनसे बेगार भी लिया जाता था. चंपारण की खेती करनेवाले किसानों की स्थिति बंगाल के किसानों से भी अत्यधिक दयनीय थी.
नील की खेती के दौरान हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध चंपारण में किसानों (farmers of Champaran) ने हर बार विरोध प्रकट किया. 1905-08 के बीच मोतिहारी और बेतिया से सटे हुए इलाकों में किसानों ने पहली बार बड़े पैमाने पर आन्दोलन का सहारा लिया. इस आन्दोलन के दौरान हिंसा भी हुई लेकिन सरकार और नील किसानों पर इसका कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ा. किसानों पर आन्दोलन करने के लिए मुक़दमे चलाये गए. अनेक किसानों को जेल में डाल दिया गया. लेकिन किसानों ने हिम्मत नहीं हारी. वे अंत तक संघर्ष करते रहे.
इस आन्दोलन में किसानों की सहायता कुछ सम्पन्न किसानों और कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भी की. 1916 ई. में गांधीजी को राजकुमार शुक्ल के द्वारा चंपारण में आमंत्रित किया गया. 1917 ई. में गाँधीजी चंपारण आये. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ अनुग्रह नारायण सिंह, आचार्य कृपलानी और अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं के सहयोग से उन्होंने चंपारण की दयनीय स्थिति का जायजा लिया. बड़ी संख्या में किसान निलहों (बागान मालिकों) के अत्याचारों की शिकायत लेकर गाँधीजी के शरण में पहुँचे. गाँधीजी ने किसानों को अहिंसात्मक और असहयोगात्मक रवैया अपनाने का आग्रह किया. इससे किसानों में उत्साह का नया संचार हुआ और उनके बीच एकता बढ़ी.
चंपारण आन्दोलन के परिणाम
सरकार गाँधीजी की लोकप्रियता को देखकर चिंतित हो उठी. उन्हें जबरन गिरफ्तार कर लिया गया और बिना सर-पाँव के आधार पर उनपर मुकदमा चलाया जाने लगा. लेकिन गाँधीजी को शीघ्र ही छोड़ दिया गया. किसानों के शिकायतों की जाँच के लिए सरकार ने एक समिति बनाई. इस समिति में गाँधीजी को भी एक सदस्य के रूप में रखा गया. समिति की सिफारिशों के आधार पर चंपारण कृषि अधिनियम (Champaran Agrarian Act) बना. इस अधिनियम के जरिये तिनकठिया-प्रणाली को खत्म कर दिया गया. किसानों को इससे बहुत बड़ी राहत मिली. किसानों में नई चेतना जगी और वे भी राष्ट्रीय आन्दोलन को अपना समर्थन देने लगे.
(पढ़ें – चंपारण आन्दोलन)
GS Paper 1 Source: The Hindu
Topic : Goa Liberation Day
संदर्भ
गोवा राज्य ने 18 दिसम्बर, 2018 को अपना 57वाँ मुक्ति दिवस मनाया. इसी दिन गोवा को 450 वर्ष पुराने पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता मिली थी. ऑपरेशन विजय नामक अभियान के माध्यम से स्वतंत्रता मिली थी.
ऑपरेशन विजय क्या था?
पुर्तगाल 1510 ई. से गोवा पर शासन कर रहा था और भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् भी इस पर पुर्तगाल का शासन विधिवत् जारी था. वहाँ के लोग इस शासन से मुक्ति चाहते थे. यह देखते हुए दिसम्बर 17, 1961 को तत्कालीन प्रधानमंत्री (जवाहर लाल नेहरु) ने भारतीय सेना को गोवा में कार्रवाई के लिए भेजा. इस अभियान को “Operation Vijay” नाम दिया गया. इस अभियान में भारत के 30,000 सैनिकों ने गोवा में प्रवेश किया और पुर्तगाल के 3,000 सैनिकों वाली सेना, जो इस आकस्मिक आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी, को काबू में कर लिया. इस अभियान में बहुत कम रक्तपात हुआ और यह पूरी तरह से सफल रहा. अंततः गोवा के साथ-साथ दमन और दीव भी भारत के अंग बन गये और उन्हें एक केंद्र-शाषित क्षेत्र का दर्जा दिया गया. दिसम्बर 18, 1961 को पुर्तगाली गवर्नर जनरल वस्सालो द सिल्वा गोवा, दमन एवं दीव का नियंत्रण भारत सरकार को सौंप दिया.
गोवा विचारमत संग्रह
आगे चलकर 16 जनवरी, 1967 को गोवा में इस बात को लेकर एक विचारमत संग्रह हुआ कि गोवा, दमन और दीव महाराष्ट्र में शामिल होना चाहिए अथवा इन्हें केंद्र-शाषित क्षेत्र ही रहने दिया जाए. इस विचारमत संग्रह का परिणाम भारत सरकार के लिए बाध्यकारी था, अतः सही अर्थों में इसे जनमत संग्रह (referendum) कहना उचित होगा. गोवा के लोगों ने महाराष्ट्र में मिलने के विरुद्ध अपना मत दिया और गोवा पहले जैसा ही संघीय क्षेत्र रह गया. कालांतर में 1987 में जाकर गोवा विधिवत् एक राज्य बन गया.
GS Paper 1 Source: Times of India
Topic : Winter solstice 2018
संदर्भ
इस वर्ष शरद ऋतु का सौर अयनांत (Winter Solstice) दिसम्बर 21 को पड़ रहा है.
शरद ऋतु अयनांत क्या है?
- यह एक खगोलीय घटना है जो प्रत्येक वर्ष तब होती है जब सूर्य अपने सबसे दक्षिणी झुकाव (23.5 डिग्री) पर होता है. दूसरे शब्दों में यह अयनांत उस समय घटित होता है जब उत्तरी ध्रुव सूर्य से सबसे अधिक दूरी पर झुका होता है और परिणामतः इस दिन पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश कुछ ही घंटों तक रह पाता है.
- दिसम्बर के अयनांत के समय सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा के ठीक ऊपर स्थित होता है और इस समय क्षितिज से इतना निकट होता है जितना कि वर्ष भर कभी नहीं होता.
- शरदकालीन अयनांत से दिन बड़े होने लगते हैं और कालांतर में जून में जाकार ग्रीष्मकालीन अयनांत आता है.
- किन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में ऐसा नहीं होता. वहाँ इस समय प्रातः काल जल्दी आ जाता है और संध्या काल देर से आता है. सूर्य भी ऊँचा रहता है और दोपहर की छाया वर्ष भर की सबसे छोटी होती है. दक्षिणी गोलार्द्ध में इस समय लोग सबसे लम्बे दिन और सबसे छोटी रात से गुजरते हैं.
शरद ऋतु अयनांत सदैव दिसम्बर 21 को ही होता है?
- शरदकालीन सौर अयनांत अधिकतर दिसम्बर 21 को ही होता है, परन्तु इसका सटीक समय प्रत्येक वर्ष बदलता रहता है. किन्तु सौर काल (solar time) एवं हमारे उपयोग में आने वाली घड़ी के समय में थोड़ा अंतर होता है जिस कारण अनयान के समय सूर्यास्त सबसे पहले नहीं होता.
- दिसम्बर 21 को ही वर्ष का सबसे छोटा दिन होता है, परन्तु हमारा पंचांग सौर वर्ष से तनिक भिन्न होता है. जहाँ आधुनिक पंचाग में वर्ष में 365 दिन होते हैं और हर चौथे वर्ष एक और दिन जोड़ दिया जाता है, वहीं सौर वर्ष 365.2422 दिनों का होता है. इसलिए शरदकालीन अयनांत दिसम्बर 20, 21, 22 अथवा 23 को भी हो सकता है.
- यद्यपि दिसम्बर 20 अथवा 23 को यह अयनांत बिरले ही पड़ता है. दिसम्बर 23 का अयनांत पिछली बार 1903 को देखा गया था और अब यह 2303 के पहले नहीं होगा.
अयनांत का अर्थ क्या है?
अयनांत शब्द लैटिन भाषा के शब्द “solstitium” से निकला है, जिसका अर्थ है स्थिर सूर्य. इस दिन मकर रेखा पर सूर्य स्थिर प्रतीत होता है. कुछ लोग इस अयनांत को Sun-turn अर्थात् “सूर्य का मुड़ना” यह नाम देते हैं.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : The Intermediate-Range Nuclear Forces (INF) Treaty
संदर्भ
अक्टूबर 2018 में अमेरिका ने यह घोषणा की थी कि वह मध्यवर्ती दूरी आणविक सैन्य समझौते (Intermediate-Range Nuclear Forces (INF) Treaty) से हट रहा है. हाल ही में अबी रूस ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि अमेरिका वास्तव में इस समझौते से अलग हो गया है.
विवाद क्या है?
सर्वप्रथम अमेरिका ने जुलाई 2014 में निर्गत अपने अनुपालन प्रतिवेदन (Compliance Report) में यह आरोप लगाया था कि रूस ने INF समझौते के कुछ प्रावधानों का उल्लंघन किया था जिनमें यह कहा गया था कि रूस और अमेरिका में से कोई भूमि से छोड़े गये 500 से लेकर 5,500 किमी. की क्षमता वाले क्रूज मिसाइल नहीं रखेगा, नहीं बनाएगा अथवा उसका परीक्षण नहीं करेगा.
अमेरिका के विदेश भाग ने इस आरोप को 2015, 2016 और 2017 में भी दोहराया था. दूसरी ओर, रूस इस बात का खंडन करता है कि उसने समझौते का कोई उल्लंघन किया है.
INF Treaty क्या है?
- यह एक सैन्य समझौता है जो 1987 में अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच हुआ था. इसका उद्देश्य 500 से लेकर 5,500 किमी. तक मार करने वाली उन बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों को सदा के लिए समाप्त कर देना था जो भूमि से प्रक्षेपित होते हैं, चाहे वे पारम्परिक मिसाइलें हो अथवा आणविक मिसाइलें.
- यह समझौता ऐसा पहला समझौता था जिसमें विश्व की दोनों महाशक्तियों ने अपने आणविक शस्त्र भण्डार को कम करने, एक विशेष श्रेणी के सारे आणविक हथियारों को ख़त्म करने एवं इस प्रक्रिया के सत्यापन के लिए स्थलीय निरीक्षण करने पर सहमति व्यक्त की थी. इस समझौते के अन्दर दोनों देशों ने मिलकर 2,692 छोटी, मध्यम एवं मध्यवर्ती दूरी की मिसाइलें जून 1, 1951 तक नष्ट कर दी थीं.
- यद्यपि यह समझौता मध्यवर्ती दूरी के हथियारों के लिए था, परन्तु वास्तव में इसके अंतर्गत सभी प्रकार के धरती से छोड़े जाने वाले क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलें भी शामिल थीं, चाहे वे पारम्परिक हों अथवा आणविक.
- INF समझौते के अनुसार सोवियत संघ और अमेरिका यूरोप ही नहीं अपितु संसार में कहीं भी मिसाइलों की तैनाती नहीं कर सकते थे.
- यह समझौता धरती से छोड़ी जाने वाली प्रणालियों पर लागू था. इसलिए दोनों देश हवा और समुद्र से छोड़ी जाने वाली 500 से लेकर 5,500 किमी. मारक दूरी की मिसाइलें तैनात करने के लिए स्वतंत्र थे.
अमेरिका के निर्णय का कूटनीतिक निहितार्थ
- NATO के अमेरिकी साथी-देश INF समझौते से अमेरिका के हटने के विरुद्ध हैं. वे चाहते हैं कि यह समझौता बना रहे और यदि रूस कोई उल्लंघन कर रहा है तो उसको फिर से अनुपालन करवाया जाए. इसलिए यह संभावना है कि यदि अमेरिका औपचारिक रूप से INF समझौते से हट जाता है तो NATO में दरार पैदा हो जायेगी.
- 2010 में अमेरिका और रूस में लम्बी दूरी तक कर मार करने वाली आणविक प्रणालियों के विषय में “न्यू स्टार्ट” नामक संधि हुई थी. यदि अमेरिका INF समझौते से हटता है तो न्यू स्टार्ट संधि पर खतरा उपस्थित हो सकता है और 30 वर्षों के कूटनीतिक परिश्रम पर पानी फिर जाएगा.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : New peace agreement on Yemen
संदर्भ
स्वीडन में एक सप्ताह चली शान्ति वार्ता के अंत में यमन में आपस में लड़ रहे गुट Hodeidah नामक लाल सागर के पास स्थित बंदरगाह में तत्काल युद्ध रोकने के लिए तैयार हो गये हैं.
वे इसके लिए भी तैयार हो गये हैं कि भविष्य में संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में निष्पक्ष सैन्य बल इस देश में तैनात किये जाएँगे और साथ ही एक ऐसा सुरक्षित मार्ग स्थापित किया जाएगा जिसके माध्यम से लोकोपकारी सुविधाएँ पहुँचाई जाएँगी. लड़ाई करने वाले दोनों पक्षों की सेनाएँ 21 दिनों के भीतर समूचे Hodeidah क्षेत्र से हट जाएँगी और इस प्रक्रिया का पर्यवेक्षण संयुक्त राष्ट्र की एक समिति करेगी.
मामला क्या है?
विदित हो कि यमन में हाउती विद्रोही (Houthi rebels) और राष्ट्रपति अब्द्रबूह मंसूर हादी की विश्वासी में कई वर्षों से युद्ध चल रहा है. इस लड़ाई में सऊदी अरब भी 2015 से घुस गया है. उसकी योजना है कि हाउती विद्रोहियों को “सना” से बाहर कर दिया जाए और देश की सरकार को वापस दे दिया जाए. परन्तु चार वर्षों से चल रही लड़ाई के बावजूद न केवल सना अपितु अधिकांश उत्तरी यमन पर हौथियों का नियंत्रण बना हुआ है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार यमन में अभी तक इसके कारण दस हजार लोग मारे जा चुके हैं. साथ ही दोनों पक्षों के हवाई आक्रमणों के चलते इमारतों को क्षति पहुँची है तथा भोजन और दवाई की आपूर्ति दुष्प्रभावित हुई है. फलस्वरूप 12 मिलियन लोग भूक से मरने की कगार पर हैं. यहाँ हाल ही में कोलरा भयंकर रूप से फ़ैल गया था. UNICEF का कहना है कि यमन में हर दस मिनट पर एक बच्चा मर जाता है जबकि उपचार से उसे बचाया जा सकता था.
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