[Sansar Editorial] भारत के लिए निर्धारित 12 राष्ट्रीय जैव-विविधता लक्ष्य – Aichi Biodiversity Targets

Sansar LochanBiodiversity, Sansar Editorial 2018

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Convention on Biological Diversity (CBD)

The Hindu –  DECEMBER 30

हाल ही में भारत ने जैव-विविधता संधि (Convention on Biological Diversity – CBD) के लिए अपना छठा राष्ट्रीय प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया है.

ऐसा करके भारत विश्व के पहले पाँच देशों में से एक, एशियाई देशों में पहला और जैव-विविधता से समृद्ध अत्यंत विविधता वाले देशों में प्रथम देश बन गया है.

प्रतिवेदन के मुख्य तथ्य

  • यह प्रतिवेदन 20 वैश्विक ऐची जैव-विविधता लक्ष्यों (Aichi biodiversity targets) के आधार पर निर्धारित 12 राष्ट्रीय जैव-विविधता लक्ष्यों (NBT) पर हुई अद्यतन प्रगति का ब्यौरा प्रस्तुत करता है.
  • प्रतिवेदन के अनुसार भारत दो लक्ष्यों के मामले में बहुत आगे निकल चुका है जबकि आठ लक्ष्यों की पूर्ति की दिशा में वह सही जा रहा है. शेष दो लक्ष्यों के लिए वह अपना पूरा प्रयास कर रहा है कि 2020 तक वे भी पूरे हो जाएँ.
  • प्रतिवेदन से पता चलता है कि भारत ने अनेक केन्द्रीय एवं राज्य विकास योजनाओं के माध्यम से जैव-विविधता पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष काफी निवेश कर रहा है. निवेश की यह दर 70 हजार करोड़ रू. प्रति-वर्ष है.

CBD क्या है?

  • जैव-विविधता संधि (CBD) एक बहुपक्षीय संधि है और यह विश्व में कानूनी रूप से बाध्यकारी है.
  • यह समझौता Rio Conference, 1992 में हस्ताक्षरित हुआऔर इसे 29 दिसम्बर, 1993 को लागू कर दिया गया.
  • इसके तीन प्रमुख लक्ष्य हैं – i) जैव विविधता का संरक्षण ii) जैव विविधता का अक्षय उपयोग iii) आनुवांशिक संसाधन के उपयोग से उत्पन्न लाभों की उचित एवं समान साझेदारी.
  • प्रशासी निकाय– इसके प्रशासी निकाय में उन सभी देशों के प्रतिनिधि होते हैं जिन्होंने इस संधि पर हस्ताक्षर किये होते हैं.
  • येसभी हर दूसरे वर्ष एक जगह बैठक कर के संधि की प्रगति की समीक्षा करते हैं तथा भविष्य की योजनाएँ तैयार करते हैं.
  • आज की तिथि तक193 देश इस संधि पर दस्तखत कर चुके हैं.

भारत के लिए 2020 तक पूरा करने के लिए निर्धारित 12 राष्ट्रीय जैव-विविधता लक्ष्य

  1. देशवासियों, विशेषकर युवाओं को जैव-विविधता के महत्त्व से अवगत कराना.
  2. देश के केन्द्रीय एवं राज्य योजना निर्माण की प्रक्रिया, विकासात्मक कार्यक्रमों और गरीबी उन्मूलन रणनीतियों के साथ जैव-विविधता को जोड़ना.
  3. पर्यावरण में सुधार लाने और मानव कल्याण के लिए सभी प्राकृतिक आवासों के क्षय, खंडीकरण और नाश की दर को घटाने के लिए रणनीतियों को अंतिम रूप देते हुए उनपर कार्रवाई करना.
  4. बाहरी प्रजातियों और उनके आने-जाने के मार्गों का पता लगाना तथा उनकी संख्या को नियंत्रित करने की रणनीति के विषय में निर्णय लेना.
  5. कृषि, वानिकी और मत्यस्यपालन के सतत प्रबंधन के लिए उपाय अपनाना.
  6. उन क्षेत्रों को संरक्षित करना जहाँ विशेष प्रजातियाँ पाई जाती हों. ये क्षेत्र धरातलीय, तटीय, समुद्री और जलाशय क्षेत्र भी हो सकते हैं.
  7. उपजाए गये पौधों, खेती में काम आ रहे पशुओं और उनकी जंगली प्रजातियों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से मूल्यवान प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक उपाय करना.
  8. पारिस्थितिकी तन्त्र सेवाओं (eco-system services), विशेषकर जल, मानव-स्वास्थ्य, आजीविका एवं कल्याण से जुड़ी सेवाओं की गिनती करना और उनकी सुरक्षा के लिए उपाय करना.
  9. 2015 तक नागोया प्रोटोकॉल के अनुसार आनुवंशिक संसाधनों एवं उनके उपयोग के लाभों को उचित ढंग से वितिरित करने के लिए राष्ट्रीय कानून में आवाश्यक बदलाव लाना.
  10. प्रशासन के अलग-अलग स्तरों पर राष्ट्रीय जैव-विविधता की प्रतिभागितापूर्ण और अद्यतन योजना को कार्यान्वित करना.
  11. जैव-विविधता के विषय में समुदायों के पारम्परिक ज्ञान का उपयोग कर उसे सुदृढ़ करने के लिए राष्ट्रीय पहल करना.
  12. जैव-विविधता के लक्ष्य को पाने के लिए वित्तीय, मानवीय और तकनीकी संसाधनों में वृद्धि करना.

ऐची  लक्ष्य क्या हैं? Aichi Targets

जैव-विविधता संधि (CBD) एक नागोया सत्र में जैव-विविधता के विषय में 20 लक्ष्यों का चयन किया गया था. इन्हीं लक्ष्यों को ऐची लक्ष्य (Aichi Targets) कहा जाता है.

ये लक्ष्य इस प्रकार विभाजित हैं –

लक्ष्य A – जैव-विविधता के नाश के कारणों का पता लगाना.

लक्ष्य B – जैव-विविधता को प्रत्यक्ष क्षति से बचाना और उसके टिकाऊ उपयोग को बढ़ावा देना.

लक्ष्य C – पारिस्थितिकी तन्त्र, प्रजातियों और आनुवंशिक विविधता को बचाने के लिए जैव-विविधता में सुधार लाना.

लक्ष्य D – जैव-विविधता एवं जैव- पारिस्थितिकी सेवाओं का लाभ सब तक पहुँचाना.

लक्ष्य E – जैव-विविधता की समृद्धि के लिए प्रतिभागी योजना निर्माण, ज्ञान प्रबंधन एवं क्षमता संवर्धन के माध्यम से कार्यान्वयन करना.


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