पिछले पोस्ट में हमने सिन्धु घाटी सभ्यता में कृषि के विषय में पढ़ा था. आज इस पोस्ट में हम इस सभ्यता में उद्योग और व्यापार के बारे में चर्चा करेंगे.
सिन्धु घाटी सभ्यता में उद्योग
हड़प्पा संस्कृति में कला-कौशल का पर्याप्त विकास हुआ था. संभवतःईंटों का उद्योग भी राज-नियंत्रित था. सिन्धु सभ्यता के किसी भी स्थल के उत्खनन में ईंट पकाने के भट्ठे नगर के बाहर लगाए गये थे. यह ध्यान देने योग्य बात है कि मोहनजोदड़ो में अंतिम समय को छोड़कर नगर के भीतर मृदभांड बनाने के भट्ठे नहीं मिलते. बर्तन निर्मित करने वाले कुम्हारों का एक अलग वर्ग रहा होगा. अंतिम समय में तो इनका नगर में ही एक अलग मोहल्ला रहा होगा, ऐसा विद्वान् मानते हैं. यहाँ के कुम्हारों ने कुछ विशेष आकार-प्रकार के बर्तनों का ही निर्माण किया, जो अन्य सभ्यता के बर्तनों से अलग पहचान रखते हैं.
पत्थर, धातु और मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण भी महत्त्वपूर्ण उद्योग रहे होंगे. मनके बनाने वालों की दुकानों और कारखानों के विषय में चन्हुदड़ो और लोथल के उत्खननों से जानकारी प्राप्त होती है. मुद्राओं को निर्मित करने वालों का एक भिन्न वर्ग रहा होगा.
कुछ लोग हाथीदांत से विभिन्न चीजों के निर्माण का काम किया करते थे. गुजरात क्षेत्र में उस काल में काफी संख्या में हाथी रहे होंगे और इसलिए इस क्षेत्र में हाथी दांत सुलभ रहा होगा.
हाथीदांत की वस्तुओं के निर्माण और व्यापार में लोथल का महत्त्वपूर्ण हाथ रहा होगा. सिन्धु सभ्यता घाटी से बहुमूल्य पत्थरों के मनके और हाथीदांत की वस्तुएँ पश्चिमी एशिया में निर्यात की जाती थीं. व्यापारियों का सम्पन्न वर्ग रहा होगा. पुरोहितों, वैद्यों, ज्योतिषियों के भी वर्ग रहे होंगे और संभवतः उनका समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा होगा.
हड़प्पाई मनके
सिन्धु घाटी सभ्यता में मृदभांड-निर्माण और मुद्रा-निर्माण के समान ही मनकों का निर्माण भी एक विकसित उद्योग था. मनकों के निर्माण में सेलकड़ी, गोमेद, कार्नीलियन, जैस्पर आदि पत्थरों, सोना, चाँदी और ताम्बे जैसे धातुओं का प्रयोग हुआ. कांचली मिट्टी, मिट्टी, शंख, हाथीदांत आदि के भी मनके बने.
आकार-प्रकार की दृष्टि से मनकों के प्रकार
- बेलनाकार
- दंतचक्र
- छोटे ढोलाकार
- लम्बे ढोलाकार
- अंडाकार या अर्धवृत्त काट वाले आयताकार
- खाड़ेदार तिर्यक (fiuted tapered)
- लम्बे ढोलाकार (long barrel cylinder)
- बिम्ब (disc)
- गोल
- रेखांकित
- दांत की शक्ल
- सीढ़ीनुमा
मनकों के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य
- चन्हुदड़ो और लोथल में मनका बनाने वालों के कार्यस्थल उद्घाटित हुए हैं.
- हड़प्पा से एक हृदयाकार मनका मिला है.
- इन मनकों पर तागे डालने हेतु दोनों ओर से छेद किया जाता था.
- चन्हुदड़ो में इस तरह के पत्थर की बेधनियाँ मिली हैं.
- सेलखड़ी के मनके जितने सिंघु घाटी सभ्यता में मिलते हैं उतने विश्व की किसी भी संस्कृति में विद्यमान नहीं हैं.
- कार्नीलियन के रेखांकित मनके तीन प्रकार के हैं – लाल पृष्ठभूमि पर सफ़ेद रंग के डिजाईन वाले, सफ़ेद पृष्ठभूमि पर काले रंग के डिजाईन वाले और लाल पृष्ठभूमि पर काले डिजाईन वाले. प्रथम प्रकार के मनकों पर डिजाईन तेज़ाब से अंकित किया जाता था और पुनः मनके को गरम किया जाता था. फलस्वरूप स्थाई रूप से सफ़ेद रेखाएँ उभर जाती थीं.
- रेखांकित मनके, लम्बे डोलाकार कार्नीलियन के मनके, सेलखड़ी के पकाए गये छोटे मनके, सीढ़ीदार मनके और मनकों पर तिपतिया डिजाईन सिन्धु घाटी सभ्यता और मेसोपोटामिया की संस्कृतियों के मध्य सम्पर्क के द्योतक लगते हैं. परन्तु यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि –
- सेलखड़ी के मनके सिन्धु सभ्यता में तो अधिक संख्या में मिलते हैं पर मेसोपोतामिया में बहुत ही कम संख्या में ये प्राप्त होते हैं.
- सेलखड़ी के मनकों पर सिन्धु सभ्यता में चित्रण मिलता है पर मेसोपोटामिया के मनकों पर नहीं.
- मनकों के कुछ आकार-प्रकार ऐसे हैं जो सिन्धु सभ्यता में मिलते हैं पर मेसोपोटामिया में नहीं. कुछ मेसोपोतामिया में प्राप्त मनकों के प्रकार सिन्धु सभ्यता घाटी में नहीं मिलते हैं.
उद्योग |
केंद्र |
बर्तन उद्योग |
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो |
धातु उद्योग |
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल |
मनका |
चान्हूदड़ो और लोथल |
चूड़ी उद्योग |
कालीबंगा और चान्हूदड़ो |
कांसा उद्योग |
मोहनजोदड़ो |
ईंट निर्माण उद्योग |
सभी जगह |
हाथीदांत उद्योग |
लोथल |
प्रसाधन सामग्री |
मोहनजोदड़ो और चान्हूदड़ो |
कछुए के खाल से सम्बंधित उद्योग |
लोथल |
सीप उद्योग |
बालाकोट |
मूर्ति निर्माण |
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल |
सिन्धु घाटी सभ्यता में व्यापार और वाणिज्य
सिन्धु घाटी सभ्यता के हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल आदि नगरों की समृद्धि का प्रमुख स्रोत व्यापार और वाणिज्य था. ये सारे व्यापार भारत के विभिन्न क्षेत्रों तथा विदेशों से जल-स्थल दोनों मार्ग से हुआ करते थे. वास्तव में व्यापार के बिना न तो सुमेर की सभ्यता का विकास होता और न ही सिन्धु घाटी सभ्यता का क्योंकि दोनों ही क्षेत्रों में कच्चे माल और प्राकृतिक संपदा का अभाव है.
यदि व्यापारिक संगठन की बात की जाए तो निश्चय ही इतनी दूर के देशों से बड़े पैमाने पर इतर क्षेत्रों से व्यापार हेतु अच्छा व्यापारिक संगठन रहा होगा. नगरों में कच्चा माल आस-पड़ोस तथा सुदूर स्थानों से उपलब्ध किया जाता था. जिन-जिन स्थानों के कच्चे माल का मोहनजोदड़ो में आयात किया जाता था, इनके सम्बन्ध में विद्वानों ने अनुमान लगाया है जिसका हम संक्षेप में नीचे उल्लेख कर रहे हैं –
डामर (बिटूमिन)
मार्शल के अनुसार सिन्धु के दाहिनी तीर पर स्थित फरान्त नदी के तट से बिटूमिन लाया जाता रहा होगा.
अलाबास्टर
यह संभवतः बलूचिस्तान से प्राप्त किया जाता था.
सेलखड़ी
ज्यादातर सेलखड़ी बलूचिस्तान और राजस्थान से लायी जाती थी. इतिहासकार राव का कहना है कि धूसर और कुछ पांडु रंग की सेलखड़ी संभवतः दक्कन से आती थी. उनका यह भी मानना है कि गुजरात के देवनीमोरी या किसी अन्य स्थल से लाई गयी होगी.
चाँदी
यह मुख्यतः अफगानिस्तान अथवा ईरान आयातित होती थी. आभूषणों के अतिरिक्त इस धातु से निर्मित अल्प संख्या में बर्तन भी मिले हैं. राव का कहना है कि यदि कोलार खदान से सोना निकालने वाले चाँदी व सोना अलग कर सकते थे तो लोथल में, जहाँ पर चाँदी का प्रयोग बहुत कम मिलता है (केवल एक चूड़ी और एक अन्य वस्तु जिसकी पहचान कठिन है, ही मिली है), चाँदी कोलार की खान से आई होगी. दूसरा संभावित स्रोत वे राजस्थान में उदयपुर के समीप ज्वार-खान को मानते हैं.
सोना
जैसा इडविन पास्को ने सुझाया है, सोना अधिकतर दक्षिण भारत से आयात किया गया होगा. इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त सोने में चाँदी का मिश्रण है जो दक्षिण के कोलार की स्वर्ण-खानों की विशेषतः है. मास्को-पिक्लिहिल, तेक्कल कोटा जैसे कोलार स्वर्णक्षेत्र के निकटवर्ती स्थलों में नवपाषाण युगीन संस्कृति के संदर्भ में सिन्धु सभ्यता प्रकार के सेलखड़ी के चक्राकार मनके मिले हैं और तेक्कल कोटा से ताम्बे की कुल्हाड़ी भी. इससे दक्षिणी क्षेत्र से सिन्धु घाटी सभ्यता का सम्पर्क होना लगता है. यों ईरान और अफगानिस्तान से भी कुछ सोना आ सकता था और कुछ नदियों की बालू छान कर भी प्राप्त किया जाता रहा होगा. विभिन्न प्रकार के आभूषणों, मुख्यतः मनके और फीतों, के निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता रहा होगा.
तांबा
सिन्धु घाटी और राजस्थान के हड़प्पा स्थलों में तांबा मुख्यतः राजस्थान के खेत्री क्षेत्र से आता था. ताम्बे का प्रयोग अस्त्र-शस्त्र, दैनिक जीवन में उपयोग के उपकरण, बर्तन और आभूषण बनाने में होता था. खेत्री से प्राप्त ताम्बे में आर्सेनिक और निकल पर्याप्त मात्रा में मिलता है और हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के ताम्र उपकरणों के विश्लेषण से उनमें भी यही बात पाई गई. राव के अनुसार ताम्बे का आयात शायद दक्षिणी अरब के ओमान से लोथल में किया जाता था.
टीन
यह धातु शायद अफगानिस्तान या ईरान से आयातित होती थी. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि हजारीबाग़ (झारखण्ड) से भी कुछ टीन आता होगा.
सीसा
यह ईरान, अफगानिस्तान और मुख्यतः राजस्थान (अजमेर) से लाया गया होगा. इसका प्रयोग बहुत कम था.
फोरोजा (टक्बाईज)
यह खोरासान (उत्तर-पूर्वी फारस) या अफगानिस्तान से प्राप्त होता था. मोहनजोदड़ो में इससे बनी खोदी-सी ही मुद्राएँ मिली है.
जेडाइट
यह पामीर या और पूर्वी तुर्किस्तान से आया होगा. वैसे यह तिब्बत और उत्तरी बर्मा में भी उपलब्ध है. इसके भी मनके मिले हैं जो बहुत कम संख्या में हैं.
लाजवर्द
बदख्शां (अफगानिस्तान के उत्तरी क्षेत्र) से यह लाया गया होगा. इसका प्रयोग बहुत कम मात्रा में हुआ है. लाजवर्द के बने मोहनजोदड़ो से दो मनके और एक मोती, हड़प्पा से तीन मनके और लोथल से दो मनके मिले हैं. लाजवर्द के मनके मेसोपोटामिलया में पर्याप्त संख्या में मिले हैं, अतः यह अनुमान लगाना स्वाभाविक है कि सिन्धु सभ्यता की लाजवर्द की वस्तुएँ मेसोपोटामिया से आई होंगी. किन्तु यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि चन्हुदड़ो के अधूरे बने मनके इस बात के द्योतक हैं कि उनका निर्माण वहीं पर हुआ था. वहाँ पर यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि नाल में सिन्धु सभ्यता के विकसित चरण से पूर्व की तिथि वाले स्तर में लाखवद के मनकों से बनी कई लड़ियों के हार मिले हैं.
लाल रंग
यों तो यह कच्छ और मध्य भारत में भी मिलता है, किन्तु फारस की खाड़ी के द्वीप हीरमुज में बहुत चमकदार लाल रंग मिलता है, अतः इसके वहीं से लाये जाने की अधिक संभावना है.
हेमेटाइट
यह राजपुताना से आता था.
शंख, घोंघे
ये भारत के पश्चिमी समुद्रतट से और फारस की खाड़ी से प्राप्त किये जाते थे.
गोमद कार्नीलियन
ये राजपुताना, पंजाब, मध्य भारत और काठियावाड़ में मिलते हैं. काठियावाड़ में सिन्धु सभ्यता के इस क्षेत्र से उनके प्राप्त किये जाने की संभावना अधिक है.
स्लेटी पत्थर
यह राजस्थान से लाया गया होगा.
सूर्यकान्त (जैस्पर)
अधिकांश विद्वानों के अनुसार इसका राजस्थान से आयात होता था लेकिन राव के अनुसार रंगपुर के समीप भादर नदी के तल से जैस्पर प्राप्त होता था.
संगमरमर
1950 में व्हीलर द्वारा की गई खुदाइयों में मोहनजोदड़ो में संगमरमर के कुछ टुकड़े मिले जो क इसी भवन में प्रयुक्त रहे होंगे. यह राजस्थान से लाया गया होगा.
चर्ट
यह सक्कर-रोहरी से प्राप्त होता था.
ब्लड स्टोन
राजस्थान से लाया गया होगा.
फुक्साट
मोहनजोदड़ो से एक साढ़े चार ईंच ऊँचा जेड के रंग का प्याला मिला है जिसकी पहचान फुक्साइट से की गई है. इस पत्थर को मैसूर से प्राप्त किया गया होगा.
अमेजोनाइट
पहले यह धारणा थी कि संभवतः सिन्धु सभ्यता के लोगों द्वारा यह पत्थर दक्षिणी नीलगिरी पहाड़ी या कश्मीर से प्राप्त किया गया होगा, परन्तु आज यह मानी है कि वह अहमदाबाद के उत्तर में हीरापुर पठार से लाया गया होगा जो कि सौराष्ट्र के सिन्धु सभ्यता के स्थलों के अत्यंत समीप है.
देवदार और शिलाजीत
ये दोनों हिमालय से लाये जाते थे.
मुहर
भारतीय और भारेत्तर प्रदेशों में व्यापार के कारण एक सुसंगठित व्यापारी वर्ग का उदय हो गया था. ऐसा लगता है कि वे व्यापारी अपने माल को बाँध कर उपसर पर अपनी मुद्रा अंकित कर देते थे जिससे यह पहचान हो सके कि माल किसने भेजा है. माल में मुद्रा-छाप का लगा होना इस बात का भी द्योतक है कि वह माल पहले किसी ने नहीं खोला है. यह भी हो सकता है कि राजकीय अधिकारी अथवा व्यापारिक संगठनों के कर्मचारी माल का निरीक्षण कर उस पर मिदरा लगाते थे. ऐसी स्थिति में माल पर मुद्रा लगा होना इस बात का भी द्योतक रहा होगा कि माल निर्धारित कोटि का है.
लोथल के अन्नागारों या भण्डार गृह में लगभग सत्तर छायें मिलीं जिनके पीछे चटाई जैसे कपड़े के और रस्सी के निशान मिले हैं. स्पष्ट है कि वस्तुओं को कपड़े में लपेट कर रस्सी से बाँधा गया होगा और रस्सी की गाँठ पर मोहर लगाई गई होगी.
इसी जगह कीच मिट्टी के लोंदे पर मुद्रा-छापें हैं जिससे प्रतीत होता है कि कई व्यापरियों का साझा व्यापार भी चलता था और किसी साझे लेन-देन के सिलसिले में उन सभी ने अपनी-अपनी मुहर लगाई थी.
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