Sansar Daily Current Affairs, 22 February 2019
GS Paper 1 Source: Times of India
Topic : Jallianwala: Punjab Assembly seeks UK apology
संदर्भ
पंजाब विधान सभा में आज प्रस्ताव पारित कर जालियांबाग के नरसंहार पर ब्रिटिश सरकार से माफी की मांग की गई. प्रस्ताव में कहा गया कि केंद्र सरकार इसके लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाए. प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान शिअद नेता ब्रिकम सिंह मजीठिया और कुलजीत नागर के बीच तीखी बहस हुई.
जालियाँबाग नरसंहार
- 10 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में सत्याग्रहियों पर गोली चलाने तथा अपने नेताओं डॉ. सत्यपाल व डॉ. किचलू की गिरफ्तारी के खिलाफ टाउन हॉल और पोस्ट ऑफिस पर हमले किये गये और इस दौरान हिंसा भी हुई. नगर का प्रशासन जनरल डायर के हाथों में सौंप दिया गया. डायर ने जनसभाएँ आयोजित करने पर प्रतिबंध लगा दिया.
- 13 अप्रैल, 1919 को बैशाखी के दिन अमृतसर के जालियाँवाला बाग़ में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया. सभा में भाग लेने वाले अधिकांश लोग आस-पास के गावों से आये हुए ग्रामीण थे जो बैशाखी मेले में भाग लेने आये थे तथा सरकार द्वारा शहर में आरोपित प्रतिबंध से बेखबर थे.
- जनरल डायर ने सभाके आयोजन को सरकारी आदेश की अवहेलना समझा तथा सभा-स्थल को सशस्त्र सैनिकों के साथ घेर लिया. डायर ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के सभा पर गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया. सरकारी आँकड़ों के अनुसार 379 लोग मारे गये थे पर वास्तव में यह संख्या बहुत अधिक थी.
- हंटर आयोग के समय डायर ने दुःख व्यक्त किया कि उसका गोला-बारूद ख़त्म हो गया था एवं संकरी गलियों में बख्तरबंद गाड़ी नहीं ले जा सका.
परिणाम
- इस घटना में 379 लोग मारे गये, जिसमें युवा, महिलाएँ, बूढ़े, बच्चे सभी शामिल थे. जालियाँवाला बाग़ हत्याकांड से पूरा देश स्तब्ध रह गया. वहशी क्रूरता ने देश को मौन कर दिया. पूरे देश में बर्बर हत्याकांड की भर्त्सना की गई.
- गाँधीजी ने बोअर युद्ध (द.अफ्रीका) के दौरान की गई सहायता के लिए मिले “कैसर-ए-हिन्द” स्वर्ण पदक को वापस लौटा दिया. बाद में पंजाब में हुई क्रूरता से सम्बंधित हंटर आयोग की रिपोर्ट को “पन्ने दर पन्ने निर्लज्ज सरकारी लीपापोती” कहा. इस रिपोर्ट के शासन के पक्ष को सही ठहराया गया था.
- रविन्द्रनाथ टैगोर ने विरोध स्वरूप अपनी “नाइटहुड” की उपाधि त्याग दी तथा शंकरन नायर ने वायसराय की कार्यकारिणी से त्यागपत्र दे दिया.
- अब उद्देश्य नैतिक प्रभाव उत्पन्न करना था, इसके लिए आगे मार्शल लॉ लागू करने जबरन गिरफ्तारियाँ, यातनाएं, सार्वजनिक रूप से कोड़े मारना, नाक रगड़ने को विवश करना, पूरे दिन चिलचिलाती धूप में खड़ा करना, सभी साहबों को सलाम करने हेतु बाध्य करना जैसी विचित्र सजाएँ दी गयीं.
- गाँधीजी ने अनेक स्थानों पर हुई हिंसक घटनाओं के कारण 18 अप्रैल 1919 को सत्याग्रह स्थगित कर दिया, क्योंकि उनके अनुसार सत्याग्रह में हिंसा का कोई स्थान नहीं था.
- सरकार ने अत्याचारी अपराधियों को दण्डित करने के स्थान पर उनका पक्ष लिया. जनरल डायर को सम्मानित किया गया. ब्रिटेन में रुडयार्ड किपलिंग ने डायर को भारत बचाने वाला बताया, मॉर्निंग पोस्ट पत्रिका ने डायर के पक्ष में जनमत बनाकर उसे “ब्रिटेन का शेर” कहा एवं उपहार देने हेतु चंदा एकत्रित किया.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Supreme Court orders eviction of 1.1 mn forest families
संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया है कि देश की 17 राज्य सरकारें अपने यहां के जंगलों से तकरीबन 11 लाख परिवारों को बाहर निकालें. फॉरेस्ट राइट्स एक्ट के तहत जंगल में ज़मीन के पट्टों पर इन लोगों का दावा खारिज हो गया है.
पृष्ठभूमि
फॉरेस्ट राइट्स एक्ट को कई NGO और रिटायर्ड वन अधिकारियों ने कोर्ट में चुनौती दी हुई है. वाइल्ड लाइफ फर्स्ट और अन्य बनाम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के मामले में कोर्ट ने 19 फरवरी को एक आदेश निकाला. इसमें17 राज्यों के चीफ सेक्रेटरी से कहा गया है कि वो खारिज दावों वाले लोगों को 12 जुलाई 2019 से पहले जंगल से बाहर करें. जो दावे पेंडिंग हैं, उन्हें भी इस तारीख तक निपटाना है. इस दिन मामले की फिर से सुनवाई होगी.
देहरादून के फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया से कहा गया है कि वह सैटेलाइट से तस्वीरें लेकर एक रिपोर्ट बनाए जिसमें नज़र आए कि कितना अतिक्रमण हटा है.
क्या है फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006?
जंगल में लोग तब से रहते आ रहे हैं जब सभ्यता नहीं थी. गांव बसे, शहर बसे लेकिन कई समाज जंगलों में बने रहे. इनमें ज़्यादातर थे आदिवासी या अनुसूचित जनजातियों के लोग. अंग्रेज़ 1927 में इंडियन फॉरेस्ट एक्ट ले आए. इससे पीढ़ियों से जंगलों में रहने वाले लोग अचानक कानून की नज़र में अतिक्रमणकारी हो गए. अतिक्रमणकारी करार दिए इन लोगों पर सरकार जुर्माने और जेल की कार्रवाई करती. इस बात का खूब विरोध हुआ. भारत में वन अधिकारों के लिए हुए आंदोलनों का लंबा इतिहास है. लंबी खींच-तान के बाद दिसंबर 2006 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार द शिड्यूल्ड ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेलर्स (रिकगनिशन ऑफ फॉरेस्ट राइट्स) एक्ट लेकर आई. साधारण भाषा में इसे ही फॉरेस्ट राइट्स या FRA कहा जाता है. इसके अंतर्गत 31 दिसंबर 2005 से पहले जितने भी लोग जंगल की ज़मीन पर कम से कम तीन पीढ़ियों से रह रहे थे, उन्हें ज़मीन के पट्टे मिलने थे.
पट्ट मिलना इतना आवश्यक क्यों था?
पट्टा मिलना मतलब सरकारी रिकॉर्ड में ज़मीन आपकी हो जाना. वहां से आपको कोई नहीं हटा सकता. इस ज़मीन को आप ज़रूरत पड़ने पर बैंक में गिरवी रख सकते हैं, या बेच भी सकते हैं. 1927 के कानून को वनवासियों के साथ ऐतिहासिक अन्याय माना गया था. FRA इसी अन्याय के समाधान के लिए था.
क्या था पट्टे मिलने की प्रक्रिया?
ज़मीन पर रहने वाले को अपना दावा एक समिति के समक्ष प्रस्तुत करना होता था. जंगल विभाग के सदस्यों वाली इस समिति के अध्यक्ष होते थे ज़िला कलेक्टर. आम तौर पर लोग दावे के पक्ष में वन विभाग को दी जुर्माने वाली रसीदें प्रस्तुत करते थे. ये जुर्माना 1927 से ही वसूला जा रहा था.
क्या दिक्कत थी FRA में?
FRA की दो तरह से आलोचना हुई. पर्यावरण पर काम करने वाले कई लोगों का मानना था कि लोगों को पट्टे मिलने से जंगल और जानवरों को नुकसान होगा. एक पक्ष ये भी था कि FRA में पट्टे देने का प्रॉसेस इतना जटिल है कि कई लोगों के दावे खारिज हो जाएंगे. व्यक्तिगत दावों पर तो फिर भी पट्टे मिल जा रहे थे. लेकिन सामूहिक इस्तेमाल की ज़मीन वाले दावों पर बहुत ही कम पट्टे दिए गए. सामूहिक इस्तेमाल माने स्कूल या आंगनवाड़ी के लिए ज़मीन. या वो ज़मीन जिसपर जानवर चरें, लोग तेंदूपत्ता, बांस वगैरह इकट्ठा करें.
कितने दावे खारिज हुए हैं?
अलग-अलग राज्य सरकारों ने कोर्ट को बताया है कि अब तक 11 लाख 72 हज़ार 931 दावे खारिज हुए हैं. हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से तकरीबन 20 फीसदी खारिज दावे सिर्फ तीन राज्यों के हैं – मध्यप्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा.
आगे की राह
अतीत में ये इल्ज़ाम लगे कि भारत सरकार फॉरेस्ट राइट्स एक्ट वाले मुकदमे को ढंग से लड़ नहीं रही. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकारों के सामने ये समस्या खड़ी हो गई है कि 11 लाख परिवारों को जंगल से बाहर निकालें तो भेजें कहाँ. वन अधिकार पूरे देश में विशेषतः आदिवासियों के बीच भावनात्मक मुद्दा है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Indus Water Treaty
संदर्भ
भारत ने सिंधु जल संधि के तहत नदियों से अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान जाने से रोकने का फैसला किया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच नदी का बँटवारा
- यह संधि भारत और पाकिस्तान के मध्य 1960 ई. में की गयी थी. भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और पाकिस्तान के जनरलअयूब खान के बीच सिन्धु नदी के जल को लेकर यह समझौता हुआ था.
- इस संधि के तहत सिन्धु नदी की सहायक नदियों को दो भागों में बाँट दिया गया – – – पूर्वी भाग और पश्चिमी भाग.
- पूर्वी भाग में जो नदियाँ बहती हैं, वे हैं–> सतलज, रावी और व्यास. इन तीनों नदियों पर भारत का फुल कण्ट्रोल है.
- पश्चिमी भाग में जो नदियाँ बहती हैं, वे हैं–> सिंध, चेनाब और झेलम.भारत सीमित रूप से इन नदियों के जल का प्रयोग कर सकता है.
- इस संधि के अनुसार पश्चिमी भाग में बहने वाली नदियों का भारत केवल 20% भाग प्रयोग में ला सकता है. हालाँकि, भारत इनमें“रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट” पर काम कर सकता है. रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट का अर्थ हुआ—>वे पनबिजली उत्पादन संयंत्र जिनमें जल को जमा करने की आवश्यकता नहीं है.
- यह 56 साल पुरानी संधि है.
सिन्धु नदी की उपयोगिता क्या है? (UTILITY OF SINDHU RIVER)
- सिन्धु नदी उप-महाद्वीप कीविशाल नदियों में से एक है.
- सिन्धु बेसिन 5 लाख वर्गमीटर में फैला हुआ है. उत्तर प्रदेश के जैसे चार राज्य इसमें समा सकते हैं.
- इसकी लम्बाई 3000 किलोमीटर से भी ज्यादा है.
- गंगा नदी से भी यह विशाल है.
- इसकी सहायक नदियाँ — चेनाब, झेलम, सतलज, रावी और व्यास हैं.
- अपनी सभी सहायक नदियों के साथ यह अरब सागर (कराँची, पाकिस्तान) में गिरती है.
- सिन्धु नदी पाकिस्तान के दो तिहाई भाग को कवर करती है.
- पाकिस्तान सिन्धु नदी के जल का प्रयोग सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए करता है, इसलिए हम कह सकते हैं कि सिन्धु नदी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण है.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : Shisht Bharat Campaign
संदर्भ
नई दिल्ली में हाल ही में एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा आयोजित ‘शिष्ट भारत अभियान’ का शुभारम्भ हुआ. इस आयोजन का उद्देश्य विद्यालयों और कॉलेजों में नैतिक विज्ञान शिक्षा के महत्त्व पर चर्चा करना और पाठ्यक्रम में नैतिक विज्ञान को एक विषय के रूप में शामिल करना था.
शिष्ट भारत अभियान
- हमारी आने वाली पीढ़ियों में अच्छे मूल्यों को शामिल करने के लिए लगातार प्रयासकरना.
- वरिष्ठ लोगों को अपने आचरण से युवा पीढ़ी के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि युवा अपनी पुरानी पीढ़ियों को देखकर स्वभाविक रूप से मूल्यों को प्राप्त कर सकें.
- विभिन्न क्षेत्रों और धर्मों को ध्यान में रखते हुए सभी व्यक्तियों के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाना.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : HOPE Portal
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अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड एनएबीएच ने एंट्री लेवेल प्रमाणन प्रक्रिया को संशोधित किया है ताकि यह प्रक्रिया सरल, त्वरित, डिजिटल और इस्तेमाल में आसान हो सके. एनएबीएच ने इसके लिए एचओपीई (होप) के नाम से एक नया पोर्टल बनाया है.
HOPE पोर्टल के उद्देश्य
- इसके उद्देश्य देशभर के अस्पतालों सहित स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे छोटी इकाइयों को उनके शुरुआती चरण में ही गुणवत्ता युक्त सेवाओं के लायक बनाना है.
- इसका लक्ष्य ऐसे स्वास्थ्य सेवा से जुड़े ऐसे संगठनों को गति प्रदान करना भी है जो एनएबीएच प्रमाणन हासिल कर भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) तथा आयुष्मान भारत से जुड़े लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, और इस तरह से देश में एक गुणवत्ता स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद करना चाहते हैं.
होप के माध्यम से एक मोबाइल ऐप भी विकसित किया गया है जो अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को यह सुविधा प्रदान करता है कि वह एनबीएच प्रमाणन हासिल करने के लिए जरूरी सभी शर्तों से संबधित दस्तावेज सीधे अपलोड कर सकें. होप के जरिए आंकलन प्रक्रिया में भी बदलाव किया गया है. इसके माध्यम से प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर डाटा का संकलन और प्रमाणन किया जाता है.
GS Paper 3 Source: Down to Earth
Topic : Green India Mission
संदर्भ
राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए भारत के आठ मिशनों में से एक है. इसे फरवरी 2014 में सुरक्षा के लिए अनावृत किया गया था; अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन से भारत के कम होते वन आवरण को बहाल करना और जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए तैयार करना.
इस मिशन के माध्यम भारत अपने घटते वन क्षेत्र का संरक्षण, पुनर्वनीकरण और वन क्षेत्र में वृद्धि करना चाहता है. साथ ही अनुकूलन एवं शमन उपायों के द्वारा जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए तैयार होना चाहता है.
राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन के उद्देश्य
- भारत के घटते वन आवरण की रक्षा, पुनर्स्थापन और संवर्द्धन करना.
- अनुकूलन के संयोजन के साथ-साथ शमन उपायों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन का जवाब देना.
- वन आधारित आजीविका आय में वृद्धि करना.
- वर्ष 2020 में वार्षिक कार्बन अनुक्रम में 50 से 60 मिलियन टन की वृद्धि करना.
राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन के लक्ष्य
- वन तथा वृक्ष क्षेत्र को 5 मिलियन हेक्टेयर तक बढ़ाते हुए इतने ही क्षेत्र के वृक्षों तथा वनों की गुणवत्ता में सुधार लाकर 3 मिलियन परिवारों की वन आधारित आजीविका आय में वृद्धि करना है.
- सभी प्रकार की भूमि जैसे-ग्राम की जमीन, सामुदायिक भूमि, झूम कृषि क्षेत्र, आर्द्रभूमि और निजी खेती वाली जमीन इसके अंतर्गत वनारोपण हेतु अनुमन्य है.
- इस मिशन के अंतर्गत विभिन्न पारिस्थितिकी सेवाओं जैसे- जैव विविधिता, जल, बायोमास (जैव ईंधन), मैंग्रोव संरक्षण, आर्द्र,भूमि, संकटग्रस्त प्राकृतिक आवास आदि को प्रमुखता दी जाएगी.
- यह मिशन विकेंद्रीकृत भागीदारी प्रक्रिया के माध्यम पूरा किया जायेगा जिसमें जमीनी स्तर के संगठनों तथा स्थानीय समुदायों के द्वारा योजना निर्माण, निर्णय प्रक्रिया, कार्यक्रम के क्रियान्वयन तथा इसकी निगरानी का कार्य किया जाएगा.
- इस मिशन की निगरानी 4 स्तरों पर की जाएगी जिसमें मुख्यतः स्थानीय समुदायों तथा कर्मचारियों द्वारा स्वत: निगरानी, रिमोट (दूरवर्ती) सेंसिंग (समझ) तथा भौगोलिक सूचता तंत्र (जीआईएस) और किसी अन्य तीसरी संस्था से निगरानी करवाना शामिल है.
राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन के घटक
- “हरियाली” (वृक्षारोपण की तुलना में व्यापक) के लिए समग्र दृष्टिकोण:मिशन की परिकल्पना है कि हरियाली पेड़ों और वृक्षारोपण से परे जाएगी ताकि हरियाली संरक्षण और बहाली दोनों को समाहित कर ले.
- ‘भेद्यता’ और’संभावित’ हस्तक्षेप के मानदंड: मिशन की परिकल्पना है कि सबसे पहले परियोजना क्षेत्रों / उप परिदृश्यों / उप-जलक्षेत्रों का पता लगाएं ताकि वे क्षेत्र मिशन की सेवाओं द्वारा अपने कार्बन सिंक को बढ़ा सके.
- कार्यान्वयन के लिए एकीकृत क्रॉस-सेक्टोरल दृष्टिकोण:मिशन एक एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देगा जो जंगलों व गैर-वन सार्वजनिक भूमि के साथ-साथ निजी भूमि के साथ-साथ परियोजना इकाइयों / उप परिदृश्य / उप-जलक्षेत्रों में व्यवहार करता है. आजीविका निर्भरता, उदाहरण के लिए जलाऊ लकड़ी की जरूरत और पशुधन चराई, अंतर-क्षेत्रीय अभिसरण (जैसे, पशुपालन, वन, कृषि, ग्रामीण विकास और ऊर्जा) का उपयोग करके संबोधित किया जा सके.
राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन भारत सरकार की एक अद्भुत पहल है क्योंकि इस मिशन के तहत भारत अपने घटते वन क्षेत्र का संरक्षण, पुनर्वनीकरण और वन क्षेत्र में वृद्धि कर सकेगा जो जलवायु परिवर्तन के वैश्विक खतरे से निपटने में मददगार साबित होगा.
Prelims Vishesh
“Waste to Wonder” Park :-
- गृह मंत्री ने हाल ही में दिल्ली में ‘वेस्ट टू वंडर पार्क’ का उद्घाटन किया.
- यह पार्क सराय काले खां क्षेत्र में सात एकड़ में फैला है.
- यह पार्क दूसरों के लिए उदाहरण है और पहली बार कचरे का इस्तेमाल धन कमाने के लिए किया जा रहा है.
Drone Olympics Competition :–
- 21 फरवरी को ड्रोन ओलिंपिक्स का आयोजन बेंगलोर में हुआ.
- इससे हमारे देश में ड्रोन स्टार्टअप को बढ़ावा मिला और साथ ही साथ हमारी सेना को विदेशी ड्रोन की क्षमताओं को जानने का मौका भी मिला.
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