भारत की संकटग्रस्त पादप प्रजातियाँ और उनके आवास की स्थिति

Sansar LochanBiodiversity

हालाँकि देश में महत्त्वपूर्ण प्रयासों से आरक्षित और संरक्षित क्षेत्र का एक मजबूत और विस्तृत संजाल तैयार किया गया है, तथापि अभी भी संरक्षित स्थलों के बाहर बहुत-सी ऐसी अद्वितीय वनस्पतियाँ और पौधे हैं जो मानवीय क्रियाओं के भारी दबाव का सामना कर रहे हैं. उच्च संकटग्रस्त पादप और उनके स्थलों को संरक्षण और पुनर्जीवन प्रदान करने के लिए कई प्रयास अब तक किये जा चुके हैं.

मिरिस्टिका दलदल (Myristica Swamps)

myristica swamps

मिरिस्टिका दलदल एक उष्णकटिबंधीय ताजे पानी का दलदल जंगल हैं जो पश्चिमी घाट में पाया जाता है. इसकी विशेषता यह है कि यह पृथ्वी के सबसे पुराने पुष्पीय पौधों का स्थान है. ये दलदल 1988 में चर्चा में आये जब इस क्षेत्र को भारत के पारिस्थितिक तंत्र में सबसे संकटग्रस्त जंगल के रूप में व्याख्यापित किया गया. मिरिस्टिका दलदल प्राचीन प्रजातियों के पादपों के एक जीवित संग्रहालय जैसा है.

साइकेड्स (Cycads)

ये पृथ्वी पर सबसे प्राचीन बीजीय पौधें के अवशेष हैं. ये लगभग पूर्व कार्बोनीफेरस काल (300-325000000 वर्ष) के पहले के हैं. भारत में इस प्रकार की वनस्पति दक्षिणी पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, बिहार, उत्तर पूर्वी राज्यों और अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूहों में पायी जाती है. ये मुख्य रूप से औषधीय और अन्य पदार्थिक रूप में उपयोग किये जा रहे हैं. साइकेड्स को वर्तमान में बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अपने ‘आल इण्डिया क्वार्डिनेटेड प्रोजेक्ट ऑन टैक्सोनामी’ के अन्तर्गत कार्यशालाओं के माध्यम से इन पौधों के संरक्षण और विकास के लिए लोगों को, विशेषकर ग्रामीण समुदायों को, प्रशिक्षित कर रहा है तथा साथ ही वैज्ञानिक अध्ययन में विस्तृत भूमिका की कार्ययोजना चला रहा है.

रोडेनड्रॉन (Rhodendron)

यह Ericaceal परिवार के अन्तर्गत आता है जिसके अन्दर भारत के विभिन्न जैव भौगोलिक क्षेत्रों में 92 प्रजातियों तथा 8 उप-प्रजातियाँ पाई जाती हैं. पूर्वी हिमालय इस वनस्पति से सर्वाधिक संपन्न है. यहाँ इसकी 10 प्रजातियाँ पायी जाती हैं. ‘क्योगनोस्ला अल्पाइन अभयारण्य’ (पश्चिमी सिक्किम) और ‘मीनम वन्यजीव अभयारण्यरोडेनड्रॉन संरक्षण के लिए जाने जाते हैं.

पिचर प्लांट (Pitcher Plant)

यह भारत में ‘नेपेनथीस खसियाना’ (Nepenthes Khasiana) की एकमात्र नेपेनथीस जाति का प्रतिनिधित्व करता है. यह सी.आई.टीई.एम. के द्वारा परिशिष्ट-1 में दुलर्भ संकटग्रस्त श्रेणी में सूचीबद्ध है. यह भारत में आई.यू.सी.एस. के द्वारा भी वनस्पति उद्यान में दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में शामिल है. ये मेघालय में एक स्थानीय प्रजाति के रूप में गारो, खासी और जयंतिया पहाड़ियों में 1000-1500 मी. की ऊँचाई तक पाये जाते हैं. स्थानीय लोग और जनजातीय समूह इनके औषधीय उपयोग के द्वारा अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करते हैं. बहुत-सी मानवीय क्रियाएँ और प्रदूषणों की वजह से दिन-ब-दिन इनकी प्रजातियों में गिरावट हो रही है. इसलिए बहुत सी संस्थाएँ जैसे ‘सेन्टर फॉर एडवान्स स्टडी इन बोटनी’ (यह एक नार्थ-ईस्टर्न हिल यूनीवर्सिटी है), ‘नेशनल आर्थिडेटिपम’ (शिलॉन्ग) ‘द एक्सपेरीमेंटल गार्डेन ऑफ द बोटेनिकल सर्वे ऑफ इण्डिया’ और पर्यावरण मंत्रालय ने एक्स-सिटू और इन-सिटू संरक्षण माध्यम से इनके संरक्षण के लिए कदम उठाया है.

साइट्रस (Citrus)

साइट्रस फलों की उत्पत्ति दक्षिण एशिया और निकटस्थ पूर्वी क्षेत्रों में हुई मानी जाती है. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में इसकी सर्वाधिक विविध प्रजातियाँ पायी जाती हैं. संयुक्त राष्ट्र के मैन एण्ड बायोस्पिफयर रिजर्व प्रोग्राम के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय के सहयोग से 1981 में राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो ने साइट्रस जर्मप्लास्ट के जंगल में ही संरक्षण के लिए मेघालय के गारो हिल्स में स्थापित नॉकटेक बायोस्पिफयर रिजर्व के बफर जोन में लगभग 10,266 हेक्टेयर क्षेत्र में साइट्रस जीन अभयारण्य की स्थापना की थी.

Tags : List of Rare and Endangered Indian Plants in Hindi, Status of endangered plant species of India and their habitat, conservation

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