1885-1905 के बीच कांग्रेस के कार्यों की समीक्षा अपने शब्दों में विस्तारपूर्वक करें.
उत्तर :-
कांग्रेस के आरम्भिक 20 वर्षों के काल को “उदारवादी राष्ट्रीयता” की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस काल में कांग्रेस कीं नीतियाँ अत्यंत उदार थीं. इस युग में भारतीय राजनीति के प्रमुख नेतृत्वकर्ता दादाभाई नौरोजी, फ़िरोज़शाह मेहता, दिनशा वाचा और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आदि जैसे उदारवादी थे.
उदारवादी युग में कांग्रेस का मुख्य कार्य राष्ट्रीय राजनीतिक जागरण पैदा करना था. इसके साथ-साथ इसने भारत के वर्गविशेष के लिए राजनीतिक अधिकारों की माँग की, प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने का प्रयास किया एवं नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया. इसने ब्रिटिश आर्थिक नीतियों की कटु आलोचना कर स्वदेशी की भावना को विकसित किया. इसने आंदोलनकारी मार्ग भी पनाया. विषम परिस्थितियों में भी कांग्रेस ने राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ाने की आलोचना की. अनेक आलोचकों ने कांग्रेस की आरंभिक नीतियों एवं कार्यों की आलोचना की है. लाला लाजपत राय के शब्दों में, “अपनी शिकायतों का निवारण कराने तथा रियायतें पाने के लिए उन्होंने 20 साल से अधिक समय तक कमोबेश जो निरर्थक आंदोलन चलाया उसमें उन्हें रोटियों के बजाय पत्थर मिले.” इस प्रकार कांग्रेस का प्रारंभिक प्रयास असफल रहा; परंतु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है.
कांग्रेस की असली सफलता इस बात में निहित है कि उसने भारतीय जनमानस में एक राष्ट्र एवं राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूटकर भर दी जिसका उत्तरोत्तर विकास होता गया. परिस्थितिवश बाध्य होकर ही कांग्रेस ने उदार एवं नरमपंथी नीति अपनाई थी. इसे सरकार और भारतीय जनता के कुछ वर्गों के प्रतिरोधों का भी सामना करना पड़ा था. कर्जन ने स्वयं कहा था, “कांग्रेस अपनी मौत की घड़ियाँ गिन रही है. भारत में रहते हुए मेरी एक सबसे बड़ी इच्छा यह है कि मैं उसे शांतिपूर्वक मरने में मदद दे सकूँ.”
परंतु, कांग्रेस मर नहीं सकी और कर्जन की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. कांग्रेस ने विनम्रतापूर्वक ही स्वतंत्रता-आंदोलन की वह प्रक्रिया आरंभ कर दी जिसके परिणामस्वरूप अँगरेजों को भारत छोड़कर वापस जाना पड़ा. कांग्रेस के प्रारंभिक चरणों के कार्यों का मूल्यांकन करते हुए प्रो. बिपनचंद्र, अमलेश त्रिपाठी एवं वरुण डे ने ठीक ही लिखा है कि “1885 और 1905 के बीच का समय भारतीय राष्ट्रवादिता के बीजारोपण का समय था और उस दौर के राष्ट्रवादियों ने उस बीज को अच्छी तरह गहराई में बोया.” उन्होंने अपनी राष्ट्रवादिता को सतही संवेगों और अस्थायी भावनाओं को जागृत करने के आग्रह या स्वाधीनता और स्वतंत्रता के अमूर्त अधिकार या घुँधले अतीत को याद दिलाने की अपील पर आधारित नहीं किया, वरन् उसकी जगह पर उसे आधुनिक साम्राज्यवाद के पेचीदा ढाँचे की भावुकता से मुक्त और गहरे विश्लेषण तथा भारतीय जनता और ब्रितानी शासन के हितों के मुख्य अंतर्विरोध को जमीन में गाड़ा. परिणाम यह हुआ कि उन्होंने एक ऐसा समान राजनीतिक और आर्थिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसने भारत के विभिन्न वर्गों के लोगों को विभाजित करने की जगह एकबद्ध कर दिया. बाद में भारतीय जनता उस कार्य्रक्रम से सम्बद्ध हुई और उसने एक सशक्त संघर्ष शुरू किया.
यह मात्र मॉडल उत्तर है. यदि आपको इस विषय में विस्तार से पढ़ना है तो इस लिंक में जाकर पढ़ें > उदारवादी युग