Sansar Daily Current Affairs, 10 June 2020
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.
Topic : Krishna and Godavari water utilisation
संदर्भ
हाल ही में ‘जल संसाधन विभाग’ (Department of Water Resources) ने कृष्णा तथा गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्डों (Krishna and Godavari River Management Boards) के अध्यक्षों को महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में सिंचाई परियोजनाओं का विवरण एक माह में केंद्र सरकार को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.
पृष्ठभूमि
- आंध्र प्रदेश द्वारा कृष्णा नदी पर श्रीशैलम बांध की क्षमता में वृद्धि की गई है. इसके चलते तेलंगाना सरकार ने आंध्र प्रदेश के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई.
- इसके पश्चात् आंध्र प्रदेश ने तेलंगाना की कृष्णा नदी पर पलामुरू-रंगारेड्डी (Palamuru-Rangareddy) और दिंडी लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं (Dindi Lift Irrigation Schemes) तथा गोदावरी नदी पर प्रस्तावित बाँधों यथा कालेश्वरम, तुपकुलगुडेम की शिकायत की है.
- आंध्र प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय में एक ‘विशेष अनुमति याचिका’ (Special Leave Petition- SLP) भी दायर की है, जो अभी लंबित है.
- कृष्णा और गोदावरी तथा उनकी कुछ सहायक नदियाँ तेलंगाना तथा आंध्रप्रदेश से होकर बहती हैं. इन राज्यों द्वारा ‘नदी जल प्रबंधन बोर्ड’ तथा ‘केंद्रीय जल आयोग’ (Central Water Commission) की मंज़ूरी के बिना अनेक नवीन जल परियोजनाओं को प्रारम्भ किया गया है.
कृष्णा नदी जल विवाद
ज्ञातव्य है कि 2010 के आदेश में कृष्णा नदी के जल का बंटवारा इस प्रकार हुआ था –
- महाराष्ट्र के लिए 81 TMC
- कर्नाटक के लिए 177 TMC
- आंध्र प्रदेश के लिए 190 TMC
आंध्र प्रदेश की माँग क्या है?
2010 के पंचाट के आदेश के बाद एक नया राज्य तेलंगाना (2014) अस्तित्व में आ गया. इसलिए आंध्र प्रदेश ने माँग की है कि कृष्णा जल विवाद पंचाट में तेलंगाना को भी एक अलग पक्षकार के रूप में रखा जाए और कृष्णा जल को सभी चार राज्यों के बीच बाँटने की कार्रवाई की जाए.
कर्नाटक और महाराष्ट्र का पक्ष
महाराष्ट्र और कर्नाटक का तर्क है कि तेलंगाना तो आंध्र प्रदेश के विभाजन से बना है, इसलिए आंध्र प्रदेश को पंचाट ने कृष्णा जल का जो अंश दिया था उसी में से तेलंगाना को हिस्सा मिलना चाहिए.
कृष्णा नदी
- यह नदी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली एक बड़ी नदी है.
- इसका उद्गम महाराष्ट्र के महाबालेश्वर में है.
- बंगाल की खाड़ी में गिरने के पहले महाराष्ट्र के अतिरिक्त कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर गुजरती है.
- अपनी सहायक नदियों के साथ कृष्णा नदी एक बहुत विशाल घाटी बनाती है जिसके अन्दर चारों राज्यों के कुल क्षेत्रफल का 33% भूभाग आ जाता है.
मेरी राय – मेंस के लिए
देश की ज्यादातर नदियां कई राज्यों से होकर बहती है. जल की मांग बढ़ने के कारण जल बंटवारे को लेकर कई राज्यों के बीच विवाद हमेशा से चलते रहे हैं. जल विवाद में न सिर्फ कई राज्य आमने-सामने हैं बल्कि नदी विवाद को लेकर अंतर्राष्ट्रीय विवाद भी आए दिन देखने को मिलता है.
आदर्श रूप में, जल संकट साझा करने का सूत्र न्यायालय द्वारा नहीं बल्कि किसी तकनीकी निकाय द्वारा दिया जाना चाहिए. नदी विवाद बोर्डों ने विवाद को हल करने के प्रयासों ने समता और दक्षता के मुद्दों की उपेक्षा करते हुए मुख्य रूप से संसाधनों की साझेदारी पर ध्यान केन्द्रित किया है. आधुनिक विश्व, घटते जल संसाधनों, पहले की तुलना में कम फसली ऋतुओं एवं भूमि की कमी की समस्या से ग्रसित है. इस परिदृश्य में कम जल-गहन फसलों का सहारा लेना एवं बेहतर जल-प्रबंधन इन समस्याओं के समाधान का सूत्र सिद्ध हो सकता है. सिंचाई के विभिन्न प्रकारों जैसे ड्रिप सिंचाई, छिड़काव प्रणाली इत्यादि को व्यापक रूप से अपनाया जाना चाहिए. न्यूनतम समर्थन मूल्य नीतियों पर विशेष रूप से जल गहन खाद्य फसलों के संदर्भ में पुनर्विचार किया जाना चाहिए. फसलों का कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुसार उत्पादन किया जाना चाहिए.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.
Topic : India is all set to be UNSC’s non-permanent member
संदर्भ
भारत 8वीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का गैर-स्थायी सदस्य बनने के लिए तैयार है. संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से 17 जून को वोटिंग होगी. इस चुनाव में 10 गैर-अस्थायी सदस्यों में से पांच सदस्यों के चुनाव में भारत निर्विरोध खड़ा है.
पृष्ठभूमि
- भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अब तक 7 बार (1950-1951, 1967-1968, 1972-1973, 1977-1978, 1984-1985, 1991-1992 और 2011-2012) सेवारत रहा है.
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पांच अस्थाई सीटों के लिए इसी महीने चुनाव होना है. एशिया-प्रशांत समूह में भारत इस बार अकेला उम्मीदवार है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुसार शांति एवं सुरक्षा बहाल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की होती है. इसकी बैठककभी भी बुलाई जा सकती है. इसके फैसले का अनुपालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है. इसमें 15 सदस्य देश शामिल होते हैं जिनमें से पाँच सदस्य देश – चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका – स्थायी सदस्य हैं. शेष दस सदस्य देशों का चुनाव महासभा में स्थायी सदस्यों द्वारा किया जाता है. चयनित सदस्य देशों का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है.
- ज्ञातव्य है कि कार्यप्रणाली से सम्बंधित प्रश्नों को छोड़कर प्रत्येक फैसले के लिए मतदान की आवश्यकता पड़ती है. अगर कोई भी स्थायी सदस्य अपना वोट देने से मना कर देता है तब इसे “वीटो” के नाम से जाना जाता है. परिषद् (Security Council) के समक्ष जब कभी किसी देश के अशांति और खतरे के मामले लाये जाते हैं तो अक्सर वह उस देश को पहले विविध पक्षों से शांतिपूर्ण हल ढूँढने हेतु प्रयास करने के लिए कहती है.
परिषद् मध्यस्थता का मार्ग भी चुनती है. वह स्थिति की छानबीन कर उस पर रपट भेजने के लिए महासचिव से आग्रह भी कर सकती है. लड़ाई छिड़ जाने पर परिषद् युद्ध विराम की कोशिश करती है.
वह अशांत क्षेत्र में तनाव कम करने एवं विरोधी सैनिक बलों को दूर रखने के लिए शांति सैनिकों की टुकड़ियाँ भी भेज सकती है. महासभा के विपरीत इसके फैसले बाध्यकारी होते हैं. आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अथवा सामूहिक सैन्य कार्यवाही का आदेश देकर अपने फैसले को लागू करवाने का अधिकार भी इसे प्राप्त है. उदाहरणस्वरूप इसने ऐसा कोरियाई संकट (1950) तथा ईराक कुवैत संकट (1950-51) के दौरान किया था.
कार्य
- विश्व में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना.
- हथियारों की तस्करी को रोकना.
- आक्रमणकर्ता राज्य के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही करना.
- आक्रमण को रोकने या बंद करने के लिए राज्यों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना.
संरचना
सुरक्षा परिषद् (Security Council) के वर्तमान समय में 15 सदस्य देश हैं जिसमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी हैं. वर्ष 1963 में चार्टर संशोधन किया गया और अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी गई. अस्थायी सदस्य विश्व के विभिन्न भागों से लिए जाते हैं जिसके अनुपात निम्नलिखित हैं –
- 5 सदस्य अफ्रीका, एशिया से
- 2 सदस्य लैटिन अमेरिका से
- 2 सदस्य पश्चिमी देशों से
- 1 सदस्य पूर्वी यूरोप से
चार्टर के अनुच्छेद 27 में मतदान का प्रावधान दिया गया है. सुरक्षा परिषद् में “दोहरे वीटो का प्रावधान” है. पहले वीटो का प्रयोग सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य किसी मुद्दे को साधारण मामलों से अलग करने के लिए करते हैं. दूसरी बार वीटो का प्रयोग उस मुद्दे को रोकने के लिए किया जाता है.
परिषद् के अस्थायी सदस्य का निर्वाचन महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों द्वारा किया जाता है. विदित हो कि 191 में राष्ट्रवादी चीन (ताईवान) को स्थायी सदस्यता से निकालकर जनवादी चीन को स्थायी सदस्य बना दिया गया था.
इसकी बैठक वर्ष-भर चलती रहती है. सुरक्षा परिषद् में किसी भी कार्यवाही के लिए 9 सदस्यों की आवश्यकता होती है. किसी भी एक सदस्य की अनुपस्थिति में वीटो अधिकार का प्रयोग स्थायी सदस्यों द्वारा नहीं किया जा सकता.
मेरी राय – मेंस के लिए
कोरोना जैसी असाधारण स्थिति में भारत एक सकारात्मक वैश्विक भूमिका निभा सकता है. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक था. संयुक्त राष्ट्र के शान्ति रक्षण अभियानों में योगदान करने वाला भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है. आज विश्व के विभिन्न कोनों में भारत के 8,500 से अधिक शान्ति-रक्षक तैनात हैं. यह संख्या संयुक्त राष्ट्र की पाँचों शक्तिशाली देशों के कुल योगदान से भी दुगुनी से अधिक है. भारत बहुत दिनों से सुरक्षा परिषद् का विस्तार करने और उसमें स्थाई सदस्य के रूप में भारत के समावेश की माँग करता रहा है. यह सुरक्षा परिषद् में सात बार सदस्य भी रहा है. इसके अतिरिक्त वह G77 और G4 का भी सदस्य है. इस प्रकार इसे सुरक्षा परिषद् में अवश्य शामिल होना चाहिए.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Major crops cropping patterns in various parts of the country, different types of irrigation and irrigation systems storage, transport and marketing of agricultural produce and issues and related con
Topic : Direct seeding of rice
संदर्भ
कोविड-19 के कारण कृषि श्रमिकों के अपने-अपने प्रदेश में लौट जाने के कारण पंजाब सरकार ने यह निर्णय किया है कि इस बार धान का रोपण पारम्परिक ढंग से नहीं होगा, अपितु बीजों को सीधे रोप दिया जाएगा. रोपण की इस पद्धति को प्रत्यक्ष धान बीजारोपण (direct seeding of rice (DSR) technique) कहते हैं.
प्रत्यक्ष धान बीजारोपण (DSR) तकनीक क्या है?
- प्रत्यक्ष धान बीजारोपण (DSR) तकनीक में धान के जनमे हुए बीजों को एक ट्रेक्टर से चलने वाली मशीन से खेत में सीधे अन्दर डाल दिया जाता है.
- इस पद्धति में बीजों की तैयारी या रोपण नहीं होता है. किसान को केवल अपनी भूमि को समतल करना पड़ता है और बीज डालने के पहले एक बार सिंचाई कर देनी होती है.
पारम्परिक पद्धति से यह भिन्न कैसे?
पारम्परिक पद्धति में किसान पहले भूमि में धान के बीज बिखेर देता है और उनको पौधों के रूप में उगने देता है. जितने क्षेत्र में धान को रोपना होता है, उसके मात्र 5-10% क्षेत्र में ही ये बीज लगाये जाते हैं. बाद में इन बीजों को उखाड़ लिया जाता है और 25 से 35 दिनों के पश्चात् उनको फिर से एक ऐसे खेत में रोपा जाता है जो पानी से भरपूर होता है.
प्रत्यक्ष धान बीजारोपण (DSR) के लाभ
- पानी की बचत : बीज डालने के पहले की गई सिंचाई के बाद इस पद्धति में पहली सिंचाई 21 दिनों के बाद ही आवश्यक होती है. ज्ञातव्य है कि पारम्परिक पद्धति में लगभग प्रतिदिन पानी पटाना पड़ता है जिससे कि खेत 3 सप्ताह तक पानी में डूबा रहे.
- कम मजदूर : इस पद्धति में एक एकड़ भूमि में धान लगाने के लिए मात्र 3 मजदूर चाहिए होते हैं जिन पर प्रति एकड़ लगभग 2,400 रु. का खर्च बैठता है.
- पतवारनाशक का खर्च : प्रत्यक्ष धान बीजारोपण (DSR) पद्धति में एक एकड़ में पतवारनाशकों (herbicides) पर 2000 रु. से कम ही खर्च होता है.
- मीथेन उत्सर्जन में कमी : पारम्परिक पद्धति में खेत को पानी में बहुत दिनों तक डुबाये रखना पड़ता है और उसकी मिट्टी अधिक मात्रा में इधर से उधर हो जाती है. परन्तु DSR पद्धति में खेत में पानी भरने की अवधि बहुत छोटी होती है इसलिए मीथेन का उत्सर्जन भी बहुत कम होता है.
प्रत्यक्ष धान बीजारोपण की कमियाँ
- पतवारनाशकों की अनुपलब्धता.
- DSR में लगभग दुगुने बीज लगते हैं. जहाँ पारम्परिक चावल की रोपाई में 4-5 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज लगते हैं, वहीं DSR में 8-10 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है.
- DSR पद्धति लागू करने के लिए लेजर से भूमि को समतल बनाना अपरिहार्य होता है जबकि रोपाई में ऐसा नहीं होता है.
- मानसून की बरसात आने के पहले बीजों का रोपण समय से हो जाना आवश्यक है अन्यथा पौधे ठीक से नहीं निकलेंगे.
मेरी राय – मेंस के लिए
धान को सबसे ज्यादा नुकसान मृदा जनित रोगों से होता है. कम पानी वाले क्षेत्रों में धान उत्पादन की यह तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. इस तकनीकी से जहां कम लागत में बेहतर उत्पादन होगा, वहीं फसल को मृदा जनित रोगों का भी सामना नहीं करना पड़ेगा. परंपरागत ज्ञान के साथ आधुनिक विज्ञान को अपनाकर खेती की जाए तो निश्चित तौर पर परिणाम अच्छे आएंगे.
पर सरकार को यह चाहिए कि यदि वह किसानों को इस नए तकनीक को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है तो साथ ही साथ बीजों के दाम भी अधिक से अधिक कम करके किसानों को उपलब्ध कराया जाए क्योंकि इस तकनीक में दुगुने बीजों का प्रयोग होता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization of resources, growth, development and employment.
Topic : Shapes of economic recovery
संदर्भ
अधिकांश अर्थशास्त्रियों में इस बात को लेकर सहमति है कि चालू वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था सिकुड़ जायेगी. यदि मतभेद है तो इस बात को लेकर कि यह सिकुड़न कितनी होगी. कुछ लोग कहते हैं कि -4% तो अन्य कहते हैं -14%.
कई अर्थशास्त्रियों का यह मत है कि इस वर्ष अर्थव्यवस्था न्यूनतम धरातल तक पहुँच जायेगी, परन्तु अगले वित्तीय वर्ष (2021-22) में यह फिर से सुधरने लगेगी.
भारत में आर्थिक पुनरुत्थान (Economic Recovery) की आदर्श आकृति क्या होनी चाहिए?
COVID-19 संकट और अपर्याप्त वित्तीय उत्प्रेरण के कारण बहुत संभावना है कि भारत में आर्थिक पुनरुत्थान (economic recovery) की आकृति लम्बे U-आकार (elongated U-shape) में होगी.
आर्थिक पुनरुत्थान की आकृतियाँ कौन-कौन सी होती हैं?
Z आकृति वाला आर्थिक पुनरुत्थान (Z-shaped recovery)
यह सबसे अच्छा परिदृश्य होता है जिसमें अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से सुदृढ़ हो जाती है. अर्थव्यवस्था को जो कुछ भी हानि (जैसे – तालेबंदी के पश्चात् बदले की भावना से खरीद) हो चुकी होती है उसकी इस आकृति में तत्काल क्षतिपूर्ति हो जाती है.
V आकृति वाला आर्थिक पुनरुत्थान (V-shaped recovery)
इसमें भी अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर आ जाती है और सामान्य वृद्धि की राह पर चल पड़ती है.
U आकृति वाला आर्थिक पुनरुत्थान (U-shaped recovery)
इसमें अर्थव्यवस्था को संघर्ष करना पड़ता है और वृद्धि की दर कुछ समय तक निम्न स्तर पर रहती है और उसके पश्चात् धीरे-धीरे सामान्य स्तर तक पहुँचती है.
W आकृति वाला आर्थिक पुनरुत्थान (W-shaped recovery)
इसमें वृद्धि की दर बार-बार गिरती और बढ़ती है और अन्त में जाकर सामान्य दर पर पहुँच पाती है. इस प्रकार W की आकृति वाला चार्ट बन जाता है.
L आकृति वाला आर्थिक पुनरुत्थान (L-shaped recovery)
यह सबसे बुरा परिदृश्य होता है जिसमें एक बार गिर जाने के बाद अर्थव्यवस्था निम्न स्तर पर टिकी रहती है और उसे फिर से पटरी पर आने में बहुत-बहुत समय लगता है.
J आकृति वाला आर्थिक पुनरुत्थान (J-shaped recovery)
यह परिवेश तनिक यथार्थ से दूर होता है क्योंकि इसमें वृद्धि बहुत तेजी से होती है और ऊँचे स्तर पर बहुत समय तक टिक जाती है.
अन्य आकृतियाँ
स्वूश (Swoosh) आकृति वाला आर्थिक पुनरुत्थान : इसमें पुनरुत्थान की आकृति Nike के logo के समान V-आकृति और U-आकृति के बीच का रूप लिए होती है. इसमें पतन के पश्चात् वृद्धि तेजी से होती है, परन्तु फिर उसके मार्ग में अड़चनें आ जाती हैं और अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आती है.
अन्दर मुड़े वर्गमूल की आकृति वाला वाला आर्थिक पुनरुत्थान (Inverted square root shaped recovery) : यह परिकल्पना वित्त प्रदाता George Soros द्वारा कुछ वर्षों पहले की गई थी. इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था न्यूनतम स्थान पर जाकर फिर से ऊपर उठ सकती है, किन्तु फिर वृद्धि धीमी पड़ जाती है और अर्थव्यवस्था एक कदम नीचे आ जाती है.
आर्थिक पुनरुत्थान का आकार किन कारकों पर निर्भर है?
आर्थिक पुनरुत्थान की आकृति का निर्धारण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की गति और दिशा से होता है. इसके अतिरिक्त और भी कई कारक होते हैं, जैसे – राजकोषीय एवं मौद्रिक उपाय, उपभोक्ता की आय और भावना आदि.
Prelims Vishesh
SaalBhar60 :-
- हरिद्वार में रहने वाली रिद्धिमा पांडे ने वायु प्रदूषण को लेकर सालभर60 नामक एक नया अभियान चलाया है जिसमें सरकार से माँग की गई है कि वह ऐसे उपाय करे जिससे शहरों में प्रतिघन मीटर PM 2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम रहे.
- ज्ञातव्य है कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, प्रदूषण का निरापद मानक 60 माइक्रोग्राम ही है.
Tripoli :-
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित लीबिया की सरकार ने पिछले दिनों घोषणा की कि वह हफ्तार सैन्य विद्रोहियों से ट्रिपोली छीनने जा रही है.
- विदित हो कि ट्रिपोली लीबिया का सबसे बड़ा नगर और राजधानी है जो भूमध्यसागर के तट पर एक चट्टानी भूमि पर अवस्थित है.
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