Sansar Daily Current Affairs, 15 September 2020
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : What constitutes a breach of legislature’s privilege?
संदर्भ
हाल ही में, महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में अर्नब गोस्वामी और कंगना रनौत के विरुद्ध विशेषाधिकार उल्लंघन के प्रस्ताव पेश किये गए.
विशेषाधिकार क्या है?
एक सांसद या विधायक होना सिर्फ जनप्रतिनिधि होना नहीं है अपितु ये लोग संविधान के पालक और नीतियाँ/कानून बनाने वाले लोग भी हैं. कार्यपालिका के साथ मिलकर यही लोग देश का वर्तमान और भविष्य तय करते हैं. इन पदों की महत्ता और निष्ठा को देखते हुए संविधान ने इन्हें कुछ विशेषाधिकार दिए हैं. संविधान के अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 के खंड 1 और खंड 2 के तहत विशेषाधिकार का प्रावधान किया गया है. भारतीय संविधान में विशेषाधिकार के विषय इंग्लैंड के संविधान से लिए गये हैं.
संविधान के अनुच्छेद 105 (3) और 194 (3) के तहत देश के विधानमंडलों को वही विशेषाधिकार मिले हैं जो संसद को मिले हैं. संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि ये स्वतंत्र उपबंध हैं. यदि कोई सदन विवाद के किसी भाग को कार्यवाही से हटा देता है तो कोई भी उस भाग को प्रकाशित नहीं कर पायेगा और यदि ऐसा हुआ तो संसद या विधानमंडल की अवमानना मानना जाएगा. ऐसा करना दंडनीय है. इस परिस्थिति में अनुच्छेद 19 (क) के तहत बोलने की आजादी (freedom of speech and expression) के मूल अधिकार की दलील नहीं चलेगी.
हालाँकि बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि भले ही विशेषाधिकार के मामले अनुच्छेद 19 (क) के बंधन से मुक्त हों लेकिन यह अनुच्छेद 20-22 और अनुच्छेद 32 के अधीन माने जायेंगे.
प्रकार
विशेषाधिकार के मामलों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
- हर सदस्य को मिला व्यक्तिगत विशेषाधिकार
- संसद के प्रत्येक सदन को सामूहिक रूप से मिला विशेषाधिकार
व्यक्तिगत विशेषाधिकार
- सदस्यों को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 135 (क) के तहत गिरफ्तारी से छूट मिलती है. इसके तहत सदस्य को समितियों की बैठक के 40 दिन पहले या 40 दिन बाद तक गिरफ्तारी से छूट मिलती है. यह छूट सिर्फ सिविल मामलों में मिलती है. आपराधिक मामलों के तहत यह छूट नहीं मिलेगी.
- जब संसद सत्र चल रहा हो तो सदस्य को गवाही के लिए बुलाया नहीं जा सकता.
- संसद के सदस्य द्वारा संसद में या उसकी समिति में कही गई किसी बात के लिए न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती.
लेकिन यहाँ यह जानना जरुरी है कि सदस्यों को मिले ये विशेषाधिकार तब तक लागू रहेंगे जबतक वह संसद या सदन के हित में हो. यानी सदस्य सदन की प्रतिष्ठा की परवाह किये बिना अपनी इच्छानुसार कुछ भी कहने का हकदार नहीं है.
सामूहिक रूप से मिला विशेषाधिकार
- चर्चाओं और कार्यवाहियों को प्रकाशित करने से रोकने का अधिकार.
- अन्य व्यक्तियों को अपवर्जित या प्रतिबंधित करने का अधिकार.
- सदन के आंतरिक मामलों को निपटाने का अधिकार.
- संसदीय कदाचार को प्रकाशित करने का अधिकार.
- सदस्यों और बाहरी लोगों को सदन के विशेषाधिकारों को भंग करने के लिए दंडित करने का अधिकार.
अन्य अधिकार
इसके अलावा भी सदनों के भीतर कुछ विशेषाधिकारों की बात करें तो सदनों के अध्यक्ष और सभापति को या किसी अजनबी को सदन से बाहर जाने का आदेश देने का अधिकार है. सदन के कार्यवाहियों को सुचारू रूप से चलाने और विवाद की स्थिति में बिना न्यायालय के दखल के आंतरिक तौर पर निपटाने का अधिकार भी है. यानी संसद की चारदीवारी के भीतर जो कहा या किया जाता है, उसके बारे में कोई भी न्यायालय जाँच नहीं कर सकता.
एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय न्यायालयों ने भी समय-समय पर स्पष्ट किया है कि संसद या राज्य विधान मंडलों के किसी सदन को यह निर्णय लेने का अधिकार है कि किसी मामले में सदन या सदस्य के Parliamentary Privilege का उल्लंघन हुआ है या नहीं.
विशेषाधिकार का उल्लंघन
जब कोई व्यक्ति या प्राधिकारी व्यक्तिगत रूप में संसद के सदस्यों अथवा सामूहिक रूप से सभा के किसी विशेषाधिकार, अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना करता है या उन्हें चोट पहुँचाता है, तो इसे विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाएगा. यह कृत्य सदन द्वारा दंडनीय होता है. इसके अतिरिक्त सदन के आदेशों की अवज्ञा करना अथवा सदन, इसकी समितियों, सदस्यों और पदाधिकारियों के विरुद्ध अपमानित लेख लिखना भी विशेषाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है.
और भी विस्तार से पढ़ें : विशेषाधिकार
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Related to Health.
Topic : Levels and Trends in Child Mortality Report 2020
संदर्भ
हाल ही में ‘लेवल्स एंड ट्रेंड्स इन चाइल्ड मोर्टेलिटी’ रिपोर्ट 2020 (Levels and Trends in Child Mortality Report 2020) निर्गत की गई.
रिपोर्ट से सम्बंधित मुख्य तथ्य
- इस रिपोर्ट में बाल मृत्यु दर (नवजात शिशुओं से लेकर किशोरों तक) तथा साथ ही वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (SDG 2030) को पूर्ण करने की दिशा में हुई प्रगति को इंगित किया गया है.
- पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर (Under-five mortality rate: U5MR) में वर्ष 1990 के पश्चात् से लगभग 60% की कमी आई है. यह 93 से कम होकर वर्ष 2019 में 38 हो गई है. उप-सहारा अफ्रीका में U5MR का स्तर सर्वाधिक है.
- अब तक कुल U5MR मृत्युओं में लगभग एक तिहाई नाइजीरिया और भारत में हुई हैं.
- 1 से 59 माह के बच्चों की मृत्यु दर में जितनी तेजी से कमी आई है, उतनी तीव्र गिरावट नवजात शिशा मृत्यु दर में नहीं हुई है.
- वर्ष 2019 में, पांच वर्ष से कम आयु वर्ग में हुई कुल मृत्युओं में से 47% मृत्यु नवजात काल (वर्ष 1990 में 40% थी) में हुई हैं.
- वर्ष 1990 के पश्चात् से किशोर मृत्यु दर में लगभग 40% की गिरावट आई है.
- वर्ष 2019 में 122 देश, SDG लक्ष्य (प्रति 1,000 जीवित जन्मों में से 25 या उससे कम मृत्यु) के तहत निर्धारित U5MR मानकों को प्राप्त करने में सफल रहे थे.
- वर्ष 1990-2019 के मध्य भारत में नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी आई है और साथ ही यह 57 से घटकर 22 हो गई है.
- लिंग-विशिष्ट U5MR वर्ष 1990 में पुरुषों में 122 और महिलाओं में 131 रही थी. वर्ष 2019 में यह कम होकर पुरुषों में 34 और महिलाओं में 35 हो गई है.
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मृत्यु दर को अत्यल्प करने के लिए जीवन रक्षक हस्तक्षेपों उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है.
- यह रिपोर्ट यूनिसेफ (UNICEF) के तत्वाधान में बाल मृत्यु अनुमान हेतु संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी समूह (UNIGME) द्वारा जारी की गई है.
पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर (Under-five mortality rate)
यह जन्म के समय और ठीक 5 वर्ष की आयु के मध्य होने वाली बाल मृत्यु की संभावना को दर्शाती है. इसे प्रति 1,000 जीवित जमन्में शिशुओं पर आकलित किया जाता है.
नवजात मृत्यु दर (Neonatal mortality rate)
जन्म से लेकर 28 दिनों के मध्य होने वाली नवजात शिशु की मृत्यु की संभावना को दर्शाती है. इसे प्रति 1000 जीवित जन्मों पर आकलित किया जाता है.
किशोर (10-19 वर्ष आयु वर्ग) मृत्यु दर {Adolescent (age 10-19) mortality rate}
यह 10 से 19 वर्ष की आयु के मध्य होने वाली मृत्यु की संभावना को दर्शाती है, इसे 10 वर्ष की आयु वाले प्रति 1,000 बच्चों पर आकलित किया जाता है.
मातृ मृत्यु दर (MMR) क्या होती है?
- मातृ मृत्यु दर दुनिया के सभी देशों में प्रसव के पूर्व या उसके दौरान या बाद में माताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार के प्रयासों के लिये एक प्रमुख प्रदर्शन संकेतक है.
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, एमएमआर गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण से (आकस्मिक या अप्रत्याशित कारणों को छोड़कर) प्रति 100,000 जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु की वार्षिक संख्या है.
मेरी राय – मेंस के लिए
मृत्यु दर जितनी कम होगी, देश उतना अधिक सेहतमंद कहलाएगा. अधिकतर प्रसव अस्पताल में होने, नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए सुविधाओं का विकास और टीकाकरण बेहतर होने से शिशु मृत्यु दर में कमी आई है. केरल और तमिलनाडु में शिशु मृत्यु दर सबसे कम है, जबकि मध्य प्रदेश, असम और उत्तर प्रदेश में ज़्यादा बच्चे मरते हैं. जिस इलाके में शिक्षा का स्तर ज़्यादा होता है और आधारभूत स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होती हैं वहां शिशु मृत्यु दर कम रहती है. अगर मां 12वीं पास है तो बच्चे की मौत की आशंका 2.7 गुना तक कम हो जाती है.
यही वजह है कि तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में मृत्यु दर कम है. साथ ही इन राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहतर हैं. यहां छोटे-मोटे इलाकों में भी अच्छे अस्पताल होते हैं.
मृत्यु दर कम-ज़्यादा होने की तीन वजहें हो सकती हैं – “अमीरी-गरीबी, मां की शिक्षा और गांव या शहर में बच्चे का पैदा होना.”
लड़कों के मुकाबले लड़कियों की मृत्यु दर पहले से कम हुई है, लेकिन अब भी ये विश्व मृत्यु दर से काफ़ी ज़्यादा है. जबकि पाकिस्तान समेत कई देशों में लड़कियां लड़कों से कम मरती हैं. आशा है कि अगले कुछ सालों में लड़के और लड़कियों की मृत्यु दर के बीच का फ़ासला ख़त्म हो जाएगा.
कई जगह सकारात्मक संकेत मिलने लगे हैं और इसकी वजहें हैं, “कई जगह बच्चियों के पैदा होने पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है, मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा दी जाती है. इन सब चीज़ों से लड़कों के मुकाबले लड़कियों की मृत्यु दर चार गुना घटी है. पहले 10% ज़्यादा लड़कियां मरती थीं, लेकिन अब सिर्फ 2.5% ज्यादा मर रही हैं.”
लोग आज भी लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च नहीं करना चाहते, इसलिए लोगों को ये मानसिकता बदलनी होगी. वो इसे बदलने में मीडिया की भूमिका को अहम मानते हैं. बच्चों की ज़्यादातर मौतें पोषण की कमी या इन्फ़ेक्शन की वजह से होती हैं.
इसलिए ‘पोषण’ अभियान के तहत जरूरी पोषक तत्व मुहैया कराने और देश को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) कराने जैसे राष्ट्रीय स्तर पर चलाये जा रहे अभियानों से भी मदद मिलेगी.
समाज और सरकार दोनों ही स्तरों पर कोशिशों से आकड़े और बेहतर हो जाएंगे.
यदि –
- हर मां की डिलिवरी अस्पताल में ही हो.
- जन्म के एक घंटे के अंदर मां का पीला दूध पिलाएं.
- सबसे ज़्यादा मौतें जन्म से एक महीने के अंदर होती हैं. इसलिए इस दौरान बच्चे का ज़्यादा ख्याल रखें.
जन्म का दिन सबसे खुशी का भी दिन है और सबसे ख़तरे का भी दिन है. अधिकतर बच्चों की मौत जन्म के दिन या जन्म के 24 घंटे के अंदर होती है और उसके बाद पहले एक महीने में सबसे ज़्यादा मौतें होती हैं.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Inclusive Growth, Growth & Development, Issues Relating to Development.
Topic : Doorstep Banking
संदर्भ
वित्त मंत्री द्वारा “डोरस्टेप बैंकिंग” सेवाओं का लोकार्पण तथा ईज (EASE) 2.0 सूचकांक के परिणामों को घोषित किया गया है.
डोरस्टेप बैंकिंग सेवा
- डोरस्टेप बैंकिंग सेवाओं की परिकल्पना मुख्यतः EASE (Enhanced Access and Service Excellence /संवर्धित पहुंच एवं सेवा उत्कृष्टता) सुधारों के एक भाग के रूप में की गई है.
- इसके अंतर्गत बैंकों द्वारा बैंकिंग सेवाओं को ग्राहकों के घर पर ही उपलब्ध करवाए जाने की व्यवस्था की गई है.
- बैंकिंग सेवाओं को कॉल सेंटर, वेब पोर्टल या मोबाइल ऐप के संपर्क बिंदुओं के माध्यम से प्रदान किया जाता है.
- ग्राहक इन चैनलों के माध्यम से अपने सेवा अनुरोध (service request) को भी ट्रैक कर सकते हैं.
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) हेतु “EASE” सुधार एजेंडे को वर्ष 2018 में आरंभ किया गया था.
- इसका उद्देश्य सुगम और स्मार्ट बैंकिंग को संस्थागत बनाना रहा है.
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) में पूंजी निवेश, उपर्युक्त सुधारों के संदर्भ में PSBs के प्रदर्शन पर आधारित था.
EASE 6 विषयों पर आधारित है :-
- ग्राहक के प्रति अनुक्रियाशीलता: ग्राहक को संवर्धित पहुंच एवं उत्कृष्टता (ईज) प्रदान करना.
- उत्तरदायी बैंकिंग: वित्तीय स्थिरता, परिणाम सुनिश्चित करने के लिए अभिशासन, तथा उत्तम ऋण व्यवस्था व विवेकपूर्ण परिसंपत्ति प्रबंधन के लिए ईज.
- क्रेडिट ऑफ-टेक (ऋण बढ़ोत्तरी): उधारकर्ता के लिए ईज़ और ऋण का अग्रसक्रिय वितरण.
- उद्यमी मित्र के रूप में PSBs: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए बिल में छूट और वित्त पोषण में ईज़ सुविधा.
- वित्तीय समावेशन और डिजिटलीकरण का विस्तार करना: घर के निकट बैंकिंग, सूक्ष्म बीमा और डिजिटलीकरण के माध्यम से ईज़.
- परिणाम सुनिश्चित करना: मानव संसाधन (Human Resource: HR) ब्रांड PSB के लिए कर्मियों का विकास करना.
EASE 2.0
- EASE 2.0, को वस्तुत: EASE 1.0 क॑ आधार पर तैयार किया गया है. EASE 2.0 के तहत उपर्युक्त 6 विषयों के अंतर्गत समाविष्ट किए गए सुधार क्रिया बिंदुओं का उद्देश्य सुधार प्रक्रिया को अपरिवर्तनीय बनाए रखना, प्रक्रियाओं एवं प्रणालियों को सुदृढ़ करना और बेहतर परिणाम प्राप्त करना है.
- EASE सुधार सूचकांक, छह विषयों में 120 से अधिक उद्देश्य मापदंडों के आधार पर प्रत्येक PSBs के प्रदर्शन का मापन करता है. यह सभी PSBs को एक तुलनात्मक मूल्यांकन प्रदान करता है और यह दर्शाता है कोई बैंक सुधार के एजेंडे पर अन्य बैंकों के सापेक्ष कितना बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.
मेरी राय – मेंस के लिए
पब्लिक सेक्टर बैंकों के ग्राहक मामूली चार्ज पर इन सेवाओं का लाभ ले सकेंगे. इस सर्विस का फायदा उन बैंक ग्राहकों को सबसे ज्यादा होगा जो कि ज्यादा बुजुर्ग हैं और बैंक शाखा में जाने में अमसर्मथ महसूस करते हैं. सीनियर सिटीजन और दिव्यांगों ग्राहकों को बैंकों में लंबी लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ेगा.
70 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों, दिव्यांगों और गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए ये सर्विस कारगार साबित हो सकती है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने इन्हीं दिक्कतों को देखते हुए बैंकों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं देने के लिए कदम उठाने की सलाह दे चुका था जिसके बाद सरकार ने इसपर एक्शन प्लान तैयार किया है. डोरस्टेप बैंकिंग की नींव भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ साल पहले रखी थी.
ग्राहक वेब पोर्टल, मोबाइल ऐप और कॉल सेंटर के जरिए ‘डोर स्टेप बैंकिंग’ सर्विस का इस्तेमाल कर सकेंगे. ग्राहक इन चैनलों के माध्यम से अपने सर्विस रिक्वेस्ट को भी ट्रैक कर सकते हैं. घर बैठे चेक, डिमांड ड्राफ्ट, पे ऑर्डर पिक करने जैसी नॉन फाइनेशियल सर्विस के साथ पैसों के लेन-देन से जुड़ी सेवाएं मिलेंगी.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Conservation related issues.
Topic : CSCAF 2.0 and Streets for People Challenge
संदर्भ
हाल ही में क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज असेसमेंट फ्रेमवर्क (Climate Smart Cities Assessment Framework – CSCAF 2.0) और स्ट्रीट्स फॉर पीपल चैलेंज का शुभारम्भ किया गया.
CSCAF क्या है?
- CSCAF, वर्ष 2019 में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) द्वारा शुरू किया गया जलवायु प्रासंगिक मापदंडों पर अपनी तरह का प्रथम मूल्यांकन ढांचा है.
- इसका उद्देश्य शहरों में निवेश सहित अपनी योजनाओं को कार्यान्वित करने के दौरान उत्पन्न होने वाली जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए शहरों को एक स्पष्ट संरचना उपलब्ध कराना है.
- यह शहरी नियोजन और विकास हेतु एक जलवायु-संवेदनशील दृष्टिकोण को अपनाने पर बल देता है.
- फ्रेमवर्क के तहत पाँच श्रेणियों में 28 संकेतकों को शामिल किया गया है, जैसे – ऊर्जा और हरित भवन, शहरी नियोजन, हरित आवरण व जैव विविधता, गतिशीलता एवं वायु गुणवत्ता, जल तथा अपशिष्ट प्रबंधन.
- “नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स” के तहत शहरों के लिए जलवायु केंद्र (Climate Centre for Cities), CSCAF के कार्यान्वयन में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय का सहयोग कर रहा है.
स्ट्रीट्स फॉर पीपल चैलेंज क्या है?
- यह स्मार्ट सिटीज मिशन (SCM) की एक पहल है, जिसका उद्देश्य शहरों को त्वरित, अभिनव और कम लागत वाले उपायों के माध्यम से पद यात्रियों के लिए अनुकूल और बेहतर गलियों का निर्माण करना है.
- इस चैलेंज के तहत प्रत्येक शहर को कम से कम एक “फ्लैगशिप वॉकिंग प्रोजेक्ट” का परीक्षण करने और पड़ोस के एक क्षेत्र को निवास योग्य बनाना आवश्यक होता है.
- पदयात्रियों की अधिक आवाजाही (फूटफॉल जोन) वाली गलियों को फ्लैगशिप प्रोजेक्ट के लिए उपयुक्त स्थान माना जा सकता है.
- इस चैलेंज को समर्थन प्रदान करने के लिए युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय के अंतर्गत “फिट इंडिया मिशन” एवं “इंस्टिट्यूट फॉर ट्रांसपोर्टेशन एंड डेवलपमेंट पॉलिसी” द्वारा SCM के साथ साझेदारी की जा रही है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization of resources, growth, development and employment.
Topic : IIP
संदर्भ
हाल ही में भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के आंकड़े जारी किए हैं.
जुलाई, 2020 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) से जुड़े प्रमुख बिंदु
- सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के द्वारा जारी आंकणों के अनुसार जुलाई,2020 में देश का औद्योगिक उत्पादन 10.4% घट गया है(पिछले साल के जुलाई माह की तुलना में). इसके अनुसार विनिर्माण, माइनिंग और बिजली उत्पादन घटने से IIP में गिरावट आई है.
- जुलाई, 2020 में 2011-12 के आधार के साथ औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) का त्वरित अनुमान 118.1 रहा है. जुलाई, 2020 के महीने में खनन, विनिर्माण और बिजली क्षेत्रों के लिए औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक क्रमशः 87.2, 118.8 और 166.3 पर रहे हैं.
- जुलाई में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में 11.1% कमी आयी तथा माइनिंग व बिजली उत्पादन में क्रमश: 13% और 2.5% गिरावट आयी है.
- सरकार ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए मार्च, 2020 के अंतिम हफ्ते में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का निर्णय किया था. इसके चलते औद्योगिक उत्पादन लगभग ठप हो गया था. लॉकडाउन का असर फैक्ट्रियों में उत्पादित होने वाली चीजों के उत्पादन पर पड़ा. बाद में लॉकडाउन के तहत पाबंदियां कम की गयीं, जिससे धीरे-धीरे औद्योगिक गतिविधियां बढ़ रही हैं.
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के बारे में
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) , भारतीय अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के वृद्धि या विकास का विवरण प्रस्तुत करता है, यथा- रिफाइनरी उत्पाद, खनिज खनन, बिजली, विनिर्माण, सीमेंट आदि.
- इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office -NSO) द्वारा, मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है.
- दरअसल, यह सूचकांक अर्थव्यवस्था का एक समग्र संकेतक है जो कि प्रमुख क्षेत्र (Core Sectors) एवं उपयोग आधारित क्षेत्र के आधार पर आँकड़े उपलब्ध कराता है.
- कोर सेक्टर का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में लगभग 40.27% योगदान होता है. विदित हो कि IIP, अर्थव्यवस्था के विभिन्न उद्योग समूहों में एक निश्चित समय अवधि में विकास दर को प्रदर्शित करता है अर्थात IIP, एक समग्र संकेतक है जो वर्गीकृत किये गए उद्योग समूहों की वृद्धि दर को मापता है . इसके आकलन के लिये आधार वर्ष ‘2011-2012’ है.
- IIP में आठ कोर उद्योग का भारांश घटते के क्रम में इस प्रकार से हैं : रिफाइनरी उत्पाद> विद्युत> इस्पात> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक.
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) का उपयोग भारतीय रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय तथा अन्य सरकारी एजेंसियों व संगठनों द्वारा सार्वजनिक नीति-निर्माण में किया जाता है.
सरल भाषा में पढ़ें CPI, WPI, IIP, GDP Deflator
Prelims Vishesh
India-Angola first Joint Commission meeting :-
- हाल ही में हुई भारत-अंगोला संयुक्त आयोग की प्रथम बैठक में दोनों पक्षों द्वारा अपने व्यापार संबंधों में विविधता लाने पर सहमति व्यक्त की गई और स्वास्थ्य, औषध, रक्षा, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, डिजिटलीकरण आदि क्षेत्रों में सहयोग स्थापित करने पर भी चर्चा की गई.
- आर्थिक विविघीकरण में अंगोला की सहायता करने तथा पेट्रोलियम और हीरा क्षेत्रकों में अंगोला से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए भारत ने अपनी विशेषज्ञता साझा करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया.
- अंगोला, अफ्रीका महाद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित एक देश है.
Convalescent plasma therapy :-
- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किए गए अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि प्लाज़्मा थेरेपी, कोविड-19 रोगियों की सहायता करने में अप्रभावी रही है.
- प्लाज्मा थेरेपी के तहत कोविड-19 से उपचारित हो चुके व्यक्ति के रक्त से प्लाज्मा प्राप्त करके उसे उपचाराघीन रोगी में इंजेक्ट किया जाता है.
- रक्त प्लाज्मा रक्त का वह तरल घटक होता है, जिसमें रक्त कोशिकाएं प्रवाहित होती हैं. इसमें रोगप्रतिकारक (एंटीबॉडी) भी मौजूद होते हैं.
ANIC-ARISE :-
- हाल ही में ANIC-ARISE (लघु और मध्यम उद्यमों हेतु एप्लाइड रिसर्च और इनोवेशन में अटल न्यू इंडिया चुनौतियाँ) नामक पहल का शुभारम्भ किया गया.
- यह अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने तथा भारतीय स्टार्ट-अप एवं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में वृद्धि करने हेतु अटल नवाचार मिशन द्वारा प्रारंभ की गई एक पहल है.
- इसके अंतर्गत प्रस्तावित प्रौद्योगिकी समाधान और,/या उत्पाद के त्वरित विकास के लिए 50 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है.
- इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), चार मंत्रालयों अर्थात्-रक्षा मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय एवं संबंधित उद्योगों द्वारा संचालित किया जाएगा.
Ancient Universities in India :-
तक्षशिला विश्वविद्यालय
इसका निर्माण लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व में किया गया था. वर्तमान में यह पाकिस्तान में स्थित है. यहाँ बौद्ध और हिंदू दोनों धर्मशास्त्रों की शिक्षा प्रदान की जाती थी. तक्षशिला के प्रसिद्ध व्यक्तित्वों में चाणक्य, चरक, पाणिनि, जीवक, प्रसेनजित आदि शामिल हैं.
नालंदा विश्वविद्यालय
इसे 5वीं शताब्दी ई. में कुमारगुप्त के शासनकाल के दौरान निर्मित किया गया था. वर्तमान में यह विश्वविद्यालय बिहार में स्थित है. इससे संबद्ध प्रसिद्ध विद्वानों में नागार्जुन (माध्यमिक शून्यवाद) और आर्यभट्ट शामिल हैं.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय
इसे पाल वंश (बिहार का भागलपुर जिला) के शासक धर्मपाल द्वारा स्थापित किया गया था. यह मुख्य रूप से बौद्ध शिक्षा का एक केंद्र रहा है. यहाँ वज्रयान संप्रदाय का उद्भव हुआ था और साथ ही, यहां तंत्रवाद संबंधी शिक्षाएँ भी प्रदान की जाती थीं.
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