आज हम बिहार की प्रमुख नदियों के विषय में पढ़ेंगे जो आपकी आगामी BPSC या BSSC परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नोट्स है.
क्या आपको अपवाह तंत्र के विषय में जानकारी है? दरअसल, अपवाह तंत्र का तात्पर्य वैसी नदी तंत्र से है जिसका निर्माण सतही जलधारायें, नदी, झील आदि द्वारा ढाल विशेष का अनुसरण करते हुए किया जाता है. बिहार के अपवाह प्रणाली का आधार गंगा नदी है. गंगा और उसकी सहायक नदियों के प्रवाह ने बिहार के धरातलीय स्वरूप को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. बिहार का लगभग 90 प्रतिशत धरातलीय स्वरूप का विकास नदियों के अपवाहन के द्वारा हुआ है.
बिहार में औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा 1009 मिलीमीटर (109 सेंटीमीटर) है, जिसके कारण राज्य में वर्ष-भर बहने वाली नदियों का संजाल बिछा हुआ है.
प्रवाह तंत्र और उद्गम के आधार पर बिहार की नदियों को दो वर्ग में बांटा गया है –
(1) हिमालय प्रदेश की नदियाँ
(2) पठारी या प्रायद्वीपीय प्रदेश की नदियाँ
उपयुर्क्त दोनों वर्ग की नदियाँ मुख्य नदी गंगा में मिल जाती है. हिमालय प्रदेश की नदियाँ जो हिमालय से निकलकर उत्तरी बिहार के मैदान में प्रवाहित होती है, उत्तरी मैदान में समानान्तर एवं विसर्पाकार प्रवाह प्रणाली का निर्माण करती है. अपने मार्ग में बदलाव करती है. ये नदियाँ पूर्व से पश्चिम की ओर स्थानांतरित हो रही है. इस स्थानांतरण का मूल कारण पृथ्वी की घूर्णन गति है. जिसके कारण पश्चिमी तट पर अपरदन अधिक होता है. मार्ग परिवर्तन के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध नदी कोसी है.
बिहार की प्रमुख नदियाँ
भौगोलिक दृष्टिकोण से राज्य को सात नदी क्षेत्र में विभक्त किया गया है-
(1) घाघरा-गंडक
(2) गंडक-बागमती
(3) बागमती-कोसी
(4) कोसी-महानंदा
(5) कर्मनासा-सोन
(6) सोन-पुनपुन
(7) पुनपुन-सकरी
गंगा नदी
गंगा नदी बिहार के मध्य भाग में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है. भारत की सबसे लम्बी नदी गंगा की कुल लम्बाई 2500 किलोमीटर है, जिसमें बिहार में 445 किलोमीटर प्रवाहित होती है. इस नदी का बिहार में प्रवाह क्षेत्र 15165 वर्ग किलोमीटर है. इसका उद्गम स्थल उत्तराखण्ड की केदारनाथ चोटी के उत्तर में स्थित गंगोत्री हिमनद का गोमुख है. यह नदी उत्तर प्रदेश से बिहार के बक्सर जिला में चौसा के पास प्रवेश करती है. इस क्षेत्र में गंगा, गंडक, सरयू (घाघरा) और कर्मनाशा नदी बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा रेखा का निर्धारण करती है. इसमें उत्तर दिशा से (बायीं तट पर) घाघरा, गंडक, बागमती, बलान, बूढ़ी गण्डक, कोसी, महानन्दा और कमला नदी आकर मिलती है, जबकि दक्षिण दिशा से (दायी तट पर) सोन, कर्मनाशा, पुनपुन, किऊल आदि नदी आकर मिलती है. प्रमुख नदियों में सर्वप्रथम बिहार क्षेत्र में गंगा में सोन नदी दानापुर से 10 किलोमीटर पश्चिम में मनेर के पास आकर मिलती है. गंगा नदी बिहार एवं झारखण्ड के साहेबगंज जिला के साथ सीमा रेखा बनाते हुए बंगाल में प्रवेश करती है. गंगा अपनी यात्रा क्रम में बक्सर, भोजपुर, सारण, पटना, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर, भागलपुर, कटिहार आदि जिलों में प्रवाहित होती है.
घाघरा (सरयू नदी)
मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में प्रवाहित होने वाली घाघरा नदी का उद्गम स्थल नेपाल में नाम्या है. इसकी लम्बाई बिहार में 83 किलोमीटर है. यह बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा का निर्धारण करती है. यह नदी सारण जिला में छपरा के समीप गंगा में मिल जाती है. इसे उपरी भाग में लखनदेई और करनाली के नाम से भी जाना जाता है.
गंडक
गंडक नदी सात धाराओं के मिलकर बनी है. सप्तगंडकी, कालीगंडक, नारायणी, शालिग्रामी, सदानीरा आदि कई नामों से जानी जाने वाली गंडक नदी की उत्पत्ति नेपाल के अन्नपूर्णा श्रेणी के मानंगमोट और कुतांग (नेपाल एवं तिब्बत की सीमा) के मध्य से हुई है. इसकी बिहार में कुल लम्बाई 630 किलोमीटर है. गंडक नेपाल में अन्नपूर्णा श्रेणी को काटकर गार्ज का निर्माण करती है. यह नदी भैसालोटन (पश्चिमी चम्पारण) के पास बिहार में प्रवेश करती है. पश्चिम चम्पारण जिला नगर में बैराज का निर्माण किया गया है. यह नदी सारण और मुजफ्फरपुर की सीमा निर्धारित करते हुए सोनपुर और हाजीपुर के मध्य से गुजरती हुई पटना के सामने गंगा में मिल जाती है. इसी संगम पर विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र का मेला (सोनपुर पशु मेला) प्रत्येक वर्ष आयोजित होता है.
बूढ़ी गंडक
यह नदी गंडक के समानान्तर उसके पूर्वी भाग में प्रवाहित होती है. बूढ़ी गंडक नदी उत्तरी बिहार के मैदान को दो भागों में बाँटती है. हिमालय से निकलकर उत्तर बिहार में प्रवाहित होने वाली उत्तर बिहार की सबसे लम्बी नदी है. इसकी उत्पत्ति सोमेश्वर श्रेणी के विशंभरपुर के पास चऊतरवा चौर से हुई है. यह उत्तर बिहार की सबसे तेज जलधारा वाली नदी है, जिसका बहाव उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर है. यह गंडक नदी की परित्यक्त धारा है, जो मुख्य नदी के पश्चिम में खिसक जाने से प्रवाहित हुई है. बूढ़ी गंडक के तट पर मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, खगड़िया आदि नगर स्थित हैं. बूढ़ी गंडक की अन्य सहायक नदियों में डण्डा, पण्डई, मसान, कोहरा, बालोर, सिकटा, तिऊर, तिलावे, धनउती, अंजानकोटे आदि हैं.
बागमती
बूढ़ी गंडक की प्रमुख सहायक नदी बागमती नदी है. बागमती की उत्पत्ति नेपाल में महाभारत श्रेणी से हुई है. यह नदी दरभंगा, मुजफ्फरपुर और मधुबनी जिला में प्रवाहित होती है. बागमती की प्रमुख सहायक नदियों में लाल वकैया, मुरेंगी, लखनदेई, अधबारा, सिपरीधार, कोला और छोटी बागमती आदि हैं.
कमला
यह नदी नेपाल के महाभारत श्रेणी से निकलकर तराई क्षेत्र से प्रभावित होते हुए बिहार में जयनगर (मधुबनी जिला) में प्रवेश करती है. मिथिला क्षेत्र में इसे गंगा के समान पवित्र माना जाता है. इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ सोनी, ढोरी और भूतही बलान आदि है. बलान नदी इसमें पीपराघाट के निकट मिलती है. कमला नदी बिहार में 120 किलोमीटर प्रवाहित होती हुई कई धाराओं में विभक्त हो जाती है. इनमें से अनेकों का नाम कमला ही है. इसकी एक प्रमुख धारा कोसी से मिलती है जबकि एक धारा खगड़िया जिले में बागमती नदी में मिलती है.
कोसी
कोसी नेपाल में गोसाई स्थान (सप्तकौशिकी) से निकलती है. अतः कोसी का मूल नाम कौशिकी है. कोसी नदी सात धाराओं के मिलने से बनी है. इन धाराओं का नाम इन्द्रावती, सनकोसी ताम्रकोसी, लिच्छूकोसी, दूधकोसी, अरुणकोसी और तामूरकोसी है| त्रिवेणी के पास ये सभी धारायें मिलकर कोसी कहलाती है. कोसी नदी बाढ़ की विभीषिका के कारण “बिहार का शोक” कहलाती है. यह नदी सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया आदि जिलों में प्रवाहित होती है. कोसी नदी मार्ग परिवर्तन के लिए प्रसिद्ध है तथा पिछले 200 वर्षों में 150 किलोमीटर पूर्व से पश्चिम की ओर स्थानांतरित हुई है. कोसी नदी कुरसैला के पास गंगा में मिलने से पूर्व डेल्टा का निर्माण करती है.
महानंदा
यह उत्तरी बिहार के मैदान में प्रवाहित होने वाली सबसे पूर्व की नदी है. कई स्थानों पर बिहार और बंगाल के साथ सीमा रेखा का निर्धारण करती है. हिमालय से निकलकर बिहार के पूर्णिया और कटिहार जिला में प्रवाहित होते हुए गंगा में मिल जाती है. पठारी प्रदेश की नदियों में प्रमुख नदी सोन, पुनपुन, फल्गू, कर्मनासा, उत्तरी कोयल, अजय, हरोहर, चन्दन, बढुआ आदि है.
सोन
हिरण्यवाह तथा सोनभद्र के नाम से प्रसिद्ध सोन नदी दक्षिण बिहार की सबसे प्रमुख नदी है. इसका उद्गम स्थल मध्य प्रदेश में अमरकंटक (मध्यप्रदेश) के निकट है. सोन के उदगम के निकट से ही नर्मदा एवं महानदी भी निकलती है, जिससे अरीय प्रवाह प्रणाली का निर्माण होता है.
यह नदी भ्रंश घाटी से प्रवाहित होती है. यह नदी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा झारखण्ड में प्रवाहित होते हुए बिहार के रोहतास जिला में प्रवेश करती है. यह दक्षिण बिहार में प्रवाहित होने वाली गंगा की सबसे लम्बी सहायक नदी है. सोन की कुल लंबाई 784 किलोमीटर है, जिसमें 202 किलोमीटर बिहार में प्रवाहित होती है. सोन नदी की प्रमुख सहायक नदी गोपद, रिहन्द, कन्हर एवं उत्तरी कोयल है. सोन नदी पर दक्षिण-पश्चिम बिहार की सबसे प्रमुख सिंचाई योजना निर्मित है. इस नदी पर प्रथम बाँध 1873-74 में डेहरी में बनाया गया था. बाद में इस नदी पर इन्द्रपुरी बराज का निर्माण 1968 ई. में किया गया. आरा के पास कोईलवर में 1440 मीटर लम्बा रेल-सह-सड़क पुल 1862 ई. में सोन नदी पर निर्मित किया गया, जो वर्तमान में अब्दुल बारी पुल के नाम से प्रसिद्ध है. यह भारत का सबसे लंबा रेल पुल है. 1900 ई. में इस नदी पर डेहरी के पास नेहरू रेल पुल का निर्माण किया गया है.
फल्गू
यह नदी छोटानागपुर के पठार से कई धाराओं के रूप में निकलती है. इसकी मुख्य धारा निरंजना कहलाती है. बोध गया के पास इसमें मोहाने नामक नदी मिलती है. मोहाने के मिलने के बाद ही इसी फल्गू नदी के नाम से जाना जाता है. ये सभी नदियाँ मौसमी नदी हैं. निरंजना नदी के तट पर ही गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. गया में इस नदी के तट पर पितृ पक्ष का मेला लगता है, जिसमें अपने पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. यह नदी अंतःसलिला या लीलाजन के नाम से भी जानी जाती है. जहानाबाद जिला में बराबर पहाड़ी के पास यह नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है. आगे चलकर फल्गू नदी अनेक शाखाओं, जैसे भोतही, कररुआ, लोकायन, महत्तवाइन आदि में विभाजित हो जाती है.
पुनपुन
पुनपुन नदी एक मौसमी नदी है, जो कीकट और बमागधी के नाम से भी जानी जाती है. यह नदी झारखण्ड के पलामू जिला के चौरहा पहाड़ी क्षेत्र से निकलती है. यह नदी बिहार के औरंगाबाद, अरवल तथा पटना जिला में गंगा के समानांतर प्रवाहित होते हुए फतुहा के पास गंगा नदी में मिल जाती है. दरधा, यमुना, मादर, बिलारो, रामरेखा, आद्री, धोबा और मोरहर पुनपुन की प्रमुख सहायक नदी है.
अजय
अजय नदी जमुई जिले के दक्षिण में 5 किलोमीटर दूर बटबाड़ से निकलती है. यह नदी बिहार से झारखण्ड में देवघर जिला में प्रवेश करती है. इसे अजयावती या अजमती नाम से भी जाना जाता है. यह नदी पूर्व एवं दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होते हुए बंगाल में प्रवेश कर गंगा नदी में मिल जाती है.
सकरी
सकरी नदी का उद्गम स्थल झारखण्ड में छोटानागपुर पठार का उत्तरी भाग (हजारीबाग पठार) है. यह नदी बिहार के गया, पटना, नवादा और मुंगेर जिला में प्रवाहित होते हुए गंगा नदी में मिल जाती है. इस नदी को सुमागधी के नाम से भी जाना जाता है.
कर्मनासा
कर्मनासा का अर्थ होता है – कर्म का नाश करने वाला. यह नदी विंध्याचल की पहाड़ियों में सारोदाग (कैमूर) से निकलकर चौसा के पास गंगा नदी में मिल जाती है. हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इस नदी को अपवित्र या अशुभ माना जाता है.
चानन नदी
इस नदी को पंचाने भी कहा जाता है. इसका मूल नाम पंचानन है, जो अपप्रंशित होकर चानन कहलाने लगा. यह नदी पाँच धाराओं के मिलने से विकसित हुईं है, इसलिए इसे पंचानन कहा जाता है. इस नदी की प्रमुख धाराएँ पैमार, तिलैया, धरांजे, महाने आदि छोटानागपुर पठार से निकलती है. ये सारी धाराएँ राजगीर के पहाड़ी के अवरोध के कारण नालंदा जिला के गिरियक के पास एक होकर आगे प्रवाहित होती है.
क्यूल नदी
इसी उत्पत्ति हजारीबाग के पठार से हुई है. यह बिहार में जमुई जिला के सतपहाड़ी के पास प्रवेश करती है. इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ बर्नर, अंजन, हरोहर (हलाहल) आदि हैं. लखीसराय जिला के सूर्यगढ़ा के पास गंगा नदी में मिल जाती है.
Today we discussed about important or major rivers of Bihar. It is useful for your BPSC (Bihar Public Service Commission and BSSC (Bihar Staff Selection Commission) exams. All details are given in Hindi. And PDF link is given below.