Sansar Daily Current Affairs, 06 November 2020
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.
Topic : KARTARPUR SAHIB PILGRIM CORRIDOR
संदर्भ
भारत ने गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर (GADSK) का प्रबंधन एक गैर-सिख समुदाय के ट्रस्ट को स्थानांतरित करने के पाकिस्तान के निर्णय की निंदा करते हुए कहा है कि यह निर्णय पूर्णतः सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है.
मामला क्या है?
पाकिस्तान सरकार द्वारा जारी आधिकारिक आदेश के अनुसार, ‘हिजरती ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड’ (Evacuee Trust Property Board-ETPB) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर के प्रबंधन और रख-रखाव के लिये ‘प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट’ (PMU) नाम से एक स्व-वित्तपोषित निकाय का गठन किया गया है.
इस प्रकार पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के प्रबंधन और रख-रखाव की ज़िम्मेदारी को पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से लेकर हिजरती ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड को स्थानांतरित कर दी है, जो कि एक गैर-सिख निकाय है.
करतारपुर गुरुद्वारा दरबार साहिब से सम्बंधित तथ्य
करतारपुर का गुरुद्वारा रावी नदी के तट पर लाहौर से 120 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह वह स्थान है जहाँ गुरु नानक ने सिख समुदाय को जमा किया था और 1539 में अपनी मृत्यु तक 18 वर्ष तक रहे थे. पढ़ें : (गुरु नानक की जीवनी). यह गुरुद्वारा भारतीय भूभाग से दिखाई पड़ता है. यहीं से लोग गुरुद्वारे का दर्शन करते हैं. कभी-कभी घास बड़े हो जाने के कारण भारतीय सिख गुरूद्वारे को ठीक से देख नहीं पाते हैं तो पाकिस्तानी अधिकारी उन घासों को छाँट देते हैं. गुरूद्वारे को ठीक से देखने के लिए भारत के लोग दूरबीन का सहारा लेते हैं. ये दूरबीन गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक में लगाये गये हैं.
गुरुद्वारा दरबार साहिब के लिए जत्थे कब निकलते हैं?
करतारपुर (पाकिस्तान) में स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब के लिए भारत से तीर्थयात्रियों के जत्थे हर वर्ष चार बार निकलते हैं. जिन अवसरों पर ऐसे जत्थे पाकिस्तान जाते हैं, वे हैं – वैशाखी, गुरु अर्जन देव शहीदी दिवस, महाराजा रंजित सिंह की पुण्यतिथि तथा गुरु नानक देव की जयंती.
गलियारा निर्माण से सम्बंधित समस्याएँ
कुछ दिनों से पाकिस्तान में खलिस्तान समर्थक लोग गुरुद्वारों का प्रयोग कर रहे हैं. हाल ही में, एक गुरुद्वारे में “सिख जनमत संग्रह 2020” के लिए पोस्टर लगाये गये थे और पैम्फलेट बाँटे गये थे. जब भारत के राजदूत और राजनयिक वहाँ जा रहे थे तो पाकिस्तान ने उन्हें रोक दिया था. इस प्रकार इस बात की प्रबल सम्भावना है कि यदि करतारपुर साहिब गलियारा बनता है तो पाकिस्तान उसका दुरूपयोग भारत के विरुद्ध करेगा.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Various Security forces and agencies and their mandate.
Topic : CBI
संदर्भ
हाल ही में झारखंड भी उन विपक्ष शासित राज्यों में शामिल हो गया है, जिन्होंने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) द्वारा जाँच के लिए सामान्य सहमति (General consent for an investigation by the CBI) वापस ले ली है. ज्ञातव्य है की इससे पहले महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और केरल राज्यों द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा जांच के लिए सामान्य सहमति को वापस ले लिया जा चुका है.
क्या है केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा जांच के लिए सामान्य सहमति?
- सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस अधिष्ठान अधिनियम (DPSEA) द्वारा प्रशासित होती है. यह कानून सीबीआई को दिल्ली पुलिस का एक विशेष विंग बनाता है और इसका मूल अधिकार क्षेत्र दिल्ली तक सीमित है.
- यदि सीबीआई को किसी राज्य के राज्यक्षेत्र में कोई जांच करनी होती है तो उसे राज्य सरकार से इसकी अनुमति लेनी होती है. जबकि अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे एनआईए को कानून द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर जांच करने का अधिकार प्राप्त है.
- झारखंड से पहले महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, मिज़ोरम और केरल ने भी अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली थी.
सामान्य सहमति वापस लेने का प्रभाव
- इससे सीबीआई की चल रही जांच प्रभावित नहीं होगी लेकिन यह संघीय एजेंसी इन राज्यों में नए मामलों की जांच नहीं कर सकती है.
- वर्तमान में गैर-भाजपा शासित राज्यों सामान्य सहमति के पीछे केंद्र पर राजनीतिक प्रतिशोध के लिए एजेंसी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया जा रहा है.
- हालांकि राज्यों द्वारा सामान्य सहमति वापस लेने के बाद भी सीबीआई उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर इन राज्यों में किसी भी जांच को आगे बढ़ा सकती है, बशर्ते उसके लिए पर्याप्त कारण होने चाहिए.
- हाल ही में फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र द्वारा सामान्य सहमति न देने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की जांच के लिए सीबीआई को निर्देश दिया था.
सामान्य जानकारी
- केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) भारत की एक प्रमुख अन्वेषण एजेंसी है.
- यह भारत सरकार के कार्मिक, पेंशन तथा लोक शिकायत मंत्रालय के कार्मिक विभाग [जो प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister’s Office-PMO) के अंतर्गत आता है] के अधीक्षण में कार्य करता है.
- हालाँकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के अंतर्गत अपराधों के अन्वेषण के मामले में इसका अधीक्षण केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) के पास है.
- यह भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल की ओर से इसके सदस्य देशों में अन्वेषण संबंधी समन्वय करती है.
- इसकी अपराध सिद्धि दर (Conviction Rate) 65 से 70% तक है, अतः इसकी तुलना विश्व की सर्वश्रेष्ठ अन्वेषण एजेंसियों से की जा सकती है.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वर्ष 1941 में ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग (Department of War) में एक विशेष पुलिस स्थापना (Special Police Establishment- SPE) का गठन किया गया था ताकि युद्ध से संबंधित खरीद मामलों में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की जा सके.
- दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment- DSPE Act), 1946 को लागू करके भारत सरकार के विभिन्न विभागों/संभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों के अन्वेषण हेतु एक एजेंसी के रूप में इसकी औपचारिक शुरुआत की गई.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Awareness in space.
Topic : A-SAT
संदर्भ
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ भवन के परिसर में स्थापित एंटी सैटेलाइट (A- SAT) मिसाइल के मॉडल का अनावरण किया.
एंटी-सैटेलाइट मिसाइल
- एंटी-सैटेलाइट (A-SAT) मिसाइल एक ऐसा हथियार होता है जो किसी भी देश के सामरिक व सैन्य उद्देश्यों के लिए उपग्रहों को निष्क्रिय करने या नष्ट करने के लिए डिजाइन किया जाता है.
- आज तक किसी भी युद्ध में इस तरह के हथियारों का उपयोग नहीं किया गया है. हालांकि, कई देश अंतरिक्ष में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन और अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को निर्बाध गति से जारी रखने के लिए इस तरह की मिसाइल सिस्टम को जरूरी मानते हैं.
- भारत में एंटी-सैटेलाइट (A-SAT) मिसाइल का विकास डीआरडीओ और इसरो ने मिलकर किया गया एवं इस मिसाइल परीक्षण को ‘मिशन शक्ति’ का नाम दिया गया है.
- एंटी-सैटेलाइट मिसाइल सिस्टम, अग्नि मिसाइल और एडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम का मिश्रण है.
- यह इंटरसेप्टर मिसाइल दो सॉलिड रॉकेट बूस्टरों सहित तीन चरणों वाली मिसाइलों प्रणाली से लैस है.
मिशन शक्ति क्या है?
- मिशन शक्ति एक संयुक्त कार्यक्रम है जिसका संचालनरक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मिलकर चलाया है.
- इस अभियान के अंतर्गत एक उपग्रह नाशक (anti-satellite – A-SAT) अस्त्र छोड़ा गया जिसका लक्ष्य भारत का ही एक ऐसा उपग्रह था जो अब काम में नहीं आने वाला था.
- मिशन शक्ति का संचालन ओडिशा के बालासोर में स्थित DRDO के अधीक्षण स्थल से हुआ.
माहात्म्य
ऐसी विशेषज्ञ और आधुनिक क्षमता प्राप्त करने वाला भारत विश्व का मात्र चौथा देश है और इसका यह प्रयास पूर्णतः स्वदेशी है. अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही अन्तरिक्ष में स्थित किसी जीवंत लक्ष्य को भेदने की शक्ति थी.
क्या परीक्षण से अन्तरिक्ष में मलबा पैदा हुआ?
यह परीक्षण जान-बूझकर पृथ्वी की निम्न कक्षा (lower earth orbit – LEO) में किया गया जिससे कि अन्तरिक्ष में कोई मलबा न रहे. जो कुछ भी मलबा बना वह क्षयग्रस्त हो जाएगा और कुछ सप्ताह में पृथ्वी पर आ गिरेगा.
पृथ्वी की निम्न कक्षा (LOW EARTH ORBIT) क्या है?
पृथ्वी की जो कक्षा 2,000 किमी. की ऊँचाई तक होती है उसे निम्न कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) कहा जाता है. यहाँ से कोई उपग्रह धरातल और समुद्री सतह में चल रही गतिविधियों पर नज़र रख सकता है. ऐसे उपग्रह का प्रयोग जासूसी के लिए हो सकता है. इसलिए उससे युद्ध के समय देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा हो सकता है.
पृष्ठभूमि
- समय के साथ-साथ अन्तरिक्ष भी एक युद्ध क्षेत्र में रूपांतरित हो रहा है. अतः अन्तरिक्ष में स्थित शत्रु उपग्रहों के संहार की क्षमता अत्यावश्यक हो गयी है. ऐसे में एक उपग्रह नाशक (A-SAT) हथियार से अन्तरिक्ष तक भेदने में भारत की सफलता का बड़ा माहात्म्य है.
- ध्यान देने योग्य बात है कि अभी तक किसी देश ने किसी अन्य देश के उपग्रह पर A-SAT नहीं चलाया है. सभी देशों ने अपने ही बेकार पड़े उपग्रहों को लक्ष्य बनाकर A-SAT का सञ्चालन किया है जिससे विश्व को पता लग सके कि उनके पास अन्तरिक्ष में युद्ध करने की क्षमता है.
- आगामी कुछ दशकों में सेनाओं के लिए A-SAT मिसाइल सबसे शक्तिशाली सैन्य अस्त्र बनने वाला है.
भारत की ऐसी क्षमता की आवश्यकता क्यों?
- भारत एक ऐसा देश है जिसके पास बहुत दिनों से और बहुत तेजी से बढ़ते हुए अन्तरिक्ष कार्यक्रम हैं. गत पाँच वर्षों में इसमें देखने योग्य बढ़ोतरी हुई है. स्मरणीय है कि भारत ने मंगल ग्रह पर मंगलयान नामक अन्तरिक्षयान सफलतापूर्वक भेजा था. इसके पश्चात् सरकार ने गगनयान अभियान को भी स्वीकृति दे दी है, जो भारतीयों को बाह्य अन्तरिक्ष में ले जाएगा.
- भारत ने 102 अन्तरिक्षयान अभियान हाथ में लिए हैं जिनके अंतर्गत अग्रलिखित प्रकार के उपग्रह आते हैं – संचार उपग्रह, पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह, प्रायोगिक उपग्रह, नौसैनिक उपग्रह, वैज्ञानिक शोध और खोज के उपग्रह, शैक्षणिक उपग्रह और अन्य छोटे-छोटे उपग्रह.
- भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम देश की सुरक्षा, आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक अवसरंचना की रीढ़ है.
- मिशन शक्ति यह सत्यापित करने के लिए संचालित हुई कि भारत के पास अपनी अन्तरिक्षीय सम्पदाओं को सुरक्षित रखने की क्षमता है. विदित हो कि देश के जो हित बाह्य अन्तरिक्ष में हैं उनकी रक्षा का दायित्व भारत सरकार पर ही है.
निहितार्थ
- मिशन शक्ति का MTCR (Missile Technology Control Regime) अथवा अन्य ऐसी संधियों में भारत की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
- A-SAT तकनीक प्राप्त हो जाने से आशा की जाती है कि भविष्य में भारत इसका प्रयोग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए भी कर सकेगा.
अन्तरिक्ष के मलबे के निपटारे के लिए तकनीकें
अन्तरिक्ष में घूमते हुए मलबों के लिए विभिन्न देश कुछ उपाय कर रहे हैं. इन उपायों में प्रमुख हैं – नासा का अन्तरिक्ष मलबा सेंसर (Nasa’s Space Debris Sensor), रिमूव डेबरी उपग्रह, डी-ऑर्बिट मिशन (Deorbit mission) आदि.
नासा का अन्तरिक्ष मलबा सेंसर (NASA’S SPACE DEBRIS SENSOR)
NASA का अन्तरिक्ष मलबा सेंटर एक अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष केंद्र पर लगाया गया है. यह सेन्सर मिलीमीटर के आकार के भी टुकड़ों का पता लगा लेता है और यह बता देता है कि मलबे के किसी टुकड़े का आकार, घनत्व, वेग और परिक्रमा पथ क्या है. साथ ही यह बता देता है कि यह टुकड़ा अन्तरिक्ष से आया है या मनुष्य द्वारा निर्मित उपग्रह का अंश है.
रिमूव डेबरी उपग्रह
RemoveDebris नाम की परियोजना यूरोपियन यूनियन द्वारा चलाई जा रही है. इस परियोजना का उद्देश्य अन्तरिक्ष मलबे को निबटाने से सम्बंधित तकनीकों का परीक्षण करना है जिससे कि आगे चलकर अन्तरिक्ष को ऐसे मलबों से कुशलतापूर्वक मुक्त किया जा सके. योजना के अंतर्गत RemoveSAT नामक एक अति-लघु उपग्रह छोड़ा जायेगा जो अन्तरिक्ष में जाकर वहाँ के मलबों को पकड़ेगा और परिक्रमा पथ से अलग कर देगा.
डी-ऑर्बिट मिशन (DEORBIT MISSION)
डी-ऑर्बिट मिशन का कार्य पथभ्रष्ट अन्तरिक्षीय मलबे को पकड़ना है. इनके अतिरिक्त और तकनीकें भी अपनाई जा रही हैं जिनमें एक तकनीक ऐसी भी है जिससे शक्तिशाली लेजर किरण छोड़कर मलबे के पिंड को नष्ट किया जा सकता है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.
Topic : Bio-decomposer technique
संदर्भ
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अनुसार, फसल-अपशिष्ट / पराली को खाद में परिवर्तित करने वाली जैव-अपघटक तकनीक (Bio-decomposer technique) ने सफलता दिखाई है.
मुख्यमंत्री केजरीवाल का यह दावा एक खेत में दिल्ली सरकार द्वारा इस तकनीक के प्रयोग से प्राप्त प्रारंभिक परिणामों पर आधारित था. तकनीक में प्रयुक्त जैव-अपघटक घोल को पूसा (PUSA) इंस्टिट्यूट के निर्देशन में विकसित किया गया था.
निहितार्थ
- दिल्ली सरकार, कम लागत और प्रभावकारी जैव-अपघटक तकनीक को प्रदूषण से निपटने के लिए एक विकल्प के रूप में उच्चतम न्यायालय में पेश करेगी.
- इस तकनीक को पंजाब और हरियाणा में भी किसानों द्वारा उपयोग किया जा सकता है.
जैव-अपघटक का निर्माण
- इस तकनीक में प्रयुक्त जैव-अपघटक घोल को पूसा डीकंपोजर (Pusa Decomposer) भी कहा जा रहा है.
- पूसा डीकंपोजर सात कवकों का एक मिश्रण होता है जो पराली (Paddy Straw) में पाए जाने वाले सेल्युलोज, लिग्निन और पेक्टिन को गलाने वाले एंजाइम का उत्पादन करता है.
- यह कवक 30-32 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले वातावरण विकसित होते है, और धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के समय यही तापमान होता है.
पूसा डीकंपोजर का खेतों में उपयोग किस प्रकार किया जाता है?
- पूसा डीकंपोज़र कैप्सूल (Decomposer Capsules) का उपयोग करके एक ‘अपघटक घोल’ बनाया जाता है.
- अपघटक घोल को 8-10 दिन किण्वित (fermenting) करने के पश्चात तैयार मिश्रण का फसल अपशिष्ट/पराली के शीघ्र जैव-अपघटन के लिए खेतों में छिड़काव किया जाता है.
- किसान, चार पूसा डीकंपोज़र कैप्सूल, गुड़ और चने के आटे से 25 लीटर अपघटक घोल मिश्रण को तैयार कर सकते हैं, और यह 1 हेक्टेयर भूमि पर छिड़काव करने के लिए पर्याप्त होता है.
- जैव अपघटन की प्रक्रिया को पूरा होने में लगभग 20 दिनों का समय लगता है. इसके बाद किसान पराली को जलाए बिना फिर से बुवाई कर सकते हैं.
पूसा डीकंपोजर के लाभ
- इस तकनीक के प्रयोग से मृदा की उर्वरता और उत्पादकता में सुधार होता है क्योंकि पराली फसलों के लिए उर्वरक का काम करती है और भविष्य में कम खाद लगाने की आवश्यकता होती है.
- यह फसल-अपशिष्ट / पराली को जलाने से रोकने हेतु एक प्रभावी, सस्ती और व्यावहारिक तकनीक है.
- यह पर्यावरण के अनुकूल और पर्यावरण की दृष्टि से उपयोगी तकनीक भी है.
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