Sansar डेली करंट अफेयर्स, 06 January 2021

Sansar LochanSansar DCA

Sansar Daily Current Affairs, 06 January 2021


GS Paper 1 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Important Geophysical phenomena.

Topic : India: Lightning Killed 1,771 in 2019

संदर्भ

भारत में 1 अप्रैल, 2019 और 31 मार्च, 2020 के बीच आकशीय बिजली (वज्रपात) गिरने से 1,771 मौतें दर्ज की गई हैं.

इस प्रकार की अकस्मात होने वाली मौतों को हम कैसे कम कर सकते हैं?

आकशीय बिजली गिरने की घटनाएँ एक निश्चित अवधि के दौरान और लगभग समान भौगोलिक स्थानों पर समान पैटर्न में होती है.

  1. क्लाइमेट रेज़िलिएंट ओब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (Climate Resilient Observing Systems Promotion Council-CROPC) के अनुसार, किसानों, पशु चराने वालों, बच्चों और खुले क्षेत्रों में लोगों की जान बचाने के लिए बिजली गिरने की पूर्व-जानकारी दिया जाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है.
  2. बिजली गिरने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए, तड़ित सुरक्षा यंत्रों (Lightning Protection Devices) को लगाने जैसे स्थानीय तड़ित सुरक्षा कार्य योजनाओं की आवश्यकता है.

बिजली गिरने का प्रभाव

केंद्र ने वर्ष 2015 में प्राकृतिक आपदा से पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में 4 लाख रुपये तक की वृद्धि की थी.

  1. पिछले पांच वर्षों में आकशीय बिजली गिरने से 13,994 मौतें हुईं, जिसके लिए कुल मुआवजा राशि लगभग 359 करोड़ रुपये होगी.
  2. बिजली गिरने से पशु जीवन को भी अत्याधिक नुकसान हुआ है.

वज्रपात क्या है?

  • वज्रपात वस्तुतः वायुमंडल में होने वाला एक अत्यंत तीव्र और भारी विद्युत प्रवाह है जिसमें कुछ धरातल की ओर गमन कर जाता है.
  • बिजली का यह प्रवाह 10-12 किलोमीटर लम्बे उन बादलों में होता है जो विशाल आकार के होते हैं और उनमें बहुत अधिक आर्द्रता भरी होती है.

आसमान से बिजली कैसे गिरती है?

  • बिजली वाले बादल धरातल से 1-2 किलोमीटर की दूरी के भीतर होते हैं जबकि उनका शीर्ष भाग 12-13 किलोमीटर दूरी पर रहता है.
  • इन बादलों के शीर्ष पर तापमान -35 से लेकर -45 डिग्री सेल्सियस होता है.
  • इन बादलों में जैसे-जैसे जलवाष्प ऊपर जाता है, गिरते हुए तापमान के कारण वह संघनित होने लगता है. इस प्रक्रिया में ताप उत्पन्न होता है जो जलकणों को और ऊपर की ओर धकेलने लगता है.
  • जब जलवाष्प शून्य डिग्री सेल्सियस तापमान पर पहुँच जाता है तो उसकी बूँदें छोटे-छोटे बर्फीले रवों में बदल जाती हैं. जब वे ऊपर जाती हैं तो उनका आयतन बढ़ते-बढ़ते इतना अधिक हो जाता है कि ये बूँदें पृथ्वी पर गिरने लगती हैं.
  • इस प्रक्रिया में एक समय ऐसी दशा हो जाती है कि छोटे-छोटे हिम के बर्फीले रवे ऊपर जा रहे होते हैं और बड़े-बड़े रवे नीचे की ओर आते रहते हैं.
  • इस आवाजाही में बड़े और छोटे रवे टकराने लगते हैं जिससे इलेक्ट्रान छूटने लगते हैं. इन इलेक्ट्रानों के कारण रवों का टकराव बढ़ जाता है और पहले से अधिक इलेक्ट्रान उत्पन्न होने लगते हैं.
  • अंततः बादल की शीर्ष परत में धनात्मक आवेश आ जाता है जबकि बीच वाली परत में ऋणात्मक आवेश उत्पन्न हो जाता है.
  • बादल की दो परतों के बीच विद्युतीय क्षमता में जो अंतर होता है वह 1 बिलियन से लेकर 10 बिलियन वाल्ट तक की शक्ति रखता है. बहुत थोड़े समय में ही एक लाख से लेकर दस लाख एम्पीयर की विद्युत धारा इन दोनों परतों के बीच प्रवहमान होने लगती हैं.
  • इस विद्युत धारा के फलस्वरूप भयंकर ताप उत्पन्न होता है जिसके कारण बादल की दोनों परतों के बीच का वायु-स्तम्भ गरम हो जाता है. इस गर्मी से यह वायु-स्तम्भ लाल रंग हो जाता है. जब यह वायु-स्तम्भ फैलता है तो बादल के अंदर भयंकर गड़गड़ाहट होती है जिसे बिजली कड़कना (thunder) कहते हैं.

बिजली बादल से पृथ्वी तक कैसे पहुँचती है?

पृथ्वी विद्युत की एक अच्छी संचालक होती है. इसका आवेश न्यूट्रल होता है. परन्तु बादल की बिचली परत की तुलना में पृथ्वी का आवेश धनात्मक हो जाता है. फलतः इस बिजली का लगभग 15-20% अंश धरती की ओर दौड़ जाता है. इसी को वज्रपात (lightning) कहते हैं.

बादल की बिजली अधिकतर पेड़, मीनार या भवन जैसी ऊँची वस्तुओं पर गिरती है. जब यह बिजली धरती से 80 से 100 मीटर ऊपर होती है तो उस समय यह मुड़कर ऊँची वस्तुओं पर जा गिरती है. ऐसा इसलिए होता है कि वायु बिजली की कुचालक होती है और इससे होकर बहने वाले इलेक्ट्रान बेहतर सुचालक की खोज करने लगते हैं और धनात्मक आवेश वाली पृथ्वी तक पहुँचने के लिए छोटा सा छोटा मार्ग अपनाने लगते हैं.

वज्रपात की भविष्यवाणी

  • जब वज्रपात में बिजली पृथ्वी की ओर दौड़ती है और किसी पर गिरती है तो उसके 30-40 मिनट पहले उसकी भविष्यवाणी की जा सकती है.
  • यह भविष्यवाणी मेघों में चमकती हुई बिजली के अध्ययन और अनुश्रवण के आधार पर संभव है.
  • वज्रपात के विषय में समय पर सूचना उपलब्ध हो जाने से अनेकों प्राण बचाए जा सकते हैं.

यह जरूर पढ़ें >

https://www.sansarlochan.in/physical-geography-glossary-facts-hindi/


GS Paper 3 Source : Indian Express

indian_express

UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.

Topic : Uniform emission norms for thermal plants impractical: Power ministry suggested Environment ministry

संदर्भ

विद्युत मंत्रालय के अनुसार ताप विद्युत संयंत्रों (Thermal Power Plants: TPP) के लिए एकरूप उत्सर्जन मानदंड अव्यवहारिक हैं. विद्युत मंत्रालय ने पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) को सुझाव दिया है कि उसे गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र तथा सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्थित ताप विद्युत् संयंत्रों (TPPs) के लिए एकरूप मानदंड लागू करने की बजाय संपूर्ण देश में परिवेशी वायु गुणवत्ता को लक्षित करना चाहिए.

पृष्ठभूमि

वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ताप विद्युत् संयंत्रों के लिए वायु प्रदूषण मानकों की स्थापना हेतु एक अधिसूचना जारी की थी. कार्यान्वयन के लिए समय सीमा वर्ष 2017 थी, जिसे पूर्ण अनुपालन के लिए वर्ष 2022 तक बढ़ा दिया गया था.

मुख्य बिंदु

  • इन मानदंडों के अनुपालन के लिए सभी ताप विद्युत् संयंत्रों को फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (Flue Gas Desulphurisation: FGD) व सेलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन (SCR) जैसे उपाय करने आवश्यक होंगे.
  • FGD, जीवाश्म-ईंधन आधारित विद्युत संयंत्रों की एग्ज्हौस्ट फ्लू गैस से और अन्य सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जक प्रक्रियाओं से निकलने वाली गैस से सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2) को अलग करने के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक है.
  • अब, विद्युत् मंत्रालय ने उच्च जोखिम युक्त वायु गुणवत्ता वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर ताप विद्युत् संयंत्रों द्वारा प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के संस्थापन क॑ लिए समय सीमा की समीक्षा करने का सुझाव दिया है.
  • सभी विद्युत्‌ संयंत्रों द्वारा एक साथ ऑर्डर करने और अनुबंध करने से उपकरण की कीमतों में कृत्रिम बढ़ोतरी हो सकती है.
  • इसके अतिरिक्त, यदि आगामी कुछ सालों में उत्सर्जन नियंत्रण के कार्यान्वयन को त्वरित किया जाता है, तो आत्मनिर्भर भारत योजना को प्रोत्साहन मिलेगा.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण को कम करने के लिये अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करना ही एक मात्र विकल्प नहीं है, परंतु वर्तमान आँकड़ों से यह स्पष्ट हो गया है कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है. विकास कार्यों के दौरान पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये अंतराष्ट्रीय प्रयासों जैसे- संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्य के मूल्यों का अनुसरण किया जाना चाहिये. पर्यावरण प्रदूषण के सामूहिक प्रयासों के अतिरिक्त स्थानीय सरकारों और नागरिक स्तर पर जागरूकता तथा जन-भागीदारी के मामलों में वृद्धि की जानी चाहिये. लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक गतिविधियों और वाहनों के न चलने से प्रदूषण में भारी कमी आई और इस वर्ष दिल्ली में वायु गुणवत्ता में काफी सुधार देखा गया. किंतु पुनः वाहनों के चलने, तापमान में गिरावट और पराली जलाने के साथ, दिल्ली में वायु की गुणवत्ता खराब होने लगी है. COVID-19 महामारी परिदृश्य में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण की आवश्यकता अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वायु प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ COVID-19 से प्रभावित लोगों की स्थिति को और खराब कर सकती हैं. चूँकि अनुच्छेद 21 में दिये गए ‘जीवन जीने के अधिकार’ में स्वच्छ पर्यावरण का भी अधिकार निहित है, अतः सरकार और नागरिक दोनों को बेहतर समन्वय स्थापित करते हुए प्रदूषण के विरुद्ध मुहिम छेड़ने की आवश्यकता है.


GS Paper 3 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Challenges to internal security through communication networks, role of media and social networking sites in internal security challenges, basics of cyber security; money-laundering and its prevention.

Topic : Dark web

संदर्भ

हाल ही में एक बार फिर भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं के क्रेडिट और डेबिट कार्ड के डेटा चोरी की खबरें आ रही हैं. साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर ने दावा किया किया कि देश के करीब 100 मिलियन क्रेडिट और डेबिट कार्ड धारकों के डेटा को डार्क वेब पर बेचा जा रहा है. दावे के अनुसार डार्क वेब पर बेचा जा रहा अधितर डाटा बेंगलुरु स्थित डिजिटल पेमेंट्स गेटवे Juspay के सर्वर से लीक हुआ है. इससे पहले बेंगलुरू में स्थित चीनी निवेश वाले ऑनलाइन ग्रोसरी प्लेटफॉर्म बिग बास्केट पर भी साइबर अटैक करके करीब दो करोड़ ग्राहकों का डेटा चोरी किया गया था. जिसमें ग्राहकों के नाम, ईमेल आईडी, पासवर्ड, पिन, कांटैक्ट नंबर, पता, जन्मतिथि, आईपी एड्रेस और लोकेशन आदि की पूरी जानकारी थी.

डार्क वेब

  • इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइटें हैं जो आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजनों और सामान्य ब्राउज़िंग के दायरे से परे होती हैं. इन्हें डार्क वेब या डीप नेट कहा जाता है.
  • सामान्य वेबसाइटों के विपरीत यह एक ऐसा नेटवर्क होता है जिस तक लोगों के चुनिंदा समूहों की पहुँच होती है और इस नेटवर्क तक विशिष्ट ऑथराइज़ेशन प्रक्रिया, सॉफ्टवेयर और कन्फिग्यूरेशन के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है.
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 देश में सभी प्रकार के प्रचलित साइबर अपराधों को संबोधित करने के लिये वैधानिक रूपरेखा प्रदान करता है. ऐसे अपराधों के नोटिस में आने पर कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ इस कानून के अनुसार ही उचित कार्रवाइयाँ करती हैं.

डार्क वेब की उपयोगिता

  • नियंत्रण/सेंसरशिप से बचाव के लिये: संवृत समाज (Closed Society) और अत्यधिक नियंत्रण या सेंसरशिप का सामना कर रहे लोग डार्क वेब का प्रयोग अपने समाज से बाहर के दूसरे व्यक्तियों के साथ संवाद के लिये कर सकते हैं.
  • गुमनामी और गोपनीयता: वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में सरकार द्वारा जासूसी और डेटा संग्रह के विषय में बढ़ रही अनियमितताओं के चलते खुले समाज (Open Society) के व्यक्तियों को भी डार्क वेब के उपयोग में रुचि उत्पन्न हो सकती है.
  • यह मुखबिरों (Whistleblowers) और पत्रकारों हेतु संचार में गोपनीयता बनाए रखने तथा जानकारी लीक करने एवं स्थानांतरित करने के लिए उपयोगी है.

डार्क वेब के विषय में चिंताएँ

  • अवैध गतिविधियों की सुगमता: डार्क वेब पर संचालित गतिविधियों का एक बड़ा भाग अवैध है. डार्क वेब एक स्तर की पहचान सुरक्षा प्रदान करता है जो कि सतही नेट प्रदान नहीं करता है.
  • डार्क वेब एक काला बाज़ार (Black Market) की भाँति है जहाँ अवैध गतिविधियाँ संचालित होती हैं.
  • डार्क वेब का उपयोग करे अपराधी वर्ग स्वयं को किसी की नज़र में आने और पकड़े जाने से बचने के लिये अपनी पहचान छुपा सकता है. इसलिये यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कई चर्चित हैक (Hack) और डेटा उल्लंघनों के मामले किसी-न-किसी प्रकार डार्क वेब से संबद्ध पाए गए हैं.
  • डार्क वेब की सापेक्ष अभेद्यता ने इसे ड्रग डीलरों, हथियार तस्करों, चाइल्ड पोर्नोग्राफी संग्रहकर्त्ताओं तथा वित्तीय और शारीरिक अपराधों में शामिल अन्य अपराधियों के लिये एक प्रमुख केंद्र बना दिया है.
  • यदि संभावित क्रेता की डार्क वेब पर ऐसी वेबसाइट तक पहुँच हो जाए तो इनके जरिये विलुप्तप्राय वन्यजीव से लेकर विस्फोटक सामग्री एवं किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों की खरीद की जा सकती है.
  • उदाहरणार्थ सिल्क रोड मार्केटप्लेस नामक एक वेबसाइट डार्क वेबवर्क का एक प्रसिद्ध उदाहरण है जहाँ हथियारों सहित विभिन्न प्रकार की अवैध वस्तुओं की खरीद एवं बिक्री की जाती थी. यद्यपि इसे वर्ष 2013 में सरकार द्वारा बंद करा दिया गया परन्तु इसने ऐसे कई अन्य बाज़ारों के उभार को प्रेरित किया.
  • सक्रियतावादियों (Activists) और क्रांतिकारियों द्वारा भी डार्क वेब का दुष्प्रयोग किया जा सकता है. इससे सरकार द्वारा उनकी गतिविधियों को ट्रैक कर पाने में परिशानी हो सकती है.
  • आतंकवादियों द्वारा डार्क वेब का उपयोग साथी आतंकवादियों तक सूचनाओं के प्रसार, उनकी भर्ती और उनमें कट्टरता का प्रसार, अपने आतंकी विचारों के प्रचार-प्रसार, धन जुटाने तथा अपने कार्यों व हमलों के समन्वय के लिये किया जाता है.
  • आतंकवादी बिटकॉइन (Bitcoin) एवं अन्य क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी मुद्राओं का उपयोग करके विस्फोटक पदार्थों एवं हथियारों की अवैध खरीद के लिये भी डार्क वेब का उपयोग करते हैं.
  • सुरक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि हैकिंग और धोखेबाज़ी में शामिल व्यक्ति डार्क वेब पर चर्चा मंचों के माध्यम से पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (Supervisory Control and Data Acquisition-SCADA) और औद्योगिक नियंत्रण प्रणाली (Industrial Control System-ICS) तक पहुँच की पेशकश करने लगे हैं जो विश्व भर के महत्तवपूर्ण अवसंरचनात्मक नेटवर्कों की सुरक्षा के लिये बड़ी चुनौती हो सकती है.
  • पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (SCADA) प्रणाली का उपयोग परमाणु ऊर्जा स्टेशनों, तेल रिफाइनरियों और रासायनिक संयंत्रों जैसी सुविधाओं के संचालन के लिये किया जाता है इसलिये यदि साइबर अपराधियों को इन प्रमुख नेटवर्कों तक पहुँच प्राप्त हो गई तो इसके परिणाम अत्यंत घातक हो सकते हैं.

GS Paper 3 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Issues relating to intellectual property rights.

Topic : GI Tag

संदर्भ

हाल ही में तमिलनाडु के थेनी जिले के एक पंजीकृत किसान संगठन ने अंगूर की प्रजाति कंबम पनीर थ्रचाइ”( Cumbum Panneer Thratchai) को भौगोलिक संकेतक दिये जाने की मांग की है.

कंबम पनीर थ्रचाइ (Cumbum Panneer Thratchai) अंगूर के विषय में

  • “कंबम पनीर थ्रचाइ” अंगूर की एक प्रजाति है. इसकी प्रमुख विशेषता है कि इस अंगूर की खेती तमिलनाडु की कंबम घाटी में वर्ष पर्यंत होती रहती है.
  • चूंकि ये अंगूर एक वर्ष में दो मौसमों में उत्पादित होते हैं, इसलिए उनकी उपज और इनसे होने वाली आय उच्च है. कंबम घाटी में स्थित 10 गांवों में लगभग 2,000 एकड़ भूमि में अंगूर की इस विशेष किस्म की खेती की जाती है.
  • समान्यतः अंगूर की खेती भारत के अन्य भागों में जनवरी से अप्रैल के दौरान होती है.
  • कंबन घाटी में उपजाए जाने वाले अंगूर वाइन, शराब, स्प्रिट, जैम, डिब्बाबंद अंगूर का रस और किशमिश बनाने के लिए उपयुक्त हैं.

GI TAG किसे दिया जाता है?

जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी क्षेत्र विशेष में पैदा होते हैं. इन उत्पादों की खासियत और प्रतिष्ठा उस क्षेत्र विशेष में पैदा होने की वजह से स्थापित होती है. यह टैग मिलने के बाद संबंधित उत्पाद का नाम लेकर बाजार में किसी और चीज को बेचने पर पाबंदी लग जाती है.

  • GI का full-form है – Geographical Indicator
  • भौगोलिक संकेतक के रूप में GI टैग किसी उत्पाद को दिया जाने वाला एक विशेष टैग है.
  • नाम से स्पष्ट है कि यह टैग केवल उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष भगौलिक क्षेत्र में उत्पादित किये गए हों.
  • इस टैग के कारण उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिल जाता है.
  • यह टैग ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रामाणिकता के विषय में आश्वस्त करता है.
  • डब्ल्यूटीओ समझौते के अनुच्छेद 22 (1) के तहत GI को परिभाषित किया गया है.
  • औद्योगिक सम्पत्ति की सुरक्षा से सम्बंधित पहली संधि के अनुसार GI tag को बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का एक अवयव माना गया है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI WTO के बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार से सम्बंधित पहलुओं पर हुए समझौते से शाषित होता है. भारत में वह भौगोलिक वस्तु संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षाअधिनयम, 1999 से शाषित होता है.

भौगोलिक संकेतक पंजीयक

  • भौगोलिक वस्तु संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनयम, 1999 के अनुभाग 3 के उप-अनुभाग (1) के अंतर्गत पेटेंट, रूपांकन एवं व्यापार चिन्ह महानिदेशक की नियुक्ति GI पंजीयक के रूप में की जाती है.
  • पंजीयक को उसके काम में सहयोग करने के लिए केंद्र सरकार समय-समय पर अधिकारियों को उपयुक्त पदनाम के साथ नियुक्त करती है.

Prelims Vishesh

With eye on China, India looks at lithium reserves in Argentina, Chile and Bolivia :-

  • हाल ही में भारत ने संयुक्त रूप से लिथियम की खोज के लिए अर्जेंटीना के साथ एक समझौता किया है.
  • विदित हो कि वर्तमान में अर्जेंटीना में लिथियम का तीसरा सबसे बड़ा भंडार विद्यमान है.
  • भारत दो अन्य शीर्ष लिथियम उत्पादक देशों यथा चिली और बोलिविया में भी लिथियम की खोज कर रहा है.
  • लिथियम एक रजत-श्वेत रंग की क्षारीय धातु है. लिथियम का उपयोग लिथियम आयन रिचार्जेबल बैटरियों के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में किया जाता है.
  • ज्ञातव्य है कि ये बैटरियां विद्युत्‌ वाहनों, लैपटॉप, मोबाइल फोन आदि को विद्युत प्रदान करती हैं. वर्तमान में, भारत लिथियम सेल के लिए आयात पर अत्यधिक निर्भर है.
  • भारत को बैटरी निर्यात करने वाले शीर्ष तीन देश क्रमशः चीन, हांगकांग और वियतनाम हैं.

Dredging projects at major port trusts :-

  • उच्च पूँजीगत व्यय के कारण, सरकार ने प्रमुख बंदरगाह न्यासों में तलमार्जन परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) प्रणाली को जारी किया है.
  • तलमार्जन के जरिये झीलों, नदियों, बंदरगाहों और अन्य जल निकायों के तल से तलछट एवं मलबे को हटाया जाता है.
  • पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने उच्च क्षमता वाले कंटेनर पोतों का संचालन करने के लिए गहराई को 2-3 मीटर से 17 मीटर तक बढ़ाने पर जोर  दिया है.
  • यह अत्यधिक किफायती होने के चलते परिवहन लागत में कमी करने में सहयोग करेगा.
  • इसके जरिये बल्क कार्गो के प्रबंधन के लिए कार्गो की आवाजाही को कैपसाइज़ (सबसे बड़े आकार) पोतों में स्थानांतरित किया जा सकेगा.

Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA

December, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Download

 

Read them too :
[related_posts_by_tax]