Sansar Daily Current Affairs, 11 August 2021
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Issues related to women.
Topic : Marital Rape A Ground For Divorce : Kerala High Court
संदर्भ
केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि वैवाहिक बलात्कार तलाक के लिए एक वैध आधार है. ज्ञातव्य है कि भारत में वैवाहिक बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान नहीं है.
विवाह में पति या पत्नी के पास पीड़ित नहीं होने का एक विकल्प होता है. यह नैसर्गिक कानून और संविधान के अंतर्गत गारंटीकृत स्वायत्तता के लिए मौलिक है.
मुख्य बिंदु
- अदालत तलाक को अस्वीकार करके, कानून पति या पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध पीड़ित होने के लिए विवश नहीं कर सकता है.
- भारतीय दंड संहिता (72) की धारा 375 (अपवाद) के अनुसार, किसी पुरुष का अपनी स्वयं की पत्नी के साथ मैथुन या लैंगिक कृत्य, यदि पत्नी पंद्रह वर्ष से कम आयु की न हो, तो वह बलात्संग नहीं है. इस प्रकार यह धारा ऐसे कृत्यों को अभियोजन से प्रतिरक्षित करती है.
- भारत उन 36 देशों में से है, जहाँ वैवाहिक बलात्कार विधिक अपराध नहीं है.
- महिलाओं के प्रति भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women: CEDAW) ने वर्ष 2013 में अनुशंसा की थी कि भारत सरकार द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया जाना चाहिए.
- साल 2012 के सामूहिक बलात्कार मामले के बाद देशव्यापी विरोध के मध्य गठित जे.एस. वर्मा समिति ने भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की अनुशंसा की थी.
महिलाओं के लिए उपलब्ध विधिक प्रावधान
- धारा 498A महिलाओं के साथ उनके पति या उनके पति के किसी रिश्तेदार द्वारा किए गए क्रूतापूर्ण व्यवहार से संबंधित है.
- भारतीय कानून के तहत घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 बलपूर्वक लैंगिक संबंध बनाने के कृत्य को दंडनीय मानता है. हालांकि, कानूनी रूप से एक मजिस्ट्रेट को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करने वाले किसी व्यक्ति के कृत्य को अपराध घोषित करने की पूर्ण शक्ति प्राप्त नहीं है और न ही उस व्यक्ति को दंड दिया जा सकता है.
धारा 498A IPC – एक विश्लेषण
विपक्ष में तर्क
- यह कानून पति तथा पति के रिश्तेदारों की ब्लैकमेलिंग और उत्पीड़न का साधन बन गया है. जैसे ही दहेज उत्पीड़न की शिकायत (FIR) दर्ज की जाती है, पुलिस को प्रारम्भिक जाँच अथवा आरोपों के अन्तर्निहित मूल्य पर विचार किये बिना ही पति और उसके अन्य रिश्तेदारों को गिरफ्तार करने की धमकी देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है. पुलिस की यह शक्ति ब्लैकमेल करने का एक सरल साधन बन जाती है.
- जब किसी परिवार (पति के) के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और जमानत की तत्काल संभावना के बिना उन्हें जेल भेज दिया जाता है तो इस स्थिति में वैवाहिक झगड़े को सुलझाने या इस वैवाहिक सम्बन्ध को बचाने की संभावनाएँ पूर्णतः समाप्त हो जाती हैं.
- वैवाहिक मामलों से निपटने के दौरान व्यवहारिक वास्तविकताओं पर इस तथ्य के सन्दर्भ में विचार किया जाना चाहिए कि यह एक संवेदनशील पारिवारिक समस्या है तथा इस समस्या को और अधिक बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
- यह इंगित किया गया है कि समस्या धारा 498A में नहीं बल्कि CrPC के प्रावधानों में है जिसके अंतर्गत इसे गैर-जमानती (non-bailable) अपराध घोषित किया गया है.
पक्ष में तर्क
- धारा 498A और घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम जैसे कानूनों को विशेष रूप से समाज के एक सुभेद्य वर्ग की सुरक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है जो क्रूरता एवं उत्पीड़न का शिकार है. यदि प्रावधान की कठोरता कम कर दी जाती है तो इस प्रावधान का सामाजिक उद्देश्य समाप्त हो जाएगा.
- कानून के उल्लंघन/दुरूपयोग की संभावना इस प्रावधान विशेष तक ही सीमित नहीं है. दुरूपयोग की संभावना को कानून के मौजूदा ढाँचे के भीतर ही कम किया जा सकता है. उदाहरणस्वरूप गृह मंत्रालय द्वारा अनावश्यक गिरफ्तारी को रोकने और गिरफ्तारी सम्बंधित कानूनों में निर्धारित प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करने के लिए राज्य सरकारों को मार्गनिर्देश (advisories) जारी की जा सकती है.
- आरोपी परिवार के सदस्यों को शिकायत के सम्बन्ध में जानकारी होने के बाद शिकायतकर्ता महिला को और अधिक यातना सहनी पड़ सकती है तथा यदि पुलिस द्वारा तीव्रता और कठोरता से कार्यवाही नहीं की जाती है तो महिला के जीवन एवं स्वतंत्रता पर खतरा उत्पन्न हो सकता है.
मेरी राय – मेंस के लिए
केवल उच्च नैतिक मानकों को स्थापित करने से ही एक नैतिक समाज का निर्माण संभव नहीं क्योंकि यह आवश्यक नहीं कि लोग उन नैतिक मानकों का पालन ही करें. उदाहरण के लिये सत्यवादिता को नैतिक मानक के रूप में स्थापित किए जाने के पश्चात् भी समाज के लोग अपने स्वार्थों के लिये झूठ बोलते हैं. उसी प्रकार दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ नैतिक रुप से अनुचित होने पर भी समाज में प्रचलित हैं. यह दर्शाता है कि महज नैतिक मानकों का निर्माण नैतिक समाज के निर्माण की गारंटी नहीं है.
नैतिक समाज के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्ति के सुपर-ईगो को इतना मजबूत किया जाए कि वह नैतिक मानकों का पालन कर सके. इसके लिये एक समाज में सभी सदस्यों द्वारा समन्वित नीति को बनाए जाने की आवश्यकता है ताकि व्यक्तियों में नैतिक अभिवृति का विकास हो सके.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Important constitutional amendments.
Topic : Lok Sabha clears Bill restoring States’ rights to specify OBC groups
संदर्भ
हाल ही में, ‘संविधान 127वाँ संशोधन विधेयक, 2021’ (Constitution 127th Amendment Bill, 2021) लोकसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया.
विधेयक में, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को ‘सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों’ की अपनी सूची तैयार करने से सम्बंधित अनुमति देने के लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है.
जरूरत
5 मई को, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए एक पृथक आरक्षण को खत्म करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया था कि वर्ष 2018 के संविधान संशोधन (102 वें संवैधानिक संशोधन) के पश्चात् मात्र केंद्र सरकार, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) को अधिसूचित कर सकती है – राज्यों को यह शक्ति प्राप्त नहीं है.
- 102 वें संविधान संशोधन के तहत, संविधान में अनुच्छेद 338B और अनुच्छेद 342 के बाद 342A को जोड़ा गया था. इसके साथ ही, इस संशोधन के द्वारा ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (National Commission of Backward Classes – NCBC) को संवैधानिक दर्जा भी प्रदान किया गया था.
- इस संवैधानिक संशोधन की व्याख्या, पिछड़े वर्गों को चिह्नित करने तथा उन्हें आरक्षण का लाभ प्रदान संबंधी राज्यों के अधिकार को प्रभावी रूप से समाप्त कर देती है.
127वें संविधान संशोधन विधेयक के प्रमुख बिंदु
- विधेयक में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अन्य पिछड़े वर्गों को चिह्नित करने से सम्बंधित राज्य सरकारों की शक्ति को बहाल करने का प्रावधान किया गया है. ज्ञातव्य है कि मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में, इस तरह की शक्ति केवल केंद्र सरकार को प्रदान की थी.
- इस विधेयक द्वारा इस प्रावधान में संशोधन किया गया है और कहा गया है, कि राष्ट्रपति, केवल केंद्र सरकार के प्रयोजनों हेतु ‘सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों’ की सूची को अधिसूचित कर सकते हैं.
- केंद्र सरकार ‘सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों’ की केंद्रीय सूची को तैयार करेगी और उसका रख-रखाव करेगी.
- इसके आलावा विधेयक में, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की अपनी-अपनी सूची बनाने का अधिकार दिया गया है.
- राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा यह सूची कानून के तहत बनाई जाएगी और यह केंद्रीय सूची से भिन्न हो सकती है.
NCBC क्या है?
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग 14 अगस्त, 1993 को स्थापित भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक संवैधानिक निकाय है. इसका गठन राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार किया गया था.
NCBC के कार्य
NCBC संविधान एवं अन्य कानूनों के तहत पिछड़े वर्गों के लिए प्रावधान की गई सुरक्षा की जाँच-पड़ताल और निगरानी करेगा. साथ ही वह अधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित विशेष शिकायतों की जाँच भी करेगा.
प्रतिवेदन
NCBC को पिछड़े वर्गों की सुरक्षा पर उसके द्वारा किए गये काम के बारे में राष्ट्रपति को प्रत्येक वर्ष प्रतिवेदन देना होता है. यह प्रतिवेदन संसद और सम्बंधित राज्यों के विधानमंडलों में उपस्थापित किया जाता है.
व्यवहार न्यायालय की भूमिका
NCBC को छानबीन करने अथवा शिकायतों की जाँच करने के लिए एक व्यवहार न्यायालय के समान शक्तियाँ होती है. ये शक्तियाँ हैं :-
- लोगों को बुला भेजना (summon) और उनसे शपथ लेकर जाँच-पड़ताल करना
- किसी दस्तावेज अथवा सार्वजनिक अभिलेख को प्रस्तुत करने का आदेश देना
- गवाही लेना
NCBC का वर्तमान दर्जा
विदित हो कि इंदिरा साहनी (मंडल आयोग) वाद/Indira Sawhney (Mandal Commission) case में अपना अंतिम निर्णय देते समय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि NCBC को वैधानिक निकाय (statutory body) के रूप में स्थापित किया जाए.
इस निर्देश के आधार पर 1993 में इस आयोग के गठन के लिए कानून पारित किया था. तब से NCBC केंद्र सरकार के लिए पिछड़े वर्ग की सूची में विभिन्न जातियों को सम्मिलित करने के मामलों की जाँच करता आया है.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Collegium System
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी कर कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों पर स्वीकृति देने में देरी करने के कारण उच्च न्यायालयों में कई महत्त्वपूर्ण मामलों की सुनवाई अटकी पड़ी है. आने वाले एक हफ्ते में दिल्ली उच्च न्यायालय में कुल न्यायाधीशों की संख्या 29 रह जायेगी, जबकि कुल क्षमता 60 न्यायाधीशों की है.
ज्ञातव्य है कि इससे पहले भी मार्च 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के सम्बन्ध में कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों पर करीब एक वर्ष बीत जाने पर भी कोई निर्णय न लेने के सम्बन्ध में 8 अप्रैल तक जवाब मांगा था. उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों के सम्बन्ध में 55 नामों की सिफारिश केंद्र सरकार के पास भेजी थी, इसे एक वर्ष से अधिक का समय हो चुका है. वर्तमान में देश के उच्च न्यायालयों में न्यायधीशों के 419 पद रिक्त हैं.
कॉलेजियम व्यवस्था क्या है?
- उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया के सम्बन्ध में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं दी गई है.
- अतः यह कार्य शुरू में सरकार द्वारा ही अपने विवेक से किया जाया करता था.
- परन्तु 1990 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करना शुरू किया और एक के बाद एक कानूनी व्यवस्थाएँ दीं. इन व्यवस्थाओं के आलोक में धीरे-धीरे नियुक्ति की एक नई व्यवस्था उभर के सामने आई. इसके अंतर्गत जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की अवधारणा सामने आई.
- सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा वरिष्ठतम न्यायाधीश कॉलेजियम के सदस्य होते हैं.
- ये कॉलेजियम ही उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति के लिए नाम चुनती है और फिर अपनी अनुशंसा सरकार को भेजती है.
- सरकार इन नामों से ही न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कार्रवाई करती है.
- कॉलेजियम की अनुशंसा राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है. यदि राष्ट्रपति किसी अनुशंसा को निरस्त करते हैं तो वह वापस कॉलेजियम के पास लौट जाती है. परन्तु यदि कॉलेजियम अपनी अनुशंसा को दुहराते हुए उसे फिर से राष्ट्रपति को भेज देती है तो राष्ट्रपति को उस अनुशंसा को मानना पड़ता है.
कॉलेजियम व्यवस्था (COLLEGIUM SYSTEM) कैसे काम करती है?
- कॉलेजियम अपनी ओर से वकीलों और जजों के नामों की केन्द्रीय सरकार को अनुशंसा भेजता है. इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपनी ओर से कॉलेजियम को कुछ नाम प्रस्तावित करती है.
- कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों की केंद्र सरकार तथ्यात्मक जाँच करती है और फिर सम्बंधित फाइल को कॉलेजियम को लौटा देती है.
- तत्पश्चात् कॉलेजियम केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये नाम और सुझावों पर विचार करता है और फिर फाइल को अंतिम अनुमोदन के लिए सरकार को फिर से भेज देता है. जब कॉलेजियम फिर से उसी नाम को दुबारा भेजता है तो सरकार को उस नाम पर अनुमोदन देना पड़ता है. किन्तु सरकार कब अब अपना अनुमोदन देगी इसके लिए कोई समय-सीमा नहीं है. यही कारण है कि जजों की नियुक्ति में लम्बा समय लग जाता है.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Food Processing & Related Industries in India.
Topic : National Mission on Edible Oil-Oil Palm (NMEO-OP)
संदर्भ
प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार केंद्र सरकार खाद्य तेलों जरूरतों में आत्मनिर्भर बनने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन (NMEO-OP) पर अगले 5 वर्षों में 11,000 करोड़ खर्च करेगी. सरकार के अनुसार यह मिशन वर्ष 2024-25 तक खाद्य तेल आयात पर निर्भरता को वर्तमान 60% से कम करके 45% करेगा तथा घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को 10 मिलियन टन से बढ़ाकर 18 मिलियन टन करेगा.
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ महीनों में देश में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है. यह वृद्धि ऐसे समय हो रही है जब अधिकांश मध्यमवर्गीय लोगों के व्यवसाय कई महीनों तक कोविड 19 महामारी की दूसरी लहर के कारण ठप पढ़े रहे हैं.
कीमतों में वृद्धि के पीछे जिम्मेबार प्रमुख कारक
- अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि: भारत अपनी खाद्य तेलों की जरूरतों का लगभग 56% आयात करता है. पिछले कुछ समय से विभिन्न देशों में विविध कारणों से खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि हुई है. इनमे खाद्य तेलों के जैव ईंधन के रूप में प्रयोग की संभावनायें, मौसमी घटनाएँ आदि प्रमुख हैं.
- उच्च आयात शुल्क: विभिन्न प्रकार के खाद्य तेलों के आयात पर सरकार द्वारा 35% से लेकर 55% तक की भिन्न-भिन्न दरों पर आयात शुल्क वसूला जा रहा है.
किये जा सकने वाले उपाय
- आयात शुल्क में कमी: यह एक अल्पकालिक उपाय है, जो कुछ समय के लिए कीमतों को नियंत्रण में लाने के लिए किया जा सकता है. लेकिन इस कदम का घरेलु खाद्य तेल उद्योग द्वारा विरोध होगा, क्योंकि इससे आयात में वृद्धि होने की आशंका है जो घरेलू उद्योग के हित में नही है.
- खाद्य जरूरतों को देखते हुए कम से कम गरीब वर्गों के लिए सार्वजानिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीब वर्गों को सब्सिडी पर खाद्य तेल आपूर्ति की जा सकती है.
खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के आने वाले समय में गिरने की संभावना कम है, क्योंकि भारत में सोयाबीन तेल अर्जेंटीना, ब्राजील से आयात किया जाता है, वहाँ शुष्कता के चलते इनकी फसलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. पाम ऑयल इंडोनेशिया, मलेशिया से आता है, जहाँ श्रमिकों से जुड़े मुद्दे, उच्च निर्यात शुल्क एवं ला नीना के असर के कारण उत्पादकता में कमी भी इनकी कीमतों को प्रभावित कर रहे हैं. ऐसे में भारत को खाद्य तेलों की फसलों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने पर भी ज़ोर देना होगा.
Prelims Vishesh
World Tribal Day :-
- विश्व आदिवासी दिवस हर साल 9 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र और अन्य विश्व संगठन, विश्व आदिवासी दिवस या “विश्व स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस” मनाते हैं.
- यह दिवस विश्व के आदिवासियों के अधिकारों को बढ़ावा देता है और उनकी रक्षा करता है.
- इसी दिन वर्ष 1982 में जेनेवा में ‘स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह’ की प्रथम बैठक आयोजित की गई थी.
- पहला विश्व आदिवासी दिवस वर्ष 1994 में मनाया गया था.
- भारत का संविधान, अनुसूची 5 के अंतर्गत देश में आदिवासी समुदायों को मान्यता देता है. उन्हें अनुसूचित जनजाति कहा जाता है.
- अनुच्छेद 342 कहता है कि राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद उस राज्य के अनुसूचित जनजाति के रूप में जनजातीय समुदायों या जनजातीय समुदायों या समूहों को निर्दिष्ट करेगा.
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल अनुसूचित जनजातियों की आबादी 10.43 करोड़ है. यह देश में कुल जनसंख्या का 8.6% है.
International Army Games :-
- भारतीय सेना, रूस में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सेना खेलों (International Army Games) 2021 में भाग ले रही है.
- अंतर्राष्ट्रीय सेना खेल, रूस के रक्षा मंत्रालय (MoD) द्वारा वार्षिक रूप आयोजित किया जाने वाला एक रूसी सैन्य खेल आयोजन है.
- ये खेल प्रथम बार अगस्त 2015 में आयोजित किए गए थे, और दो सप्ताह तक चले इस सैन्य खेल आयोजन की दर्जनों प्रतियोगिताओं लगभग 30 देशों ने भाग लिया था.
- इन खेलों को ‘युद्ध ओलम्पिक’ (War Olympics) भी कहा जाता है.
National School of Drama – NSD :-
- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) की स्थापना ‘संगीत नाटक अकादमी’ द्वारा वर्ष 1959 में उसकी एक इकाई के रूप में की गई.
- वर्ष 1975 यह एक स्वतंत्र संस्था बनी व इसका पंजीकरण वर्ष 1860 के सोसायटी पंजीकरण धारा XXI के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था के रूप में किया गया. यह संस्था संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पूर्ण रूप से वित्त पोषित है.
- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा वर्ष 1999 में भारत रंग महोत्सव, या ‘राष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव’ की शुरुआत की थी. यह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) द्वारा नई दिल्ली में आयोजित किया जाने वाला सालाना थिएटर उत्सव है.
- आज की तिथि में, ‘राष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव’ को, थिएटर के लिए पूरी तरह से समर्पित, एशिया के सबसे बड़े थिएटर उत्सव के रूप में माना जाता है.
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