Sansar Daily Current Affairs, 11 January 2022
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान.
Topic : Census and NPR
संदर्भ
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुमान के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ के 11 जनवरी, 2022 से पूर्वी राज्यों से टकराने की संभावना है.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है?
पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यरेखा-क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली वह बाह्य- उष्णकटिबंधीय आंधी है जो जाड़ों में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भागों में अकस्मात् बरसात ले आती है. यह बरसात मानसून की बरसात से भिन्न होती है.
बाह्य-उष्णकटिबंधीय आंधियाँ (Extratropical storms) विश्व में सब जगह होती हैं. इनमें आर्द्रता सामान्यतः ऊपरी वायुमंडल तक पहुँच जाती है जबकि उष्णकटिबंधीय आँधियों में आर्द्रता निचले वायुमंडल में बनी रहती है. भारतीय महाद्वीप में जब ऐसी आंधी हिमालय तक जा पहुंचती है तो आर्द्रता कभी-कभी बरसात के रूप में बदल जाती है.
पश्चिमी विक्षोभ का निर्माण
पश्चिमी विक्षोभ (western disturbance) एक बाह्य उष्णकटिबंधीय चक्रवात के रूप में भूमध्यसागर में जन्म लेता है. यूक्रेन और आस-पास के क्षेत्र में एक उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है जिसके चलते ध्रुवीय क्षेत्रों से ठंडी हवा तुलनात्मक रूप से स्फ्जोल गर्म और उच्च आर्द्रतायुक्त हवा वाले क्षेत्र की ओर दौड़ पड़ती है.
फलस्वरूप ऊपरी वायुमंडल में चक्रवात उत्पन्न (cyclogenesis) करने के लिए एक उपयुक्त स्थिति बन जाती है जिस कारण पूर्व की दिशा की ओर बढ़ता हुआ एक दाब का निर्माण होता है. यह दाब धीरे-धीरे मध्य-पूर्व से बढ़ता हुआ और ईरान, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान होता हुआ भारतीय महाद्वीप में प्रवेश कर जाता है.
प्रभाव
- पश्चिमी विक्षोभ भारतीय उपमहाद्वीप के निचले क्षेत्रों में हल्की से भारी वर्षा और पहाड़ी क्षेत्रों में भारी हिमपात लाने में सहायक होता है.
- जब पश्चिमी विक्षोभ आता है तो आकाश में बादल छा जाते हैं और रात का तापमान बढ़ जाता है और असमय वर्षा होती है. इस वर्षा का खेती के लिए, विशेषकर रबी फसलों के लिए, बड़ा महत्त्व है. इससे गेहूँ को लाभ होता है जो भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण फसल है और जिसका भारत की खाद्य सुरक्षा में बड़ा योगदान है.
- यदि पश्चिमी विक्षोभ से अधिक वर्षा हो गयी तो फसल नष्ट हो सकती है तथा साथ ही भूस्खलन, हिमस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाएँ घट सकती हैं. गंगा-यमुना के मैदानों में इससे कभी-कभी ठंडी हवाएं चलनी लगती हैं और घना कुहासा छा जाता है.
- जब पश्चिमी विक्षोभ मानसून आने के पहले पश्चिमोत्तर भारत की ओर आता है तो कुछ समय के लिए मानसून अपने समय से पहले ही आया हुआ प्रतीत होने लगता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध.
Topic : China constructing bridge on Pangong Tso
संदर्भ
चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में ‘पैंगोंग त्सो’ (Pangong Tso) झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों को जोड़ने हेतु एक पुल का निर्माण किया जा रहा है.
पुल के बारे में
‘पैंगोंग त्सो झील’ के उत्तरी तट पर, ‘कुर्नाक किले’ (Kurnak fort) में और ‘झील’ के दक्षिणी तट पर मोल्दो (Moldo) नामक जगहों पर ‘पीपल्स लिबरेशन आर्मी’ (PLA) के सैन्य गढ़ हैं, और इन दोनों के मध्य लगभग 200 किमी का फासला है.
- ‘पैंगोंग त्सो झील के दो किनारों पर ‘निकटतम बिंदुओं’ के बीच की दूरी लगभग 500 मीटर है, और इसी स्थान पर पुल का निर्माण किया जा रहा है. इस पुल के बनने के बाद, दोनों सैन्य ठिकानों के बीच आवाजाही में लगने वाला, लगभग 12 घंटे का समय घटकर मात्र तीन या चार घंटे का हो जाएगा.
- इससे, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के लिए, दोनों क्षेत्रों के बीच सैनिकों और उपकरणों को स्थानांतरित करने में लगने वाले समय में काफी बचत होगी.
- यह पुल ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) से लगभग 25 किमी आगे स्थित है.
पैंगोंग त्सो
पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) का शाब्दिक अर्थ “संगोष्ठी झील” (Conclave Lake) है. लद्दाखी भाषा में पैंगोंग का अर्थ है, समीपता और तिब्बती भाषा में त्सो का अर्थ झील होता है.
- पैंगोंग त्सो, लद्दाख में 14,000 फुट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित एक लंबी संकरी, गहरी, स्थलरुद्ध झील है, इसकी लंबाई लगभग 135 किमी है.
- इसका निर्माण टेथीज भू-सन्नति से हुआ है.
- यह एक खारे पानी की झील है.
- काराकोरम पर्वत श्रेणी, जिसमे K2 विश्व दूसरी सबसे ऊंची चोटी सहित 6,000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली अनेक पहाड़ियां है तथा यह ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और भारत से होती हुई पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर समाप्त होती है.
- इसके दक्षिणी तट पर भी स्पंगुर झील (Spangur Lake) की ओर ढलान युक्त ऊंचे विखंडित पर्वत हैं.
- इस झील का पानी हालाँकि, एकदम शीशे की तरह स्वच्छ है, किंतु ‘खारा’ होने की वजह से पीने योग्य नहीं है.
इस स्थान पर विवाद का कारण
वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control– LAC) – सामान्यतः यह रेखा पैंगोंग त्सो की चौड़ाई को छोड़कर स्थल से होकर गुजरती है तथा वर्ष 1962 से भारतीय और चीनी सैनिकों को विभाजित करती है. पैंगोंग त्सो क्षेत्र में यह रेखा पानी से होकर गुजरती है.
- दोनों पक्षों ने अपने क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए अपने- अपने क्षेत्रों को घोषित किया हुआ है.
- भारत का पैंगोंग त्सो क्षेत्र में 45 किमी की दूरी तक नियंत्रण है, तथा झील के शेष भाग को चीन के द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
फिंगर्स क्या हैं?
पैंगोंग त्सो झील में, ‘चांग चेन्मो रेंज’ (Chang Chenmo range) की पहाड़ियां आगे की ओर निकली हुई (अग्रनत) हैं, जिन्हें ‘फिंगर्स’ (Fingers) कहा जाता है.
इनमे से 8 फिंगर्स विवादित है. इस क्षेत्र में भारत और चीन के बीच LAC को लेकर मतभेद है.
- भारत का दावा है कि LAC फिंगर 8 से होकर गुजरती है, और यही पर चीन की अंतिम सेना चौकी है.
- भारत इस क्षेत्र में, फिंगर 8 तक, इस क्षेत्र की संरचना के कारण पैदल ही गश्त करता है. लेकिन भारतीय सेना का नियंत्रण फिंगर 4 तक ही है.
- दूसरी ओर, चीन का कहना है कि LAC फिंगर 2 से होकर गुजरती है. चीनी सेना हल्के वाहनों से फिंगर 4 तक तथा कई बार फिंगर 2 तक गश्त करती रहती है.
पैंगोंग त्सो क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण का कारण:
पैंगोंग त्सो झील रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चुशूल घाटी (Chushul Valley) के नजदीक है. वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान चीन द्वारा मुख्य हमला चुशूल घाटी से शुरू किया गया था.
- चुशूल घाटी का रास्ता पैंगोंग त्सो झील से होकर जाता है, यह एक मुख्य मार्ग है, चीन, इसका उपयोग, भारतीय-अधिकृत क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए कर सकता है.
- चीन यह भी नहीं चाहता है, कि भारत LAC के आस पास कहीं भी अपने बुनियादी ढांचे को विस्तारित करे. चीन को डर है, कि इससे अक्साई चिन और ल्हासा-काशगर (Lhasa-Kashgar) राजमार्ग पर उसके अधिकार के लिए संकट पैदा हो सकता है.
- इस राजमार्ग के लिए कोई खतरा, लद्दाख और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में चीनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं के लिए बाधा पहुचा सकता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश.
Topic : Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons (NPT)
संदर्भ
स्थायी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों – चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका – द्वारा ‘परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने तथा परमाणु संघर्ष को टालने हेतु एक संकल्प लिया गया है.
इस संदर्भ में यह बयान, ‘परमाणु अस्त्र अप्रसार संधि’ (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons – NPT) की नवीनतम समीक्षा के बाद जारी किया गया. NPT की समीक्षा के लिए पिछले वर्ष 4 जनवरी की तिथि निर्धारित थी, जिसे कोविड-19 महामारी के कारण आगामी वर्ष तक के लिए स्थगित कर दिया गया था.
नवीनतम मुद्दे
- मास्को द्वारा यूक्रेन की सीमा के नजदीक सेना को तैनात किए जाने से, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच तनाव की स्थित, शीत युद्ध के बाद से अब तक की सबसे ऊँची सीमा तक पहुँच चुकी है.
- इससे क्रेमलिन द्वारा पश्चिमी देशों समर्थक अपने पड़ोसी देश ‘यूक्रेन’ पर हमला किए जाने हेतु योजना बनाए जाने की आशंका बढ़ गई है.
- इस बीच, चीन के उदय से यह चिंता भी बढ़ती जा रही है, कि बीजिंग और वाशिंगटन के मध्य तनाव बढ़ने – विशेष रूप से ताइवान द्वीप को लेकर नया संघर्ष शुरू हो सकता है.
- बीजिंग, ताइवान को अपने राज्य-क्षेत्र का हिस्सा मानता है और चीन ने इस पर, आवश्यकता पड़ने पर बलपूर्वक, अपना अधिकार ज़माने का प्रण किया हुआ है.
- परमाणु अप्रसार संधि एक बहुदेशीय संधि है जिस पर 1968 में हस्ताक्षर हुए और जो 1970 से प्रभावी है. वर्तमान में इसमें 190 सदस्य हैं.
- इसका उद्देश्य परमाणु अस्त्रों के प्रसार को तीन दृष्टि से रोकना है – i) अप्रसार ii) निरस्त्रीकरण iii) परमाणु ऊर्जा का शांतिपरक उपयोग.
NPT के मुख्य प्रावधान
- इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देश ने यदि अभी तक परमाणु अस्त्र नहीं बनाए हैं तो वह भविष्य में ऐसा अस्त्र बनाने का प्रयास नहीं करेगा.
- परमाणु अप्रसार संधि के जिस सदस्य देश के पास पहले से ही परमाणु हथियार हैं वह निरस्त्रीकरण के लिए काम करेगा.
- सभी देश शान्तिपरक उद्देश्यों के लिए कतिपय सुरक्षाओं के साथ परमाणु तकनीक प्राप्त कर सकते हैं.
- इस संधि में परमाणु अस्त्र वाला देश (nuclear weapon states – NWS) उस देश को कहा गया है जिसने 1 जनवरी, 1967 के पहले परमाणु अस्त्र बना लिया है.
- संधि के अनुसार शेष अन्य देश परमाणु-अस्त्र विहीन देश (non-nuclear weapon states – NNWS) माने जाते हैं.
- जिन पाँच देशों को परमाणु अस्त्र देश माना जाता है, वे हैं – चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका.
- परमाणु अप्रसार संधि सदस्य देशों को शान्तिपरक उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का निर्माण, उत्पादन एवं उपयोग करने से नहीं रोकती है.
परमाणु अप्रसार संधि के अनुसार देशों की भूमिका
- NPT के अनुसार, परमाणु अस्त्र रखने वाले देश परमाणु हथियार किसी दूसरे देश को नहीं देंगे और न ही किसी परमाणु-अस्त्र विहीन देश को इस प्रकार का हथियार बनाने या प्राप्त करने में सहायता, प्रोत्साहन अथवा उत्प्रेरण देंगे.
- परमाणु अस्त्र विहीन देश किसी भी स्रोत से परमाणु अस्त्र प्राप्त नहीं करेंगे और न ही उसे बनाएँगे.
- परमाणु अस्त्र विहीन देश अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency – IAEA) द्वारा निर्धारित सुरक्षा नियमों को अपनी अथवा अपनी नियंत्रण वाली परमाणु सामग्रियों पर लागू करेंगे.
IAEA क्या है?
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency – IAEA) आणविक विषयों के लिए विश्व की सबसे प्रधान एजेंसी है.
- इसकी स्थापना 1957 में संयुक्त राष्ट्र के एक अवयव के रूप में परमाणु के शान्तिपूर्ण प्रयोग पर बल देने के लिए की गई थी.
- इसका उद्देश्य है परमाणु तकनीकों के सुरक्षित, निरापद (secure) एवं शान्तिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना.
- यह एजेंसी परमाणु के सैनिक उपयोग पर रोक लगाती है.
- IAEA संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा सुरक्षा परिषद् के प्रति उत्तरदायी होती है.
- इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियेना शहर में है.
निहितार्थ
- जिन देशों के पास ‘परमाणु अस्त्र’ नहीं है, वे इन हथियारों को हासिल नहीं करेंगे.
- परमाणु अस्त्र संपन्न देश, निरस्त्रीकरण का अनुसरण करेंगे.
- सभी देशों को, सुरक्षा उपायों के सहित शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का अधिकार है.
‘परमाणु अप्रसार संधि’ से संबंधित विवाद
- निरस्त्रीकरण प्रक्रिया की विफलता: ‘परमाणु अप्रसार संधि’ (NPT) को मोटे तौर पर शीतयुद्ध कालीन उपकरण के रूप में देखा जाता है, जोकि विश्वसनीय निरस्त्रीकरण प्रक्रिया की दिशा में मार्ग बनाने के उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है.
- परमाणु अस्त्र ‘संपन्न’ तथा ‘गैर- परमाणु अस्त्र धारक’ प्रणाली (System of Nuclear ‘Haves’ and ‘Have-Nots’): ‘गैर-परमाणु अस्त्र संपन्न राष्ट्र’ (NNWS), इस संधि के भेदभावपूर्ण होने की आलोचना करते है क्योंकि, यह संधि परमाणु अस्त्रों के केवल क्षैतिज प्रसार को रोकने पर केंद्रित है जबकि इसमें परमाणु अस्त्रों के ऊर्ध्वाधर प्रसार की कोई सीमा नहीं निर्धारित नहीं ई गयी है.
- ‘गैर-परमाणु अस्त्र संपन्न राष्ट्रों’ का यह भी मानना है, कि संधि के तहत ‘शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट’ (Peaceful Nuclear Explosion – PNE) तकनीक पर लगाए गए प्रतिबंध एकतरफा हैं.
‘परमाणु अप्रसार संधि’ पर भारत का दृष्टिकोण
- भारत, ‘परमाणु अप्रसार संधि’ (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं करने अथवा हस्ताक्षर करने के बाद संधि से अलग हो जाने वाले पांच देशों – पाकिस्तान, इज़राइल, उत्तर कोरिया और दक्षिण सूडान की सूची में शामिल है.
- भारत, NPT को भेदभावपूर्ण मानता है और इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर चुका है.
- भारत द्वारा ‘परमाणु अप्रसार’ के उद्देश्य से लागू की जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय संधियों का विरोध किया जाता है, क्योंकि इस प्रकार की संधियाँ, चुनिंदा रूप से गैर-परमाणु शक्तियों पर लागू होती हैं, और परमाणु अस्त्र संपन्न पांच ताकतों के एकाधिकार को वैध बनाती हैं.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic : NISAR
संदर्भ
नासा और इसरो द्वारा “नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह” (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar Satellite – NISAR) नामक उपग्रह को संयुक्त रूप से विकसित करने हेतु कार्य किया जा रहा है. NISAR को वर्ष 2023 तक लॉन्च किया जायेगा.
प्रमुख बिंदु
- दोनों देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों का संयुक्त “NISAR मिशन” एक सिंथेटिक एपर्चर रडार को विकसित और लॉन्च करेगा.
- यह रडार दोहरी आवृत्ति संकेतों को प्रसारित करने में सक्षम होगा और इसे पृथ्वी अवलोकन उपग्रह द्वारा ले जाया जाएगा.
- इस दोहरी-आवृत्ति का उपयोग करने वाला पहला रडार इमेजिंग उपग्रह है. इस उपग्रह की दोहरी आवृत्ति का उपयोग रिमोट सेंसिंग और पशथ्वी पर प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए किया जाएगा.
- यह उपग्रह 5 से 10 मीटर तक ऊंचे बर्फ से ढके स्थलों की मैपिंग के लिए रडार इमेजिंग तकनीकों का इस्तेमाल करेगा. यह उपग्रह पृथ्वी की अधिकांश जटिल प्राकृतिक प्रक्रियाओं को मापेगा जैसे कि आइस शीट पतन, सुनामी, भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखी जैसे प्राकृतिक खतरे आदि.
दोनों देशो के समझौते के आधार पर NASA इस उपग्रह के लिए बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार प्रदान करेगा. जबकि ISRO, S-बैंड सिंथेटिक अपर्चर राडार, सैटेलाइट बस, लॉन्च व्हीकल और संबंधित लॉन्च सेवाएं प्रदान करेगा. NASA इस परियोजना के लिए 808 मिलियन डॉलर निवेश करेगा जबकि भारत 110 मिलियन डॉलर साझा करेगा.
Prelims Vishesh
Malabar Naval Exercise :-
- ‘मालाबार नौसेना युद्धाभ्यास’, किसी भी अन्य देश के साथ सबसे भारत का सबसे जटिल नौसैनिक युद्धाभ्यास है.
- मालाबार युद्धाभ्यास का आरंभ भारत और अमेरिका के मध्य वर्ष 1992 में एक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में हुआ था. वर्ष 2015 में इस अभ्यास में जापान को सामिलित किया गया और इसके पश्चात यह एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास बन गया. इसके साथ ही इसका दायरा और जटिलता भी काफी बढ़ गई है.
- इस युद्धाभ्यास के पच्चीस संस्करण अब तक आयोजित किए जा चुके हैं, इसका अंतिम संस्करण अगस्त और अक्टूबर 2021 में, दो चरणों में आयोजित किया गया था.
Two plant species discovered in Kerala :-
- हाल ही में, शोधकर्ताओं ने ‘तिरुवनंतपुरम’ और ‘वायनाड’ जिलों में फैले ‘जैव विविधता संपन्न पश्चिमी घाट क्षेत्रों’ से दो नई पादप प्रजातियों की खोज की है.
- इन पादप प्रजातियों का नाम ‘फिम्ब्रिस्टिलिस सुनिली’ (Fimbristylis Sunilii) और ‘नेनोटिस प्रभुई’ (Neanotis Prabhuii) रखा गया है।
- तिरुवनंतपुरम में ‘पोनमुडी पहाड़ियों’ के घास के मैदानों से एकत्रित, ‘फिम्ब्रिस्टाइलिस सुनिलि’ का नामकरण एक प्रख्यात ‘पादप वर्गाकरण विज्ञानी’ सी.एन. सुनील के नाम पर किया गया है। इसे IUCN रेड लिस्ट श्रेणियों के ‘अपर्याप्त विवरण’ (Data Deficient) श्रेणी में रखा गया है.
- ‘नेनोटिस प्रभुई’ प्रजाति को ‘वायनाड’ के ‘चेम्बरा पीक’ घास के मैदानों में खोजा गया है। यह ‘रुबियासी (Rubiaceae) परिवार’ से संबंधित है और उच्च तुंगता वाले घास के मैदानों पर उगता है। इसे भी ‘अपर्याप्त विवरण’ श्रेणी में रखा गया है।
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