1945 ई. के पूर्वार्ध तक भारत और विदेशों में घटनाक्रम तेज़ी से बदल रहा था. अक्टूबर, 1943 ई. में लॉर्ड लिनलिथगो (Lord Linlithgow) की जगह लॉर्ड वैवेल (Lord Wavell) भारत के नए वायसराय बने. जैसा कि आप जानते हो कि 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) ख़त्म हो चुका था. इंग्लैंड में नए चुनाव होने वाले थे. इंग्लैंड में लेबर दल (labour party) का प्रभाव बढ़ रहा था. चर्चिल, जो स्वयं Conservative Party के थे, लेबर पार्टी के इस बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर भारत में फिर से संवैधानिक सुधारों का नाटक करने की फिराक में थे. Churchill ने मार्च, 1945 में विचार-विमर्श हेतु वैवेल (Wavell) को लन्दन बुलाया. चलिए देखते हैं आगे क्या होता है? क्या है यह Wavell योजना और शिमला सम्मलेन (Simla Conference)?
वैवेल योजना (Wavell Plan) और Simla Conference
इस प्लान के तहत जब तक संविधान नहीं बने तब तक केन्द्रीय शासन में अँगरेज़ वायसराय और अँगरेज़ प्रधान सेनापति के अलावा बाक़ी सभी विभाग भारतीयों की मिलेंगे. यह एक कार्यकारिणी परिषद् (Executive Council) कहलाई जाएगी. योजना यह थी कि इसी तरह का कौंसिल राज्यों/प्रान्तों में भी बनाई जाएगी.
चर्चिल से discussion कर के लॉर्ड वैवेल भारत पहुँचे. जून, 1945 में वैवेल ने संवैधानिक सुधारों की रुपरेखा प्रस्तुत की. इस योजना पर विचार करने के लिए 25 जून, 1945 को भारतीय प्रतिनिधियों का एक सम्मलेन शिमला (Simla Conference) में बुलाया गया. इस सम्मलेन में भाग लेने के लिए सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया गया और गाँधी जी पर से नज़रबंदी हटाई गई. 25 जून, 1945 को शिमला में वैवेल की अध्यक्षता में सम्मलेन शुरू हुआ जिसमें कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अलावे सिख, दलित वर्ग और केन्द्रीय विधानसभा के European दल के representatives को भी आमंत्रित किया गया.
प्रस्ताव (Proposals)
- साम्प्रदायिक समस्या का निराकरण किया जाए.
- हिन्दू (high castes) और मुस्लिम को बराबर-बराबर प्रतिनिधित्व दिया जाएगा.
- शूद्र और सिखों को भी प्रतिनिधित्व दिया जायेगा.
- नई परिषद् में वायसराय और प्रधान सेनापति के अलावे सभी भारतीय सदस्य रखे जायेंगे.
- सभी विभाग भारतीयों को सौंपे जायेंगे (रक्षा विभाग को छोड़कर)
- नए council के कार्य, प्रशासन और संविधान निर्माण पद्धति को निश्चित करना था.
- वायसराय के अधिकारों में कोई कटौती नहीं की जायेगी पर वह विवेकहीन तरीके से अपने अधिकारों का उपयोग नहीं करेगा.
Conclusion
राजनीतिक दलों की एक joint conference बुलाई जानी थी जिससे कि कार्यकारिणी परिषद् के members की सर्वमान्य या पृथक सूचियाँ तैयार कर नियुक्तियाँ की जा सकें. सच कहा जाए तो वैवेल की योजना (Wavell Conference) ठीक-ठाक लग रही थी लेकिन साम्प्रदायिकता को कम करने के बदले इसने इसे बढ़ाने का ही काम किया. प्रस्ताव में जैसा हमने देखा कि मुसलमानों और हिन्दुओं को समान अनुपात (equal proportion) देने की बात कही गई थी. इस प्रकार “मुस्लिम लीग की राजीतिक समानता के बदले साम्प्रदायिक समानता की माँग का पहली बार ब्रितानी नीति की सरकारी घोषणा में अनुमोदन किया गया था.”
Criticism
कार्यकारिणी परिषद् के गठन को लेकन विवाद खड़ा हो गया. अनुसूचित जाति के नेताओं ने पृथक नामांकन करने का अधिकार माँगा. जिन्ना ने मांग की कि सूची तैयार करने का अधिकार सिर्फ मुस्लिम लीग को ही मिले. इस आधार पर अबुल कलाम आजाद भी कार्यकारिणी के सदस्य नहीं हो सकते थे. जिन्ना की जिद और वैवेल की अदूरदर्शिता से शिमला सम्मलेन असफल रहा. 14 जुलाई, 1945 को वायसराय ने सम्मलेन को असफल कह कर समाप्त कर दिया.
Wavell Plan के Failure के बाद क्या हुआ?
जुलाई, 1945 में इंग्लैंड में चुनाव हुए जिसमें Labour Party को बहुमत प्राप्त हुआ. चर्चिल हार गए और एटली इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने. Labour Party भारत के प्रति उदार दृष्टिकोण रखती थी. उसने भारत की समस्या को solve करने के लिए वैवेल को इंग्लैंड बुलाकर उनसे बातचीत की. एटली ने भारत में प्रांतीय और केन्द्रीय विधानसभाओं के लिए चुनाव करवाने की भी घोषणा की. 1945-46 के elections में सामान्य स्थानों पर Congress को और मुसलामानों के लिए आरक्षित स्थानों पर Muslim League को सफलता मिली. केन्द्रीय विधानसभा में कांग्रेस को 57 और लीग को 30 seats मिले. इस प्रकार प्रान्तों में भी कांग्रेस को बहुमत मिला. फलस्वरूप, हिन्दू बहुल प्रान्तों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल बने. बंगाल और सिंध में मुस्लिम लीग की सरकार बनी पर पंजाब में खिजर हयात के नेतृत्व में मिली-जुली सरकार बनी.
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संक्षेप में - वैवेल योजना और शिमला सम्मेलन
नीचे एक बार फिर से इस आर्टिकल को अपडेट किया जा रहा है जिसमें वैवेल योजना और शिमला सम्मेलन का पुनः जिक्र किया गया है.वैवेल योजना – भूमिका
1943 में लॉर्ड लिनलिथगो की जगह लॉर्ड वैवेल भारत के नये गवर्नर जनरल नियुक्त हुए. इसके पहले वे भारतीय सेना के सर्वोच्च सेनापति थे, अतः उन्हें भारतीय समस्याओं की अधिक जानकारी थी. भारत आते ही उन्होंने संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के प्रयत्न शुरू कर दिये. इधर इंग्लैंड में चुनाव होने वाले थे, अतः चर्चिल ने 1945 में विचार-विमर्श के लिए वैवेल को लन्दन बुलाया. वापस आकर जून 1945 में वैवेल ने संवैधानिक सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत की.
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद में सम्मिलित होने के लिए सभी राजनैतिक दलों के नेताओं को निमंत्रित किया जायेगा. स्वयं गवर्नर जनरल और प्रधान सेनापति के अतिरिक्त इस परिषद के अन्य सभी सदस्य भारतीय राजनीतिक दलों के नेता ही होंगे.
- सरकार का विदेश विभाग भी एक भारतीय सदस्य के हाथ में होगा.
- कार्यकारिणी परिषद में सवर्ण हिन्दुओं और मुसलमानों की संख्या बराबर होते हुए सभी प्रमुख संप्रदायों को संतुलित प्रतिनिधित्व प्राप्त होगा.
- कार्यकारिणी परिषद एक प्रकार की अंतरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगी और गवर्नर जनरल निषेधाधिकार का प्रयोग अकारण नहीं करेगा.
- दूसरे अधिराज्यों के समान ही भारत में भी ब्रिटेन के व्यापारिक एवं अन्य हितों की देखरेख के लिए ब्रिटिश उच्चायुक्त की नियुक्ति की जायेगी.
- युद्ध की समाप्ति पर भारतीय लोग अपने संविधान का स्वयं निर्माण करेंगे.
- शिमला में शीघ्र ही भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं का एक सम्मेलन बुलाया जायेगा. 25 जून, 1945 को शिमला में वैवेल की अध्यक्षता में सम्मेलन प्रारंभ हुआ, जिसमें कांग्रेस और लीग के अतिरिक्त सिख, दलित वर्ग एवं यूरोपीयन दल के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया. सम्मेलन में ‘वैवेल प्रस्ताव’ पर विचार किया गया.
शिमला सम्मेलन का असफल होना
शिमला सम्मेलन आशापूर्ण वातावरण में प्रारंभ हुआ, लेकिन दो दिन के उपरान्त ही स्थगित कर दिया गया. इसका कारण यह था कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के निर्माण पर कोई समझौता नहीं हो सका. मौलाना आजाद ने कांग्रेस की ओर से कार्यकारिणी की जो सूची प्रस्तुत की, उसमें तीन मुस्लिम लीग के सदस्यों के साथ दो राष्ट्रीय मुसलमानों को भी सम्मिलित किया गया. जिन्ना ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि कार्यकारिणी परिषद के पांचों मुस्लिम सदस्य मुस्लिम लीग के ही प्रतिनिधि होने चाहिए. जिन्ना के इस दावे को कांग्रेस ने स्वीकार नहीं किया. इस प्रकार जिन्ना के इस हठधर्मी से टकराकर वैवेल योजना समाप्त हो गयी. 14 जुलाई, 1945 को वायसराय ने सम्मलेन को असफल कहकर समाप्त कर दिया.
शिमला सम्मेलन ने दो बातें स्पष्ट कर दीं. प्रथम, ब्रिटिश सरकार अनिच्छा से ही सही भारतीयों को भारत का शासन सौंपना चाहती है तथा दूसरा भारत की संवैधानिक समस्या का समाधान तब तक संभव नहीं है, जब तक कि साप्रंदायिक समस्या का निराकरण न हो जाए.