मोतीलाल नेहरू का प्रारम्भिक जीवन
पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई, 1861 ई. को हुआ था. मोतीलाल नेहरू के पूर्वज कश्मीर से आकर इलाहाबाद में बस गए थे. मोतीलाल नेहरू उत्तर प्रदेश के एक प्रसिद्ध वकील थे. उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन से आकृष्ट होकर राजनीति में प्रवेश किया. उन्होंने 1912 ई. में इन्डेपेंडेंट (Independent) नामक एक पत्र का प्रकाशन इलाहाबाद से प्रारम्भ किया. राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति Motilal Nehru का झुकाव 1917 ई. के बाद बढ़ा. वह उदारवादी थे. वे अंग्रेजों के साथ सहयोग की नीति अपनाकर संवैधानिक सुधार लाने के पक्षधर थे.
गाँधी से सम्पर्क
महात्मा गाँधी के साथ सम्पर्क होने के बाद मोतीलाल नेहरू सक्रिय रूप से राजनीति में भाग लेने लगे और एनीबेसेंट की गिरफ्तारी, जालियाँवाला बाग़ का हत्याकांड और पंजाब में मार्शल लॉ होने के बाद मोतीलाल नेहरू उदारवादी खेमे से निकलकर उग्रवादी हो गए. उनके एक मात्र पुत्र जवाहरलाल नेहरू थे.
स्वराज पार्टी की नींव
पंजाब में सैनिक शासन और अमृतसर हत्याकांड की जाँच हेतु कांग्रेस ने एक समिति की स्थापना की थी. पंडित मोतीलाल नेहरू जाँच समिति के अध्यक्ष थे और महात्मा गाँधी, चितरंजन दास, फजलुल हक और अब्बास तैयबजी उसके सदस्य थे. 1919 ई. में कांग्रेस का अध्यक्ष पंडित Motilal Nehru को निर्वाचित किया गया. 1920 ई. में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव रखा. शुरुआत में मोतीलाल असहयोग आन्दोलन के पक्ष में नहीं थे. किन्तु जब कांग्रेस ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो मोतीलाल नेहरू ने आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी. मोतीलाल ने स्थगन का विरोध किया था और 1923 ई. में चितरंजन दास के सहयोग से स्वराज पार्टी (Swaraj Party) की स्थापना की. स्वराज दल को लोकप्रिय बनाने के लिए मोतीलाल ने अथक परिश्रम किया. स्वराज पार्टी काउंसिल में प्रवेश कर भारत सरकार के कामों में व्यवधान डालना चाहती थी. कांग्रेस के विरोध के बावजूद स्वराज दल ने मोतीलाल और चितरंजन दास के नेतृत्व में निर्वाचन में भाग लिया और दो प्रान्तों में उन्हें अधिक सफलता मिली. पंडित मोतीलाल नेहरू केन्द्रीय विधान मंडल में स्वराज दल के नेता निर्वाचित हुए. दल के नेता के रूप में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी और दमन-नीति का पुरजोर विरोध किआ और भारत को स्वतंत्र बनाने की माँग की.
नेहरू रिपोर्ट
1928 ई. में साइमन कमीशन का बहिष्कार राष्ट्रीय पैमाने पर आयोजित किया गया. मोतीलाल नेहरू ने बहिष्कार आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1928 ई. में सर्वदलीय सम्मलेन की बैठक हुई जिसमें भारत के लिए एक संविधान बनाने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ. संविधान-निर्माण समिति का अध्यक्ष पंडित मोतीलाल नेहरू को बनाया गया. बहुत परिश्रम और सूझ-बूझ के साथ भारत के लिए एक संविधान की रुपरेखा तैयार की गई. इसे “नेहरू रिपोर्ट” कहा जाता है. नेहरू रिपोर्ट में भारत की राजनीतिक और साम्प्रदायिक समस्या का उचित निराकरण किया गया था. नेहरू रिपोर्ट अंग्रेजों के लिए चुनौती थी. अतः सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया. 1929 ई. में पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति कांग्रेस का लक्ष्य बन गया. मोतीलाल ने 1930 ई. के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी भाग लिया था. उन्हें बंदी बना लिया गया. जेल-जीवन के कारण पंडित मोतीलाल नेहरू का स्वास्थ्य ख़राब हो गया. जेल से रिहा होने के बाद 1931 ई. Pandit Motilal Nehru का देहांत हो गया.
मोतीलाल नेहरू कांग्रेस के अग्रिम पंत्ति के नेता थे. मरने के समय भी मोतीलाल नेहरू ने कहा था कि “मैं स्वाधीन भारत में मरना चाहता था. परन्तु मेरी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती.” पंडित मोतीलाल के निधन से भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का एक मुख्य स्तम्भ टूट गया. उनके निधन पर महात्मा गाँधी ने कहा था कि “प्रत्येक देशभक्त को मोतीलाल नेहरू की मौत मरने की इच्छा करनी चाहिए. इन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया और अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक भी देश-हित के सम्बन्ध में ही सोचते रहे.”
Sources: NCERT, Wikipedia, IGNOU