संक्षिप्त पृष्ठभूमि
- वर्तमान में, सार्वजनिक अधिकारीयों की भ्रष्ट गतिविधियों से सम्बंधित अपराध भ्रष्टाचार निवारण अधिनयम, 1988 द्वारा विनियमित किए जाते हैं.
- 2007 में, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) द्वारा अपनी चौथी रिपोर्ट में रिश्वत देने को अपराध के रूप में शामिल करने, कुछ मामलों में अभियोजन पक्ष के लिए पूर्व स्वीकृति सम्बन्धी प्रावधान में छूट प्रदान करने और भ्रष्टाचार के आरोपी सार्वजनिक अधिकारियों की सम्पत्ति को जब्त करने सम्बन्धी प्रावधान, शामिल करने के लिए इस अधिनियम में संशोधन करने की सिफारिश की गई थी.
- 2011 में, भारत द्वारा यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन अगेंस्ट करप्शन की पुष्टि की गई और अपने घरेलू कानूनों को इस सम्मलेन के अनुरूप बनाने हेतु सहमति व्यक्त की गई थी. इसके तहत एक सरकारी कर्मचारी द्वारा अवैध तरीके से धन एवं सम्पत्ति प्राप्त करने और रिश्वत देने एवं लेने को अपराध की श्रेणी में शामिल करना, विदेशी सरकारी अधिकारियों को रिश्वत सम्बन्धी गतिविधियों को संबोधित करना शामिल हैं.
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988
- इस अधिनियम का विस्तार जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में है.
- इस अधिनियम के तहत केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन विशेष न्यायाधीशों को नियुक्त करने का प्रावधान किया गया था.
- इस अधिनियम में साक्ष्य प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व अभियोजन पक्ष से अभियुक्त पर स्थानांरित किया गया है.
- इस अधिनियम के अंतर्गत, सरकार से वेतन प्राप्त करने वाला और सरकारी सेवा में कार्यरत या सरकारी विभाग, कंपनियों या सरकार के स्वामित्व या नियन्त्रण के अधीन किसी भी उपक्रम में कार्यरत किसी व्यक्ति को “लोक सेवक” के रूप में परिभाषित किया गया है.
- इस अधिनियम के तहत अवैध परितोषण लेना, आधिकारिक स्थिति का दुरूपयोग, आर्थिक लाभ प्राप्त करना आदि को अपराध की श्रेणी में रखा गया है.
- सांसदों और विधायकों को इस अधिनियम से बाहर रखा गया है.
- यदि सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध अपराध सिद्ध हो जाते हैं, तो उसे कारावास की सजा, जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी और जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, का प्रावधान किया गया है.
भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2018 संशोधन के लाभ
✓ भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों को कम करने में सहायक
भ्रष्टाचार बोध सूचकांक (corruption perception index), 2017 में भारत के रैंक में गिरावट (180 देशों की सूची में 81वाँ स्थान), ऐसे मामलों में वृद्धि को दर्शाती है. अधिनियम के प्रभावी एवं कठोर कार्यान्वयन के माध्यम से सार्वजनिक कार्यकर्ताओं को भ्रष्ट प्रक्रियाओं में शामिल होने से रोका जा सकता है.
✓ ईमानदार अधिकारियों की सुरक्षा
यह सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों को बिना किसी भय और योग्यता के आधार पर अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करेगा जिससे निर्णयन प्रक्रिया की गतिहीनता को समाप्त किया जा सकता है.
✓ भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्यवाही (trial) सुनिश्चित करना
ऐसे मामलों में समयबद्ध कार्यवाही (trial) से भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की सुनवाई में होने वाली अत्यधिक विलम्ब की समस्या कम होगी.
✓ रिश्वत देने वाले को शामिल करना
इस अधिनयम में रिश्वत देने वाले को अपराधी के रूप में शामिल किया गया है. यह कदम भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और नकदी या अन्य प्रकार के प्रलोभन देने हेतु एक निवारक के रूप में कार्य करेगा. इससे पूर्व, रिश्वत देने वाले को शामिल नहीं किया गया था जिससे भ्रष्टाचार में निरंतर वृद्धि होती रहती थी.
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text][/vc_column_text][vc_single_image image=”6414″ alignment=”center” style=”vc_box_shadow_circle” title=”Ruchira Mam”][vc_column_text][/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text]रुचिरा जी हिंदी साहित्यविद् हैं और sansarlochan.IN की सह-संपादिका हैं. कुछ वर्षों तक ये दिल्ली यूनिवर्सिटी से भी जुड़ी रही हैं. फिलहाल ये SINEWS नामक चैरिटी संगठन में कार्यरत हैं. ये आपको केंद्र और राज्य सरकारी योजनाओं के विषय में जानकारी देंगी.
संशोधित अधिनियम से सम्बंधित चिंताएँ
- हालाँकि यह अधिनियम मामले की शिकायत करने के लिए सात दिन का समय प्रदान करता है, लेकिन यह उस स्थिति की उपेक्षा करता है जहाँ उन्हें कानून प्रवर्तन एजेंसियों में शिकायत न करने के लिए धमकी दी जा सकती है.
- भ्रष्टाचार के मामले की सुनवाई के दौरान रिश्वत देने वाले के द्वारा दिए गये किसी भी बयान के लिए अभियोजन पक्ष की तरफ से उन्हें संरक्षण प्रदान किए जाने सम्बन्धी प्रावधान को इस अधिनियम में हटा दिया गया है. यह उन्हें गवाह के रूप में उपस्थित होने से रोक सकता है.
- आपराधिक दुर्व्यवहार को पुनः परिभाषित करने के बावजूद भी अवैध सम्पत्तियों के अधिग्रहण के अतिरिक्त सम्पत्ति अधिग्रहण के “प्रयोजन” को सिद्ध करने की आवश्यकता है.
- 1988 के अधिनियम के तहत, रिश्वत लेने, आदतन अपराध एवं उकसाने के मामलों में साक्ष्य प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व आरोपी पर था. हालाँकि, संशोधित अधिनियम केवल रिश्वत लेने सम्बन्धी अपराध के मामले में आरोपी पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का दायित्व डालता है.
- विदेशी सरकारी अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने सम्बन्धी मामलों, निजी क्षेत्र में रिश्वत और क्षतिपूर्ति हेतु मुआवजे के सम्बन्ध में संशोधित अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं किया गया है.
- पूर्व स्वीकृति (जाँच के चरण से पहले भी) के प्रावधान को शामिल करके यह अधिनियम कमजोर कर दिया गया है जिसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के वास्तविक मामलों में अनुचित विलम्ब हो सकता है. यह दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 6A को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद पूर्व अनुमति की आवश्यकता को अधिक सशक्त करता है, जिसके लिए सरकार से समान स्वीकृति की आवश्यकता होती है.
- “आय के वैध स्रोत” जैसे अस्पष्ट शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया है जो भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं कि क्या किसी अज्ञात और अवैध स्रोत से प्राप्त आय पर कर का भुगतान करने से ऐसी आय वैध हो जाती है.
- उचित प्रयोजन से संशोधन किये जाने के बावजूद, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए की सैद्धांतिक एवं तात्विक दोनों स्वरूपों में अधिनियम का कार्यान्वयन किया गया हो. CVC द्वारा स्वीकृति की प्रक्रिया के सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किये जाने चाहिए ताकि प्रावधान की शुचिता बनाए रखी जा सके और इसे राजनीतिक प्रभाव से संरक्षित किया जा सके. संशोधित अधिनियम को चुनाव सुधारों, राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त करने, लोक सेवाओं के वि-राजनीतिकरण, पुलिस सुधार, न्यायाधीशों की नियुक्तियों, CBI और लोकपाल के सदस्यों की प्राथमिकता के आधार पर नियुक्ति, जैसे समग्र सुधारों के साथ अनुपूरित करने की भी आवश्यकता है.
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