[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Polity GS Paper 2/Part 10

Sansar LochanGS Paper 2, Sansar Manthan

[no_toc] सामान्य अध्ययन पेपर – 2

राजद्रोह से आप क्या समझते हैं? राजद्रोह के सम्बन्ध में चिंताओं का उल्लेख करते हुए IPC की धारा 124A के औचित्य पर लगे प्रश्न चिन्ह पर अपनी राय प्रकट कीजिए. (250 शब्द)

  • अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है  = Green
  • आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“भारतीय संविधान – ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना…”

सवाल का मूलतत्त्व

IPC की सम्बंधित धारा के अनुसार राजद्रोह की परिभाषा दें. चूँकि यहाँ बात 124A के औचित्य पर की गई है इसलिए इसका होना सही है या नहीं, अपने विवेक के अनुसार तर्क प्रस्तुत करें.

उत्तर :-

IPC की धारा 124A के अनुसार, “कोई भी व्यक्ति जो बोले या लिखे गये शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, अंसतोष उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, उसे आजीवन कारावास अथवा जुर्माने के साथ तीन वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा.

लोकतांत्रिक और स्वतंत्र राष्ट्र में IPC की धारा 124A की प्रासिंगता निरंतर विचार-विमर्श का विषय रही है. सरकार धारा 124A का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल के अंतर्गत प्रदत्त युक्तियुक्त प्रतिबंधों से परे भी कर सकती है. यह आशंका व्यक्त की जाती है कि सरकार द्वारा इस धारा का दुरूपयोग राजनीतिक असंतोष तथा सरकार और इसकी नीतियों के रचनात्मक आलोचना को दबाने के लिए किया जा सकता है जो कि लोकतांत्रिक शासन की मूल भावनाओं के विपरीत है.

IPC की कई धाराएँ राज्य के विरुद्ध तथा लोक शान्ति के विरुद्ध किये गए अपराधों से सम्बंधित हैं. चूँकि राजद्रोह राज्य के विरुद्ध एक अपराध है, इस अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषी सिद्ध करने के लिए साक्ष्यों के उच्च मानकों को लागू किया जाना चाहिए. इसे राज्य के विरुद्ध गंभीर अपराधों के विरुद्ध उपयोग में लाना चाहिए. यदि कोई मामला राजद्रोह अधिनियम के दायरे में नहीं आता तो अन्य सम्बंधित कानूनों/विधियों के प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही की जा सकती है.

असहमति एक जीवंत लोकतंत्र में सेफ्टी वाल्व के रूप में कार्य करती है तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध को तर्कसंगत कारणों के साथ सावधानीपूर्वक लगाया जाना चाहिए. यदि देश सकारात्मक आलोचना के लिए मुक्त नहीं है, तो स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के बाद की स्थितियों में बहुत अधिक अंतर नहीं होगा. “राजद्रोह” को पुनः परिभाषित करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में राजद्रोह कानून की आवश्यकता आदि जैसे आवश्यक प्रश्नों के सदर्भ में कानूनी विद्वानों, विधि-निर्माताओं, सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, अकादमिक, छात्रों एवं सबसे आवश्यक सामान्य जनता के बीच विचार-विमर्श किया जाने की आवश्यकता है.

सामान्य अध्ययन पेपर – 2

प्रॉक्सी वोटिंग क्या है? प्रॉक्सी वोटिंग की आलोचात्मक व्याख्या कीजिए. (250 शब्द)

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ ”

सवाल का मूलतत्त्व

प्रॉक्सी वोटिंग के बारे में Sansar DCA में भी लिखा जा चुका है. उसके विषय में आलोचनात्मक तर्क भी प्रस्तुत किया गया था. Date 11 August, 2018 (Link)

उत्तर :-

प्रॉक्सी वोटिंग के अंतर्गत एक पंजीकृत मतदाता अपनी मतदान शक्ति को किसी प्रतिनिधि को प्रत्यायोजित कर सकता है. प्रॉक्सी वोटिंग का सीमित पैमाने पर 2003 में लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के लिए प्रयोग किया गया था.

भारतीय चुनाव में मतदान तीन प्रकार से किया जाता है –

  1. स्वयं व्यक्ति द्वारा
  2. डाक द्वारा
  3. और प्रॉक्सी के माध्यम से.

प्रॉक्सी वोटिंग की आलोचना

1. एक प्रॉक्सी के प्रयोग करने की प्रक्रिया सुभेद्य स्वरूप, कदाचार और दुरूपयोग में परिणत हो सकता है जैसे –

  1. यह संभव है कि प्रॉक्सी मतदाता NRI (जो प्रॉक्सी को नियुक्त करता है) की इच्छा के अनुसार अपने मतदान के विकल्प का चयन न करे.
  2. व्यवस्था का प्रयोग करते समय गोपनीयता की क्षति एक प्रमुख दोष है.
  3. यह मतों की खरीद का भी मार्ग प्रशस्त करता है.

2. क्रियान्वयन सम्बन्धी चुनौतियाँ – भारतीय प्रवासी विश्व के विभिन्न भागों में फैले हुए हैं. इससे प्रॉक्सी मतदान के समय कार्यान्वयन संबंधी चुनौती उत्पन्न हो सकती है. इसके अतिरिक्त अनिवासी भारतीय मतदाताओं का पंजीकरण उनकी संख्या के अनुपात में अपेक्षाकृत कम हुआ है. इसलिए पंजीकरण सुविधाओं का विस्तार अत्यंत जरुरी है.

3. मौद्रिक प्रभाव – केवल पर्याप्त वित्तीय संसाधनों से युक्त दल ही विदेशों में महत्त्वपूर्ण प्रचार अभियानों के संचालन में समर्थ होंगे जिससे शक्ति संतुलन छोटे और क्षेत्रीय दलों के विरुद्ध हो सकता है. इसके अतिरिक्त भारत के बाहर इन दलों द्वारा कितना धन व्यय किया गया है इसका पता लगाने के लिए कोई भी सक्षम तंत्र उपलब्ध नहीं है.

4. घरेलू प्रवासियों के विरुद्ध भेदभाव – यह उन प्रवासियों के बीच जिन्हें अभी भी मताधिकार प्राप्त नहीं है तथा अनिवासियों के विभिन्न वर्गों के मध्य भेदभाव में वृद्धि कर सकता है.

“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan

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