महीनों की राजनीति अनिश्चितता को समाप्त करते हुए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी अहमदज़ई और उनके प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने शक्ति विभाजन का एक समझौता कर लिया है.
समझौते की मुख्य बातें
- ग़नी ही राष्ट्रपति बने रहेंगे.
- यदि तालिबान से शान्ति वार्ता होती है तो उसका नेतृत्व अब्दुल्ला करेंगे.
- अब्दुल्ला को राष्ट्रीय सामंजस्य उच्च परिषद् का प्रमुख बनाया जाएगा.
- अब्दुल्ला के दल के कुछ सदस्यों को ग़नी के मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा.
- सामंजस्य परिषद् अफगानिस्तान की शान्ति प्रक्रिया से सम्बंधित सभी मामलों को देखेगी और उनका अनुमोदन करेगी.
पृष्ठभूमि
पिछले सितम्बर में अफगानिस्तान में चुनाव हुए थे जिसमें ग़नी और अब्दुल्ला दोनों ने जीतने का दावा किया था और दोनों ने अलग-अलग उदघाटन समारोह भी आयोजित कर लिए थे. अफगान चुनाव आयोग के अनुसार, कम ही वोटों से सही पर असरफ ग़नी चुनाव जीत गए थे, परन्तु अब्दुल्ला का आरोप था कि चुनाव के परिणाम में धांधली हुई है.
स्मरणीय है कि अमेरिका और तालिबान के बीच 29 फरवरी, 2020 को एक शान्ति समझौता हुआ था. इस समझौते के अनुसार, अमेरिका और NATO की सेनाओं को अफगानिस्तान छोड़ देना था.
अमेरिका इस बात के लिए दबाव डाल रहा था कि तालिबान और अफगान सरकार आपस में वार्ता करें, किन्तु ग़नी और अब्दुल्ला की प्रतिद्वंद्विता के कारण ऐसी वार्ता आरम्भ नहीं हो पा रही थी. इसलिए इन दोनों के बीच जो समझौता हुआ है वह अफगानिस्तान के लिए महत्त्वपूर्ण कहा जाएगा. संभव है कि दशकों पश्चात् उस देश में राजनीतिक अस्थिरता समाप्त हो और शान्ति का वातावरण बने.
भारत के लिए समझौते का महत्त्व
भारत ने ग़नी और अब्दुल्ला के बीच हुए समझौते का स्वागत किया है. उसने आह्वान किया है कि स्थायी शान्ति और स्थिरिता लाने का प्रयास किया जाए और पाकिस्तान के द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का खात्मा हो.
अफगानिस्तान मध्य एशिया के तेल एवं खनिजों से समृद्ध देशों तक पहुँचने का मार्ग है. पिछले पाँच वर्षों में भारत ने विदेशों में जो सहायता भेजी है उसका दूसरा सबसे बड़ा लाभार्थी अफगानिस्तान हो गया है.