What is Anticipatory bail? Explained in Hindi
सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने यह व्यवस्था दी है कि अग्रिम जमानत (anticipatory bail) के लिए कोई समय-सीमा नहीं हो सकती है और वह अभियोजन के अंत तक चल सकती है.
पृष्ठभूमि
आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अनुभाग 438 में अग्रिम जमानत के विषय में प्रावधान है. इस प्रावधान के कार्यक्षेत्र के विषय में दायर मामले – सुशीला अग्रवाल बनाम दिल्ली राज्य – में तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने एक रिफरेन्स किया था. इस रिफरेन्स पर सर्वोच्च न्यायालय ने एक संवैधानिक पीठ का गठन करते हुए विचार किया था.
संवैधानिक पीठ द्वारा दिए गये मंतव्य
- अनुभाग 438 (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) न्यायालयों को अग्रिम जमानत के लिए शर्त थोपने के लिए बाध्य नहीं करता है. परन्तु यदि विशेष परिस्थितियों में ऐसा समझा जाता है तो न्यायालय अग्रिम जमानत की समय-सीमा निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है.
- संसद नागरिकों के अधिकार को कम करना उचित नहीं समझती है यह देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के लिए यह उचित नहीं होगा कि वह अग्रिम जमानत के विषय में न्यायालय को दी गई शक्तियों में कटौती करे.
- प्राथमिकी दायर होने के भी पहले कोई व्यक्ति अग्रिम जमानत का आवेदन दे सकता है.
- न्यायालय उसी दशा में अग्रिम जमानत पर शर्तें थोप सकता है जब उसे लगे कि सम्बंधित अपराध गंभीर प्रकृति का है.
अग्रिम जमानत क्या है?
आपराधिक प्रक्रिया संहिता में 1973 में एक संशोधन द्वारा अनुभाग 438 के अन्दर अग्रिम जमानत का प्रावधान किया गया था.
एक ओर जहाँ साधारण जमानत उस व्यक्ति को मिलती है जो गिरफ्तार है, वहीं दूसरी ओर अग्रिम जमानत द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी के पहले ही दी जाती है.
अनुभाग 438 का उप-अनुभाग 1 मात्र सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय को ही अग्रिम जमानत देने के लिए अधिकृत करता है.
Tags : What is Anticipatory bail? Meaning, features, significance and issues involved. 438 of the Code of Criminal Procedure, 1973.