अमेरिका-चीन के व्यापार के विभिन्न आयाम हैं और इसमें कई प्रकार की जटिलताएं विद्यमान हैं. इन जटिलताओं का व्यापक प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ता है जिसमें उभरते हुए बाजार एवं व्यापार असंतुलन भी शामिल हैं. इसके पीछे कारण यह है कि पिछले 25 सालों से चीन का दबदबा जगजाहिर है.
अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा अब शीतयुद्ध में बदल रही है क्योंकि अब अमेरिका व्यापार में असंतुलन को खत्म करने के लिए अग्रसर है.
भारत-अमेरिका-चीन
भारत की अमेरिका के साथ जुगलबंदी चल रही है और चीन के साथ भी रिश्ते में नए पहल और नए आयाम खोजे जा रहे हैं. अमेरिकी प्रशासन चीन की सर्वोच्चता को माँपते हुए भारत को समर्थन एवं महत्त्व दे रहा है. इसी क्रम में यह भी आशंका जताई जा रही है कि दोनों महाशक्तियों के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के उत्पन्न होने से सबसे अधिक नुकसान श्रमिक वर्गों एवं कृषि उत्पादन को है. अमेरिका की स्पष्ट चिंता है कि इस बढती व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का परिणाम क्या होगा. चीन की अर्थव्यवस्था को वृहद् विश्व बाजार में कैसे मुखर किया जाए, यह एक दीर्घप्रश्न है. यह एक बड़ा सवाल चीन के विरुद्ध अमेरिकी अभियान के समक्ष है.
अमेरिका-चीन में सीमा शुल्क प्रतिस्पर्धा और इसके राजनीतिक परिणाम
वैश्विक आर्थिक संवृद्धि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संपोषण के आधार पर संचालित होती है और ये सारी चीजें आयात-निर्यात करने वाले देशों के बीच क्रियाशील संबंधों एवं मनोवृत्तियों पर निर्भर करती है. आज विश्व की जो स्थिति एवं परिस्थिति है, विश्व की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक एशिया देशों, विशेषकर – चीन, जापान, साउथ कोरिया और भारत के साथ व्यापार पर निर्भर करती है. अमेरिका व्यापार की गति को अपने डॉलर मुद्रा और उपभोग की ताकत के द्वारा नियंत्रित करता है. यूरोप में जर्मनी एक बड़ा निर्यातक देश है और इसकी सीधी प्रतिस्पर्धा चीन से है जो विश्व व्यापार की एक बड़ी भूमिका का निर्वाह करता है.
ट्रम्प के शासनकाल में देखा जाए तो अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में व्यापक बदलाव का अनुभव किया जाने लगा है. अमेरिका और चीन के रिश्ते में तनाव की लकीरें पड़नी शुरू हो गई हैं क्योंकि चीन अमेरिका को निर्यात करता है और डॉलर मुद्रा का महत्त्व सर्वोपरि है. अमेरिका का चीन के साथ व्यापारिक घाटा 375 बिलियन डॉलर का रहा और इसलिए यह आवश्यक हो गया कि चीन के साथ नए व्यापारिक शुल्क दर या व्यापारिक सीमा शुल्क निर्धारित किया जाए.
भारत और उभरते बाजार का प्रभाव
अधिकांश उभरते बाजार ऐसे हैं, जो व्यापार प्रतिबंध और उच्च अमेरिकी दरों की मार झेल रहे हैं. जितनी अधिक उच्च दर होगी, उतनी ही शीघ्रता और तत्परता से निवेषक अपनी पूँजी को सम्पत्ति में बदलेगा. इससे निश्चित रूप से डॉलर का मूल्य बढ़ेगा. IMF ने टिपण्णी की कि उभरते हुए बाजार में पूँजी प्रवाह उत्तरार्द्ध के महीनों में कमजोर हुआ है. अगर यही स्थिति जारी रही तो, गिरते हुए बाजार में दबाव अधिक बढ़ेगा. उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना ने IMF से मदद मांगी तो उसने दूसरे देशों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया. दूसरा खतरा यह कि चीन अधिकतर उन जगहों पर जटिल स्थिति का सामना कर रहा है, जहाँ पर विकास दरों को 0.2% से 6.2% तक कटौती झेलनी पड़ी है. बहरहाल, इसके अतिरिक्त और भी समस्याएँ हैं, जो विकासशील देशों को अपने घरेलू हालातों के वजह से झेलनी पड़ रही है.
भारत बाजार पर प्रभाव
जहाँ तक भारत का सवाल है, यहाँ चीन के मुकाबले समायोजन की संभावना अल्प है. इसके पीछे कारण यह है कि यहाँ हमारे देश में विकल्प बहुत कम हैं. विभिन्न स्थानों पर कार्यरत सेंट्रल बैंक दरें कम करने के ऊपर सोच रहे हैं, ताकि US फेडरल रिजर्व्स का मुकाबला किया जा सके ताकि उभरते हुए बाजार में मुद्रा का मूल्य बरकरार रहे. सारे उभरते हुए बाजार अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अनुरूप अपने दर तेजी से घटाते जा रहे हैं. RBI ने रेपो रेट में यथास्थिति बरकरार रखा है. कच्चे तेल की कीमतों एवं रुपये का अवमूल्यन और ब्याज दरों में बढ़ोतरी के अतिरिक्त भारत के राज्यों में चुनाव में आगामी महीनों में कोई खतरा नहीं है.
भारत में सामान्य शेयर बाजार (इक्विटी मार्किट) इस तथ्य की तरफ इंगित करेंगे कि रूपये में कितना अवमूल्यन होने की संभावना है. भारत तेल के आवश्यकता की पूर्ति विदेशी मालवाहक परिवहन से कर लेता है.
मुख्य तथ्य
- अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा अब शीतयुद्ध में परिवर्तित हो रही है क्योंकि अब अमेरिका व्यापार में असंतुलन को समाप्त करते हुए परिवर्तन का आकांक्षी है. ट्रम्प प्रशासन को अमेरिकी राजनीतिक संवर्ग एवं राजनीतिक गलियारों का पूरा समर्थन हासिल है.
- ट्रम्प सरकार का कहना है कि चीन का कृषि सम्बन्धी दृष्टिकोण वाकई में किसानों का अहित करेगा. चीन के द्वारा लगाया करारोपण कृषि उत्पादों पर और कृषि श्रमिकों पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है.
- विभिन्न स्थानों पर कार्यरत सेन्ट्रल बैंक दरें कम करने के ऊपर सोच रहे हैं, ताकि US फ़ेडरल रिजर्व्स का मुकाबला किया जा सके ताकि उभरते हुए बाजार में मुद्रा का मूल्य बरकरार रहे. सारे उभरते हुए बाजार अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अनुरूप अपने दर तेजी से घटाते जा रहे हैं.
- IMF ने 2019 में अमेरिका के लिए उभरते हुए बाजार के लिए और विकासशील अर्थव्यस्था के लिए कटौती की है. इनमें 2018 और 2019 तक 2% विकास होने की संभावना है. बाकी दुनिया के लिए आर्थिक परिदृश्य कुछ विशेष नहीं है. यहाँ पर आर्थिक परिदृश्य एक बदसूरत तस्वीर पर्श करता है.
निष्कर्ष
अमेरिका और चीन के मध्य व्यापार युद्ध का भावी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि दोनों देशों में अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के संदर्भ में मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं. इस परिवर्तन की समीक्षा इस तरह से भी होनी चाहिए कि अब एक समतावादी समाज वर्तमान के जद्दोजहद से उभर कर सामने आएगा. इसी आधार पर अब अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विकसित होंगे. केवल चातुर्य से ही कोई हल नहीं निकलने वाला है, जब तक कि व्यवस्थित प्रयास नहीं किये जाते हैं. सभी के लिए मुक्त संवाद एवं स्वतंत्र परिस्थितियाँ कायम करनी होगी.
विश्व-भर के राजनेताओं को यह भी देखना चाहिए कि नीतियाँ इस तरह से विकसित हों कि विकासशील देशों और नए बाजारों को लाभ हों. अन्यथा की स्थिति में विकासशील देशों और नए बाजारों को इन दोनों आर्थिक महाशक्तियों के ऊपर बलि चढ़ना पड़ेगा. नीति नियन्ताओं को यह भी सोचना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए किस प्रकार से नीतियाँ लाभदायक होंगी. दोनों आर्थिक महाशक्तियों के बीच तनाव से ही अंतर्राष्ट्रीय संतुलन पैदा होते हैं, यह भी एक सत्य है.
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