दिल्ली सल्तनतकालीन अन्य लेखकों में अमीर खुसरो का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है. जबकि सही अर्थों में वह इतिहासकार नहीं था. उनका जन्म 1253 ई. में हुआ था. वह एक ऐसे परिवार में पैदा हुए थे जिसका कई पीढ़ियों से राजदरबार से घनिष्ठ सम्बन्ध था. वह कैकूबाद, जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी, मुबारकशाह व गयासुद्दीन तुगलक के अंतर्गत शाही सेवा में रहे. अमीर खुसरो सूफियों – विशेष रूप से निजामुद्दीन औलिया के काफी नजदीक थे और उन्होंने अपने काव्य व संगीत के माध्यम से भारत की सूफी संस्कृति के निर्माण में महान योगदान दिया था. चलिए चर्चा करते हैं अमीर खुसरो (Amir Khusro) द्वारा रचित ग्रन्थ, किताबों (Books) के बारे में.
अमीर खुसरो का झुकाव
इतिहास लिखना अमीर खुसरो की मूल चिंता नहीं थी. इसलिए सच पूछा जाए तो एक इतिहासकार के रूप में उनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता. परन्तु अपनी कविताओं में उन्होंने प्रायः ऐतिहासिक विषयों को लिया है. इस प्रकार की सभी कृतियाँ, रचनाएँ सन 1289-1325 के बीच रची गई थीं. इनमें से कुछ की रचना के लिए उनसे ख़ास तौर पर कहा गया था जबकि कुछ अन्य उन्होंने अपने शाही रक्षकों को खुश करने के लिए लिखी थीं. वह निष्पक्ष इतिहासकार नहीं थे.
अमीर खुसरो की किताबें
किरान-उस-सादेन
ऐतिहासिक विषय को लेकर उसकी पहली रचना है – “किरान-उस-सादेन” जो उन्होंने 1289 ई. में लिखी थी. इसमें बुगरा खां और उसके बेटे कैकुबाद के मिलन का वर्णन है. इसमें दिल्ली, उसकी इमारतों, शाही दरबार, अमीरों और अफसरों के सामजिक जीवन के विषय में दिलचस्प विवरण दिए गए हैं. इस रचना द्वारा उन्होंने मंगोलों के प्रति अपनी घृणा भी प्रकट की है.
मिफता-उल-फुतूह
मिफता-उल-फुतूह की रचना उन्होंने 1291 ई में की. इस रचने में उन्होंने जलालुद्दीन खिलजी के सैन्य अभियानों, मालिक छज्जू का विद्रोह व उसका दमन, रणथम्बौर पर सुलतान की चढ़ाई और अन्य स्थानों की विजय पर विचार किया है.
खजाइन-उल-फुतूह
खजाइन-उल-फुतूह में, जिसे तारीख-ए-अलाई के नाम से भी जाना जाता है, अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के पहले 15 वर्षों का चाटुकारितापूर्ण विवरण है. यद्यपि यह रचना मूलतः साहित्यिक है परन्तु फिर भी इसका अपना महत्त्व है क्योंकि अलाउद्दीन खिलजी का समसामयिक विवरण केवल इसी पुस्तक में मिलता है. इसमें उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी द्वारा गुजरात, चित्तौड़, मालवा और वारंगल की विजय के विषय में लिखा है. इसमें हमें मालिक काफूर के दक्कन अभियानों का आँखों देखा विवरण मिलता है और भौगोलिक और सैन्य विवरणों की दृष्टि से यह काफी प्रसिद्ध है. इसमें भारत का बड़ा ही अच्छा चित्रण है और साथ ही अलाउद्दीन के भवनों व प्रशासनिक सुधारों का वर्णन किया गया है. परन्तु अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल पर विचार करते समय उनकी दृष्टि आलोचनात्मक नहीं रही है.
आशिका
अमीर खुसरो की एक अन्य रचना “आशिका” का सम्बन्ध गुजरात के राजकरन की पुत्री देवलरानी और अलाउद्दीन के पुत्र खिज्रखां की प्रेमकथा से है. इसमें अलाउद्दीन की गुजरात व आलवा विजय के बारे में चर्चा की गई है. साथ ही उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों की स्थालाकृति (topography) का वर्णन भी किया है. इसमें वे मंगोलों द्वारा स्वयं अपने कैद किये जाने की चर्चा भी करते हैं.
नूह सिपिहर
एक अन्य पुस्तक जहाँ हिन्दुस्तान और उसके लोगों का अच्छा चित्रण हुआ है वह नूह सिपिहर (Nuh Sipihr) है. इसमें मुबारक खिलजी का बड़ा ही चातुकारतापूर्ण विवरण है. उन्होंने मुबारकशाह के भवनों के विजयों के साथ-साथ जलवायु, सब्जियों, फलों, भाषाओं, दर्शनरम जीवन जैसे विषयों पर विचार किया है. इसमें तत्कालीन सामजिक स्थिति का बड़ा ही जीवंत चित्रण देखने को मिलता है.
तुगलकनामा
खुसरो की अंतिम ऐतिहासिक मसनवी है तुगलकनामा. इसमें खुशरोशाह के विरुद्ध गयासुद्दीन तुगलक की विजय का चित्रण है. पूरी कहानी को धार्मिक रंग में प्रस्तुत किया गया है. इसमें गयासुद्दीन सत् तत्वों का प्रतीक है और उसे असत् तत्वों के अमीर खुसरोशाह के साथ संघर्ष करते दिखाया गया है.
अमीर खुसरो (Amir Khusro) का एक मजबूत पहलू यह है कि उन्होंने बहुत-सी तिथियाँ दी हैं और उनके द्वारा दिया गया कालक्रम बरनी की अपेक्षा कहीं अधिक विश्ववसनीय है. उनकी रचनाएँ तत्कालीन सामजिक स्थितियों पर भी काफी प्रकाश डालती है और यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी ओर उस समय के अन्य इतिहासकारों का ख़ास ध्यान नहीं गया था.
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