[Sansar Editorial] अरावली पर्वत शृंखला पर संकट के बादल

Sansar LochanSansar Editorial 2019

हाल ही में हरियाणा सरकार के द्वारा अरावली पर्वत शृंखला को बचाने से संबंधित कानून में संशोधन किया गया है. हरियाणा सरकार द्वारा इस पर्वत शृंखला के एक महत्त्वपूर्ण भाग को वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए उपलब्ध करा दिया गया है. ऐसा माना जा रहा है कि ऐसा करके हरियाणा सरकार ने बहुत गलत कदम उठाया है और साथ ही साथ उसने सर्वोच्च न्यायालय की निषेधाज्ञा का भी स्पष्ट उल्लंघन किया है. सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों के संरक्षण-विषयक कानूनों को कमजोर करने के लिए हरियाणा सरकार को फटकार लगाई है.

पृष्ठभूमि

हाल ही में हरियाणा सरकार ने पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA) में कतिपय सुधार प्रस्तावित किये हैं. इस कार्रवाई से गुरुग्राम, फरीदाबाद, नूँह, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जैसे शहरों की मास्टर योजनाओं के अंतर्गत अधिनियम द्वारा दी गई सुरक्षा लगभग समाप्त हो गई है. न्यायालय ने सरकार को नए संशोधन को लागू करने से मना किया है और खेद प्रकट किया है कि न्यायालय की चेतावनी के बावजूद ऐसा इसलिए किया गया कि बिल्डरों को लाभ हो सके.

सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के द्वारा अरावली पर्वत शृंखला के परिवेश को सुरक्षा प्रदान करने के लिए इन पहाड़ियों तथा उसके अगल-बगल के क्षेत्रों में अनेक गैर-वानिकी गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया गया था. विदित हो कि ब्रिटिश शासन के द्वारा 1900 में ही अरावली पर्वत शृंखला को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पंजाब लैंड प्रीजर्वेशन ऐक्ट (पीएलपीए) का गठन किया गया था. अब इन पहाडिय़ों के एक विशाल भाग के वन होने की पदवी को हटाया जा रहा है. पर्यावरणवेत्ताओं का कहना है कि यह संशोधन अरावली पर्वत शृंखला को खत्म करने का एक सूत्रपात है. उच्चतम न्यायालय ने तत्काल इसके प्रवर्तन पर रोक लगाने का आदेश दिया है और इस कदम को निंदनीय बताया है.

अरावली पर्वत शृंखला

  • अरावली पर्वत शृंखला 692 किलोमीटर लंबी है और यह दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक विस्तृत है.
  • यह शृंखला प्रदूषण से बहुत हद तक सुरक्षा प्रदान करती है.
  • इसके अतिरिक्त यह थार मरुस्थल के विरुद्ध एक प्राकृतिक कवच का काम करती है.

वन का दर्जा क्यों छीना गया?

अरावली के वन के एक अच्छे-खासे भाग का अवैध अतिक्रमण किया जाता रहा है. अरावली के वनों का अचल संपत्ति, खनन और अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों के रूप में दुरुपयोग किया जाता है. ये अवैध गतिविधियाँ 1970 से ही चालू हैं. इस पर्वत शृंखला पर लाखों की संख्या में मकान, वाणिज्यिक इमारतें और उद्योग-धंधे पहले ही प्रारम्भ हो चुके हैं. अरावली पहाडिय़ों का लगभग 30% भाग फरीदाबाद और गुरुग्राम जिलों में आता है और अब से पहले यह पीएलपीए के अधीन संरक्षित वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित था. मात्र फरीदाबाद में कम से कम पाँच वाणिज्यिक संस्थाएं, तीन अवैध कॉलोनियाँ और 140 से अधिक निजी फार्म हाउस तथा बैंक्वेट हॉल तथा दो शैक्षणिक संस्थान चल रहे हैं. 

भारतीय वन्यजीव संस्थान के 2017 के एक अध्ययन में कहा गया है कि अरावली पहाड़ियों का हरियाणा में आने वाला हिस्सा देश का सबसे कमजोर वन क्षेत्र है. तीव्र गति से वनों का नाश और वहाँ हो रही विकास संबंधी गतिविधियाँ इस विशिष्ट भूक्षेत्र को धीरे-धीरे नष्ट कर रही हैं. अरावली के राजस्थान में आने वाले भाग में भी परिस्थिति कोई खास अच्छी नहीं है. अरावली के इस क्षेत्र में आने वाली 128 पहाड़ियों में से 31 पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं. इसके लिए भू माफिया और खनन माफिया उत्तरदायी हैं.

अरावली का माहात्म्य

  • अरावली पहाड़ियाँ विश्व की प्राचीनतम शृंखलाओं में से एक है. ये थार मरुस्थल को दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों तक पहुँचने से रोकती हैं.
  • हरियाणा में इन पहाड़ियों पर 400 से अधिक प्रजातियों के देशी पेड़, झाड़ियाँ और घास-पात हैं. साथ ही यहाँ 200 देशी और बाहर से उड़कर आने वाली चिड़ियों की प्रजातियाँ रहती हैं. इसक वन्यक्षेत्र में तेंदुएं, सियार, लकड़बग्घे, नेवले और सीवेट बिल्लियाँ पाई जाती हैं.
  • अरावली पहाड़ियाँ भूमिजल के फिर से भर जाने में बड़ी भूमिका निभाती हैं. विदित हो कि यह क्षेत्र पानी के अभाव के लिए जाना जाता है और यहाँ गर्मियों में भीषण गर्मी पड़ती है.
  • अरावली पहाड़ियों के जंगल हवा को प्राकृतिक रूप से शुद्ध करते हैं. विदित हो कि वाहनों एवं उद्योगों से उत्पन्न यहाँ की हवा वर्ष-भर प्रदूषित रहती है. ऐसे में अरावली का माहात्म्य समझा जा सकता है.
  • वनों को नष्ट होने से रोकने के अलावा यह राजस्थान से चलने वाली धूल भरी हवाओं को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकती है और पहले ही खराब गुणवत्ता वाली हवा को कुछ हद तक बचाती है.
  • अरावली पर्वत शृंखला का पर्यावास की दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्व है.
  • यह कई नदियों और जलधाराओं का स्रोत भी है. साबरमती, लूनी, चंबल और कृष्णावती इनमें प्रमुख नदियाँ हैं. दमदमा, धौज, बडख़ल और सूरजकुंड जैसी झीलों का जलागम क्षेत्र भी यही पर्वत शृंखला है.
  • इन पहाडिय़ों में जबरदस्त जैव विविधता है. यहां अनेक प्रकार के पौधे, जीव-जंतु और पक्षी पाए जाते हैं.

चिंताएँ

  • 2017 के एक प्रतिवेदन में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया था कि हरियाणा में अरावली शृंखला के जंगल भारत के सबसे अधिक जीर्ण-शीर्ण जंगल हैं और यहाँ के अधिकांश देसी पौधे विलुप्त हो गये हैं.
  • जंगलों के तेजी से काटे जाने और निर्माण की गतिविधियों के कारण अरावली का अनूठा परिदृश्य नष्ट हो रहा है और इसके संरक्षण पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है.
  • पिछले वर्ष उत्तर भारत में असामान्य धूल की आंधियाँ और बवंडर चले थे और कभी-कभी साथ में ओले भी पड़े थे. ऐसा विशेषकर उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हुआ था. ऐसी आँधियों का बार-बार आना और तीव्रता से आना इस बात का संकेत है कि अरावली क्षेत्र में मरुभूमि का विस्तार हो रहा है.

निष्कर्ष

आशा है कि राज्य सरकार पर्यावरणविदों तथा सर्वोच्च न्यायालय की बात सुनेगी और अधिनियम में किए गए संशोधन को खत्म करेगी. उसे अरावली वन क्षेत्र को बचाने और बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए.

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