अनुच्छेद 30 – अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान और उनके विशेषाधिकार

Sansar LochanIndian Constitution

एक महत्त्वपूर्ण निर्णय करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि सरकार की सहायता से चलने वाले अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों यह दावा नहीं कर सकते हैं कि अपने यहाँ शिक्षकों की नियुक्ति पर उनका निरंकुश अधिकार है. इस निर्णय में कहा गया है कि सरकार इन संस्थानों में नियुक्ति पर हस्तक्षेप कर सकती है जिससे कि शिक्षा के स्तर में उत्कृष्टता लाई जा सके.

मामला क्या है?

पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 (West Bengal Madrassas Service Commission Act, 2008) के अनुसार मदरसों में शिक्षकों का चयन और नियुक्ति का फैसला एक आयोग कर सकता है. इस अधिनियम की सांविधानिक वैधता को यथावत् रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम पर कलकत्ता उच्च न्यायालय के द्वारा दिए गये  न्यायादेश को यह कहकर निरस्त कर दिया कि इसके विभिन्न प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन करते हैं और इसलिए संविधान-विरुद्ध है.

अनुच्छेद 30

संविधान का अनुच्छेद 30 कहता है कि सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को यह अधिकार है कि वे अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान स्थापित करें और उसे चलायें.

सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा प्रकट मंतव्य

  • कोई संस्थान चाहे अल्पसंख्यकों का हो अथवा बहुसंख्यकों का हो, वहाँ उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के मामले में राष्ट्रीय हित के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता है.
  • अनुच्छेद 30(1) की भावना यह है कि अल्पसंख्यकों एवं बहुसंख्यकों के संस्थानों दोनों के प्रति समान व्यवहार हो तथा दोनों प्रकार के संस्थानों में नियम और विनियम एक जैसे होने चाहिएँ.
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि शिक्षा की गुणवत्ता तथा अल्पसंख्यकों के द्वारा शैक्षणिक संस्थान संचालित करने के अधिकार दोनों के बीच किस प्रकार संतुलन बनाया जाए. इसके लिए न्यायालय ने शिक्षा को दो वर्गों में बाँटा है – धर्मनिरपेक्ष शिक्षा तथा वैसी शिक्षा जिसका प्रत्यक्ष उद्देश्य किसी धार्मिक अथवा भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय की विरासत, संस्कृति, लिपि और विशेष लक्षणों का संरक्षण करना है.
  • जहाँ तक दूसरे वर्ग का प्रश्न है सर्वोच्च न्यायालय इस बात का पक्षधर है कि शिक्षकों की नियुक्ति में प्रबंधकों को अधिक से अधिक नियंत्रण दिया जाए क्योंकि किसी विशेष धार्मिक दर्शन और उसके प्रचार-प्रसार के विषय में वही शिक्षक अच्छी शिक्षा दे सकते हैं जो उस धर्म का पालन करते हैं.
  • परन्तु, जिन अल्पसंख्यक संस्थानों का पाठ्यक्रम विशुद्ध रूप से धर्मनिरपेक्ष है, वहाँ यह प्रयास होना चाहिए कि अच्छे से अच्छे शिक्षकों के द्वारा शिक्षा दी जाए.

अनुच्छेद 30(1)

  • अनुच्छेद 30(1) के अनुसार अल्पसंख्यकता का आधार मात्र भाषा अथवा धर्म हो सकता है, न कि नस्ल या जाति.
  • यह अनुच्छेद अल्पसंख्यकों को शिक्षा संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार देता है. वस्तुतः यह किसी अलग संस्कृति के संरक्षण में शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका को मान्यता देता है. एक बहुसंख्यक समुदाय भी एक शैक्षणिक संस्थान खोल और चला सकता है, परन्तु उसे अनुच्छेद 30(1)(a) में वर्णित विशेष अधिकार नहीं मिलेंगे.

अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को दिए गये विशेष अधिकार

  • अनुच्छेद 30(1)(a) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों (Minority Educational Institutions – MEIs) को विशेष अधिकार प्रदान करता है. इसके अनुसार अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को दिया गया शैक्षणिक अधिकार वस्तुतः एक मौलिक अधिकार है. यदि ऐसे संस्थान की संपदा सरकार ले लेती है तो उस संस्थान को उचित क्षतिपूर्ति दी जायेगी जिससे वह किसी और जगह पर शैक्षणिक संस्थान स्थापित कर सके.
  • अनुच्छेद 15(5) के अनुसार, ऐसे संस्थानों में आरक्षण लागू नहीं होता है.
  • शिक्षा अधिकार अधिनियम (Right to Education Act) के अनुसार इन संस्थानों से यह अपेक्षा नहीं होती कि वे आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के 6 से 14 वर्ष के बच्चों को नामांकन में 25% तक आरक्षण दें.
  • सेंट स्टीफेंस बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय वाद, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान अल्पसंख्यकों के लिए 50% सीट आरक्षित कर सकते हैं.
  • TMA पई एवं अन्य बनाम कर्नाटक सरकार एवं अन्य, 2002 वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि MEI प्रवेश के लिए अलग प्रक्रिया अपना सकते हैं यदि यह प्रक्रिया पारदर्शी, न्यायोचित और मेधा पर आधारित हो. ऐसे संस्थान अपनी ओर से अलग ढंग के शुल्क लगा सकते हैं परन्तु वे कैपिटेशन शुल्क नहीं ले सकते हैं.

Tags: Article 30, Article 30(1) in Hindi

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