संविधान के अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में भारत सरकार द्वारा निरस्त कर दिए जाने के उपरान्त पूर्वोत्तर राज्यों में कुछ आलोचक यह शंका व्यक्त कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इसी तर्ज पर एकपक्षीय रूप से अनुच्छेद 371 (Article 371) को भी समाप्त अथवा संशोधित कर सकती है. यद्यपि भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसका ऐसा कोई विचार नहीं है.
अनुच्छेद 371 क्या है?
- संविधान के भाग 21 में अनुच्छेद 369 से लेकर 392 तक कुछ अस्थायी संक्रमणात्मक एवं विशेष प्रावधान किये गये हैं.
- इनमें से अनुच्छेद 371 पूर्वोत्तर के छह राज्यों समेत कुल 11 राज्यों के लिए विशेष प्रावधान करता है.
- ये समस्त प्रावधान प्रकृति से सुरक्षात्मक हैं और अलग-अलग राज्यों की विशेष परिस्थिति को देखते हुए किये गये हैं.
Article 371 के द्वारा किये गये विभिन्न राज्यों के लिए विशेष प्रावधान
महाराष्ट्र और गुजरात के लिए अनुच्छेद 371
अनुच्छेद 371 के अंतर्गत इन दो राज्यों के राज्यपाल को यह विशेष दायित्व सौंपा गया है कि वे अपने-अपने राज्य में कुछ विशेष भूभागों के लिए अलग विकास बोर्ड स्थापित करें, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में विदर्भ और मराठवाड़ा में. इसी प्रकार गुजरात के अन्दर “सौराष्ट्र” और “कच्छ” में.
नागालैंड के लिए अनुच्छेद 371A
केंद्र सरकार और नागा पीपल्स कन्वेंशन के बीच 1960 में हुए सोलह सूत्री समझौते के पश्चात् 13वें संशोधन अधिनियम, 1962 के द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के अनुसार संसद को इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा – नागा धर्म अथवा सामाजिक प्रथाएँ, नागा पारम्परिक कानून और प्रक्रिया और नागा पारम्परिक कानून के अनुसार किये गये दीवानी एवं फौजदारी न्याय-निर्णय. इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार बिना राज्य विधान सभा की सहमति के भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण के बारे में कार्रवाई नहीं कर सकती है.
असम के लिए अनुच्छेद 371B
1969 के 22वें संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान में जोड़े गये इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति असम के जनजातीय क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों वाली एक समिति का गठन कर सकता है और उसे कार्य सौंप सकता है.
मणिपुर के लिए अनुच्छेद 371C
27वें संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति मणिपुर विधान सभा में पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों की एक समिति का गठन कर सकता है और राज्यपाल को इसके सुचारू रूप से संचालन का विशेष उत्तरदायित्व सौंप सकता है.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए अनुच्छेद 371D
आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के द्वारा प्रविष्ट इस अनुच्छेद में राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई है कि वह नवगठित राज्यों में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में नियुक्ति अथवा नामांकन के संदर्भ में यह सुनिश्चित करे कि राज्य के सभी भागों के लोगों को समान अवसर और सुविधा मिले.
आंध्र प्रदेश लिए अनुच्छेद 371E
यह अनुच्छेद किसी विशेष प्रावधान से सम्बंधित नहीं है, अपितु यह संसद के कानून के द्वारा आंध्र प्रदेश में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की अनुमति देता है.
सिक्किम के लिए अनुच्छेद 371F
36वें संशोधन अधिनियम, 1975 के द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के द्वारा 1974 में निर्वाचित सिक्किम की विधान सभा को मान्यता दी गई है और उसे भारतीय संविधान के तहत निर्वाचित विधान सभा के समकक्ष घोषित किया गया है.
मिजोरम के लिए अनुच्छेद 371G
1986 के 53वें संशोधन अधिनियम के द्वारा प्रविष्ट यह अनुच्छेद संसद को इन विषयों पर कानून बनाने से रोकता है – मिजो लोगों का धर्म अथवा सामाजिक प्रथाएँ, मिजो पारम्परिक कानून और प्रक्रिया और मिजो पारम्परिक कानून के अनुसार किये गये दीवानी एवं फौजदारी न्याय-निर्णय. इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार बिना राज्य विधान सभा की सहमति के भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण के बारे में कार्रवाई नहीं कर सकती है.
अरुणाचल प्रदेश के लिए अनुच्छेद 371H
1986 के 55वें संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान में प्रविष्ट यह अनुच्छेद राज्यपाल को राज्य की विधि-व्वयस्था के विषय में विशेष दायित्व सौंपते हुए प्रावधान करता है कि वह मंत्रिपरिषद् के परामर्श से स्वविवेकानुसार आवश्यक कदम उठाएगा.
कर्नाटक के लिए अनुच्छेद 371J
2012 के 98वें संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के द्वारा हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में एक अलग विकास बोर्ड का प्रावधान किया गया है.
गोवा के लिए अनुच्छेद 371I
इस अनुच्छेद में यह व्यवस्था की गई है कि गोवा राज्य में विधान सभा सदस्यों की संख्या 30 से कम नहीं होनी चाहिए. इसमें ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं है जिसे ‘विशेष’ माना जा सकता है.
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