अश्गाबात समझौते में भारत के शामिल होने से भारत के लिए मध्य एशिया, रूस और यूरोप के साथ व्यापार करना अब आसान हो जायेगा. इस समझौते के तहत भारत को फारस की खाड़ी से मध्य एशिया पहुँचने और माल के परिवहन करने की सुविधा हासिल होगी. यह समझौता ईरान की चाबहार परियोजना और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा परियोजना के बीच की कड़ी है.
अभी की स्थिति
मध्य एशिया भौगोलिक दृष्टि से भले ही भारत से अधिक दूर नहीं है पर पाकिस्तान के चलते भारत की इन क्षेत्रों के साथ connectivity न के बराबर है क्योंकि बाक़ी रास्ते इतने लम्बे और घुमावदार हैं कि उनके जरिये सामान भेजने की लागत कई गुना तक बढ़ जाती है. अश्गाबात समझौते में भारत के शामिल हो जाने से भारत की connectivity इस समझौते के संस्थापक देशों (founding member countries) के साथ हो जाएगी.
भारतीय उत्पादकों को अपना माल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों में बेचना पड़ता है. ऐसे में एक सस्ता परिवहन मार्ग तलाशना जरुरी था. इस दिशा में ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बेहतरीन विकल्प है. यहाँ तक समुद्र के रास्ते सीधी कनेक्टिविटी है. इसके बाद अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक सड़क और रेलमार्ग के जरिये पहुँचा जा सकता है. लेकिन ईरान से आगे सामान की आवाजाही के लिए पारगमन यानी transit होना जरुरी है. अश्गाबात समझौते से जुड़ने के बाद भारत को इसके सदस्य देशों से होकर transit मार्ग मिल जायेगा. इसके बाद चाबहार की अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से सीधी कनेक्टिविटी भी हो जायेगी.
भारत के लिए रूस, यूरोप और मध्य एशिया तक पहुँचने का आसान रास्ता क्या है, 1947 में भारत का विभाजन होने तक इस तरह का सवाल था ही नहीं. लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद भारत के लिए मध्य एशिया के रास्ते तकरीबन बंद हो गए. पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे. भारत की तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान भारतीय वाहनों को transit देने के लिए राजी नहीं हुआ. बाकी रास्ते इतने लम्बे और घुमावदार हैं कि उनके जरिये सामान भेजने की लागत कई गुना तक बढ़ जाती है.
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा परियोजना 7,200 km लम्बी कनेक्टिविटी परियोजना है. इसके लिए रूस, ईरान और भारत के बीच 16 मई, 2002 को एक समझौता हुआ था. इसमें मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का प्रावधान है. भारत, ईरान और रूस के अलावा अजरबैजान, आर्मीनिया, कजाकिस्तान और बेलारूस इस परियोजना के सदस्य हैं. इस गलियारे का उद्देश्य मुंबई, मास्को, तेहरान, बाकू, बंद, अब्बास, आस्त्राखान, बन्दर अंजली जैसे शहरों के बीच व्यापारिक संपर्क कायम करना है.
अश्गाबात समझौता : महत्त्वपूर्ण बिंदु
- अश्गाबात समझौता दरअसल मध्य एशिया और फारस की खाड़ी के बीच सामान के आवाजाही को सुगम बनाने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारा है.
- इसके तहत भारत को फारस की खाड़ी के रास्ते मध्य एशिया में दाखिल होने की सुविधा हासिल होगी. यह समझौता ट्रांजिट और माल परिवहन से जुड़ा है.
- इसका नाम तुर्केमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात पर पड़ा है.
- ईरान, ओमान, तुर्केमेंनिस्तान और उज्बेकिस्तान इस समझौते के संस्थापक देश हैं.
- इसके अलावा कजाकिस्तान भी अश्गाबात समझौते का हिस्सा है.
- इस समझौते से जुड़कर भारत को यूरेशियाई इलाके के देशों के साथ व्यापार और व्यावसायिक मेलजोल बढ़ाने में मदद मिलेगी.
- भारत लम्बे अरसे से मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी के लिए विकल्प खोजता रहा है.
- भारत के लिए पाकिस्तान को दरकिनार कर यूरोप और मध्य एशिया तक पहुँचना नामुमकिन है. ऐसी स्थिति इसलिए है कि भारत का वह हिस्सा जो सीधे अफगानिस्तान से मिलता था अभी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है.
- इस बीच भारत चीन की OROB परियोजना (One Belt One Road) के विकल्प भी ढूँढ़ रहा है.
- अश्गाबात समझौते से जुड़ने के बाद भारत के लिए नई राहें खुल जायेंगी.
25 अप्रैल, 2011 को इन चारों देशों (ईरान, ओमान, तुर्केमेंनिस्तान और उज्बेकिस्तान) ने अश्गाबात समझौते पर हस्ताक्षर किए. बाद में इस समझौते से कजाकिस्तान भी जुड़ गया.
Background
दरअसल उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, ओमान, क़तर और फारस की खाड़ी में बसे दूसरे अरब देशों के बीच परिवहन और पारगमन गलियारा विकसित करने का विचार सबसे पहले उज्बेकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति इस्लाम करिमोव ने दिया. अश्गाबाद में अक्टूबर 2010 में तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति के साथ उनकी बैठक में इस विचार पर आगे बढ़ने पर सहमति बनी. जल्द ही उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान और ओमान के प्रतिनिधि 10 नवम्बर, 2010 को ईरान के तेहरान में मिले और इस समझौते को लेकर बातचीत की. इसी बैठक में गलियारे के लिए कार्यकारी समूह का गठन भी किया गया. इसके बाद 25 अप्रैल, 2011 को इन देशों के प्रतिनिधि अश्गाबाद में मिले और समझौते पर हस्ताक्षर किए.
अगस्त 2011 को उज्बेकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, ईरान और ओमान के विदेश मंत्रियों ने ओमान के मस्कट में उज्बेकिस्तान, तुर्केमिनिस्तान, ईरान, ओमान और क़तर के बीच परिवहन गलियारा विकसित करने का समझौता किया. 2013 में क़तर इस परियोजना से बाहर हो गया. क़तर के बाहर आ जाने से समझौते पर आगे बढ़ना मुश्किल हो गया. इसलिए बाकि देशों ने इस पर दुबारा काम करना शुरू किया.
ये देश कब इस समझौते से जुड़े?
ईरान – 12 मई, 2011
तुर्केमेनिस्तान – मई, 2011
उज्बेकिस्तान – 13 जून, 2011
कजाकिस्तान – 15 फरवरी, 2015
भारत – 3 फरवरी, 2018
Read all articles >> Sansar Editorial