उदारवादी तथा उग्रवादी नेता और उनके विचारों के बीच तुलना

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उदारवादी तथा उग्रवादी विचारों की तुलना तिलक ने लिखा है कि हमारी नीतियों के प्रति दो शब्दों का प्रयोग होने लगा हैः उदारवादी और उग्रवादी. ये शब्द समय से सम्बन्धित है. इसलिए ये समय के अनुसार बदल जायेंगे, जैसे कल के उग्रवादी आज के उदारवादी बन गये हैं, उसी प्रकार आज के उदारवादी कल के उग्रवादी बन जायेंगे. तिलक की … Read More

बाल गंगाधर तिलक (1856-1920)

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कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं में सर्वप्रथम स्थान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है. उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को तीव्रता और गति प्रदान की. भारतीय इन्हें श्रद्धा और प्यार से ‘लोकमान्य’ कहते थे. उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नगीरि नगर में एक उच्च चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. तिलक के कार्यकाल को सुविधानुसार दो भागों में … Read More

हीनयान और महायान के सम्बन्ध में रोचक जानकारी

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आज हम बौद्ध धर्म की दो शाखाओं हीनयान और महायान के बीच अंतर और कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे. बुद्ध के निर्वाण के 100 वर्ष बाद ही बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया – 1. स्थविरवादी और 2. महासांघिक.  बौद्धों की द्वितीय संगीति वैशाली में हुई. इसमें ये मतभेद और भी अधिक उभर कर आये. अशोक … Read More

उदारवादी युग (1885-1905) – नरमपंथी विचारधारा और नेताओं की भूमिका

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कांग्रेस के आरम्भिक 20 वर्षों के काल को “उदारवादी राष्ट्रीयता” की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस काल में कांग्रेस कीं नीतियाँ अत्यंत उदार थीं. इस युग में भारतीय राजनीति के प्रमुख नेतृत्वकर्ता दादाभाई नौरोजी, फ़िरोज़शाह मेहता, दिनशा वाचा और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आदि जैसे उदारवादी थे. उदारवादियों की राजनीति के कुछ सुस्पष्ट चरण रहे हैं जिसके अंतर्गत इनके आन्दोलन … Read More

कांग्रेस की स्थापना से पूर्व की राजनीतिक संस्थाएँ

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दिसम्बर, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अकस्मात् घटी कोई घटना नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक जागृति की चरम पराकाष्ठा थी. दरअसल, कांग्रेस के गठन के पहले भी कई राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठनों की स्थापना हो चुकी थी. 19वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों से ही कंपनी प्रशासन में स्थायित्व के लक्षण दिखने लगे थे. प्रशासन में स्थायित्व आ जाने … Read More

महात्मा बुद्ध के समकालीन लोग – Buddha’s Contemporaries

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महात्मा बुद्ध के बहुसंख्यक अनुयायियों में कुछ ऐसे थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा, विद्वत्ता, सदाचारिता और श्रद्धा के कारण उनके ऊपर स्थायी प्रभाव डाला था और वे तथागत के परमप्रिय शिष्य बन गये थे. अपनी अनवरत साधना और कार्य परायणता से इन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार में महान् योगदान दिया था. इनमें से कुछ के नामोल्लेख कर देना आवश्यक प्रतीत होता … Read More

सिन्धु घाटी सभ्यता में व्यापार और उद्योग

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पिछले पोस्ट में हमने सिन्धु घाटी सभ्यता में कृषि के विषय में पढ़ा था. आज इस पोस्ट में हम इस सभ्यता में उद्योग और व्यापार के बारे में चर्चा करेंगे. सिन्धु घाटी सभ्यता में उद्योग हड़प्पा संस्कृति में कला-कौशल का पर्याप्त विकास हुआ था. संभवतःईंटों का उद्योग भी राज-नियंत्रित था. सिन्धु सभ्यता के किसी भी स्थल के उत्खनन में ईंट … Read More

भारत में राष्ट्रवाद का उदय – एक समीक्षा

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19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारतीयों में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना का विकास बहुत तीव्र गति से हुआ. फलस्वरूप भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आन्दोलन का सूत्रपात हुआ. भारतीय राष्ट्रवाद कुछ सीमा तक उपनिवेशवादी नीतियों तथा उन नीतियों से उत्पन्न भारतीय प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही उभरा था. पाश्चात्य शिक्षा का विस्तार, मध्यवर्ग का उदय, रेलवे का विस्तार तथा सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों ने … Read More

सिन्धु घाटी सभ्यता में कृषि – Agriculture in Indus Valley Civilization

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सिन्धु और पंजाब में प्रतिवर्ष नदियों द्वारा लाइ गई उपजाऊ मिट्टी में कृषि कार्य अधिक श्रम-साध्य नहीं रहा होगा. इस नरम मिट्टी में कृषि के लिए शायद ताम्बे की पतली कुल्हाड़ियों को लकड़ी के हत्थे पर बाँध कर तत्कालीन किसान भूमि खोदते रहे होंगे. मोहनजोदड़ो से पत्थर के तीन ऐसे उपकरण मिले हैं जिनके आकार-प्रकार और भारीपन से इनके शस्त्र … Read More

ब्रिटिश काल में 1861-1900 के दौरान पारित अधिनियम

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भारतीय सिविल सेवा अधिनियम, 1861 1853 में अंग्रेजी संसद ने भारतीय सिविल सेवा में भर्ती होने हेतु एक प्रतियोगी परीक्षा आरम्भ की थी. इस परीक्षा में भारतीयों को भी बैठने की अनुमति थी, पर अनेक अवरोधों के चलते भारतीय लोगों के लिए यह परीक्षा देना कठिन था. इसके निम्नलिखित कारण थे – एक तो परीक्षा भारत में नहीं, लन्दन जाकर … Read More