भारत में मुगल सत्ता की स्थापना : बाबर के युद्ध

Sansar LochanHistory, Medieval History

जैसा कि आप जानते होंगे कि आगामी Civil Services परीक्षा 2018 के लिए हम history revision series चला रहे हैं. कल हमलोगों ने संक्षेप में बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की स्थिति कैसी थी, वह पढ़ा (Click here to read). आज हम बाबर के प्रारम्भिक जीवन, उसके आक्रमण, काबुल-विजय, पानीपत का प्रथम युद्ध, उसकी सफलता आदि कई पहलुओं पर चर्चा करेंगे.

बाबर का प्रारम्भिक जीवन

मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मु. बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 ई. को मध्य एशिया के छोटे-से प्रदेश फरगाना में हुआ था. बाबर महत्त्वाकांक्षी था. फरगाना की छोटी-सी रियासत पाकर वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए तैमूर की राजधानी समरकंद पर विजय करने की उसने योजना बना ली. समरकंद का शासक अहमद मिर्जा था. बाबर का पहला आक्रमण असफल रहा. 1497 ई. में समरकंद पर बाबर का अधिकार हो गया. कालांतर में किन्हीं कारणों से उसे फरगाना और समरकंद दोनों को खोना पड़ा और वह खानाबदोश हो गया. लेकिन शीघ्र ही उसके भाग्य ने उसका साथ दिया और उसने फरगाना पर पुनः अधिकार कर लिया.

काबुल-विजय

बाबर भाग्य आजमाने के उद्देश्य से काबुल और गजनी की तरफ बढ़ा. संयोग से काबुल में बाबर के पहुँचने के पहले ही राजनीतिक उपद्रव शुरू हो चुका था. बाबर को सुनहला अवसर मिला और 1504 ई. में उसने काबुल और गजनी पर अधिकार कर लिया. काबुल की विजय ने बाबर की भाग्य-रेखा ही बदल दी. 1506 ई. में बाबर के ज्येष्ठ पुत्र हुमायूँ का जन्म काबुल में ही हुआ. बाबर ने समरकंद, बुखारा और खुरासान पर विजय प्राप्त कर ली. किन्तु समरकंद बाबर के हाथ में अधिक दिनों तक नहीं रहा. उत्तर-पश्चिम में साम्राज्य-विस्तार करने की लालसा जब बाबर पूरी नहीं कर सका तो उसने दक्षिण-पूरब की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया. भारतीय सीमा में प्रवेश पाने के लिए बाबर को कई वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी.

पहला आक्रमण

सर्वप्रथम 1519 ई. में बाबर ने सैनिक तैयारी के साथ भारतीय सीमा स्थित बाजौर दुर्ग पर आक्रमण किया. बाजौर पर विजय प्राप्त कर बाबर ने आतंक फैलाने के उद्देश्य से हिंदू-रक्षकों का कत्लेआम कर दिया. बाजौर-विजय के बाद उसने झेलम नदी के तट पर भीरा नामक स्थान पर आक्रमण किया. स्थानीय लोगों के विद्रोह के कारण शीघ्र ही भीरा उसे छोड़ देना पड़ा.

दूसरा आक्रमण

1519 ई. में बाबर ने दूसरी बार खैबर को पार किया. इस बार आक्रमण का मुख्य उद्देश्य युसुफजइयों का दमन और पेशावर के किले में रसद एकत्र करना था. वह पेशावर को आधार बनाकर भारत में अपना अधिकार ज़माना चाहता था. किन्तु उसी समय बदख्शां में विद्रोह की सूचना मिली इसलिए उसे भारत छोड़कर जाना पड़ा.

तीसरा आक्रमण

भारत पर बाबर का तीसरा आक्रमण 1520 ई. में हुआ. बजौर और भीरा पर अधिकार कर वह स्यालकोट तक पहुँचा. स्यालकोट पर अधिकार करने में बाबर को विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. इसी बीच बाबर को यह सूचना मिली कि कांधार में अशांति फैल गई है. उसे तीसरी बार भारत से लौट जाने के लिए विवश होना पड़ा.

चौथा आक्रमण 

बाबर ने अफगानिस्तान में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर 1524 ई. में भारत पर आक्रमण करने का चौथा प्रयास किया. इस बार आक्रमण का आमंत्रण उसे भारत से ही मिला था. सुलतान इब्राहिम लोदी और पंजाब का गवर्नर दौलत खां का सम्बन्ध कटु हो गया था. इब्राहिम लोदी ने दौलत खां के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उसे दिल्ली आने का आदेश दिया था. किन्तु दौलत खां ने खुद उपस्थित न होकर सुलतान इब्राहिम लोदी के आदेश की अवज्ञा कर दी. इब्राहिम लोदी के भय से आतंकित होकर उसने अपने पुत्र दिलावर खां को काबुल भेजा था. दौलत खां बाबर से सैनिक सहायता लेकर इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां को दिल्ली की गद्दी पर बैठाना चाहता था.

अतः निमंत्रण पाते ही बाबर 1524 ई. में भारत-विजय के लिए चल पड़ा. दौलत खां लोदी से पराजित होकर पंजाब से निष्काषित किया जा चुका था इसलिए उसने बाबर से स्वयं को पंजाब में पुनः स्थापित करने का आग्रह किया. बाबर केवल जालंधर और सुल्तानपुर की जागीरें दौलत खां को देने के लिए तैयार था. बाबर के व्यवहार से दौलत खां निराश होकर अपने पुत्र गाजी खां के साथ भाग निकला और लाहौर पर अधिकार करने की योजना बनाने लगा.

पाँचवा आक्रमण

बाबर पाँचवी बार पूरी तैयारी के साथ भारत पर आक्रमण करने की योजना बना चुका था. उसने नवम्बर, 1525 ई. में काबुल और कांधार की जिम्मेदारी अपने पुत्र कामरान को सौंप कर भारत की ओर प्रस्थान किया. रास्ते में हुमायूँ बदश्खां से सेना लेकर उसके साथ मिल गया. झेलम नदी पार करने के बाद लाहौर की सेना भी बाबर के साथ मिल गयी. बाहर के आगमन की सूचना पाकर दौलत खां और उसका पुत्र गाजी खां मिलवट के दुर्ग में अपने को सुरक्षित कर लिया. सियालकोट पर बाबर का अधिकार हो गया. भारतीय सरदार लाहौर में एकत्र होने लगे. किन्तु युद्ध-भूमि में केवल दौलत खां अपने 40 अजार सैनिकों के साथ बाबर से युद्ध करने के लिए उतरा. उसकी सेना शीघ्र ही बिखर गई और दौलत खां को आत्मसमपर्ण करना पड़ा. लाहौर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों पर अधिकार करने के बाद बाबर दिल्ली की ओर बढ़ा.

बाबर के आक्रमण और विजय की सूचना पाकर इब्राहिम लोदी एक विशाल सेना के साथ प्रस्थान किया. बाबर सरहिंद और अम्बाला की ओर से आगे बढ़ा था. इसलिए इब्राहिम लोदी ने अपने दो सैनिक दस्तों को इसका मार्ग अवरुद्ध करने के लिए हिसार-फिरोजा की ओर भेजा. इन सैनिकों का सामना बाबर के पुत्र हुमायूँ से हुई. हुमायूँ ने लोदियों की सेना को हरा दिया. अब दिल्ली जाने के मार्ग में केवल इब्राहिम की सेना ही बाधा डाल सकती थी. अतः बाबर यमुना नदी के किनारे से होता हुआ 12 अप्रैल, 1526. ई को पानीपत पहुँच गया. 21 अप्रैल, 1526 ई. को दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी और मुग़ल आक्रमणकारी बाबर के बीच हुई.

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पानीपत का प्रथम युद्ध

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