लॉर्ड कर्जन एक घोर साम्राज्यवादी तथा प्रतिक्रियावादी वायसराय था. वह अंग्रेजों को भारतीयों की तुलना में अधिक श्रेष्ठ, योग्य और सभ्य मानता था. उसके दिल में भारतीयों के प्रति घृणा भरी थी और भारत को राष्ट्र मानने के लिए वह तैयार ही नहीं था. उसकी इसी रवैये ने भारत में असंतोष और उग्रवाद को बढ़ावा दिया. लॉर्ड कर्जन 1899 ई. से 1905 ई. तक भारत का वायसराय रहा. उसका सम्पूर्ण शासनकाल भूलों और गलतियों के लिए प्रसिद्ध था. ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दूत के रूप में कर्जन ने भारत में क्षोभ और असंतोष का तूफ़ान खड़ा कर नव अंकुरित राष्ट्रीय आन्दोलन को कुचलने का काफी प्रयत्न किया. बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) की योजना बनाना उसके हर कार्य से ज्यादा खतरनाक कार्य सिद्ध हुआ.
लॉर्ड कर्जन की कूटनीति
हालाँकि उसने बंगाल के विभाजन को प्रशासनिक दृष्टिकोण से आवश्यक बताया था लेकिन वास्तविकता यह थी कि बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) उसकी प्रतिक्रियावादी नीति का ही परिणाम था. लॉर्ड कर्जन का तर्क था कि आकार की विशालता और कार्यभार की अधिकता के कारण बंगाल प्रांत का शासन एक गवर्नर के लिए संभव नहीं है. अतः उसने पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक अलग प्रांत बनाया जिसकी राजधानी ढाका रखी. वस्तुतः बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) का यह तर्क कर्जन का एक बहाना था. उसका वास्तविक उद्देश्य तो बंगाल की राष्ट्रीय एकता को नष्ट कर हिन्दुओं और मुसलामानों के बीच फूट डालना था. उसकी स्पष्ट नीति थी फूट डालो और शासन करो. उसने खुद कहा भी था कि “यह बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) केवल शासन की सुविधा के लिए नहीं की गई है बल्कि इसके द्वारा एक मुस्लिम प्रांत बनाया जा रहा है, जिसमें इस्लाम और उसके अनुयायियों की प्रधानता होगी.” इस प्रकार बंगाल का विभाजन (Partition of Bengal) लॉर्ड कर्जन का धूर्तता और कूटनीति से भरा कार्य था.
स्वदेशी लहर
बंगाल का विभाजन (Partition of Bengal) राष्ट्रीयता के इतिहास में एक मोड़ लानेवाली घटना थी. बंगाल विभाजन ने गंगा नदी के क्षेत्र में एक आग-सी लगा दी और पूरा बंगाल अपमानित और ठगा हुआ महसूस कर रहा था. 16 अक्टूबर, 1905 ई. का दिन जिस दिन बंगाल का विभाजन हुआ, विरोध दिवस के रूप में मनाया गया. जुलूस निकले, प्रदर्शनी हुई और सड़कें वन्दे मातरम् के नारे से गूँज उठीं. बंगाल ही नहीं पूरे देश में उत्तेजना व्याप्त हो गई. विरोध के स्वर को सरकार अनसुना कर रही थी अतः बंग-भंग आन्दोलन ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार का रूप धारण कर लिया. सभी स्कूल-कॉलेज विरोध प्रकट करने लगे.
बंगाल के राष्ट्रीय आन्दोलन के कुचलने के लिए सरकार ने अपना दमनचक्र प्रारम्भ किया. लोगों को जेल में डाल दिया गया और साम्प्रदायिक विभेद फैलाकर दंगे शुरू करवाए गए. दमन के कारण खुले रूप से विद्रोह करना असंभव था. इसलिए बंगाल के नवयुवकों ने गुप्त संगठनों का निर्माण कर अस्त्र-शास्त्रों को इकठ्ठा कर हिंसात्मक ढंग से सरकार का विरोध आरम्भ कर दिया. बंगाल विभाजन से स्वदेशी आन्दोलन को बल मिल गया. विदेशी वस्त्रों को जलाना, विदेशी वस्तुओं के दुकानों पर धरना देना राजनीतिक कार्यक्रम का अंग बन गया.
बंग प्रांत को ऐसे ढंग से बाँटा गया था कि पश्चिम बंगाल की जनसँख्या लगभग 5 करोड़ 40 लाख और पूर्वीय बंगाल की जनसँख्या लगभग 3 करोड़ 10 लाख हो. बंगाल के स्वदेश और स्वभाषा का अभियान रखनेवाले भावुक निवासियों को यह बँटवारा ऐसा प्रतीत हुआ मानो किसी हत्यारे ने उनकी जन्मभूमि को किसी छुरे से काटकर दो टुकड़ों में बाँट दिया ही. सारे प्रांत में एक ऐसा रोषभरा चीत्कार प्रादुर्भूत हुआ, जिसकी प्रतिध्वनि भारत के कोने-कोने से सुनाई पड़ने लगी.
बंगाल विभाजन के परिणाम
बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) के परिणाम बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए. अब राष्ट्रवादियों का रोष चरम-सीमा तक पहुँच गया और भारत में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हुई. वास्तव में अब तक कोई ऐसी घटना नहीं घटी थी, जिसने भारतीय राजनीति को इस तरह प्रभावित किया हो. बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) को आन्दोलन से घबरा कर सरकार ने रद्द तो कर दिया लेकिन विरोध का जो ज्वार एक बार उठा वह फिर रुका नहीं. कर्जन ने बंगाल विभाजन के द्वारा भारतीय राष्ट्रीयता को कुचलने का प्रयास किया था पर वह और ज्यादा बाधा ही. कर्जन की इच्छा थी कि ब्रिटिश साम्राज्य सुरक्षित हो और उसे स्थायित्व प्रदान हो पर बंगाल विभाजन और अपनी प्रतिक्रियावादी नीतियों के द्वारा उसने ब्रिटिश साम्राज्य का कब्र स्वयं ही तैयार कर दिया. यह बंग-भंग योजना अगली पीढ़ी के लिए वरदान साबित हुई. भारतवासियों में एक नए उत्साह का संचार हुआ. बंगाल का विभाजन (Partition of Bengal) कर्जन की एक बड़ी भूल साबित हुई, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को लाभ पहुँचाने की जगह हानि ही पहुँचाई.