हमने वर्ष 2018 में PIB और NITI Ayog द्वारा जारी अपडेट को संक्षेप में एक जगह इकठ्ठा करना शुरू कर दिया है. यह भाग तीन (Part 5) है. अन्य भाग्य जल्द ही अपलोड किये जाएँगे. नीचे शेष भागों की लिंक दे दी गई है.
डिजिधन
डिजिटल भुगतान डिजिटल भुगतान द्वारा सक्षम डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत परिवर्तन के शिखर पर है. पिछले दशक में, गतिशीलता, इंटरनेट उपयोग, बैंकिंग क्षेत्रा, आधार के अधिक नामांकन, अभिनव भुगतान प्लेटफ़ॉर्म का विकास और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा डिजिटल बैंकिंग के संबंध में उपयुक्त नियामक दिशानिर्देशों के साथ बैंकिंग क्षेत्रा आदि में महान प्रगति हुई है. इस तरह के विकास ने एम-कॉमर्स / ई-कॉमर्स, फाइनटेक और सेक्टर विशिष्ट एकीकृत सेवाएं आदि जैसी सक्षम सेवाओं के साथ एक संयोजक पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हुए भुगतान विस्तार को परिपक्व होने, मूल भाग को गठित करने की अनुमति दी है.
डिजिधन मिशनः – 2017-18 के यूनियन बजट भाषण में, 2500 करोड़ डिजिटल लेनदेन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक मिशन स्थापित करने का निर्णय लिया गया. इसके बाद, डिजिधन मिशन का गठन किया गया था और एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू) की स्थापना की गई.
ई-अधिगम
ई-अधिगम, शिक्षा की एक सुविधा है जो सूचना संचार प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित है. यह शैक्षिक उपकरण और संचार माध्यमों का उपयोग करके शिक्षा देने के लिए मंत्रालय द्वारा चिन्हित क्षेत्रों में से एक है. शिक्षार्थियों को आजीवन शिक्षा और गुणवत्ता के लिए ई-अधिगम एक प्रभावी उपकरण है. ई-अधिगम प्रणाली और इससे संबंधित उपकरण उन्नत शिक्षा, लागत प्रभावी वितरण, शिक्षार्थी की सुविधा के लिए शिक्षा में नम्यता, एक समान गुणवत्ता वाली सामग्री वितरण, आईईसीटी के प्रवेश द्वारा सीमित पहुंच क्षमता, वितरित शिक्षार्थियों में सहयोगी शिक्षा को बढ़ावा देना, सामग्री की पुनः प्रयोज्यता आदि उपलब्ध करते हैं. ई-अधिगम को बढ़ावा देने वाले उपकरण और प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए मंत्रालय ने इस क्षेत्रा में आर एंड डी परियोजनाओं के विभिन्न शैक्षणिक शिक्षा संस्थानों, आर एंड डी प्रयोगशालाओं आदि का आर्थिक रूप से समर्थन किया है.
इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्लस्टर (ईएमसी)
इलेक्ट्रानिक्स विनिर्माण के लिए अवसंरचना पारिस्थितिकी तंत्र को बनाने और मजबूत करने के लिए, सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण क्षेत्रा में निवेश को आकर्षित करने के लिए विश्व स्तरीय अवसंरचना के निर्माण की सहायता करने के लिए अक्टूबर 2012 में अधिसूचित इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्लस्टर योजना (ईएमसी) अधिसूचित की. यह योजना, अधिसूचना की तिथि से पांच साल की अवधि के लिए, आवेदन प्राप्त करने के लिए चालू थी. प्रत्येक 100 एकड़ जमीन के लिए 50 करोड़ की सीमा के अधीन, ग्रीनफील्ड इलेक्ट्राॅनिकी विनिर्माण क्लस्टर्स में परियोजनाओं के लिए सहायता परियोजना लागत का 50 प्रतिशत तक ही सीमित है. बड़े क्षेत्रों के लिए, यथानुपात सीमा लागू है. 50 करोड़ की सीमा के अधीन, समर्थन की सीमा निचले स्तर पर क्लस्टर संचालन समिति (एससीसी) द्वारा तय की जाती है. ब्राउनफील्ड ईएमसी के लिए, अवसंरचना की लागत का 75 प्रतिशत, अनुदान के रूप में 50 करोड़ की सीमा के अधीन प्रदान किया जाता है.
भारत बीपीओ संवर्धन योजना (आईबीपीएस)
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत, सरकार ने रोजगार के अवसर सृजित करने और देश भर, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों सहित छोटे शहरों/कस्बों, में बीपीओ/आईटीईएस संचालन को बढ़ावा देने के लिए भारत बीपीओ संवर्धन योजना (आईबीपीएस) शुरू की है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मेट्रो शहरों अर्थात बैंगलोर, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, एनसीआर, पुणे और उत्तर पूर्व क्षेत्रा (एनईआर) के राज्यों को छोड़कर जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर राज्य (राज्यों) / संघ राज्य क्षेत्रा (क्षेत्रों) में लगभग 48,300 बीपीओ/आईटीईएस सीटों का वितरण किया गया.
राष्ट्रीय सुपरकम्प्यूटिंग मिशन (एनएसएम)
‘‘राष्ट्रीय सुपरकम्प्यूटिंग मिशन (एनएसएम) : क्षमता और योग्यता का निर्माण‘‘, सरकार द्वारा 2015 में शुरू किया गया है, जिसे 7 वर्ष की अवधि में एमईआईटीवाई और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा संयुक्त रूप से संचालित और कार्यान्वित किया जा रहा है. कार्यक्रम सी-डैक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएससी) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है. मिशन के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं –
- बड़ी चुनौती की समस्याओं को सुलझाने में विभिन्न क्षेत्रों में अत्याधुनिक शोध को सक्षम करने के लिए राष्ट्रीय क्षमताओं को बढ़ाने के लिए राज्य के अत्याधुनिक एचपीसी सुविधाएं और बुनियादी ढांचे का निर्माण.
- प्रमुख विज्ञान और अभियांत्रिकी डोमेन के लिए एचपीसी अनुप्रयोगों का विकास.
- एचपीसी में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए अगली पीढ़ी के एक्सा-स्केल कंप्यूटिंग तैयारी के लिए अग्रणी.
- देश में एचपीसी गतिविधियों को संभालने और आगे बढ़ाने के लिए मानव संसाधन विकास.
इलेक्ट्रॉनिक विकास निधि (ईडीएफ)
इलेक्ट्रॉनिक्स पारिकल्पन और विनिर्माण एक ऐसा क्षेत्रा है, जो तकनीकी परिवर्तन के उच्च वेग से चिन्हित होता है. बौद्धिक संपदा सफलता का सबसे महत्वपूर्ण निर्णायक है न केवल इस क्षेत्रा की कंपनियों के लिए बल्कि पूरे देश और अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी. ईडीएफ की स्थापना, महत्वपूर्ण रणनीतियों में से एक थी जो देश में एक इलेक्ट्राॅनिक्स उद्योग के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाने में सक्षम होगी. नवाचार के एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण, अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) सक्रिय उद्योग भागीदारी के साथ एक संपन्न इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिए आवश्यक है. यह इस उद्देश्य के साथ है कि एक इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट फंड (ईडीएफ) को पेशेवर रूप से प्रबंधित ‘‘डॉटर फंड्स‘‘ में भाग लेने के लिए ‘‘निधियों के निधि‘‘ के रूप में स्थापित किया गया है जो बदले में इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्रा में नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करने वाली कंपनियों को जोखिम पूंजी प्रदान करेगा, नैनो-इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) इस फंड से इन प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में आर एंड डी और नवाचार को बढ़ावा देने की उम्मीद करता है. ईडीएफ इन प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास करने के लिए उद्योगों और शिक्षाविदों दोनों को जोखिम पूंजी प्रदान करने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र का सृजन करने में सक्षम बनाता है. अपनी प्रक्रिया में, यह देश में बौद्धिक संपदा को समृद्ध करेगा और उत्पाद और प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अधिक उद्यमियों को प्रोत्साहित करेगा.
इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स
एमईआईटीवाई ने वैश्विक प्रतिस्पर्धा और भलाई में भारत के योगदान के लिए आईओटी मूल्यवर्धन श्रृंखला में स्वदेशी समाधान को अधिकतम करके, आईओटी पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम करने, उद्योग-सरकार-अकादमिक-स्टार्ट-अप/उद्यमियों के सहयोगी प्रयासों के जरिए आईटी में भारत की ताकत का लाभ उठाने के लिए, गुजरात के अहमदाबाद, हरियाणा के गुरूग्राम और आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पर इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स के लिए 3 उत्ष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित करने के लिए मंजूरी दे दी है. परियोजना का कुल परिव्यय 6795 लाख रूपये है, जिसमें एमइआईटीवाई का योगदान 5 वर्षों के लिए रु 3234 लाख है. इससे पहले आईओटी पर एक सीओई की स्थापना इआरएनइटी भारत और नासकोम के साथ बेंगलुरु में की गई थी, जिसमें कुल खर्च 2195.22 लाख रुपए था जिसमे एमइआईटीवाई का योगदान 5 वर्षों के लिए पीपीपी मोड में 1077.72 लाख रुपए था. आईओटी के लिए सीओई 1 जुलाई 2015 को माननीय प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया था और 7 जुलाई 2016 को माननीय मंत्री, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी ने केंद्र का उद्घाटन किया.
राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति
जुलाई 2013 में सार्वजनिक उपयोग के लिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी की गई थी. नीति सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ विशाल, मध्यम उद्यमों और छोटे उद्यमों तथा घरेलू उपयोगकर्ताओं की साइबर सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करती है. नीति उन उद्देश्यों और रणनीतियों की आवश्यकता को पहचानती है जिन्हें राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनाया जाना चाहिए. इस नीति का उद्देश्य सुरक्षित कंप्यूटिंग वातावरण बनाने और इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन में पर्याप्त विश्वास और आत्मविश्वास को सक्षम करने का लक्ष्य है तथा साइबर स्पेस की सुरक्षा के लिए भी हितधारकों के कार्यों का मार्गदर्शन करना. साइबर प्रौद्योगिकी के क्षेत्रा में विकास, साइबर स्पेस के माध्यम से सेवाओं का वितरण और वर्षों में साइबर खतरे की बदलती प्रकृति पर विचार करते हुए, सरकार राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति की समीक्षा करने की प्रक्रिया में है.
भारतीय कंप्यूटर आपात प्रतिक्रिया दल (सर्ट-इन)
सर्ट-इन इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार का एक कार्यात्मक संगठन है. सर्ट-इन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 70बी के तहत नामित किया गया है ताकि साइबर सुरक्षा के क्षेत्रा में निम्नलिखित कार्य करने के लिए राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में कार्य किया जा सके :-
- साइबर सुरक्षा घटनाओं पर जानकारी का संग्रह, विश्लेषण और प्रसार
- साइबर सुरक्षा घटनाओं के पूर्वानुमान और अलर्ट
- साइबर सुरक्षा घटनाओं को संभालने के लिए आपातकालीन उपाय
- साइबर सुरक्षा घटना की प्रतिक्रिया में की गयी गतिविधियों का समन्वयन
- साइबर घटनाओं की रिपोर्टिंग से जुड़े सूचना सुरक्षा प्रथाओं, प्रक्रियाओं, रोकथाम, प्रतिक्रिया आदि से संबंधित मुद्दे के दिशानिर्देश, सलाह, भेद्यता नोट और श्वेत पत्र
- साइबर सुरक्षा से संबंधित अन्य कार्य जो निर्धारित किये गए है.
डिजिटल लॉकर
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने एक सार्वजनिक क्लाउड पर साझा करने योग्य निजी स्थान प्रदान करने के लिए और सभी दस्तावेजों और नागरिकों के रिकॉर्ड डिजिटाइज करने और उन्हें एक वास्तविक समय आधार पर उपलब्ध कराने की योजना बनाई है. ‘‘ई-दस्तावेज़ रिपोजटरीज’’ और ‘‘डिजिटल लाकर्स’’ की इस व्यवस्था से नागरिक सुविधा की सार्वजनिक सेवाओं के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में बहुत सुधार होगा और कागज रहित लेनदेन की शुरूआत होगी. प्रमाणन प्राधिकारी नियंत्राक (सीसीए) द्वारा डिजिटल लॉकर पारिस्थितिकी तंत्र के लिए ढ़ांचे की सथापना की गई है, जिसे डिजिटल लॉकर प्राधिकारी नियंत्राक (सीडीएलए) के रूप में कार्य करने के लिए अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है.
लीला-राजभाषा
लीला-राजभाषा (कृत्रिम बुद्धि के माध्यम से भारतीय भाषाओं को सीखें) हिंदी सीखने के लिए एक मल्टी मीडिया आधारित बुद्धिमत्तापूर्ण स्वयं-सीख अनुप्रयोग है. अंग्रेजी एवं अन्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से हिंदी सीखने के लिए प्रबोध, प्रवीण एवं प्राज्ञ पैकेज उपयोगकर्ता-अनुकूल साधन प्रदान करते हैं. मोबाइल पर सी-डैक की लीला-राजभाषा का शुभारंभ भारत के महामहिम राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविंद द्वारा हिंदी दिवस समारोह के दौरान, 14 सितंबर 2017 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में किया गया.
ई-बस्ता
ई-पुस्तकों के रूप में डिजिटल रूप में विद्यालयीन पुस्तकों को सुलभ बनाने के लिए एक फ्रेमवर्क है. अब तक पोर्टल पर 14 राज्य बोर्डों और कुछ निजी प्रकाशकों से 2781 पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं. लगभग 90 विद्यालयीन कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं.
ई-प्रमाण
एक केंद्रीकृत मानक आधारित ठोस बहु-गुणक प्रमाणीकरण प्रणाली है. आज 110 सेवाओं को एकीकृत किया गया है जो प्रमाणीकरण के लिए ई-प्रमाण का उपयोग कर रही हैं.
ई-हस्ताक्षर
सी-डैक की ई-साइन सेवा है, जो कानूनी रूप से स्वीकार्य रूप में नागरिकों को अपने दस्तावेजों पर सुरक्षित रूप से त्वरित डिजिटल हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफार्म है. गो-लाइव स्तर (एल4) में 43 आवेदन सेवा प्रदाता हैं तथा इसके माध्यम से सी-डैक द्वारा 28 फरवरी 2018 तक 27 लाख से अधिक हस्ताक्षर करने की सुविधा प्रदान की गई है. इस समय इसमें जीएसटीएन, ईपीएफओ, एनआईसी और पीएमसी जैसी कुल 160 एजेंसियां शामिल हैं.
मोबाइल सेवा
एक राष्ट्रीय मोबाइल प्रशासन प्लेटफार्म है, जो मोबाइल आधारित चैनल जैसे कि एसएमएस, यूएसएसडी, आईवीआरएस और एम-एप्स का उपयोग कर सार्वजनिक सेवाओं को देने की सुविधा प्रदान करता है. देशभर के 3850 से अधिक सरकारी विभाग एवं एजेंसियों द्वारा इस मोबाइस सेवा प्लेटफार्म के साथ अपनी सेवाओं को एकीकृत करके 1987 करोड़ से अधिक एसएमएस किए गए हैं, 94 लाख से अधिक आईवीआरएस किए गए हैं तथा 15 लाख से अधिक यूएसएसडी किए गए हैं. वर्तमान में एप्पस्टोर विभिन्न राज्य और केंद्रीय सरकारी विभागों के 1030 से अधिक मोबाइल अनुप्रयोगों की मेजबानी करता है.
विद्यालयों के लिए ऑनलाइन प्रयोगशालाएँ (ओलैब्स)
अमृता विश्वविद्यालय के सहयोग से सी-डैक द्वारा हिंदी, मराठी, मलयालम आदि जैसी कई भाषाओं में ऑनलाइन लैब (ओलैब्स) विकसित किए गए हैं. सी-डैक भारत भर में छात्रों एवं अध्यापकों द्वारा ओलैब्स को सुगम एवं उपयोग करने योग्य बनाने के लिए अवसंरचनात्मक एवं समर्थन फ्रेमवर्क बनाने के लिए एक पहल पर काम कर रहा है. इसे “स्कूलों के लिए ऑनलाइन प्रयोगशालाओं के रोलआउट” परियोजना के तहत किया जा रहा है. जनवरी, 2018 तक, भारत के अधिकांश राज्यों के 5988 विद्यालयों के लगभग 18693 अध्यापकों को ओलैब्स टीम द्वारा ओलैब्स एवं संबंधित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए उन्मुख किया गया है.
ई-औषधि
औषधि भंडारण समाधान का परिनियोजन सी-डैक का “ई-औषधि” समाधान दवाओं और टीके के लिए एक वेब आधारित आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू), भारत सरकार के राष्ट्रव्यापी विस्तार के जनादेश के अनुसार इस समाधान को 16 राज्यों में परिनियोजित किया गया है. वर्ष के दौरान, सी-डैक द्वारा उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में राज्यव्यापी कार्यान्वयन शुरू किया.
स्मार्ट आभासी कक्षा परियोजना
ईआरनेट ने इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा शुरू की गई डिजिटल इंडिया पहल के अंतर्गत ‘स्मार्ट आभासी कक्षा की सुविधा सहित स्कूलों को समर्थ बनाना’ शीर्षक की एक परियोजना कार्यान्वित की है. परियोजना का उद्देश्य देश के सुदूर/ग्रामीण क्षेत्रों के विद्या£थयों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए देश के सात राज्यों अर्थात् हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, त्रिपुरा, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में 3204 सरकारी स्वामित्व नियंत्राण वाले स्कूलों और 50 डाइट में आईसीटी समर्थित स्मार्ट आभासी कक्षा सुविधा की स्थापना के माध्यम से आभासी कक्षा शिक्षण समर्थ करना है.
डिजिबुनाई™ – ‘बनारसी साड़ी की बुनाई के लिए एक ओपन सोर्स सीएडी साधन’
डिजिबुनाई™ एक ओपन सोर्स ब्.क् साधन है, जो डिजाइन तैयार करने, ग्राफ बनाने और जेकक्वार्ड कार्ड को छिद्रित करने के लिए बुनकरों को करघा लदाई से पहले की प्रक्रियाओं में मदद करता है. इसके माध्यम से प्रयोक्ता बनारसी साड़ी के लिए अनुकूलित डिजाइन के विभिन्न मापदंडों के प्रयोग द्वारा पूरी तरह से कपड़े (साड़ी) को देख सकते हैं. यह सॉफ्टवेर (स्थानीय भाषा और स्थानीय डिजाइन की लाइब्रेरी में) अनुकूलन योग्य है और इसके द्वारा उपयोगकर्ता की पसंद के तृतीय पक्ष डिजाइन साधनों को भी एकीकृत किया जा सकता है.
बधिरों के लिए दृश्य वाच्य प्रशिक्षण सॉफ्टवेर (वीएसटीएस)
वीएसटीएस एक कंप्यूटर आधारित वाणी/भाषा प्रशिक्षण प्रणाली है जो वाणी उत्पादन में शामिल प्रयासों के द्वारा दृश्य प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिए भाषण संकेत विश्लेषण से प्राप्त जानकारी का उपयोग करता है. यह एक ऐसा एप्लिकेशन सॉफ्टवेर है जो किसी भी अतिरिक्त हार्डवेयर की आवश्यकता के बिना साउंड कार्ड के साथ भी कम्प्यूटर पर चलता है. यह सॉफ्टवेर वाणी चिकित्सक और वाणी प्रशिक्षण पेशेवरों द्वारा एक विश्लेषण और नैदानिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल के लिए और वाणी में विकलांगता एवं दूसरी भाषा सीखने वाले बच्चों द्वारा सही कृत्रिम प्रयासों के अधिग्रहण में सरलता हेतु एक वाणी प्रशिक्षण सहायता के रूप में विकसित किया गया है. यह सॉफ्टवेर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के सहयोग से इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा विकसित किया गया है.
पुनर्भव™
‘‘दिव्यांगजनों’’ के लिए वेब पोर्टल यह वेब पोर्टल विकलांग व्यक्ति (दिव्यांगजन), गैर सरकारी संगठनों, पेशेवरों, नीति निर्माताओं, छात्रों, माता, पिता, सामुदायिक कार्यकर्ता और विकलांगता के क्षेत्रा में अन्य हितधारकों के लिए एक स्थान पर विभिन्न विकलांगता मुद्दों से संबंधित सभी सूचनाओं को प्रदान करता है.
पुनर्जजनी™
मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के मूल्यांकन में विशेष शिक्षकों की सहायता के लिए वेब आधारित द्विभाषी (हिंदी और अंग्रेजी) उपकरण 6-18 वर्ष आयु वर्ग के एमआर वाले बच्चों के नियमित आकलन के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले तीन मानक विधियों (कार्यात्मक आकलन चेकलिस्ट प्रोग्रामिंग), BASIC-MR (मानसिक मंदता वाले भारतीय बच्चों के लिए व्यवहार आकलन स्केल), MDPS (मद्रास डेवलपमेंट प्रोग्रामिंग सिस्टम) को डिजिटल और एकीकृत किया गया है.