Biorock or mineral accretion technology
गुजरात के वन विभाग की सहायता से भारतीय प्राणीविज्ञान सर्वेक्षण (Zoological Survey of India – ZSI) पहली बार एक प्रक्रिया करने जा रहा है जिसमें कच्छ की खाड़ी में जैव पाषाण (biorock) अथवा खनिज एक्रीशन (mineral accretion) तकनीक का प्रयोग करके प्रवाल भित्तियों को फिर से पुरानी स्थिति में लाया जाएगा.
जैव पाषाण (Biorock) क्या है?
यह एक पदार्थ है जो इस्पात के ढाँचों पर समुद्र जल में घुले हुए खनिजों के विद्युत संचयन से बनता है. यह समुद्र की सतह पर उतार दिया जाता है और फिर इसको किसी विद्युत सोत से जोड़ दिया जाता है. अभी इसके लिए सौर पैनलों का प्रयोग चल रहा है.
बायो रॉक बनते कैसे हैं?
इसके लिए जो तकनीक अपनाई जाती है उसमें जल में इलेक्ट्रानों के माध्यम से बिजली का प्रवाह छोटी मात्रा में किया जाता है. जब एक धनात्मक आवेश वाला एनोड और एक ऋणात्मक आवेश केथोड समुद्र की सतह पर रखा जाता है तो इन दोनों के बीच होने वाले विद्युत प्रवाह के कारण कैल्शियम आयन कार्बोनेट आयनों से जुड़ जाते हैं और केथोड से चिपक जाते हैं. इसके फलस्वरूप कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) बनता है. प्रवाल के लार्वे CaCO3 से सट जाते हैं और तेजी से से बढ़ने लगते हैं.
टूटे हुए प्रवाल के टुकड़ों को जैव पाषाण ढाँचे से बाँध दिया जाता है. इससे वे प्राकृतिक वृद्धि दर की तुलना में कम-से-कम चार से छह गुनी तेजी से बढ़ने लगते हैं क्योंकि उन्हें अपने कैल्शियम कार्बोनेट कंकालों को बनाने में ऊर्जा नहीं लगानी पड़ती है.
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