आम बजट के पश्चात् हमारे समक्ष एक बड़ा सवाल है कि बजट 2021-22 से कृषि क्षेत्र को क्या प्राप्त हुआ? कृषि क्षेत्र की विकास दर को गति देने के लिए बजट (Union Budget 2021-2022) में कृषि सहायक उद्यमों पर विशेष बल देते हुए कई प्रकार के प्रोत्साहन की घोषणा की गई है.
Budget 2021-22 for Agriculture
कुछ मुख्य बिंदु को इस प्रकार से देखा जा सकता है –
- कृषि की लागत में कटौती व कृषिगत बुनियादी ढाँचा दृढ करने के साथ उपज की बेहतर मूल्य दिलाने का भरोसा दिलाया गया है.
- दूसरे देशों से आयात होने वाले कृषि उत्पादों को रोकने के प्रस्ताव किए गए हैं, जिससे कि घरेलू किसानों को सही मूल्यों का लाभ प्राप्त हो सके.
- बहुत अधिक संभावना है कि अब कनाडा से भारत में दाल आना बंद हो जायेगा. यह बात कनाडा के दाल पैदा करने वाले किसानों को रास नहीं आ रही है. इसीलिए उसने सर्वप्रथम नये कृषि कानूनों का विरोध किया था.
- कृषि सुधारों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों को भी आम बजट के माध्यम से संदेश देने का प्रयास किया गया है कि सरकार उनकी ही भलाई के लिए सब कुछ करने को तैयार है. अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री सीतारमण ने किसानों को आश्वासन दिया कि देश की कृषि उपज मंडी समिति (Agricultural Produce Market Committee – APMC) की मंडियों को आधुनिक सुविधाओं से युक्त किया जाएगा.
- उनका डिजिटल ढाँचागत विकास कर उन्हें ई-मंच पर लाया जाएगा.
- कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का दृढ़तापूर्वक विकास करने हेतु और कानूनी सुधार के सहयोग से किसानों की माली परिस्थिति को दुरुस्त करने के लिए आम बजट में कारगर पहल की गई है.
- खेती के बुनियादी ढांचे हेतु बजट में एक लाख करोड़ रुपये का प्राविधान किया गया है.
- ग्रामीण विकास के बुनियादी ढांचे के साथ एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के लिए विशेष व्यवस्था की गई है. इसके लिए इस बजट में विशेष कृषि उपकर लगाने का प्राविधान किया है.
- आम बजट के तीसरे आधार स्तंभ में आकांक्षी भारत व समग्र विकास के शीर्षक के अंतर्गत कृषि, किसान और गांव को प्राथमिकता दी गई है.
- कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल की गई है. आयातित सभी कृषि उत्पादों पर एग्री सेस (उपकर) आरोपित करने का प्रावधान है.
- वित्त वर्ष 2021-22 में देश की कुल 1,000 मंडियों को इलेक्ट्रानिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) से जोड़े जाने का लक्ष्य तय किया गया है. इसके लिए एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड से वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाएगी. फलस्वरूप, किसानों को अपनी उपज को घर बैठे उचित व मनोकूल मूल्य पर बेचने की सुविधा मिलेगी.
- आँकड़े यह बताते हैं कि ई-नाम के अंतर्गत अब तक 1.68 करोड़ किसानों ने अपना पंजीकरण करा लिया है.
- अब तक ई-नाम के मंच पर कुल 1.14 लाख करोड़ रुपये का व्यापार किया जा चुका है.
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रियायती कृषि ऋण को बढ़ाकर 16.50 लाख करोड़ रु. कर दिया है, ताकि किसानों को स्थानीय सूदखोरों से कर्ज लेने की परिस्थिति न आए. विदित हो कि यह गत वर्ष के 15 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 10% ज्यादा है.
- विदेशी कृषि उपज से घरेलू किसानों को सुरक्षित रखने के लिए और आत्मनिर्भर बनाने के लिए आम बजट में विशेष प्राविधान किया है और कपास पर सीमा शुल्क की दर शून्य से बढ़ाकर 10% कर दिया गया है.
- इस वर्ष के बजट में विदेशी रेशम के आयात पर लगने वाले 10% के शुल्क में वृद्धि लाकर 15% कर दिया गया है.
- इसी प्रकार अन्य कृषि उत्पादों, जो विदेश से आयात होकर घरेलू बाजार को प्रभावित करते हैं जैसे – मटर, काबुली चना, मसूर, अरहर, कपास, सेब, क्रूल सोयाबीन और पाम आयल, सूरजमुखी तेल समेत अन्य खाद्य तेलों के अतिरिक्त फर्टिलाटइर और यूरिया पर उपकर (एग्री सेस) लगा दिया गया है.
- देश में मकई चोकर, राइस ब्रान आयल केक, पशु चारा जैसी वस्तुएँ भी हमेशा से आयात होती रही हैं. बजट में इन सबके आयात पर 15% तक का शुल्क लगा दिया है.
- ज्ञातव्य है कि देश में घरेलू खाद्य तेलों की कुल खपत का 65% आयात होता है, जिस पर करीब एक लाख करोड़ रुपये व्यय किये जाते हैं, जबकि देश में गेहूँ, चावल और चीनी का अधिशेष उत्पादन है. इसकी जगह माँग-आधारित कृषि पर बल दिया जा रहा है.
- आम बजट में जहाँ माइक्रो इरिगेशन को तवज्जो दी गई है, वहीं ऑपरेशन ग्रीन का दायरा बढ़ाकर इसमें टमाटर, प्याज और आलू समेत जल्दी खराब होने वाली 22 और जिंसों को शामिल कर लिया गया है.
- सूक्ष्म सिंचाई के लिए 10,000 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है. यह योजना नाबार्ड के अंतर्गत पूर्व से ही 5000 करोड़ रुपये से चलाई जा रही थी. इसमें बजट से 5000 करोड़ रुपये अतिरिक्त जोड़ा गया है.
- गेहूँ खरीद वर्ष 2013 में जहाँ 33,874 करोड़ रुपये के समतुल्य हुई तो वहीं दूसरी ओर वर्ष 2019-20 में लगभग दोगुना बढ़कर 62,802 करोड़ रुपये हो गया. जबकि वर्ष 2020-21 में गेहूं किसानों को उनकी उपज का 75 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक की प्राप्ति हुई.
- इसी प्रकार धान की खरीद वर्ष 2013-14 में संप्रग कार्यकाल के अंतराल में 63,928 करोड़ रुपये की हुई, जबकि वर्ष 2019-20 में राजग कार्यकाल में धान खरीद की यह धनराशि 1.42 लाख करोड़ रुपये पहुँच गई. वर्ष 2020-21 में धान खरीद की यह धनराशि 1.73 लाख करोड़ रुपये तक होने का अनुमान है. खरीद का यह लाभ 1.54 करोड़ किसानों को प्राप्त हुआ है.
- दलहन खरीद में सरकार ने दालों का बफर स्टॉक भी निर्मित किया है. वर्ष 2013-14 में कुल 236 करोड़ रुपये की दलहन फसलों का क्रय हुआ था, जबकि वर्ष 2019-20 में दलहन फसलों का क्रय 8,285 करोड़ रुपये पहुँच गया. वर्ष 2020-21 में यह 10,530 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है.
- कपास किसानों से वर्ष 2013-14 के अंतराल में 90 करोड़ रुपये का क्रय हुआ था, जबकि 27 जनवरी 2021 तक 25,974 करोड़ रुपये का क्रय किया जा चुका है.
- कृषि क्षेत्र में कृषि उपज के संवर्धन के लिए विशेष प्राविधान किया गया है. निर्यात बढ़ाने के लिए पहले से चल रही ऑपरेशन ग्रीन स्कीम में 22 अन्य और जिंसों को सम्मिलित कर लिया गया है.
विश्लेषण
जैसा कि हमने पहले कहा कि सरकार माँग-आधारित कृषि पर बल देना चाह रही और उसी दिशा में आगे बढ़ रही है. इसके लिए ही नए कानूनों के माध्यम से कृषि क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया को तीव्र किया गया है, परन्तु किसान आंदोलन के आड़ में विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला बोल दिया है.
बजट 2021-22 प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह साफ़-साफ़ कह दिया कि इन सुधारों से न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कोई प्रभाव पड़ेगा और न ही उपज की सरकारी खरीद पर कोई प्रभाव दिखेगा. किसानों के हित में ये दोनों प्रणालियाँ जैसे चल रही थीं वैसे ही लागू रहेंगी.
केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार के कार्यकाल के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर हुई सरकारी खरीद का ब्योरा भी बजट भाषण का एक महत्त्वपूर्ण भाग था. खेती में नवाचार के सफल प्रयोग से ही किसानों की दशा में सुधार देखा जा सकेगा. मात्र MSP के सहारे परंपरागत खेती से कोई किसान आगे नहीं आ सकता है. किसानों को परिवर्तन का स्वागत करना चाहिए.