साधारणत: “नौकरशाही” शब्द का प्रयोग अनादर अथवा तिरस्कार के साथ ही किया जाता है. प्रजातांत्रिक व्यवस्था में इसे कटु आलोचना की कसौटी पर कसा गया है. रैमजे ग्योर, लॉर्ड हेवार्ट और एलन ने इस बात के लिए दुःख प्रकट किया है कि ब्रिटेन में नौकरशाही और तानाशाही स्थापित हो गई है. रैमजे ग्योर ने कहा है कि ब्रिटेन में “नौकरशाही या अफसरशाही मंत्रीय उत्तरदायित्व के लबादे में पनपती है.” अमेरिकन राष्ट्रपति हूवर ने ठीक ही कहा है, “नौकर शाही में तीन संतुष्ट न होनेवाली प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं – आत्मस्थिरता, आत्मविस्तार तथा अधिक शक्ति की माँग.”
प्रो० रॉबसन ने नौकरशाही के अवगुणों का वर्णन इन शब्दों में किया है, “आत्माभिमान की अत्यधिक भावना, व्यक्तिगत नागरिकों के प्रति उदासीनता, विभागीय निर्णयों के संबंध में कठोर नीति, नियमों एवं औपचारिक प्रक्रियाओं के लिए पागलपन आदि.” नौकरशाही के दोषों का व्यापक रूप से वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है.
नौकरशाही के दोष (Demerits of Bureaucracy)
लकीर के फकीर
नौकरशाही का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसके अंतर्गत कार्य करनेवाले कर्मचारी लकीर के फकीर बन जाते हैं. दूसरे शब्दों में, वे नियमों के अंधभक्त हो जाते हैं; अतः वे प्रत्येक परिस्थिति का पूर्ण एवं दूरदर्शितापूर्ण ढंग से मूल्यांकन नहीं कर पाते. उनकी फाइलें एक निश्चित सीमा के अंदर ही चक्कर काटती रहती हैं. नौकरशाही में काम की गंभीरता एवं आवश्यकता को नहीं देखा जाता है.
लालफीताशाही
नौकरशाही का एक अन्य महत्त्वपूर्ण अवगुण लालफीताशाही है. इसका अर्थ हुआ कि इसके अंतर्गत कार्य होने में पर्याप्त रूप से विलम्ब होता है. कर्मचारियों पर इस बात का तनिक भी असर नहीं होता कि किसी काम में कितनी शीघ्रता की आवश्यकता है. उन्हें जनता की दिक्कतों की चिंता ही नहीं होती है. वे तो औपचारिकता और नियमों से इस प्रकार बँधे रहते हैं कि उन्हें सार्वजनिक कार्यों की शीघ्र संपन्नता की थोड़ी भी चिंता नहीं रहती. वास्तव में, वे नियम और औपचारिकता के चलते कार्य को आगे बढ़ाने में बाधक सिद्ध होते हैं. बेजहॉट ने इस दोष के संबंध में ठीक ही कहा है, “यह एक आवश्यक दुर्गुण है कि नौकरशाही अधिकारी परिणाम की अपेक्षा नित्यचर्या की अधिक परवाह करते हैं.” बर्क का कहना है, “वे कार्य के रूप को उतना ही महत्त्व देने लगते हैं, जितना कार्य की विषयवस्तु अथवा सार को.” इस प्रकार, असैनिक कर्मचारी नियमों तथा विनियमों में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और तब वे उनको लागू करते हैं. इसके परिणामस्वरूप वे ऐसे दर्जी बन जाते हैं जो कपड़ा तो काटते हैं, परंतु शरीर की नाप नहीं लेते.
गर्व की भावना
नौकरशाही-व्यवस्था में कर्मचारियों के बीच अत्यधिक मात्रा में गर्व की भावना पाई जाती है. वे खुद को जनता से बहुत ऊपर समझते हैं, अत: जनता से संपर्क स्थापित करने में वे अपनी मानहानि समझते हैं. मंत्रियों को तो वे अज्ञानी ही समझते हैं, भले ही वे उनके इशारे पर ही नाचते रहते हैं. नीति-निर्माण में हस्तक्षेप करने में वे नहीं हिचकते और रौब जमाना तथा शासन करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं.
रूढ़िवादी
नौकरशाही-व्यवस्था में कर्मचारियों की स्थिति निर्जीव मशीन के पुर्जे की तरह होती है, अतः वे रूढ़िवादी प्रवृत्ति के होते हैं और समाज की नवीन आवश्यकताओं एवं परिवर्तनों पर ध्यान नहीं देते. वे वास्तविकता से अपने को दूर रखते हैं. यही कारण है कि लोगों में उनके प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है. फिफनर (Pfiffner) ने ठीक ही लिखा है, “नित्य एक ही प्रकार का कार्य अपरिवर्तनशीलता उत्पन्न कर देता है, जबकि उत्तरदायित्व कर्मचारियों में देर करने तथा कानूनीपन की आदत डाल देता है. उनमें बौद्धिक एकाकीपन आ जाता. जनता का ध्यान रखने की अपेक्षा वे प्रक्रियाओं तथा नियमों का ध्यान अधिक रखते हैं.”
तानाशाही
ब्रिटेन के विषय में बहुत-से विद्वानों ने मत प्रकट करते हुए कहा है कि वहाँ नौकरशाही की तानाशाही की स्थापना हो गई है. उनका कार्यपालिका और वैधानिक शक्तियों पर पूर्ण अधिकार हो गया है जिससे नागरिकों की स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ गई है. प्रदत्त विधायन के रूप में वे विधानमंडल के सभी अधिकारों को अपने हाथों में ले लेना चाहते हैं. वे स्वयं को अधिक-से-अधिक शक्तिशाली बनाकर जनता पर पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए बेचैन रहते हैं.
विभागों को अधिक महत्त्व देना
नौकरशाही का एक बड़ा दोष यह है कि सरकार के कार्यों को अलग-अलग विभागों में बाँट दिया जाता है. प्रत्येक विभाग अपने को आत्मनिर्भर बनाने की चिंता में रहता है और दूसरे विभागों को सहयोग प्रदान नहीं करता. प्रत्येक विभागीय अधिकारी अपने विभाग को अपना छोटा साम्राज्य ही समझने लगता है. वह इस बात को भूल जाता है कि वह समूचे प्रशासन का एक अंगमात्र है.
औपचारिकता की अधिकता
नौकरशाही-व्यवस्था में कर्मचारी नियमों और सरकारी प्रक्रियाओं का अक्षरशः पालन करते हैं और इस प्रकार बहुत अधिक औपचारिक बन जाते हैं. वे नवीनता से भी अपने को दूर रखते हैं. पत्रों एवं सरकारी कागजों का प्रारूप तैयार करते समय वे पुरानी भाषा और शब्दों का ही प्रयोग करते रहते हैं. वे किसी कार्य के लिए अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेने से भी दूर भागते हैं.
नौकरशाही के गुण (Merits of Bureaucracy)
नौकरशाही के अवगुणों पर प्रकाश डालने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि इस व्यवस्था में गुण होने की कोई गुंजाइश ही नहीं है, परंतु ऐसा सोचना गलत है. इस व्यवस्था के भी कुछ गुण अवश्य हैं, जिस कारण इसका अस्तित्व कायम है. कोई भी राष्ट्र इस व्यवस्था से अपने को मुक्त नहीं रख सकता. नौकरशाही व्यवस्था में उसी हालत में डर रहता है, जब सत्ता किसी राजा या अधिनायक के हाथों में रहती है जो अपनी शक्तियों का उपयोग मनमाने ढंग से कर सकता है. परंतु, प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जहाँ सत्ता जनता के हाथों में आ जाए, वहाँ कर्मचारियों के अनुत्तरदायी होने का डर नहीं रहता. लेकिन प्रजातांत्रिक व्यवस्था में इससे डरने की आवश्यकता नहीं है. इस पर लॉवेल ने भी अपना मत प्रकट करते हुए कहा है कि मंत्रियों की ओट में असैनिक कर्मचारी किसी प्रकार का अन्याय नहीं कर सकते और न अनुचित कार्य ही. ऐसा होने पर संसद के सदस्यों को मंत्रियों से प्रश्न पूछने का अधिकार प्राप्त है. किसी भी विषय पर संसद में वाद-विवाद हो सकता है. ऐसा होना मंत्रिमंडल के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है, अतः मंत्री इस बात के लिए सदा सावधान रहते हैं कि असैनिक अधिकारियों से कोई ऐसी गलती न हो जाए. साथ ही, असैनिक कर्मचारी भी इस बात के लिए सचेष्ट रहते हैं कि उनसे कोई ऐसी गलती न हो जाए, जिससे उसके विभागाध्यक्ष या मंत्री को संकट का सामना करना पड़े. न्यूमैन ने भी यह स्वीकार किया है कि प्रजातांत्रिक और उत्तरदायी सरकार में असैनिक कर्मचारियों द्वारा अधिकार का दुरुपयोग करने पर उन्हें जनता की प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ेगा. वास्तव में, असैनिक कर्मचारियों ने प्रशासन के सुधार में पर्याप्त मात्रा में सहयोग दिया है. वे इतने दूरदर्शी होते हैं कि समाज की गति एवं वातावरण को पहचानकर ही आगे कदम बढ़ाते हैं. इसे पूर्ण रूप से समाप्त करना असंभव ही नहीं, अवांछनीय भी है. मोरिसन (Herbert Morrison) का कहना है, “नौकरशाही संसदीय प्रजातंत्र की कीमत है.” उदाहरण के लिए, हम अपने देश को ही ले सकते हैं. स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद यदि यहाँ पुराने वातावरण के नौकरशाही कर्मचारियों को नहीं अपनाया गया होता, तो हमलोग पर्याप्त अनुभव वाले पदाधिकारियों की अमूल्य सेवाओं से वंचित रह जाते. वास्तव में, उन अधिकारियों ने बड़ी ही कार्यकुशलता तथा क्षमता के साथ भारतीय सरकार का साथ दिया था. उन्हीं की सहायता से भारत में कई तरह के राष्ट्रीय कार्य संपन्न हुए और प्रशासन में सुधार हुआ.
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