कैबिनेट मिशन योजना – 16 May, 1946

Sansar Lochan#AdhunikIndia, Modern History

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द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गया था और इंगलैंड ने पहले आश्वासन दे रखा था कि युद्ध में विजयी होने के बाद वह भारत को स्वशासन का अधिकार दे देगा. इस युद्ध के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार की स्थिति स्वयं दयनीय हो गयी थी और अब भारतीय साम्राज्य पर नियंत्रण रखना सरल नहीं रह गया था. बार-बार पुलिस, सेना, कर्मचारी और श्रमिकों का विद्रोह हो रहा था. अधिक दिनों तक भारतीय साम्राज्य को सुरक्षित रख पाना इंगलैंड के लिए असंभव होता जा रहा था. भारत की राजनीति परिस्थिति का अध्ययन करने और समस्या का निदान खोजने के लिए ब्रिटिश संसद ने एक प्रतिनिधिमंडल मार्च, 1946 को भेजा. इस प्रतिनिधिमंडल ने Lord Wavell तथा भारतीय नेताओं से मिलकर एक योजना तैयार की जिसे “कैबिनेट मिशन/Cabinet Mission” के नाम से जाना जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य था भारत में पूर्ण स्वराज्य लाना. इसने भारत के लिए एक नया संविधान तथा एक अस्थाई सरकार की स्थापना का लक्ष्य रखा था.

महात्मा गाँधी के विचारानुसार “तत्कालीन परिस्थतियों में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत यह सर्वोत्तम प्रलेख था.”  लेकिन इस योजना का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसमें केंद्र सरकार को काफी दुर्बल रखा गया था और प्रांत को अपना निजी संविधान बनाने का अधिकार था. क्रिप्स मिशन की तरह ही कैबिनेट मिशन भी न तो पूरी तरह स्वीकृत की जा सकती थी और न ही अस्वीकृत.

कैबिनेट मिशन योजना की मुख्य बातें – Cabinet Mission Plan

i) ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों को मिलाकर एक भारतीय संघ का निर्माण किया जायेगा. भारतीय संघ के अधीन परराष्ट्र नीति, प्रतिरक्षा और संचार व्यवस्था रहेगी, जिसके लिए आवश्यक धन भी संघ को ही जुटाना होगा.

ii) संघ की एक कार्पालिका और विधानमंडल होगा जिसमें ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. अन्य सभी विषय सरकार के अधीन होंगे.

iii) प्रान्तों को यह अधिकार दिया गया कि वे अलग शासन सबंधी समूह बनाएँ. भारत के विभिन्न प्रान्तों को तीन समूहों में बाँटा गया – a) मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बिहार और उड़ीसा b) उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब और सिंध c) बंगाल और असम. प्रत्येक समूह को अधिकार दिया गया कि वह अपने विषय के सम्बन्ध में निर्णय लें और शेष विषय प्रांतीय मंत्रमंडल को सौंप दें.

iv) देशी राज्यों के द्वारा जो विषय संघ को नहीं सौंपे जायेंगे उनपर देशी राज्यों का ही अधिकार होगा.

v) संविधान के निर्माण के बाद ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों को सार्वभौम संप्रभुता का अधिकार हस्तांतरित कर देगी. भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा उससे अलग रहने का निर्णय देशी राज्य स्वयं करेंगे.

vi) योजना के कार्यान्वित होने के दस वर्ष पश्चात् या प्रत्येक दस वर्ष पर प्रांतीय विधानमंडल बहुमत द्वारा संविधान की धाराओं पर पुनर्विचार कर सकता है.

संविधान के निर्माण से सम्बंधित निम्नलिखित बातें कैबिनेट मिशन में निहित थीं –

i) प्रति दस लाख की जनसँख्या पर एक सदस्य का निर्वाचन होगा.

ii) प्रान्तों के संविधानसभा में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर दिया जायेगा.

iii) अल्पसंख्यक वर्गों को आबादी से अधिक स्थान देने की प्रथा समाप्त हो जाएगी.

iv) रियासतों को भी जनसंख्या के आधार पर ही प्रतिनिधित्व दिया जायेगा.

v) संविधान सभा की बैठक दिल्ली में होगी और प्रारम्भिक बैठक में अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों का चुनाव कर लिया जायेगा.

vi) प्रान्तों के लिए अलग संविधान की व्यवस्था भी योजना के अंतर्गत थी. प्रत्येक समूह अपने संविधान के सम्बन्ध में तथा संघ में रहने का निर्णय करेगा.

vii) केंद्र में एक अस्थायी सरकार की स्थापना होगी और उसमें भारत के सभी प्रमुख दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा. केन्द्रीय शासन के सभी विभाग इन प्रतिनिधियों के अधीन रहेंगे तथा वायसराय इनकी अध्यक्षता करेगा.

viii) इंगलैंड भारत को सत्ता सौंप देगा. इस सिलसिले में जो मामले उत्पन्न हों उन्हें तय करने के लिए भारत और इंगलैंड के बीच एक संधि होगी.

अंततः 14 जून, 1946 को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने इस योजना को स्वीकृत दे दी. हिन्दू महासभा तथा साम्यवादी दल ने इसकी कटु आलोचना की. अंतरिम सरकार की स्थापना के प्रश्न पर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में मतभेद हो गया. मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह कांग्रेस के बिना ही अंतरिम सरकार का निर्माण कर लेगी लेकिन वायसराय ने लीग के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. 1946 के चुनाव में निर्वाचन के लिए निर्धारित कुल 102 स्थानों में कांग्रेस को 59 स्थान प्राप्त हुए थे और मुस्लिम लीग को मात्र 30 स्थान प्राप्त हुए. मुस्लिम लीग को इस चुनाव परिणाम से घोर निराशा हुई. 8 अगस्त, 1946 को कांग्रेस की कार्य समिति ने प्रस्ताव पारित कर अंतरिम सरकार बनाने की योजना स्वीकार कर ली. अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर, 1946 को अपना कार्यभार संभाल लिया और पंडित नेहरु इसके प्रधानमंत्री बने. आगे चलकर वायसराय की सलाह पर मुस्लिम लीग ने अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल होना स्वीकार कर लिया, लेकिन सरकार को सहयोग देने के बदले यह हमेशा उसके कार्य में अड़ंगा डालती रही. कैबिनेट मिशन ने भारत के विभाजन का मार्ग तैयार कर दिया था.


मूल्यांकन
Cabinet Mission के बारे में संक्षेप में…

मूल्यांकन

इस योजना का मुख्य गुण यह था कि संविधान सभा लाकेतत्रंवादी सिद्धांत-जनसंख्या पर आधारित थी और पुराना गुरुत्व (weightage) का सिद्धांत समाप्त कर दिया गया था. कांग्रेस को खुश रखने के लिए जहां संगठित भारत की व्यवस्था थी, वहीं लीग और रियासतों की संतुष्टि के लिए केन्द्र को कमजोर रखा गया. अंतरिम सरकार में समस्त उत्तरदायित्व भारतीयों को सौंप दिया गया तथा संविधान सभा को पूर्ण स्वतंत्रता एवं अधिकार दिया गया. प्रांतों के गुट बनाने की व्यवस्था अव्यावहारिक एवं दोषपूर्ण थी.

संविधान बनाने की प्रणाली भी जटिल थी. फिर भी मिशन ने देशवासियों के बीच एक नयी आशा ‘स्वतत्रंता की प्राप्ति’ का संचार किया. फलतः सभी दलों ने याजेना को स्वीकार कर लिया.

प्रारंभ में तो कांग्रेस और लीग दोनों ने ही कैबिनेट मिशन को स्वीकार कर लिया था, परन्तु अतंरिम सरकार बनाने की याजेना को कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया. लीग ने जब कांग्रेस के बिना ही सरकार बनाने का दावा पेश किया तो वायसराय ने लीग के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया. इससे जिन्ना काफी निराश हुए. दूसरी तरफ संविधान सभा के चुनावों में कांग्रेस ने 214 सामान्य स्थानों में 205 प्राप्त किये तथा लीग को 78 मुस्लिम स्थानों में से 73 स्थान मिले. अतः जिन्ना ने सोचा कि 296 सदस्यीय संविधान सभा में तो उसके पास केवल 73 सदस्य हैं जो कि 25% से भी कम है. इसलिए 29 जून, 1946 को लीग ने शिष्टमंडल योजना को अस्वीकार कर दिया और पाकिस्तान की प्राप्ति के लिए ‘सीधी कार्रवाई’ (Direct Action) करने की धमकी दी. इस बीच 8 अगस्त, 1946 को कांग्रेस ने अंतरिम सरकार बनाने की याजेना स्वीकार कर ली. नहेरू ने जिन्ना को भी सरकार में सम्मिलित होने के लिए आग्रह किया पर वे अपनी जिद पर डटे रहे तथा 16 अगस्त को ‘सीधी कार्रवाई दिवस’ निश्चित कर दिया. उस दिन कलकत्ता में जो उस समय लीग सरकार के अधीन था, सैकड़ों की संख्या में हिन्दू लूटे और मारे गये और नगर विध्वंस कर दिया गया. इसके प्रतिकार में हिन्दू बहुसंख्यक प्रांत बिहार में मुसलमानों पर अत्याचार हुए. उसके प्रतिकार में पूर्वी बंगाल में नोआखली और तीन पड़ाह में हिन्दुओं पर अत्याचार हुए. फिर उत्तर प्रदेश और बम्बई में सांप्रदायिक दंगे हुए. बंगाल में प्रांत के बंटवारे के लिए हिन्दुओं ने आन्दोलन आरंभ किया. 24 अगस्त, 1946 को वायसराय ने अंतरिम सरकार के 14 मंत्रियों वाले मंत्रिमंडल की घोषणा कर दी. अंतरिम सरकार को 2 सितम्बर को कार्यभार संभालना था. जवाहर लाल नहेरू को अतंरिम सरकार का प्रधानमंत्री बनाया गया. बाद में वायसराय के सुझाव पर लीग ने भी अक्तूबर 1946 में सरकार में शामिल होना स्वीकार कर लिया. लीग का सरकार में शामिल होने का उद्देश्य स्वतंत्रता को निकट लाना नहीं था, बल्कि उसके उद्देश्य अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना, पाकिस्तान की माँग मंगवाना, सरकारी कार्यों में रूकावट डालना और देश की प्रगति को अवरुद्ध करना था. लीग यद्यपि अंतरिम सरकार में सम्मिलित हो गयी थी, फर भी उसने संविधान सभा में सम्मिलित हानेा स्वीकार नहीं किया. संविधान सभा की बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को दिल्ली में शुरू हुई.

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