खिलाफत आंदोलन – Khilafat Movement in Hindi

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थम विश्व युद्ध में तुर्की ने मित्र राष्ट्रों के खिलाफ युद्ध किया था. तुर्की के खलीफा को मुस्लिमों के धार्मिक प्रधान के रूप मे देखा जाता था. उन दिनों यह अफवाह फैली थी कि तुर्की पर ब्रिटिश सरकार अपमानजनक शर्तें लाद रही है. इसी के विरोध स्वरूप 1919-20 में अली बंधु, मालैाना आजाद, हसरत मोहानी तथा हकीम अजमल खान के … Read More

असहयोग आन्दोलन 1920 – Non-Cooperation Movement in Hindi

Lochan#AdhunikIndia, Modern History

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प्रथम विश्वयुद्ध (First World War) के बाद महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया और अब कांग्रेस की बागडोर उनके हाथों में आ गई.  महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक नयी दिशा ग्रहण कर ली. राजनीति में प्रवेश के पहले महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का प्रयोग कर चुके थे. उन्होंने विश्वयुद्ध में … Read More

भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 – मार्ले-मिंटो सुधार

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भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 भारत के संवैधानिक विकास का अगला कदम था. यह पूर्ववर्ती भारतीयों के ‘सहयोग की नीति’ के क्रियान्वयन की दिशा में एक प्रशंसनीय प्रयास था. इसके जन्मदाता भारत सचिव मार्ले तथा गवर्नर जनरल लार्ड मिण्टो थे. इन्हीं के नाम पर इसे मार्ले-मिंटो सुधार कहते हैं. भारतीय परिषद अधिनियम 1909 को पारित करने के पीछे कारण अधिनियम को … Read More

भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861 – Indian Council Act

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1861 का भारतीय परिषद् अधिनियम 1858 के अधिनियम द्वारा केवल गृह सरकार में ही परिवर्तन हुए थे. भारतीय प्रशासन में कोई भी परिवर्तन नहीं किये गये थे. इस बात की बहुत तीव्र भावना थी कि 1857-58 के महान् संकट के बाद भारतीय संविधान में महान् परिवर्तनों की आश्यकता है. 1861 के बाद अधिनियम के साथ ‘सहयोग की नीति’ का आरंभ … Read More

उदारवादी तथा उग्रवादी नेता और उनके विचारों के बीच तुलना

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उदारवादी तथा उग्रवादी विचारों की तुलना तिलक ने लिखा है कि हमारी नीतियों के प्रति दो शब्दों का प्रयोग होने लगा हैः उदारवादी और उग्रवादी. ये शब्द समय से सम्बन्धित है. इसलिए ये समय के अनुसार बदल जायेंगे, जैसे कल के उग्रवादी आज के उदारवादी बन गये हैं, उसी प्रकार आज के उदारवादी कल के उग्रवादी बन जायेंगे. तिलक की … Read More

बाल गंगाधर तिलक (1856-1920)

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कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं में सर्वप्रथम स्थान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है. उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को तीव्रता और गति प्रदान की. भारतीय इन्हें श्रद्धा और प्यार से ‘लोकमान्य’ कहते थे. उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नगीरि नगर में एक उच्च चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. तिलक के कार्यकाल को सुविधानुसार दो भागों में … Read More

उग्र राष्ट्रवाद के उदय के कारण (1905-1915)

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कांग्रेस के पुराने नेताओं और उनकी भिक्षा-याचना की नीति ने कांग्रेस की स्थिति हास्यास्पद बनाकर रख दी थी. इसलिए कांग्रेस में एक नए तरूण दल का उदय हुआ जो पुराने नेताओं के ढोंग एवं आदर्शों का कड़ा आलोचक बन कर उभरा. फलतः कांग्रेस दो गुटों में विभाजित होने लगी – उदारवादी और उग्रवादी या नरमपंथी और गरमपंथी. लोकमान्य तिलक, बिपिन … Read More

बंग-भंग आन्दोलन – स्वदेशी आन्दोलन तथा उग्रवाद में वृद्धि

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संभवतः कर्जन का सबसे घृणित कार्य बंगाल का दो भागों में विभाजन करना था. यह कार्य बंगाल और भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कड़े विरोध की उपेक्षा करके किया गया. इसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत सरकार तथा लन्दन स्थित गृह सरकार भारत के लोकमत की उपेक्षा ही नहीं करते, बल्कि धर्म के नाम पर कलह फैलाने से भी नहीं … Read More

उदारवादी युग (1885-1905) – नरमपंथी विचारधारा और नेताओं की भूमिका

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कांग्रेस के आरम्भिक 20 वर्षों के काल को “उदारवादी राष्ट्रीयता” की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस काल में कांग्रेस कीं नीतियाँ अत्यंत उदार थीं. इस युग में भारतीय राजनीति के प्रमुख नेतृत्वकर्ता दादाभाई नौरोजी, फ़िरोज़शाह मेहता, दिनशा वाचा और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आदि जैसे उदारवादी थे. उदारवादियों की राजनीति के कुछ सुस्पष्ट चरण रहे हैं जिसके अंतर्गत इनके आन्दोलन … Read More

कांग्रेस की स्थापना से पूर्व की राजनीतिक संस्थाएँ

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दिसम्बर, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अकस्मात् घटी कोई घटना नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक जागृति की चरम पराकाष्ठा थी. दरअसल, कांग्रेस के गठन के पहले भी कई राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठनों की स्थापना हो चुकी थी. 19वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों से ही कंपनी प्रशासन में स्थायित्व के लक्षण दिखने लगे थे. प्रशासन में स्थायित्व आ जाने … Read More