आज हम लोग होमरूल लीग की स्थापना किन परिस्थतियों में हुई और इस आन्दोलन पतन कैसे हुआ, इसकी चर्चा करने वाले हैं. पृष्ठभूमि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत में लोकमान्य तिलक तथा एनी बेसेंट द्वारा स्थापित होमरूल लीग एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया थी. प्रथम विश्व युद्ध के प्रारंभ होने पर ब्रिटिश सरकार ने भारत को भी युद्ध में सम्मिलित … Read More
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 – मार्ले-मिंटो सुधार
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 भारत के संवैधानिक विकास का अगला कदम था. यह पूर्ववर्ती भारतीयों के ‘सहयोग की नीति’ के क्रियान्वयन की दिशा में एक प्रशंसनीय प्रयास था. इसके जन्मदाता भारत सचिव मार्ले तथा गवर्नर जनरल लार्ड मिण्टो थे. इन्हीं के नाम पर इसे मार्ले-मिंटो सुधार कहते हैं. भारतीय परिषद अधिनियम 1909 को पारित करने के पीछे कारण अधिनियम को … Read More
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861 – Indian Council Act
1861 का भारतीय परिषद् अधिनियम 1858 के अधिनियम द्वारा केवल गृह सरकार में ही परिवर्तन हुए थे. भारतीय प्रशासन में कोई भी परिवर्तन नहीं किये गये थे. इस बात की बहुत तीव्र भावना थी कि 1857-58 के महान् संकट के बाद भारतीय संविधान में महान् परिवर्तनों की आश्यकता है. 1861 के बाद अधिनियम के साथ ‘सहयोग की नीति’ का आरंभ … Read More
उदारवादी तथा उग्रवादी नेता और उनके विचारों के बीच तुलना
उदारवादी तथा उग्रवादी विचारों की तुलना तिलक ने लिखा है कि हमारी नीतियों के प्रति दो शब्दों का प्रयोग होने लगा हैः उदारवादी और उग्रवादी. ये शब्द समय से सम्बन्धित है. इसलिए ये समय के अनुसार बदल जायेंगे, जैसे कल के उग्रवादी आज के उदारवादी बन गये हैं, उसी प्रकार आज के उदारवादी कल के उग्रवादी बन जायेंगे. तिलक की … Read More
बाल गंगाधर तिलक (1856-1920)
कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं में सर्वप्रथम स्थान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है. उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को तीव्रता और गति प्रदान की. भारतीय इन्हें श्रद्धा और प्यार से ‘लोकमान्य’ कहते थे. उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नगीरि नगर में एक उच्च चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. तिलक के कार्यकाल को सुविधानुसार दो भागों में … Read More
उग्र राष्ट्रवाद के उदय के कारण (1905-1915)
कांग्रेस के पुराने नेताओं और उनकी भिक्षा-याचना की नीति ने कांग्रेस की स्थिति हास्यास्पद बनाकर रख दी थी. इसलिए कांग्रेस में एक नए तरूण दल का उदय हुआ जो पुराने नेताओं के ढोंग एवं आदर्शों का कड़ा आलोचक बन कर उभरा. फलतः कांग्रेस दो गुटों में विभाजित होने लगी – उदारवादी और उग्रवादी या नरमपंथी और गरमपंथी. लोकमान्य तिलक, बिपिन … Read More
बंग-भंग आन्दोलन – स्वदेशी आन्दोलन तथा उग्रवाद में वृद्धि
संभवतः कर्जन का सबसे घृणित कार्य बंगाल का दो भागों में विभाजन करना था. यह कार्य बंगाल और भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कड़े विरोध की उपेक्षा करके किया गया. इसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत सरकार तथा लन्दन स्थित गृह सरकार भारत के लोकमत की उपेक्षा ही नहीं करते, बल्कि धर्म के नाम पर कलह फैलाने से भी नहीं … Read More
उदारवादी युग (1885-1905) – नरमपंथी विचारधारा और नेताओं की भूमिका
कांग्रेस के आरम्भिक 20 वर्षों के काल को “उदारवादी राष्ट्रीयता” की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस काल में कांग्रेस कीं नीतियाँ अत्यंत उदार थीं. इस युग में भारतीय राजनीति के प्रमुख नेतृत्वकर्ता दादाभाई नौरोजी, फ़िरोज़शाह मेहता, दिनशा वाचा और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आदि जैसे उदारवादी थे. उदारवादियों की राजनीति के कुछ सुस्पष्ट चरण रहे हैं जिसके अंतर्गत इनके आन्दोलन … Read More
कांग्रेस की स्थापना से पूर्व की राजनीतिक संस्थाएँ
दिसम्बर, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अकस्मात् घटी कोई घटना नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक जागृति की चरम पराकाष्ठा थी. दरअसल, कांग्रेस के गठन के पहले भी कई राजनीतिक एवं गैर-राजनीतिक संगठनों की स्थापना हो चुकी थी. 19वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों से ही कंपनी प्रशासन में स्थायित्व के लक्षण दिखने लगे थे. प्रशासन में स्थायित्व आ जाने … Read More
भारत में राष्ट्रवाद का उदय – एक समीक्षा
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारतीयों में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना का विकास बहुत तीव्र गति से हुआ. फलस्वरूप भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आन्दोलन का सूत्रपात हुआ. भारतीय राष्ट्रवाद कुछ सीमा तक उपनिवेशवादी नीतियों तथा उन नीतियों से उत्पन्न भारतीय प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही उभरा था. पाश्चात्य शिक्षा का विस्तार, मध्यवर्ग का उदय, रेलवे का विस्तार तथा सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों ने … Read More