Will Goods and Services Tax help in the doubling of farm income?
The Hindu – January 01
कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि GST व्यवस्था लागू होने से किसानों को अपनी आय बढ़ाने में सहायता मिलेगी. इसका मुख्य कारण है कि इस व्यवस्था में अनेक स्तरों पर कराधान नहीं होता अर्थात् किसान को अपना उत्पादन बेचने में बार-बार कर का भुगतान नहीं करना पड़ता. [no_toc]
इस व्यवस्था ने व्यापरियों और उद्योगपतियों का ध्यान शहरी बाजार से आगे बढ़कर ग्रामीण बाजार तक खींचा है. इसका भी प्रत्यक्ष लाभ किसानों को होगा. उनके पास अपने उत्पाद को उपयुक्त स्थान पर बेचने में सहायता मिलेगी. उद्योगपति शीघ्र नष्ट हो जाने वाले कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण में रूचि लेंगे जो अंततोगत्वा किसान की आय को बढ़ाने में सहायक होगा. विदित हो कि GST में कृषि भंडारण को कर से मुक्त से रखा गया है.
कृषकों की आय बढ़ने से GDP में वृद्धि होगी क्योंकि अभी भी GDP में कृषि-क्षेत्र का योगदान 16% है जोकि अन्य क्षेत्रों की तुलना में सबसे अधिक है.
भूमिका
नाबार्ड के एक अध्ययन के अनुसार देश में 10.07 करोड़ परिवार (कुल परिवारों का 48%) कृषि पर निर्भर हैं. 2016-17 के दौरान एक कृषि-आधारित परिवार में औसतन सदस्य संख्या 4.9 थी. केरल में एक परिवार में 4 सदस्य हैं, तो वहीं उत्तर प्रदेश में सदस्य संख्या 6, मणिपुर में 6.4, पंजाब में 5.2, बिहार में 5.5, हरियाणा में 5.3 कर्नाटक और मध्य प्रदेश में 4.5 और महाराष्ट्र में 4.5 थी. यह अध्ययन साफ़-साफ़ बतलाता है कि भारत के अन्दर विभिन्न राज्यों के मध्य कृषि क्षेत्र से संबंधित कई विविधताएं हैं. पश्चिम बंगाल, जम्मू, हिमाचल प्रदेश और बिहार में एक किसान के पास औसतन आधा हेक्टेयर भूमि है.
भारत में आर्थिक असमानता
भारत में आर्थिक असमानता का मुद्दा कोई नया मुद्दा नहीं है. आज भी एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल आय का 22% है जो आर्थिक असमानता को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है. हाल के अध्ययनों के द्वारा सरकारी खातों और 1922 से 2014 तक के आयकर के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. विदित हो कि 1922 में ही भारत में आयकर लगाया गया था. अध्ययन के अनुसार, 1922 में 1% अमीरों के पास देश की 21% आय थी. 1980 के दशक में यह घटकर 21% से 6% हो गई परन्तु 1990 के दशक से यह तीव्र गति से बढ़ती जा रही है.
छोटे एवं सीमांत किसानों के समूह, मध्यम और बड़े किसानों के मध्य आय की असमानता आज भी बरकरार है. जिस कृषक के पास जितनी कम भूमि है, उसकी आय उतनी ही अल्प है. सच्चाई यह है कि हमारे देश में छोटे और सीमांत किसानों के पास दो हेक्टेयर से भी कम भूमि है. इसका अर्थ यह हुआ है कि भारत में 85% किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है.
दलवई समिति
किसानों की आय दोगुनी करने के लिए दलवई समिति गठित की गई थी. इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में छोटे और सीमांत किसान परिवार की वार्षिक आय 79,779 रुपए थी. यदि इस आय की तुलना बड़े किसानों की आय से की जाए जिनके पास 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि है तो वे किसान छोटे और सीमांत किसानों की तुलना में साढ़े सात गुणा अधिक कमाते हैं. यानी बड़े किसानों की सालाना आमदनी 605,393 रुपए है.
जबकि दूसरी तरह मध्यम किसान परिवार वर्ष में 201,083 रुपए अर्जित करता है. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि यह आय भी छोटे और सीमांत किसानों की परिवारिक आय से ढाई गुणा अधिक है. इसका अर्थ यह है कि 85% किसान परिवार के पास कुल आय का मात्र 9% भाग है, जबकि 15% किसान परिवारों के पास 91% हिस्सेदारी है. परन्तु भारत की कुल असमानता के संदर्भ में देखा जाए तो यह बहुत अधिक बैठेगी. दलवई समिति की रिपोर्ट के अनुसार कृषि सुधार के लिए प्रारम्भिक शर्त थी कि भूमिहीनों को भूमि प्रदान की जाए और खेतिहरों को पट्टे का मालिकाना अधिकार मिले. परन्तु दुर्भाग्यवश भारत में कृषि में सुधार लाने के लिए उठाये सारे गए कदम कृषक समाज में समता सुनिश्चित नहीं कर सके.
भारत में विभिन्न राज्यों के कृषकों के बीच भी असमानता की खाई दिखाई पड़ती है. इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डिवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर) के एक शोध-पत्र के अनुसार पंजाब में कृषि से प्राप्त प्रति व्यक्ति आय 2,311 रुपए है परन्तु वहीं पश्चिम बंगाल में कृषि से प्राप्त आय मात्र 250 रुपए है. इसका अर्थ यह हुआ कि पंजाब और प.बंगाल के कृषकों की आय में अंतर नौ गुणा है.
निष्कर्ष
इस असमानता को देख कर यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से मन में आता है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दो गुणा करने का सूत्र, समीकरण और सिद्धांत क्या होगा? आज की स्थिति में ही जब किसानों की आय में उत्तर प्रदेश और पंजाब के बीच साढ़े तीन गुणा का अंतर है, तब क्या इस अंतर को वर्ष 2022 तक भरा जा सकेगा?
कृषि से आय की मात्रा को निर्धारित करने वाला मुख्य कारक भूमि का स्वामित्व है. सोचने वाली बात यह भी है जिन किसानों के पास आधा हेक्टेयर भूमि है, वे अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक आय अर्जित करने में असमर्थ होते हैं.
छोटे और बड़े किसानों के मध्य आय-वृद्धि भी अतीव असमान रही है. छोटे कृषकों को अपनी आय में वृद्धि करने में बड़े किसानों की तुलना में समय भी अधिक लग रहा है.
उदाहरण के लिए 2003-13 के मध्य 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि का स्वामित्व वाले किसानों ने अपनी आय दोगुनी कर ली परन्तु एक हेक्टेयर भूमि वाले किसान इस अवधि में अपनी आय में 50% वृद्धि करने में असमर्थ रहे. ऐसी परिस्थिति में किसानों की आय को दोगुणा करना असंभव लगता है.
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