चीन में जन्म दर इतनी गिर चुकी है जितनी वह पिछले 70 वर्षों में कभी नहीं थी. 2019 में यहाँ की जन्म दर 10.48 प्रति 1,000 रही. 2019 में जन्मे बच्चों की संख्या 580,000 घटकर 14.65 मिलियन थी. जन्म दर के घटने का मुख्य कारण चीन की एक बच्चे की नीति (one-child policy) है जो तत्कालीन नेता डेंग जियोपिंग के द्वारा 1979 में लागू की गई थी.
चीन में एक बच्चे की नीति क्यों अपनाई गई थी?
यह नीति माल्थस के सिद्धांत को देखते हुए अपनाई गई थी जिसके अनुसार, अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि अंततः आर्थिक एवं पर्यावरणगत विभीषिका में फलित होती है.
70 के दशक में चीन खाद्य पदार्थों की कमी भी थी और यह भी एक बच्चे की नीति के पीछे एक कारण था.
माल्थस का सिद्धांत क्या है?
जनसंख्या के बारे में एक सुगठित सिद्धांत प्रस्तुत करने वाला पहला अर्थशास्त्री टॉमस रोबर्ट माल्थस था. उसने प्रायोगिक आँकड़ों को जमा करके जनसंख्या का एक सिद्धांत बनाया था जो उसने अपनी पुस्तक “Essay on the Principle of Population (1798)” में प्रकट किया. इसमें उसने यह तर्क दिया कि यदि जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो वह संसाधनों से आगे बढ़ जायेगी और ढेर सारी समस्याओं का कारण बनेगी.
विस्तार से पढ़ें > माल्थस का सिद्धांत
क्या एक बच्चे की नीति सफल रही?
चीनी अधिकारीयों के अनुसार, इस नीति के कारण जनसंख्या में 400 मिलियन की कमी आई. परन्तु इससे जनसंख्या पर अनपेक्षित दुष्प्रभाव देखने को मिला. इस नीति के अंतर्गत लोगों को दूसरे बच्चे के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य था. परन्तु यह पाया गया कि लोग दूसरे बच्चे में अधिक रूचि प्रदर्शित नहीं कर रहे थे. जिस समय एक बच्चे की नीति आई थी उस समय 11 मिलियन जोड़े दूसरे बच्चे के लिए पात्रता रखते थे. सरकार आशा कर रही थी कि 2014 में 2 मिलियन बच्चे जन्मेंगे, परन्तु ऐसा हो न सका. मात्र 7 लाख जोड़ों ने दूसरे बच्चे के लिए आवेदन दिया और उनमें 6 लाख 20 हजार को ही अनुमति मिली. परिणामस्वरूप, आने वाले वर्षों में जनसंख्या में कमी एक समस्या के रूप में विद्यमान रहेगी.
चीन में बूढ़े लोगों की गिनती बढ़ गई है. वस्तुतः जनसंख्या का एक चौथाई भाग 2030 तक 60 वर्ष की आयु से अधिक का होगा.
एक बच्चे की नीति के लाभ
- इससे जनसंख्या की समस्या का समाधान करने में सहायता मिलती है.
- कुछ परिवारों को यह नीति व्यावहारिक प्रतीत होती है.
- इससे दरिद्रता की दर नीचे आती है.
एक-बच्चा नीति के दोष
- यह सामान रूप से लागू नहीं हो पाती.
- इससे मानव अधिकार का उल्लंघन होता है.
- कामगार लोगों की संख्या घटती जाती है.
- सांस्कृतिक कारणों से लोग बेटी के स्थान पर बेटा चाहते हैं. फलतः लैंगिक असंतुलन देखने को मिलता है.
- गर्भपात और कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में बढ़ोतरी होती है.
- एक बच्चे से अधिक बच्चे पैदा करने पर उस परिवार के शेष बच्चे गैर-कानूनी हो जाते हैं और फिर वे कभी भी देश के नागरिक नहीं बनते. पता चलने पर उस परिवार पर अर्थदंड लगाया जाता है.
- यह नीति लोगों की व्यक्ति मान्यताओं और विचारों का हनन करती है.
भारत में ऐसी नीति लागू करना कहा तक ठीक है?
- यदि इस प्रकार की नीति भारत में लागू की जाती है तो उसके परिणाम चीन की तुलना में अधिक विनाशकारी हो सकते हैं.
- जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु दर (MIR), जच्चा मृत्यु दर जैसे मूलभूत विकास संकेतकों के मामले में भारत चीन से कोसों पीछे है. बेटे की चाह, पूरे देश में एक समान विकास न होना आदि तत्त्व भी ऐसी नीति लागू करने में अड़चन पैदा करेंगे.
- सरकार एक बच्चे की नीति लागू करने के लिए किसी घर में प्रवेश करेगी तो इसका भीषण विरोध हो सकता है.
- परिवार छोटा रखने का काम स्त्रियों का माना जाता है और इसके लिए गर्भनिरोध के उपाय उन पर ही लागू होते हैं जबकि इसमें पति को खुली छूट मिल जाती है. यह पितृसत्तामात्क परिवेश भी एक बच्चे की नीति के लिए बाधा हैं.
- मात्र परिवार छोटा करने से बात नहीं बनेगी. वास्तविक लक्ष्य खाद्य सुरक्षा, आवास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य की मूलभूत आवश्यकताओं और सेवाओं की सुविधा प्रधान करना होना चाहिए.
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