सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों निर्वाचन आयोग से कहा कि राजनीति में आपराधिक इतिहास वाले अभ्यर्थियों के प्रवेश को रोकने के लिए वह एक आवश्यक तंत्र तैयार करे. इस संदर्भ में ज्ञातव्य है कि नई दिल्ली की संस्था लोकतांत्रिक सुधार संघ (Association of Democratic Reforms – ADR) के अनुसार वर्तमान 17वीं लोकसभा में चुने गये सांसदों (539) में से लगभग आधे (233) ऐसे हैं जिनपर आपराधिकवाद चल रहे हैं.
2009 की तुलना में आपराधिक वादों वाले सांसदों की संख्या में 44% की वृद्धि हुई है.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में क्या प्रावधान है?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम कहता है कि कोई व्यक्ति चुनाव तभी नहीं लड़ सकता है जब उसको किसी आपराधिक वाद में सजा मिल चुकी है.
इस अधिनियम के अनुभाग आठ के अनुसार, जो व्यक्ति दो वर्ष या अधिक की अवधि के कारावास की सजा पाता है वह चुनाव नहीं लड़ सकता है. किन्तु जिस पर अभी मुकदमा चल ही रहा है वह चुनाव में रह सकता है.
अपराधीकरण के मुख्य कारण
- भ्रष्टाचार
- वोट बैंक
- शासन का अभाव
आपराधिक अभ्यर्थियों को रोकने के लिए उपाय
- राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे कलंकित व्यक्तियों को टिकट देने से स्वयं ही मना कर दें.
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करके उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए जिनके विरुद्ध जघन्य प्रकृति के वाद चल रहे हैं.
- कलंकित विधायकों के वादों के त्वरित निपटान के लिए फ़ास्ट ट्रैक न्यायालय गठित किये जाएँ.
- चुनावी अभियान में लगाये गए पैसे के मामले में अधिक पारदर्शिता बरती जाए.
- भारतीय निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों के वित्तीय लेखों को जाँचने की शक्ति मिले.
- निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वह अपराधियों और राजनेताओं की दुरभिसंधि को तोड़ने के लिए पर्याप्त उपाय करे.
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