कॉलेजियम व्यवस्था क्या है? Collegium System in Hindi

Sansar LochanThe Hindu

आज हम जानेंगे कि कॉलेजियम /सिस्टम/ व्यवस्था/ प्रणाली (Collegium System) क्या है और यह व्यवस्था कैसे काम करती है?

collegium system

चर्चा में क्यों?

भारतीय मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने हाल ही में दो जजों के नाम की संस्तुति की है और सरकार द्वारा दिए गये दो जजों की पदोन्नति से सम्बंधित प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.

 पृष्ठभूमि

सरकार ने कॉलेजियम को यह सुझाव दिया था कि झारखंड उच्च न्यायालय और गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और ए.एस. बोपन्ना को सर्वोच्च न्यायालय का जज बनाने से सम्बंधित कॉलेजियम के प्रस्ताव पर फिर से विचार किया जाए. किन्तु कॉलेजियम ने सरकार का यह सुझाव नहीं माना. कॉलेजियम का कहना था कि उसने इन दोनों जजों के नाम बहुत सोच-विचार के भेजे थे. इन दोनों जजों के आचरण, क्षमता अथवा ईमानदारी के विषय में कोई प्रतिकूल सूचना नहीं है.

कॉलेजियम व्यवस्था क्या है?

  1. उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया के सम्बन्ध में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं दी गई है.
  2. अतः यह कार्य शुरू में सरकार द्वारा ही अपने विवेक से किया जाया करता था.
  3. परन्तु 1990 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करना शुरू किया और एक के बाद एक कानूनी व्यवस्थाएँ दीं. इन व्यवस्थाओं के आलोक में धीरे-धीरे नियुक्ति की एक नई व्यवस्था उभर के सामने आई. इसके अंतर्गत जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की अवधारणा सामने आई.
  4. सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा वरिष्ठतम न्यायाधीश कॉलेजियम के सदस्य होते हैं.
  5. ये कॉलेजियम ही उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति के लिए नाम चुनती है और फिर अपनी अनुशंसा सरकार को भेजती है.
  6. सरकार इन नामों से ही न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कार्रवाई करती है.
  7. कॉलेजियम की अनुशंसा राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है. यदि राष्ट्रपति किसी अनुशंसा को निरस्त करते हैं तो वह वापस कॉलेजियम के पास लौट जाती है. परन्तु यदि कॉलेजियम अपनी अनुशंसा को दुहराते हुए उसे फिर से राष्ट्रपति को भेज देती है तो राष्ट्रपति को उस अनुशंसा को मानना पड़ता है.

कॉलेजियम व्यवस्था (Collegium System) कैसे काम करती है?

  • कॉलेजियम अपनी ओर से वकीलों और जजों के नामों की केन्द्रीय सरकार को अनुशंसा भेजता है. इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपनी ओर से कॉलेजियम को कुछ नाम प्रस्तावित करती है.
  • कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों की केंद्र सरकार तथ्यात्मक जाँच करती है और फिर सम्बंधित फाइल को कॉलेजियम को लौटा देती है.
  • तत्पश्चात् कॉलेजियम केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये नाम और सुझावों पर विचार करता है और फिर फाइल को अंतिम अनुमोदन के लिए सरकार को फिर से भेज देता है. जब कॉलेजियम फिर से उसी नाम को दुबारा भेजता है तो सरकार को उस नाम पर अनुमोदन देना पड़ता है. किन्तु सरकार कब अब अपना अनुमोदन देगी इसके लिए कोई समय-सीमा नहीं है. यही कारण है कि जजों की नियुक्ति में लम्बा समय लग जाता है.

कॉलेजियम व्यवस्था को बदलने के प्रयास

कॉलेजियम व्यवस्था कई कारणों से आलोचना का केंद्र रही है. इसलिए सरकार चाहती है कि इसे हटाकर एक ऐसी प्रणाली बनाई जाए जिसमें कॉलेजियम व्यवस्था की तरह निरंकुशता और अपारदर्शिता न हो. इस संदर्भ में

संसद ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना से सम्बंधित एक कानून पारित किया था परन्तु 16 अक्टूबर, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने बहुमत इस प्रस्ताव को निरस्त करते हुए कहा था कि यह असंवैधानिक है और यह न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को चोट पहुँचेगी. न्यायालय का कहना था कि प्रस्तावित संशोधनों के कारण न्यायपालिका की स्वतंत्रता को क्षति पहुँचेगी तथा न्यायिक नियुक्तियों को कार्यपालिका के नियंत्रण से दूर रखना चाहिए.

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