पिछले दिनों लोक सभा में उपभोक्ता संरक्षण विधयेक, 2019 पारित हो गया. इस विधेयक का उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों को अधिक सुरक्षा प्रदान करना और उनकी शिकायतों का समय पर निपटारा करना है.
उपभोक्ता संरक्षण विधयेक, 2019 के मुख्य तथ्य
- उपभोक्ता संरक्षण विधयेक में उपभोक्ता की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो मूल्य देकर कोई वस्तु अथवा सेवा खरीदता है. तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति फिर से बेचने के लिए अथवा वाणिज्यिक उद्देश्य से कोई वस्तु अथवा सेवा हस्तगत करता है तो वह व्यक्ति उपभोक्ता नहीं कहलायेगा.
- विधेयक में सब प्रकार के लेन-देन को शामिल किया गया है, जैसे – ऑफलाइन, ऑनलाइन, टेली शौपिंग, बहु-स्तरीय विपणन अथवा प्रत्यक्ष विक्रय.
- विधेयक में उपभोक्ताओं के कुछ मुख्य अधिकार बताये गये हैं : i) जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक वस्तुओं एवं सेवाओं के विपणन से सुरक्षा पाना ii) वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, कार्य क्षमता, शुद्धता, मानक तथा मूल्य से सम्बंधित सूचना पाना iii) प्रतिस्पर्धात्मक दामों पर कई प्रकार की वस्तुओं अथवा सेवाओं तक पहुँचना iv) अन्यायपूर्ण अथवा बंधनकारी व्यापार प्रचलनों का समाधान माँगना.
- उपभोक्ता संरक्षण विधयेक के अनुसार केंद्र सरकार एक केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) गठित करेगी जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, सुरक्षित करना और लागू करना होगा. यह प्राधिकरण उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अन्यायपूर्ण व्यापारिक प्रचलनों तथा भ्रामक विज्ञापनों से सम्बंधित विषयों के लिए नियामक निकाय होगा. इस प्राधिकरण में एक अन्वेषण शाखा भी होगी जिसका प्रमुख एक महानिदेशक होगा जो इन उल्लंघनों के विषय में जाँच अथवा विवेचना कर सकेगा.
- असत्य अथवा भ्रामक विज्ञापन के लिए CCPA निर्माता अथवा प्रचारकर्ता को 10 लाख रु. तक का आर्थिक दंड एवं दो वर्षों के कारावास का दंड लगा सकता है. यदि कोई निर्माता अथवा प्रचारकर्ता ऐसा अपराध दुबारा करता है तो उसपर 50 लाख रु. तक का आर्थिक दंड एवं पाँच वर्षों के कारावास का दंड लगाया जा सकता है.
उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग (CDRC)
विधेयक में एक उपभोक्ता विवाद समाधान आयोगों (Consumer Disputes Redressal Commission – CDRCs) की अभिकल्पना भी है. ये आयोग राष्ट्रीय, राज्यीय तथा जिले के स्तर पर गठित होंगे. इन आयोगों के समक्ष कोई भी उपभोक्ता इन वस्तुओं के लिए शिकायत दायर कर सकता है – अन्यायपूर्ण अथवा बंधनकारी व्यापारिक प्रचलन, दोषयुक्त वस्तु अथवा सेवा, अधिक अथवा छुपा हुआ दाम लगाना, जीवन एवं सम्पत्ति के लिए हानिकारक वस्तुओं अथवा सेवाओं के विक्रय का प्रस्ताव.
उपभोक्ता संरक्षण विधयेक में विभिन्न CDRCs के लिए अधिकार क्षेत्रों का वर्णन किया गया है. जिला-स्तरीय CDRC उन शिकायतों को देखेगा जिनमें सम्बंधित वस्तु एवं सेवा का मूल्य एक करोड़ रु. के अन्दर है. राज्य-स्तरीय CDRC उन शिकायतों को देखेगा जिनमें वस्तुओं अथवा सेवाओं का मूल्य एक करोड़ रु. से दस करोड़ रु. के बीच होगा. दस करोड़ रु. से अधिक मूल्य वाली वस्तु एवं सेवा की शिकायतें राष्ट्रीय CDRC द्वारा देखी जाएँगी.
CCPA के कार्य
- उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में जाँच एवं विवेचना करना तथा समुचित मंच पर मुकदमा दायर करना.
- हानिकारक वस्तुओं या सेवाओं को वापस करने और चुकाए गये मूल्य को लौटाने के विषय में आदेश निर्गत करना एवं विधेयक में परिभाषित अन्यायपूर्ण व्यापरिक प्रथाओं को बंद करना.
- झूठा अथवा भ्रामक विज्ञापन बंद करने अथवा उसमें सुधार करने के लिए सम्बंधित व्यापारी/निर्माता/प्रचारकर्ता/विज्ञापनकर्ता/प्रकाशक को निर्देश निर्गत करना.
- दंड लगाना, एवं
- उपभोक्ताओं को असुरक्षित वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रति सतर्क करने के लिए सूचनाएँ निर्गत करना.
उपभोक्ता संरक्षण विधयेक की महत्ता
- वर्तमान व्यवस्था में उपभोक्ताओं को न्याय के लिए एक ही स्थान पर जाना होता है जिसके कारण निपटारे में बहुत अधिक समय लग जाता है. CCPA हो जाने से काम बँट जाएगा और निपटारे में तेजी आएगी.
- उपभोक्ता संरक्षण विधयेक में ऐसे दंडात्मक प्रावधान किए गये हैं जो भ्रामक विज्ञापनों और वस्तुओं में मिलावट की रोकथाम करने में सहायक होंगे.
- इसमें उत्पाद का उत्तरदायित्व स्पष्ट किया गया है. अतः अब निर्माता और सेवा प्रदाता दोषयुक्त उत्पादों अथवा सेवाओं को बेचने से बचेंगे.
- विधेयक में उपभोक्ता आयोग तक पहुँचने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है और साथ ही मुकदमा चलने की प्रक्रिया को भी सरल रखा गया है.
- विधेयक में आपसी समझौते से भी निपटारे का प्रावधान किया गया है जिस कारण कुछ मामलों का निस्तारण बहुत शीघ्र हो सकता है.
विधेयक पर लगाये जा रहे आक्षेप
- विधेयक में निपटारे में होने वाली देरी और जटिलता की समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया है जबकि उपभोक्ताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या यही है.
- विधेयक में नियामक का प्रावधान तो है पर उसके कर्तव्यों पर सम्यक प्रकाश नहीं डाला गया है.
- विधेयक में उपभोक्ता अधिकारों की जो परिभाषा दी गई है वह न तो सरल है और न ही स्पष्ट. इस कारण उपभोक्ता अपने अधिकारों के विषय में भ्रांति का शिकार हो सकते हैं.