आज हम संविदा कृषि (contract farming) के बारे में जानेंगे. क्या है संविदा कृषि? और इस प्रकार की कृषि को अपनाने से किसान भाइयों को क्या लाभ होते हैं और इस कृषि को अपनाने में क्या समस्याएँ आ सकती हैं? साथ-साथ हम लोग मॉडल संविदा कृषि अधिनियम, 2018 (Model Contract Farming Act, 2018) की भी चर्चा करेंगे. चलिए जानते हैं Contract Farming के बारे में in Hindi.
संविदा कृषि (Contract Farming)
संविदा कृषि अग्रिम समझौतों के अंतर्गत प्रायः पूर्व-निर्धारित कीमतों पर कृषि उत्पादों के उत्पादन और आपूर्ति हेतु किसानों और विपणन फर्मों के बीच एक समझौते को संदर्भित करती है. सरल शब्दों में कहा जाए तो यह वह कृषि है जिसके लिए किसान और विपणन प्रतिष्ठान के बीच एक संविदा (contract) होती है जिसमें फसल के मूल्य और किसान को होने वाले भुगतान आदि सभी आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख होता है.
लाभ
संविदा कृषि (Contract Farming) से होने वाले लाभ –
- संविदा में मूल्य पहले से निर्धारित होता है, अतः उसके उतार-चढ़ाव के जोखिम से किसान मुक्त रहता है.
- किसान को एक बड़ा बाजार मिल जाता है.
- खेती का काम बेहतर तरीके से होता है जिससे किसान को सीखने का अवसर मिलता है.
- संविदा कृषि से क्रेता प्रतिष्ठानों को यह लाभ होता है कि कृषि उत्पाद की उपलब्धता के विषय में अनिश्चितता नहीं रह जाती है.
संविदा कृषि की चुनौतियाँ
- यह कृषि क्रेता के एकाधिकार को बढ़ावा देता है, अतः वह कम कीमत का प्रस्ताव देकर किसानों का शोषण कर सकते हैं.
- संविदा की प्रक्रिया सामान्य किसान के लिए समझना कठिन है, अतः उसे असुविधा होगी.
- संविदा कृषि (Contract Farming) से उत्पन्न उत्पादों पर कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) द्वारा लगाये गये कर शोषणकारी होते हैं.
समाधान
सरकार संविदा कृषि से जुड़ी हुई समस्याओं का समाधान करने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकती है :-
- सरकार द्वारा दोनों पक्षों के लिए बाजार-आधारित प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है. E-NAM इस दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है.
- सरकार को सूचना भंडार बनाए रखना चाहिए जो कि किसानों और प्रायोजकों को संविदा में शामिल होने से पहले एक-दूसरे का मूल्यांकन करने में सहायता करेगा.
- सरकार फसलों के लिए मानकों की स्थापना और उनके प्रवर्तन की सुविधा प्रदान कर सकती है.
- सरकार किसानों को शिक्षित कर सकती है और संविदा कृषि और मॉडल संविदा के सम्बन्ध में उन्हें अधिक जागरूक कर सकती है.
- APMC के दायरे से संविदा कृषि (Contract Farming) को बाहर किया सकता है, जैसा कि कृषि सुधार पर प्रांतीय मंत्रियों की समिति द्वारा इस सम्बन्ध में अनुशंसा भी की गई है.
मॉडल संविदा कृषि अधिनियम, 2018 (Model Act on Contract Farming, 2018)
भारत में संविदा कृषि (Contract Farming) को भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के तहत विनियमित किया गया है. इसके अतिरिक्त, मॉडल AMPC अधिनियम, 2003 संविदा कृषि के लिए विशिष्ट प्रावधान करता है.
हाल ही में भारत सरकार ने एक अधिनियम पारित किया है जिसका नाम है – आदर्श कृषि उत्पाद एवं मवेशी संविदा-कृषि तथा सेवाएँ (प्रोत्साहन एवं सुविधा) कानून, 2018 (Model Contract Farming Act, 2018).
- यह अधिनियम नियामक (regulatory) प्रकृति का नहीं है अपितु प्रोत्साहन एवं सुविधा प्रदान करने हेतु बनाया गया है.
- बजट 2017-18 में भारत के वित्त मंत्री ने आश्वासन दिया था कि वह शीघ्र ही संविदा कृषि के विषय में एक आदर्श संविदा कृषि विधेयक (Model Contract Farming Bill) लायेंगे और यह अधिनयम इसी आलोक में पारित किया गया है.
- अधिनियम में जिस संविदा (contract) का उल्लेख है, वह संविदा किसान और थोक खरीदारों/क्रेताओं के बीच होने वाली समझौते से सम्बंधित है.
- पर सवाल उठता है कि ये खरीददार कौन हो सकते हैं?
- ये खरीददार कृषि प्रसंस्करण कारखाने, निर्यातक, व्यापारिक फर्म आदि हो सकते हैं.
- Model Contract में किसानों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया है और यदि विवाद हो तो उसके लिए भी एक प्रणाली विकसित की गई है. इसमें विवादों को निपटाने के लिए निचले स्तर पर एक विवाद निपटान तंत्र की व्यवस्था को लेकर प्रयोजन है.
यद्यपि अभी मॉडल अधिनियम में कुछ मुद्दों पर पुनः विचार किये जाने की आवश्यकता है. यह अधिनियम प्रायोजकों और किसानों को समझौते को समझौता पंजीयन समिति के पास संविदा को पंजीकृत करने की आवश्यकता होगी, जिसके लिए शुल्क जमा करने होंगे. छोटे और मध्यम किसान आसानी से इन शुल्कों का भुगतान नहीं कर पायेंगे. यह अधिनियम पूर्व-समझौते के समय निर्धारित मूल्य द्वारा मूल्य सुरक्षा का भी प्रस्ताव करता है जो उत्पादन के लिए प्रतिकूल हो सकता है. यह सामुदायिक कृषि की अवधारणा का भी उपयोग करता है जो भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक नहीं है क्योंकि यहाँ 86% छोटे या सीमांत किसान हैं.
निष्कर्ष
इस प्रकार हम देखते हैं कि संविदा कृषि (Contract Farming) एक नई अवधारणा है जिसको साकार एवं सार्थक रूप धारण करने में समय लग सकता है और प्रारम्भ में किसानों और प्रतिष्ठानों दोनों को कठिनाइयाँ आ सकती हैं. आशा की जाती है कि सतत सुधार के माध्यम से यह कृषि सर्वसुलभ एवं लाभकारी सिद्ध होगी.
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