प्राचीन भारत की कलाएँ आज भी कलाकारों के लिये प्रेरणा के साधन हैं. हमारे देश के शिल्पकारों ने अनेक क्षेत्रों में कलाकृतियाँ कीं.
(1) जहाँ तक वास्तुकला का सम्बन्ध है, हड़प्पा संस्कृति की नगर योजना आज भी नगर निर्माण के लिये आदर्श है. उनकी जल-निकास योजनायें प्रशंसनीय थीं. वह लोग चित्रकला, मूर्तिकला व नृत्यकला से भी परिचित थे. उनकी समकालीन सभ्यताओं के लोगों को इस प्रकार की नगर योजनाओं का ज्ञान नहीं था.
(2) अशोक के काल में चमकदार पॉलिश करने की कला का विकास हुआ. उसके द्वारा बनवाये गये स्तम्भ अपनी चमकदार पॉलिश के लिये बहुत लोकप्रिय हैं. इन बड़े-बड़े स्तम्भों को कैसे लाया गया होगा, यह आश्चर्य की बात है. स्तम्भों पर पशुओं की खासकर शेर की मूर्तियाँ बनाई गई हैं. अशोक के सारनाथ स्तम्भ का शीर्ष (चार शेरों वाला) भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में अपनाया है.
(3) कुषाण युग में यूनानी कला से प्रभावित होकर भारत में गांधार कला का विकास हुआ. इस कला में शिल्प का भाव तो भारतीय ही रहा पर सजावट और अवयव यूनानी शैली के हैं. इसी काल में मथुरा शैली में भगवान बुद्ध की सुन्दर मूर्तियां बनी हैं.
(4) गुप्त काल में कला के हर पक्ष ने उन्नति की. इस काल को चित्रकारी के नमूने अजन्ता की गुफाओं में पाये जाते हैं. इन चित्रों में जीवन तथा सौन्दर्य है. इन चित्रों के रंग इतने अच्छे और निपुण हैं कि संसार में यूरोपीय पुनर्जागरण से पूर्व देखने को नहीं मिलते. इस काल में अनेक मंदिर और मूर्तियां बनाई गयीं. जबलपुर का विष्णु मन्दिर तथा बौद्ध गया का बुद्ध मन्दिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. सारनाथ में बैठे हुए बुद्ध की मूर्ति, मथुरा में खड़े हुए बुद्ध की मूर्ति और बरमिंघम संग्रहालय में रखी बुद्ध की तांबे की मूर्ति बहुत सुन्दर बन पड़ी है. संगीत कला के विभिन्न अंगों जैसे गायन-वादन और नृत्य का विकास हुआ. धातु कला, इस्पात बनाने की कला सबसे पहले भारत में विकसित हुई. भारतीय इस्पात का अन्य देशों को निर्यात चौथी शताब्दी ई० पू० से होने लगा और बाद के जमाने में उसे उटज कहा जाने लगा. विश्व का कोई अन्य देश इस्पात की वैसी तलवारें नहीं बना सकता था जैसी भारतीय शिल्पी बनाते थे. पूर्वी एशिया से लेकर पूर्वी यूरोप तक समूचे क्षेत्र में उनकी भारी मांग थी. यह कला गुप्त काल में भी बहुत उन्नत थी. इस काल में बना महरौली का लौह स्तम्भ धातु कला का सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है.
(5) दक्षिण भारत के नरेश कला प्रेमी थे चालुक्य नरेशों ने पहाड़ियों की गुफा मन्दिर का निर्माण कराया. एलोरा की अधिकतर मूर्तियों का श्रेय चालुक्य वंश और राष्ट्रकूट वंश के नरेशों को जाता है. भारतीय कला मध्य एशिया, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में फैली गान्धार शैली के अधिकतर अवशेष अफगानिस्तान में मिलते हैं. दक्षिण भारत से मन्दिरों ने दक्षिण पूर्व एशिया की मन्दिर निर्माण कला को प्रभावित किया. उदाहरण के लिए, जावा का बोरोबुदर मन्दिर और कम्बोडिया में अंगकोरवट मन्दिर पूरी तरह भारतीय कला से प्रभावित है. हमारे देश की चित्रकला के प्रभाव चीन और श्रीलंका में पाए जाते हैं .
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