भारतीय रिज़र्व बैंक ने पिछले दिनों प्रतिचक्रीय पूँजी बफर (Counter cyclical capital buffer – CcyB) योजना के कार्यान्वयन को टाल दिया और निर्यात से होने वाले लाभ के लिए वसूली की अवधि बढ़ा दी.
पृष्ठभूमि
प्रतिचक्रीय पूँजी बफर योजना भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 5 फ़रवरी, 2015 को आरम्भ की गई थी जिसमें यह कहा गया था कि CCyB को परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर सक्रिय बनाया जाएगा.
प्रतिचक्रीय पूँजी बफर योजना (COUNTER CYCLICAL CAPITAL BUFFER – CCYB) क्या है?
- इस योजनाका उद्देश्य बैंकिंग प्रक्षेत्र को समय-समय पर अर्थव्यवस्था को होने वाले जोखिमों से उत्पन्न हानियों से सुरक्षित रखना है.
- इसके अंतर्गत बैंकों को उस समय के लिए पूँजी बनाये रखना होता है जब आर्थिक एवं वित्तीय परिवेश बुरी अवस्था में हो.
- इस बफर पूँजी का उपयोग बैंक भविष्य में होने वाले घाटे के समय कर सकते हैं.
पृष्ठभूमि
2007-09 में घटित वित्तीय संकट के समय प्रतिचक्रीय पूँजी बफर की परिकल्पना की गई थी और विश्व के सभी केन्द्रीय बैंकों ने सहमति से कतिपय उपाय सुझाए थे. इन उपायों को BASEL III का नाम दिया गया था क्योंकि इनकी रेखा Bank of International Settlements’ Basel Committee के द्वारा तैयार की गई थी.
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