[COVID-19] जैव-चिकित्सा अपशिष्ट निपटान – जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमवाली, 2016

Sansar LochanPollution

NGT raises concern over COVID-19 bio-medical waste disposal

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal – NGT) ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण समिति से कोरोना वायरस के इलाज के दौरान निकलने वाले जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के अवैज्ञानिक निपटान से होने वाले संभावित जोखिम को रोकने के लिए निर्देश जारी किए हैं.

waste of covid 19

चिंता का विषय

अप्राधिकृत स्वास्थ्य सेवा प्रतिष्ठानों द्वारा अवैज्ञानिक रूप से जैव-चिकित्सा कचरे के निपटान को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है. ज्ञातव्य है की अभी ऐसे प्रतिष्ठानों की संख्या 2.7 लाख है जिसमें मात्र 1.1 लाख ही जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबन्धन नियमावली, 2016 के अंतर्गत प्राधिकृत हैं.

प्राधिकरण ने यह भी जतलाया है कि पिछले दिनों केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्गत दिशा-निर्देश पर्याप्त नहीं हैं और उनमें संशोधन की आवश्यकता है.

समय की आवश्यकता

  • तरल और ठोस कचरा या अपशिष्ट प्रबंधन के वैज्ञानिक निपटान पर न केवल संस्थागत स्तर पर ध्यान देना चाहिए, अपितु जनसाधारण को भी इसमें भागीदारी करनी होगी क्योंकि वे ही इन वस्तुओं का निपटान करते हैं – व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protection Equipment – PPE), उपयोग में आ चुके थैले, दस्ताने, रंगीन चश्मे आदि. व्यक्ति मात्र को चाहिए कि इन वस्तुओं को इस तरह कचरे में डालें जिससे कि ये अन्य ऐसे ठोस कचरे में न मिल जाएँ जिससे संक्रमण हो सकता है.
  • आज आवश्यकता है कि निगरानी तंत्र को सुदृढ़ बनाते हुए ऐसे कचरे को सँभालने वाले लोगों से सूचना पाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली का प्रयोग किया जाए और साथ ही राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसके ऑनलाइन प्रतिवेदन के लिए आवश्यक सॉफ्टवेर बनवाए.
  • लोगों को इस विषय में जागरूक करने की बड़ी आवश्यकता है. इसके लिए विशेष जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाएँ और सम्बंधित स्थानीय निकायों और विभागों में प्रशिक्षण आयोजित किये जाएँ, कोविड-19 कचरे को उठाने वाले कर्मियों को पर्याप्त सुरक्षा वस्त्र दिए जाएँ, मीडिया एवं नियामक प्राधिकरणों के बीच उचित समन्वय स्थापित किया जाए आदि.

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमवाली, 2016 (BMW Management Rules, 2016) की मुख्य विशेषताएं

  1. अब इस नियमावली के अंतर्गत इनको भी सम्मिलित कर लिया गया है – टीका शिविर, रक्तदान शिविर, शल्य चिकित्सा शिविर आदि.
  2. इसमें लक्ष्य रखा गया है कि आगामी दो वर्षों के भीतर-भीतर क्लोरिन लगे प्लास्टिक थैलों, दस्तानों और रक्त थैलियों का प्रयोग क्रमशः बंद कर दिया जाएगा.
  3. इसमें यह प्रावधान है कि प्रयोगशालाओं से निकलने वाले कचरे, सूक्ष्म जीवाणु कचरे, रक्त के नमूनों और रक्त की थैलियों को प्रयोगशाला में ही संक्रमण मुक्त कर दिया जाना चाहिए.
  4. स्वास्थ्य कार्य से जुड़े कर्मियों को नियमित रूप से रोग प्रतिरोधक शक्ति के लिए टीका आदि दी जाए और इसके लिए उन सभी को प्रशिक्षित किया जाए.
  5. जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमवाली के अनुसार, निपटान के लिए जाने वाले जैव-चिकित्सा कचरे के लिए जो थैलियाँ या डिब्बे होंगे उन पर बारकोड अंकित होना चाहिए,
  6. यह नियमावली स्रोत पर जैव चिकित्सा कचरे को अलग करने की पद्धति में सुधार लाने के लिए 10 के स्थान पर 4 श्रेणियों का प्रावधान करती है.
  7. जैव-चिकत्सा कचरे के संस्करण और निपटान के लिए राज्य सरकारों को भूखंड देना होगा.

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