कुछ व्यक्तियों द्वारा राजनीतिक शक्तियों का विशेषाधिकारों की प्राप्ति हेतु अनुचित प्रयोग किया जाता है. जब यह प्रवृत्ति राजनीति के क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रचलित हो जाती है तो इसे राजनीति के अपराधीकरण के रूप में वर्णित किया जाता है.
संसद और विधान सभाओं में अधिक से अधिक अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों को चुनकर आते हुए देखकर सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों से पूछा है कि वे बताएँ कि वे ऐसे लोगों को टिकट क्यूँ देते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश
इसके लिए न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश दिए हैं –
- राजनीतिक दलों के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे अपने प्रत्याशियों के विरुद्ध लंबित आपराधिक वादों की सूचना न केवल स्थानीय समाचार पत्रों में ही वरन अपने वेबसाइट तथा सोशल मीडिया हैंडलों में भी प्रकाशित करें.
- राजनीतिक दलों को यह भी बताना होगा कि आपराधिक वादों वाले प्रत्याशियों को क्यों चुना जा रहा है, ऐसे प्रत्याशी क्यों नहीं चुने जा रहे जिनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है.
- कारण बताते समय राजनीतिक दल ये नहीं बोलें कि जीतने की क्षमता के चलते किसी प्रत्याशी को टिकट दिया गया है, अपितु प्रत्याशी की योग्यताओं, उपलब्धियों और गुणों का हवाला दें.
पृष्ठभूमि
सर्वोच्च न्यायालय के ये निर्देश भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के विरुद्ध दायर एक अवमाननावाद में निर्गत किये गये.
इस वाद में दावा किया गया था कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के 2018 के उस निर्णय का अनुपालन नहीं किया जिसमें राजनीतिक दलों को अनिवार्य रूप से अपने प्रत्याशियों के विरुद्ध चल रहे आपराधिक वादों की घोषणा और प्रकाशन करना था.
वाद दायर करने वालों का कहना था कि राजनीतिक दल 2018 के निर्णय का सटीक अनुपालन नहीं कर रहे हैं और अपने प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि के विषय में सूचना ऐसे समाचार पत्रों में प्रकाशित कर रहे हैं जिनको कोई जानता भी नहीं या जिनको बहुत कम लोग पढ़ते हैं. साथ ही यह सूचना वे अपने वेबसाइट पर ऐसे वेबपेजों पर दे रहे हैं जहाँ पहुंचना कठिन होता है.
महत्त्वपूर्ण आँकड़े (Association of Democratic Reforms : ADR) – (2014 के लोक सभा चुनाव)
- 542 विजेताओं के सम्बन्ध में की गई जाँच से ज्ञात हुआ कि इनमें 185 (34%) विजयी उम्मीदवारों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज थे.
- इन उम्मीदवारों में से 112 (21%) पर हत्या, हत्या के प्रयास, साम्प्रदायिक विद्वेष, अपहरण, महिलाओं के विरुद्ध अपराध इत्यादि जैसे गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे.
- चुनावों में एक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार के विजयी होने की संभावना 13% थी, जबकि एक स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार के जीतने के अवसर मात्र 5% थे.
राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के लिए उत्तरदायी कारण
बाहुबल
भारतीय राजनीति में बाहुबल का प्रभाव दीर्घकाल से राजनीतिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य बना हुआ है. अनेक राजनेताओं द्वारा अपने वोटबैंक में वृद्धि हेतु अपराधियों के बाहुबल का उपयोग किया जाता है.
धनबल
आपराधिक गतिविधियाँ विशाल चुनावी व्यय हेतु धन उपलब्ध कराती हैं.
चुनाव की कार्यप्रणाली में कमियाँ
मतदाता सामान्यतया एक उम्मीदवार के इतिहास, योग्यता तथा उसके विरुद्ध लंबित मामलों के प्रति जागरूक नहीं होते.
दुर्बल न्यायिक प्रणाली तथा न्याय की अस्वीकृति
जिला न्यायालयों, उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय में इन अपराधी-सह-राजनेताओं के विरुद्ध हजारों मामले लंबित हैं. इस दुर्बलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :-
i) राजनीतिक दलों का संस्थानीकरण का अभाव
राजनीतक दलों की गतिविधियों को विनियमित करने, किसी दल के राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल के रूप में पंजीकरण हेतु मानदंड निर्धारित करने तथा दलों की मान्यता रद्द करने जैसे व्यापक विधानों का अभाव है.
ii) राजनीति दलों द्वारा नियमित खातों का निर्माण नहीं करना
राजनीतिक दलों के ऑडिटेड खाते मुक्त निरीक्षण हेतु उपलब्ध नहीं हैं.
iii) संरचनात्मक एवं संगठनात्मक सुधार का न होना
दलों में आंतरिक लोकतंत्र, नियमित दलीय चुनाव, दलों में कार्यकर्ताओं की भर्ती तथा सामाजीकरण, विकास और प्रशिक्षण, अनुसंधान, चिन्तन एवं नीति नियोजन जैसी गतिविधियों का अभाव है.
राजनीति के अपराधीकरण पर गठित विभिन्न समितियाँ
संथानम समिति रिपोर्ट, 1963
इस समिति ने संदर्भित किया कि राजनीतिक भ्रष्टाचार अधिकारीयों के भ्रष्टाचार से अधिक हानिकारक हैं. इसने केंद्र तथा राज्य दोनों स्तरों पर सतर्कता आयोग की स्थापना की अनुशंसा की थी.
वोहरा समिति रिपोर्ट, 1993
- इसने भारत में राजनीति के अपराधीकरण की समस्या तथा अपराधियों, राजनेताओं तथा नौकरशाहों के मध्य गठजोड़ का अध्ययन किया.
- हालाँकि 25 वर्ष पूर्व प्रस्तुति की गई रिपोर्ट को गृह मंत्रालय द्वारा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
पुलिस सुधारों पर पद्मनाभैया समिति
- इस समिति ने पाया कि पुलिस के राजनीतिकरण तथा अपराधीकरण से पृथक नहीं किया जा सकता. राजनीति के अपराधीकरण ने दंडाभाव की संस्कृति को सृजित एवं प्रोत्साहित किया है.
- यह संस्कृति एक अनैतिक पुलिसकर्मी को उसके किये गये कृत्यों एवं न किये गए कृत्यों के लिए अपराधों से संरक्षण प्रदान करती है.
अपराधीकरण का प्रभाव
क़ानून तोड़ने वालों का विधि निर्माता के रूप में चयन
विभिन्न अपराधों में संलिप्त व्यक्तियों को सम्पूर्ण देश के लिए विधि निर्माण का अवसर प्रदान कर दिया जाता है. यह संसद की पवित्रता को भंग करता है.
न्यायिक प्रणाली के प्रति जन विश्वास में कमी
यह स्पष्ट है कि राजनीतिक प्रभुत्व वाले लोग सुनवाई में विलम्ब, पुनरावृत्त स्थगन प्राप्त करके किसी भी सार्थक प्रगति को रोकने के लिए विभिन्न अंतर्वादीय याचिकाएँ (interlocutory petitions) दायर कर अपनी शक्ति का लाभ उठाते हैं. यह न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता को संदेह के दायरे में लाता है.
विकृत लोकतंत्र
जहाँ विधि का शासन अप्रभावी तथा सामाजिक विभाजन अधिक प्रभावी एवं अनियंत्रित हैं, वहाँ एक उमीदवार की आपराधिक प्रतिष्ठा एक गुण के रूप में स्वीकार की जाती है. यह राजनीति के अपराधीकरण तथा राजनीति में धन एवं बाहुबल के प्रयोग की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देता है.
संसद की कार्य क्षमता को प्रभावित करता है
ऐसी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति सांसद की कार्य प्रणाली में बाधा उत्पन्न करते हैं, जो कालांतर में संसदीय कार्य क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है.
अपराधिक प्रवृत्ति का स्थायीकरण
चूँकि राजनीतिक दलों द्वारा केवल उम्मीदवारों को जीतने की क्षमता (दल के आंतरिक लोकतंत्र में बाधा पहुँचाने पर भी) पर अधिक ध्यान दिया जाता है अतः वे अधिक से अधिक प्रभावशाली तत्त्वों को दल में शामिल करते हैं. इस प्रकार, राजनीति का अपराधीकरण स्थाई बन जाता है और इससे सम्पूर्ण चुनावी संस्कृति पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
निजी कल्याण बनाम लोक कल्याण
कुछ सदस्य अवैध गठजोड़ में संलग्न हो जाते हैं जिससे घोर पूंजीवाद (crony capitalism) का मार्ग प्रशस्त हो जाता है. इस प्रकार संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADs) के लिए दी गई निधि के अपर्याप्त प्रयोग द्वारा लोक कल्याण की उपेक्षा करते हैं. केन्द्रीय सूचना आयोग के द्वारा निर्गत एक आँकड़े के अनुसार 2016-17 में लोकसभा सांसदों के लिए MPLADs के अंतर्गत अधिकृत 2,725 करोड़ रुपये की कुल निधि में से केवल 1,620 करोड़ रुपये जारी किये गये.
निहितार्थ
कहना न होगा कि राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण लोकतंत्र की जड़ों पर कुठाराघात कर रहा है. अतः इस विकृति दूर करने के लिए संसद को शीघ्र ही कदम उठाने होंगे. राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को चाहिए कि वे नामांकन के पश्चात् प्रत्याशियों के विरुद्ध लंबित आपराधिक वादों का प्रचार-प्रसार स्थानीय प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से करें.
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