कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत लगातार बढ़ रही है, जिससे भारत सरकार का भी खर्च बढ़ जाता है. यदि केंद्र सरकार को इस खर्च को कम करना है तो इसके लिए पेट्रोलियम क्षेत्र में सुधार लाने की अत्यंत जरूरत है.
जैसे आप सिलेंडर गैस लेते हो तो सरकार आपको उसके लागत से कम कीमत पर सिलेंडर provide कराती है. बाकी की कीमत सरकार खुद वहन करती है. ठीक उसी तरह सरकार कच्चे तेल और खाद की खरीद पर भी subsidy provide करती है. पर अधिक subsidy provide कराने से हम-आप को तो फायदा होता है पर अंततः सरकार का बोझ बढ़ता है और देश पर नकारात्मक असर पड़ता है.
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से केंद्र सरकार पर क्या असर पड़ा है?
- 2017-18 के पहले सात महीनों में सरकार का पेट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी की कीमत 30% से अधिक बढ़ गया है.
- अप्रैल-अक्टूबर 2016 में, यह 16,237 करोड़ रुपये था और 2017 के अप्रैल-अक्टूबर में यह करीब 21,246 करोड़ रुपये हो गया.
- यदि यही दर रही तो वर्तमान वर्ष के अंत आते-आते लगभग 35,000 करोड़ रुपये का कुल पेट्रोलियम सब्सिडी बिल हो सकता है, जो 25,000 करोड़ रुपये के बजट सब्सिडी प्रावधान से काफी अधिक है.
सरकार ने खाद पर होने वाले खर्च को कैसे कम किया?
- वित्तीय वर्ष 2017-18 में यूरिया के लिए सब्सिडी की कीमत में लगभग 30 प्रतिशत गिरावट आयी है.
- पिछले साल अप्रैल-अक्टूबर के दौरान यूरिया सब्सिडी पर 39,123 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, इस वर्ष इस अवधि में व्यय केवल 27,398 करोड़ रुपये है.
- यूरिया सब्सिडी बिल में यह भारी कमी मुख्य रूप से नीम-लेपित यूरिया (neem-coated urea) के चलते हुई है.
- हाल ही में यूरिया के लिए एक नया पैकेज दिया गया है जिसमें यूरिया उचित मात्रा में होती है. इस कारण फसलों में आवश्यकता से अधिक यूरिया का छिड़काव रुकेगा. नए पैकेज का दाम थोड़ा ज्यादा है पर इसकी खपत कम होगी. इस प्रकार खर्च पर कम असर पड़ेगा.
- इस प्रकार सरकार यूरिया के व्यय को कम करने के साथ-साथ यूरिया के अत्यधिक उपयोग को भी बढ़ावा दिया है.
पेट्रोलियम क्षेत्र में क्या सुधार लाने की जरूरत है?
- सुधार के पहले चरण के रूप में, सरकार ने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी की है.
- बाजार से सबसे सही मूल्य पर कच्चे तेल खरीदने के लिए रिफाइनरियों के बीच प्रतिस्पर्धा और उनके तकनीकी कौशल के विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
- साथ ही खुदरा विक्रेताओं को अपनी आवश्यकता के अनुसार खर्च और लागत को देखते हुए उत्पाद का मूल्य स्वयं निर्धारित करने की छूट दी जा सकती है.
- वर्तमान में पेट्रोलियम उत्पादों के दाम का निर्धारण विभिन्न खुदरा विक्रेताओं के बीच सामूहिक समझौते के आधार पर किया जाता है.
Source: Business Standard