उपचारात्मक याचिका – Curative petition Explained in Hindi

Sansar LochanIndian Constitution

आज हम क्यूरेटिव पेटीशन (curative petition) अर्थात् उपचारात्मक याचिका क्या होती है उसके बारे में चर्चा करेंगे.

कहते हैं एक बेगुनाह को मारना इंसानियत को मारने के बराबर है. भले ही हम इंसानों ने जंगलराज और अपराध को खत्म करने के लिए अदालतों की व्यवस्था की, पर हम आखिर में हम इंसान ही हैं. इसलिए गलती करने की गुंजाइश तो बनी ही रहती है. इन अदालतों में हर अपराध के लिए तमाम कानून बनाए गए हैं. हर फैसले में तमाम सुबूत, गवाह और बयानात के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचा जाता है. पूरी कोशिश की जाती है कि गुनहग़ार को उसके गुनाह की सही सजा मिले और किसी भी सूरत में बेगुनाह को इस कानूनी मकड़जाल से काफी दूर रखा जाए.

संविधान में निचली अदालत के ऊपर देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में दरवाजा खटखटाने का प्रावधान है और सुप्रीम कोर्ट से भी फैसला आने के बाद बिल्कुल अंतिम चरण में फैसले को बदलने या कम से कम टालने की अपील की जा सकती है. क्योंकि कई मामलों में ऐसा महसूस किया जाता है जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उसमें सुधार की गुंजाइश बाकी रह जाती है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट से दोषी करार किसी व्यक्ति को फांसी की सजा से बचने के लिए उसके पास दो विकल्प होते हैं – दया याचिका और पुनर्विचार याचिका.

दया याचिका के तहत राष्ट्रपति के पास गुहार लगाई जाती है जबकि पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में ही लगाई जाती है. पर इन दोनों याचिकाओं के खारिज हो जाने के बाद दोषी के पास क्यूरेटिव पेटीशन (curative petition) का विकल्प बचता है. ताजा मामला निर्भया से जुड़ा हुआ है.

चर्चा में क्यों?

निर्भया वाद में दण्डित अभियुक्तों में से दो ने सर्वोच्च न्यायालय में उपचारात्मक याचिकाएँ (Curative petition) समर्पित की हैं. ज्ञातव्य है दिल्ली सत्र न्यायालय ने इस मामले से जुड़े चार अभियुक्तों को जनवरी 22 को तिहाड़ जेल में फाँसी देने का आदेश दे रखा है.

उपचारात्मक याचिका क्या है?

  1. उपचारात्मक याचिका दायर करना वह अंतिम न्यायिक उपाय है जिसका कोई व्यक्ति सहारा ले सकता है. यह उपाय तब लगाया जाता है तब किसी व्यक्ति को यह लगे कि उसे सर्वोच्च न्यायालय से भी वास्तविक न्याय नहीं मिला हो और उस व्यक्ति को यह लगता हो कि सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय में न्यायालय से कोई चूक हुई है. यह उपचार अति विरल मामलों में ही उपलब्ध होता है. इसमें जज द्वारा चैम्बर के अंदर बैठकर परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लिया जाता है. किसी-किसी विरल मामले में ऐसी याचिका पर खुले न्यायालय में भी सुनवाई होती है. यदि यह याचिका भी खारिज कर दी जाती है तब दोषी के पास राष्ट्रपति के पास क्षमादान याचिका दायर करने का अंतिम विकल्प बचता है.
  2. उपचारात्मक याचिका की अवधारणा सबसे पहले तब सामने आई थी जब सर्वोच्च न्यायालय ने रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एक अन्य (2002)/ Rupa Ashok Hurra vs. Ashok Hurra and Anr. (2002) के अंतर्गत यह व्यवस्था दी थी कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग रोकने और न्याय की अस्पष्ट अवहेलना के निराकरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय चाहे तो अपने न्याय-निर्देशों पर अपनी मूलभूत शक्तियों का प्रयोग करते हुए फिर से विचार कर सकता है. यही आगे चलकर उपचारात्मक याचिका (curative petition) कहलाई.

उपचारात्मक याचिका (curative petition) स्वीकारने के लिए आवश्यक शर्तें

  • याचिकाकर्ता को यह सिद्ध करना होगा कि उसके मामले में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की वास्तविक अवेहलना हुई है और न्यायाधीश के द्वारा पक्षपात बरता गया है.
  • याचिकाकर्ता को बतलाना होगा कि उसके द्वारा उल्लिखित आधार समीक्षा याचिका में वर्णित हुए थे, परन्तु इन्हें बिना पूर्ण विचार के निरस्त कर दिया था.
  • उपचारात्मक याचिका (curative petition) उस बेंच के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों को भेजी जाती है जिसने आदेश पारित किया था.
  • यदि जजों में से अधिकांश सहमत हों कि उपचारात्मक याचिका सुनवाई के योग्य है तब उसे उसी बेंच को यथासंभव भेज दिया जाता है. यदि याचिका तथ्यहीन हो तो न्यायालय याचिकाकर्ता पर कोस्ट (cost) भी लगा सकता है.

समीक्षा की शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 137 में यह प्रावधान है कि संसद‌ द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति होती है.

Tags : क्यूरेटिव पेटीशन. Meaning of Curative petition in Hindi in context of Nirbhaya case.

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